अपने शहजादे को हिंदी सिखाने के लिए औरंगजेब ने बनवाया था शब्दकोश, बेहद खास थी ये डिक्शनरी

डेस्क: मुगल साम्राज्य ने अच्छे से अच्छा और बुरे से बुरा दिन देखा है। पीढ़ियों तक चली इस सल्तनत का सबसे क्रूर बादशाह औरंगजेब को माना जाता है। जबरदस्ती या ताकत दिखा कर उसने वो हर एक चीज हासिल की जो उसको चाहिए थी। उसने खुद अपने भाई तक की हत्या की, पिता को बंदी बनाया पर जब अपने बच्चो की परवरिश की बात आई तो उसने हर वो एक कोशिश की जिससे वो अपने बेटों को लायक बना सके। कहा जाता है कि अपने अंतिम समय में उसको अपने कर्मों पर इतना पछतावा रहा है कि अपने आप को उसने पापी कह दिया था। यही कारण है की औरंगजेब को मुगलिया सल्तनत की सबसे जटिल शख्सियत कहा गया है, जिसे समझना आसान नहीं रहा।

मुगल सल्तनत के छठे बादशाह औरंगजेब का जन्म 3नवंबर, 1618 हुआ था। उसने भारतीय उपमहाद्वीप पर आधी सदी से भी ज्यादा समय तक शासन किया था। वो अपने समय का सबसे बड़ा और शक्तिशाली शासक था जिसने अपने शासन में मुग़ल साम्राज्य अपने विस्तार के चरमोत्कर्ष पर पहुंचा। कई सारी बुराइयों से भरे होने के बाद भी उसने कुछ ऐसा भी काम किया है जिसे सराहा गया है। अपने बेटे को बेहतर तालीम देने के लिए औरंगजेब ने हिन्दी-फारसी शब्दकोश तैयार कराया था और उसका नाम ‘तोहफ़तुल-हिन्द’ रखा गया था।

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मुगलों को हिन्दी सिखाने वाला शब्दकोश

मुगलों को हिन्दी सिखाने वाला शब्दकोश : ‘औरंगज़ेब, एक नई दृष्टि’ किताब में इतिहासकार ओम प्रकाश प्रसाद ने लिखा है कि “औरंगजेब में उस शब्दकोश को इस तरह से तैयार कराया कि कोई भी फारसी जानने वाला इंसान आसानी से हिन्दी को सीख सके।” आपको बता दें हाल ही में इसकी एक प्रतिलिपि पटना की मशहूर खुदाबख्श खां ओरियंटल लाइब्रेरी में हाल में रखी गई है। इसे आम लोगों के लिए वहां रखवाया गया है। बादशाह ने ‘तोहफ़तुल-हिन्द’ शब्दकोष को अपने तीसरे बेटे आजम शाह के लिए बनवाया ताकि वो हिन्दी सीख सके। आजम शाह का पूरा नाम अबुल फैज़ क़ुतुबउद्दीन मोहम्मद आज़म था।

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1674 में तैयार हुआ शब्दकोश

1674 में तैयार हुआ शब्दकोश : इस डिक्शनरी को बनाने का आदेश मुगल बादशाह ने मिर्ज़ा ख़ान बिन फ़ख़रूद्दीन मुहम्मद को दिया था। महीनों तक इस पर काम किया गया। फिर कई महीनों की मेहनत के बाद ये शब्दकोष साल 1674 में बन कर तैयार हो गया है। बता दें वर्तमान में भी इसकी कई प्रतिलिपियां पुस्तकालयों में मौजूद हैं। विदेशी मीडिया बीबीसी की रिपोर्ट में ख़ुदा बख़्श खां लाइब्रेरी की डायरेक्टर शाइस्ता बेदार का कहना है कि “उस डिक्शनरी में हिंदी और ब्रजभाषा के शब्दों का इस्तेमाल किया गया। डिक्शनरी में शब्दों के उच्चारण करने का तरीका और फिर उसके फारसी मायने को समझाया गया है। जैसे- चंपा के फूल का अर्थ बताते हुए लिखा गया है कि ऐसा जर्द यानी पीला फूल जिसमें हल्की सफेदी नजर आती है। जिसका इस्तेमाल हिन्दुस्तानी कवि अपनी माशूका की खूबसूरती को बयां करने के लिए करते हैं।”

इस कारण से चर्चा में आई थी पुस्तक

इस कारण से चर्चा में आई थी पुस्तक : उस समय दरबार में फारसी शब्दों का इस्तेमाल होता था। इसी कारण से मुगल दरबार में फारसी बोलने वालों की संख्या ज्यादा थी। पर हिंदुस्तान में हिंदी भाषा प्रमुख थी। ऐसे में धीरे-धीरे फारसी जुबान के साथ हिन्दी के शब्द बोले जाने लगे थे। शहजादे के लिए बनवाए गए उस शब्दकोश में भारतीय औषधि, ज्योतिष, संगीत और दूसरी विधाओं से जुड़ी जानकारियां उपलब्ध थीं।

शाइस्ता बेदार कहती है, “उस शब्दकोष को बनवाने का उद्देश्य हर समुदाय के लोगों के बीच समरसता को बढ़ावा देना था।” इतिहासकारों का कहना है कि “औरंगजेब खुद अरबी और फारसी का अच्छा जानकार था क्योंकि परिवार की पिछली पीढ़ियों में इसी भाषा का इस्तेमाल होता रहा ह. इसके बावजूद हिन्दी भाषा को लेकर उसका रवैया नकारात्मक बिल्कुल नहीं था।”

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1707 में औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद 3 महीने के लिए शहजादे आजम शाह मुगल सल्तनत के बादशाह बने। आजम शाह से औरंगजेब को बेहद लगाव था। उसने अपने शासन काल के समय ही अपने बेटे को उत्तराधिकारी घोषिकर कर दिया था। लेकिन आजम शाह के साथ भी वही हुआ जो पिछली पीढ़ियों में होता आया था- सत्ता को हासिल करने के लिए खेला जाने वाला गृह युद्ध।

जिसके बाद 12 जून 1707 को आगरा के पास स्थित जाजाउ के युद्ध में उसे उसके सौतेले भाई शाह आलम ने उसकी हत्या कर दी। और इसके साथ आजम शाह के साथ वही हुआ जो सत्ता पाने के लिए उसके पिता ने किया था। बता दें आजम शाह की कब्र भी महाराष्ट्र के ख़ुल्दाबाद में बनवाई गई जहां औरंगजेब को दफनाया गया।

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