असली चाणक्य तो नीतीश निकले.. डेढ़ महीने पहले ही मोदी-शाह को दे दी थी मात.. पढ़िए पूरी बिसात

nitish sazish नीतीश कुमार वैसे नेता नहीं हैं जो आवेश में कोई फैसला लेते हैं। उनका हर फैसला नपा तुला और प्लानिंग के तहत होता है। वो चौसर पर पासा फेंकने से पहले 10 बार सोचते हैं और राजनीति के इस शतरंज में किस प्यादे का कैसे इस्तेमाल करना है वो इसे बखूबी जानते हैं। आप सब को लग रहा होगा कि ये सब आरसीपी सिंह के चक्कर में हुआ तो ऐसा नहीं है। नीतीश कुमार पिछले एक साल से बदले की आग में जल रहे थे और जिसकी बिसात डेढ़ महीने पहले उन्होंने रच दी थी ।

नीतीश कुमार वैसे नेता नहीं हैं जो आवेश में कोई फैसला लेते हैं। उनका हर फैसला नपा तुला और प्लानिंग के तहत होता है। वो चौसर पर पासा फेंकने से पहले 10 बार सोचते हैं और राजनीति के इस शतरंज में किस प्यादे का कैसे इस्तेमाल करना है वो इसे बखूबी जानते हैं। आप सब को लग रहा होगा कि ये सब आरसीपी सिंह के चक्कर में हुआ तो ऐसा नहीं है। नीतीश कुमार पिछले एक साल से बदले की आग में जल रहे थे और जिसकी बिसात डेढ़ महीने पहले उन्होंने रच दी थी ।

नीतीश समझ चुके थे चाल
दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद ही नीतीश कुमार बीजेपी की हर चाल को समझ चुके थे। बीजेपी पहले चिराग के जरिए नीतीश कुमार को चुनाव में औकात बता चुकी थी। लेकिन, फिर भी नीतीश चुप थे क्योंकि मुख्यमंत्री का पद बीजेपी ने नीतीश को दिया था ।

वीआईपी की टूट में था संदेश
लेकिन नीतीश कुमार तब सजग हो गए जब बीजेपी ने मुकेश सहनी की पार्टी के सभी 3 विधायकों को तोड़कर अपनी पार्टी में मिला लिया। इससे उन्हें समझ में आ गया कि बीजेपी अपनी सहयोगी पार्टी को भी नहीं छोड़ेगी। साथ ही बीजेपी को सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा मिल गया।

फिर नीतीश ने चली चाल
बिहार विधानसभा में बीजेपी डेढ़ महीने पहले तक सबसे बड़ी पार्टी थी। उसने वीआईपी के तीनों विधायकों को शामिल कराया और आरजेडी से ये तमगा छीन लिया। नीतीश को यहीं से चाल समझ में आ गई थी, उन्होंने विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी को पीछे छोड़ने के लिए आरजेडी में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के चार विधायकों को शामिल करा दिया। ऐसा करके नई सरकार का दावा करने के बीजेपी के मंसूबे पर पानी फिर गया।

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ऑपरेशन आरसीपी सिंह
आरसीपी सिंह का झुकाव बीजेपी की तरफ था। ऐसे में नीतीश ने उन्हें केंद्रीय मंत्री पद से हटाने के लिए राज्यसभा नहीं भेजा। फिर आरसीपी को नोटिस देकर 9 साल में 58 प्लॉट खरीदने का आरोप लगाया और इसमें जवाब मांगा। मजबूरन आरसीपी सिंह को इस्तीफा देना पड़ा।

सोनिया को साधा
नीतीश को डर था कि कहीं कांग्रेस के विधायक टूट कर बीजेपी में न जा मिलें। इसलिए उन्होंने सोनिया गांधी को फोन करके सजग किया और महागठबंधन में शामिल होने को लेकर बात की।

BJP कर रही थी बदनाम
नीतीश कुमार आरजेडी की इफ्तार पार्टी में शामिल हुए। लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी और उनकी पार्टी आरजेडी से बढ़ती नीतीश की नजदीकी से बीजेपी डर गई थी। जिसके बाद से बीजेपी नेताओं ने सुशासन को लेकर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए गए। बीजेपी अपने दम पर सरकार बनाने की तैयारी में जुट गई।

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