आज हम आपको बताने वाले हैं ऐसे इन्सान के बारे में जिसका नाम अक्सर ही आपको कहीं न कहीं सुनने को मिल ही जाता है। मुल्ला-दो-प्याजा मुगलिया सल्तनत का ऐसा इंसान रहा था जिसके नाम को और काम को लेकर लोगों में हमेशा ही सबसे ज्यादा दिलचस्पी थी। मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल था। मुल्ला-दो-प्याजा का असली नाम बहुत कम लोगों को पता है। मुला दो प्याजा का असली नाम था अब्दुल हसन। वह ज्यादातर अपना समय किताबें पढ़ने में व्यतीत करते थे। उनको कभी भी साधारण जीवन जीना मंजूर नहीं था। बस इसी के कारण उनको अकबर के नौरत्नों में शामिल होना था। और ऐसा लड़ने में वह कामयाब भी हो गए थे।
मुल्ला दो प्याज़ा कभी भी अपने आपको किसी से कम नहीं आंकते थे, उनको काफी समय के बाद मुर्गीखाने का प्रभारी बनाया गया था। बहुत ज्यादा पढ़े लिखे होने के बाद भी उन्होए मुर्गीखाने की जिम्मेदारी संभाली थी लेकिन वह कभी भी अपने लक्ष्य से नहीं भटके। बादशाह अकबर के किचन में जो बच जाता था उसको मुल्ला दो प्याजा मुर्गी को खिला देते थे इस वजह से काफी पैसा बच जाता था ,इस बात से खुश होकर बादशाह अकबर ने नई जिम्मेदारी मुल्ला दो प्याजा को दे दी। यह जिम्मेदारी पुस्तकालय संभालने की थी।
इस पुस्तकालय को उन्होंने बहुत ही अच्छे से चमकाया और एक साल के भीतर ही यह सजावट देखकर बादशाह अकबर खुश हो गए, इसके बाद उन्होंने मुल्ला दो प्याजा को अपने नौरत्नों में शामिल कर लिया। मुल्ला दो प्याजा की आवाज़ भी बहुत दमदार थी जिसके चलते वह मस्जिद के मौलाना बनकर भी रहे। इसके बाद मुल्ला दो प्याजा की दोस्ती फैजी से हो गई और फैजी नौरत्नों में ही शामिल था , ऐसा प्रतीत होने लगा की अब मुल्ला दो प्याजा बादशाह अकबर के 9 रत्नों में शामिल हो गए।
1 दिन फैजी ने मुल्ला दो प्याजा को शाही दावत पर बुलाया और फिर मुर्ग गोश्त बनवाया, जब इस डिश का नाम पूछा तो फैजी ने उसे मुर्ग दो प्याजा बताया। ये सब कुछ इस कदर उसके दीवाने हुए कि अब कभी शाही दावत में बुलाया जाता तो यही बनवाया जाता। इस पकवान में प्याज का खास तरह का इस्तेमाल होता था। यही इसकी ख़ास खूबी थी। जब मुगल बादशाह ने अब्दुल हसन को शाही बावर्चीखाने की जिम्मेदारी तो उन्होंने अकबर के सामने अपनी देखरेख में बने मुर्ग दो प्याजा को पेश किया था, उसका जायका अकबर को खूब पसंद आया कि अब्दुल हसन को ‘दो प्याजा’ की उपाधि से नवाजा गया। मस्जिद में इमाम रह चुके अब्दुल को लोग मुल्ला भी कहते थे। यहीं से इनका नाम मुल्ला-दो-प्याजा पड़ गया।