इस्लाम के 4 पवित्र महीनों में से एक है मोहर्रम

सुधांशु शेखर /सिटी हलचल न्यूज़

इस्‍लाम धर्म के नए साल की शुरुआत मोहर्रम महीने से होती है, यानी कि मुहर्रम का महीना इस्‍लामी साल का पहला महीना होता है, इसे हिजरी भी कहा जाता है। हिजरी सन् की शुरुआत इसी महीने से होती है, यही नहीं मुहर्रम इस्लाम के चार पवित्र महीनों में से एक है।

इस्लाम धर्म में मोहर्रम का महत्व अलग ही है। आसान शब्दों में कहें तो मोहर्रम मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए एक प्रमुख त्यौहार है। मुहर्रम पर जानकारी देते हुए मुफ्ती रिजवान ने बताया कि मोहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है। पैगंबर मोहम्मद ने मोहर्रम को अल्लाह का महीना बताया है। इस महीने में भी इस्लामिक किताबों में रोजा रखने की बात कही गई है। हालांकि यह रोजा रमजान के रोजे की तरह अनिवार्य नहीं है। मतलब कोई भी व्यक्ति अपनी खुशी से मोहर्रम के रोजे रख सकता है।हदीस-ए-पाक के मुताबिक जो शख्स मोहर्रम महीने की नवीं और दसवीं तारीख को रोजा रखता है उसके पिछले 2 सालों के गुनाह माफ हो जाते हैं। वहीं इस महीने में एक रोजा रखने से 30 रोजा रखने के बराबर सवाब मिलता है। इस साल मोहर्रम का महीना रविवार 31 जुलाई शुरू हो गया है। इस महीने की दसवें दिन को आशूरा कहा जाता है। इस हिसाब से इस साल 9 अगस्त को आशूरा है। आशूरा का इस्लाम धर्म में विशेष महत्व है।

आशूरा का इतिहास और महत्व

जानकारों के मुताबिक इराक की राजधानी से 100 किलोमीटर की दूरी पर कर्बला में 10 अक्टूबर 680 को इब्न ज़्याद और हजरत इमाम हुसैन के बीच जंग हुआ था। इस जंग में हजरत इमाम हुसैन की जीत हुई थी, लेकिन धोखे से ज़्याद के कमांडर शिम्र ने पैग़ंबरे इस्लाम के नवासे और उनके परिवार को कर्बला में शहीद कर दिया था। यह घटना मोहर्रम महीने की दसवीं तारीख को घटी थी। इतिहास के पन्नों में कर्बला की घटना को अति क्रूर और निंदनीय बताया जाता है। इसलिए मोहर्रम की दसवीं तारीख को मुस्लिम समुदाय के लोग गम के रुप में मनाते हैं।

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