क्या दिवाली पर फूटने वाले पटाखे मुग़लों की देन हैं ? कैसे हुई थी शुरुआत -जानें

हर छोटी-बड़ी खुशियों में मुगलों के दौर में पटाखे छुड़ाए जाते थे. मुगल साम्राज्य में पटाखों की परंपरा काफी हावी रही. यह बात यहीं से चली कि क्या भारत में पटाखे मुगल लेकर आए थे. कई ऐसी जानकारियां इतिहास के पन्ने पलटने पर सामने आती हैं जो चौंकाती हैं. इतिहासकारों का मानना है कि दीपावली को प्राचीन ग्रंथ में रोशनी का त्योहार माना गया है, शोर-शराबे का नहीं. समृद्धि के उत्सव के दौर पर इसे पेश किया गया है.

कुछ इतिहासकारों का कहना है कि जब 1526 में काबुल सुल्तान बाबर मुगल सेना के साथ दिल्ली के सुल्तान पर हमला करने के लिए पहुंचा तो बारूदी तोपें अपने साथ लाया. भारतीय सैनिक तोपों की आवाजें सुनकर डर गए. तर्क दिया गया कि देश में उस दौर तक पटाखे जलाने की परंपरा नहीं थीं. ऐसा अगर होता तो भारतीय सैनिक घबराते नहीं और न ही तेज आवाज से डरते.

कुछ इतिहासकारों का यह भी कहना है कि मुगलों के बाद आतिशबाजी का दौर शुरू हुआ, हालांकि,उनमें इस बात को लेकर अलग-अलग मत हैं। बीबीसी की एक रिपोर्ट में मुगल इतिहास की जानकारी रखने वाले प्रोफेसर नजफ हैदर का कहना है कि यह कहना गलत होगा कि भारत में मुगल पटाखे या उसका चलन लेकर आए थे. इसके पीछे कई वजह हैं जैसे कि मुगलों के दौर की पेंटिंग्स को देखने से इसका पता चलता है. पटाखों को जलते हुए दारा शिकोह की शादी से जुड़ी पुरानी पेंटिंग्स में दिखाया गया है. मुगलों से पहले ऐसा ही नजारा बनी पेंटिंग में भी नजर आता है. इससे यह बात पुख्ता होती है कि उनसे ज्यादा पुराना पटाखों और आतिशबाजी का दौर है.

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