हैलो कृषि ऑनलाइन: किसान मित्रों चना, जो कि रबी सीजन की प्रमुख फसल है, अधिकांश क्षेत्रों में बोई जा चुकी है, लेकिन वर्तमान में कई क्षेत्रों में चना प्रभावित है। वसंतराव नाइक मराठवाड़ा कृषि विश्वविद्यालय, परभणी में ग्रामीण कृषि मौसम विज्ञान सेवा योजना की विशेषज्ञ समिति ने कृषि मौसम के आधार पर कृषि सलाह की सिफारिश निम्नानुसार की है। आइए जानते हैं…
फसल प्रबंधन
1) ग्राम: चना बोने के 25 से 30 दिन बाद 19:19:19 खाद 100 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। अगेती बोई गई चना फसल में आवश्यकतानुसार जल प्रबंधन करना चाहिए। चने की फसल में घाट आर्मीवर्म संक्रमण के प्रबंधन के लिए प्रति एकड़ 20 अंग्रेजी टी-आकार का पक्षी स्टॉप और घाट सेना सर्वेक्षण के लिए प्रति एकड़ 2 कार्य गंध जाल स्थापित किया जाना चाहिए। चना बेधक प्रबंधन के लिए 5% (NSKE) नीम्बोली अर्क या क्विनोल्फॉस 25% EC 20 मिली या इमेमेक्टिन बेंजोएट 5% 4.5 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। वर्तमान में चने की फसल में मनकुजाव्या एवं मार के प्रबंधन हेतु कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में डालना चाहिए अथवा बायोमिक्स का प्रयोग करना चाहिए। बायोमिक्स लगाने के लिए पंप के नोजल को हटा दें और प्रति 10 लीटर पानी में 200 ग्राम (पाउडर) / 200 मिली (तरल) डालें।
2) हल्दी: हल्दी में कंद प्रबंधन के लिए बायोमिक्स 150 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में डालना चाहिए। हल्दी पर सुंडी के प्रबंधन के लिए क्विनालफॉस 25% 20 मि.ली. या डाइमेथोएट 30% 15 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर 15 दिनों के अंतराल पर अच्छी गुणवत्ता वाले स्टीकर से छिड़काव करें। उजागर कंदों को मिट्टी से ढक देना चाहिए। (केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड द्वारा हल्दी की फसल पर कोई लेबल का दावा नहीं किया गया है और शोध के निष्कर्ष विश्वविद्यालय की सिफारिश में दिए गए हैं)।
3) गन्ना : यदि गन्ने की फसल तना छेदक से प्रभावित हो तो प्रबंधन के लिए क्लोरपाइरीफॉस 20% 25 मिली या क्लोरट्रानोलेप्रोल 18.5% 4 मिली प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। गन्ने की फसल में आवश्यकतानुसार पानी का प्रबंध करना चाहिए।
4) करदई : यदि समय से बोई गई ज्वार की फसल में ज्वार का प्रकोप दिखे तो इसके प्रबंधन के लिए डाईमेथोएट 30% 13 मिली या एसीफेट 75% 10 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। केसर की फसल में खरपतवार के प्रकोप के आधार पर एक से दो निराई गुड़ाई बुवाई के 25 से 50 दिन बाद करनी चाहिए। अगेती बुवाई वाली ज्वार की फसल में आवश्यकतानुसार पानी का प्रबंधन करना चाहिए।