डीएम ने मवेशियों में लंपी त्वचा रोग को लेकर की बैठक, दिए कई अहम निर्देश – Nalanda Darpan – गाँव-जेवार की बात।

बिहार शरीफ (नालंदा दर्पण)। मवेशियों के बीच लंपी त्वचा रोग का मामला संज्ञान में आने के बाद जिलाधिकारी शशांक शुभंकर में आज पशुपालन विभाग के पदाधिकारियों के साथ हरदेव भवन सभागार में बैठक की।

लंपी त्वचा रोग एक विषाणुजनित रोग है, जो गो एवं भैंस जाति के पशुओं में होता है। इस रोग के विषाणु मच्छर, टिक्स, बाइटिंग फ्लाई  इत्यादि द्वारा फैलते हैं।

इस बीमारी के लक्षण 2 से 3 दिन तक हल्का बुखार होना, छोटे-छोटे गोलाकार गांठ पूरे शरीर की चमड़ी पर  होना, मुंह- श्वासनली एवं गले में घाव, लिंफ नोड का बढ़ा होना,  पैरों में सूजन, दूध उत्पादन में कमी आदि है।

इस बीमारी का उपचार पशु चिकित्सक की सलाह के अनुरूप ही किया जाना चाहिए। पशु चिकित्सक की सलाह पर 5 से 7 दिन तक चिकित्सा किया जाना चाहिए। त्वचा पर एंटीसेप्टिक दवाओं, जिसमें मक्खी/मच्छर भगाने की क्षमता हो, का उपयोग तथा मल्टीविटामिन औषधि का उपयोग किया जाना चाहिए।

यह यह संक्रामक रोग है जिसका संक्रमण सिर्फ एक मवेशी से दूसरे मवेशी के बीच ही हो सकता है। इस बीमारी के प्रसार के रोकथाम के लिए उपयुक्त जानकारी एवं सुरक्षा से संबंधित उपायों का अनुपालन ही सबसे सुरक्षित एवं कारगर तरीका है।

संक्रमित एवं रोगग्रस्त पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए। पशु स्थल को नियमित रूप से विसंक्रमित करना चाहिए। प्रभावित पशुओं की देखभाल करने वाले को ग्लव्स एवं मास्क का उपयोग करना चाहिए।

पशुओं की मृत्यु की स्थिति में पशु शव को गहरे गड्ढे में स्वच्छता उपायों के साथ दफन करना चाहिए। प्रभावित संक्रमण क्षेत्रों में रोग की पुष्टि होने पर 10 किलोमीटर के क्षेत्र में जीवित पशुओं के व्यापार, पशु मेला इत्यादि में भाग लेने पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

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प्रभावित क्षेत्रों गौशालाओं एवं आसपास के क्षेत्रों को मच्छर/टिक्स/ फ्लाई इत्यादि से मुक्त करने हेतु कीटनाशक का उपयोग किया जाना चाहिए।

रोग ग्रसित पशुओं को रखने की जगह एवं उपयोग में लाए गए वाहन को डिसइनफेक्ट करने हेतु फिनोल, सोडियम हाइपोक्लोराइट एवं क्वॉटरनरी अमोनियम कंपाउंड का निर्धारित अनुपात में उपयोग किया जाना चाहिए।

लंपी त्वचा रोग से ग्रसित पशुओं का उपयोग प्रजनन कार्य के लिए नहीं किया जाना चाहिए। प्रायःलक्षण के अनुसार चिकित्सा से पशु 2 से 3 सप्ताह में ठीक हो जाता है, परंतु दूध उत्पादन में कमी की समस्या कई सप्ताह तक बनी रह सकती है। इस रोग से पशुओं में मृत्यु दर काफी कम है।

पशुपालन विभाग द्वारा बीमारी के प्रसार के रोकथाम को लेकर मानक संचालन प्रक्रिया एसओपी जारी किया गया है। इससे संबंधित पोस्टर मुद्रित कराया गया है। इस पोस्टर का प्रदर्शन प्रत्येक पंचायत एवं गांव स्तर पर सुनिश्चित करने का निर्देश जिलाधिकारी ने दिया।

प्रचार वाहन के माध्यम से ऑडियो संदेश द्वारा भी बचाव के उपाय का व्यापक प्रचार-प्रसार सभी पशुपालकों के बीच सुनिश्चित कराने को कहा गया। अन्य माध्यमों से भी पशुपालकों को जागरूक कराने का निर्देश दिया गया।

सभी टीवीओ को अपने प्रखंड अंतर्गत इस बीमारी से प्रभावित पशुओं की जानकारी गांव/ पंचायतवार संकलित रखने को कहा गया।

विभाग द्वारा निर्गत एसओपी का अक्षरशः अनुपालन सुनिश्चित कराने का निर्देश दिया गया। 3 दिनों के अंदर सभी टीवीओ को एसओपी का अनुपालन करा कर स्पष्ट प्रतिवेदन प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया।

वरीय पदाधिकारियों के क्षेत्र भ्रमण के क्रम में एसओपी के अनुपालन का स्थल जांच भी किया जाएगा। स्थल जांच के क्रम में अगर अनुपालन नहीं पाया जाएगा तो संबंधित टीवीओ के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।

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