कोढ़ा/शंभु कुमार
प्रखंड क्षेत्र के कई इलाकों व गलियों में छोटे-छोटे बच्चों व किशोरीयों को बड़े ही श्रद्धाभाव से करमा-धरमा पर्व मनाते हुए देखा गया। ग्रामीण क्षेत्रों में इसे झुर पूजा के नाम से भी जाना जाता है।इस पर्व में बड़े बुजुर्ग भी शामिल हुआ करते हैं। ताकि बच्चों में जो पर्व को लेकर जुनून है वो बरकरार रहे।पुरखों से चला आ रहा ये पर्व धीरे धीरे विलुप्त होता नज़र आ रहा है, मगर गावँ व गलियों में बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक इस प्रथा को कायम रखे हुए है।
बुजर्गों के अनुसार भाई-बहनों के प्रेम का मानक पर्व ‘करमा’ 17 सितंबर को सम्पन्न हुआ। ये करमों की पूजा का पर्व है। जिसे भाई-बहन मिलकर करते हैं। ये पर्व मुख्य तौर से झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है। ये पर्व भाद्रपद की एकादशी को मनाया जाता है।इस दौरान भाई-बहन करम के पौधे की पूजा करने के बाद ढोल-नगाड़ों पर नाचते और गाते भी हैं। इस पर्व में महिलाएं पूजा से पहले ‘निर्जला उपवास’ भी रखती हैं
और आंगन में करम पौधे की डाली गाड़कर पूजा करने के बाद पानी पीती हैं। ये पर्व तीन दिनों तक चलता है।पहले दिन भाई-बहन करम पौधे की डाल को लाकर घर में रोपते हैं, फिर दूसरे दिन बहनें निर्जला रहकर इसकी पूजा करती हैं और शाम को पानी पीकर उपवास खोलती हैं और फिर अगले दिन गीतों के साथ करम के पौधे को नदी या तालाब में प्रवाहित किया जाता है।