नहीं रहे भिखारी के रामचंद्र, ‘लौंडा नाच’ को जीवित रखने कि मरते दम तक की कोशिश, निधन से शोक की लहर

भोजपुरी का शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर के साथी या यों कहें कि उनके नाटक मण्डली के सदस्य रहे और ‘लौंडा नाच’ को जीवित रखने वाले आखरी लोक कलाकार रामचन्द्र माझी का बीमारी के बाद निधन हो गया।

रामचंद्र माझी के निधन से सारण जिला समेत पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई है। सांसद राजीव प्रताप रूडी और सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल और कला संस्कृति मंत्री जितेंद्र राय समेत तमाम हस्तियों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है। रामचंद्र मांझी भिखारी ठाकुर के मण्डली के आखिरी व्यक्ति बचे थे, जो बीती रात IGIMS में आखिरी सांस लिए।

पिछले कई दिनों से वे जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे थे।रामचंद्र मांझी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान सिर्फ 84 वर्षीय रामचन्द्र माझी जी का ही नहीं था, बल्कि पूरे सारण जिला का है या ये कहें कि पूरे भोजपुरिया समाज था। इससे सबने खुद को गौरवान्वित महसूस किया था।

नहीं रहे भिखारी के रामचंद्र ‘लौंडा नाच को जीवित रखने भोजपुरी का शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर के साथी या यों कहें कि उनके नाटक मण्डली के सदस्य रहे और ‘लौंडा नाच’ को जीवित रखने वाले आखरी लोक कलाकार रामचन्द्र माझी का बीमारी के बाद निधन हो गया।

‘लौंडा नाच’ भोजपुरिया समाज में बहुत प्रसिद्ध रहा है। इस सम्मान को दिलाने में ‘लौंडा नाच’ पर काम करने वाले अध्येता व व्याख्याता जैनेंद्र दोस्त का बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने दस्तावेजीकरण के साथ सार्थक पहल किया, तब कहीं जाकर अपने बुजुर्ग अभिभावक को यह सम्मान मिला।

सारण के तुझारपुर गाँव में जन्में रामचंद्र माझी ने लगभग 10 वर्ष के उम्र से ही अदाकारी शुरू कर दिया। शीघ्र ही ये प्रसिद्ध लोक कलाकार भिखारी ठाकुर के सम्पर्क में आ गए। भिखारी ठाकुर के जाने के बाद भी उनकी परम्परा को जीवित रखने का श्रेय रामचंद्र माझी जी को जाता है। 2017 में इन्हें संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। ये उम्र के आखिरी पड़ाव पर भी ‘बिदेशिया’ और ‘बेटी-बेचवा’ के प्रसंग से दर्शकों को भावविभोर कर देते थे।

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