चीफ जस्टिस संजय क़रोल की खंडपीठ ने इस मामलें निर्णय देते हुए इस निर्णय की प्रति को अविलम्ब राज्य के मुख्य सचिव को उपलब्ध कराने का निर्देश भी दिया है।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सरकारी अफ़सर केवल उन गिने चुने ठेकेदारों के ही बकाए बिल का भुगतान करते हैं, जिनमे उनका स्वार्थ निहित है।
कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि किसी भी विभाग के समक्ष सरकारी ठेकेदारों का दावा यदि बनता है, तो उस दावे या अभ्यावेदन का निपटारा उस संबंधित विभाग को छह माह के भीतर करना होगा।कोर्ट ने रघोजी हाउस ऑफ़ डिस्ट्रीब्यूशन की याचिका पर सुनवाई की।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता प्रत्युष प्रताप सिंह ने खंडपीठ को बताया कि याचिकाकर्ता को 2017 में सोनपुर मेले में टेंट इत्यादि लगाने का कार्य राज्य सरकार द्वारा सौंपा गया था। लेकिन पाँच वर्ष बीत जाने के बाद भी याचिकाकर्ता के 21 लाख रुपये बकाए का भुगतान राज्य सरकार नहीं कर रही है।
इसके लिए याचिकाकर्ता ने कई बार विभाग को अभ्यावेदन दिया ,लेकिन उनके द्वारा न तो कोई जवाब दिया गया और न तो दावे के का निपटारा किया गया ।इस पर कोर्ट ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वह सुनिश्चित करे कि जिन मामलों निर्विवाद दावे प्रस्तुत किए गए हैं,उसका निपटारा भी शीघ्र किए जाने हेतु संबंधित विभागों को आदेश पारित करना चाहिए।
ऐसा निर्णय लेने के लिए अधिकृत व्यक्ति को उचित अवधि के भीतर आवश्यक कार्य करने के लिए निर्देशित किया जाना चाहिए।
जो सामान्य रूप से, जब तक कि कानून अन्यथा निर्धारित न करें, ऐसे दावे की प्राप्ति की तारीख से छह महीने से अधिक नहीं होना चाहिए । कोर्ट ने अपने फ़ैसले में बिहार लिटिगेशन पॉलिसी को लागू करने पर भी जोर दिया है।