डेस्क : देश भर में निजी स्कूल में पढ़ा रहे शिक्षकों के लिए एक अच्छी खबर है। सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि निजी स्कूलों में काम करने वाले शिक्षक भी कर्मचारी हैं और वे केंद्र सरकार द्वारा 2009 में संशोधित पेमेंट ग्रेच्युटी अधिनियम के तहत ग्रेच्युटी के भी हकदार हैं।
आपको बता दें कि PAJ अधिनियम 16 सितंबर, 1972 से लागू है। इसके तहत उस कर्मचारी को ग्रेच्युटी का लाभ देने का प्रावधान दिया है जिसने अपनी सेवानिवृत्ति, इस्तीफे या किसी भी अन्य कारण से संस्थान छोड़ने से पहले कम से कम 5 साल तक निरंतर नौकरी की है। केंद्र सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा 3 अप्रैल, 1997 को जारी एक अधिसूचना के माध्यम से इस अधिनियम को 10 या अधिक कर्मचारियों वाले शैक्षणिक संस्थानों पर भी लागू किया गया था। ऐसे में ये अधिनियम प्राइवेट स्कूलों पर भी लागू होते हैं।
कई हाईकोर्ट में केस हारने के बाद प्राइवेट स्कूलों ने साल 2009 के संशोधन को देश के शीर्ष अदालत में चुनौती दे दी थी। उनके अनुसार, छात्रों को शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षकों को ग्रेच्युटी भुगतान (संशोधन) अधिनियम 2009 की धारा 2(E) के तहत कर्मचारी नहीं माना जाना चाहिए। वे अहमदाबाद प्राइवेट प्राइमरी टीचर्स एसोसिएशन के मामले में शीर्ष अदालत के जनवरी 2004 के फैसले पर भरोसा रखते थे, जिसने ही इस सिद्धांत को निर्धारित किया था।
निजी स्कूलों के तर्क को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और बेला एम त्रिवेदी की इस पीठ ने कहा, ”यह संशोधन पहले से जारी एक विधायी गलती की वजह से शिक्षकों के साथ हुए अन्याय और भेदभाव को दूर करता है। कोर्ट के इस निर्णय की घोषणा के बाद यह समझा गया था।” सुप्रीम कोर्ट ने साल 2004 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में बताए गए संशोधन को लाने और दोष को दूर करने के लिए विधायी अधिनियम को बरकरार रखा हैं।
विद्यालयों में समानता के अपने मौलिक अधिकार ( अनुच्छेद14), बिजनेस करने के अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(G)), जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21), और संपत्ति के अधिकार (अनुच्छेद 300A) के उल्लंघन का दावा किया। विद्यालयों का कहना था कि वे शिक्षकों को ग्रेच्युटी देने के लिए वित्तीय रूप से स्थिर नहीं हैं।
पीठ ने निजी स्कूलों से कहा कि ग्रेच्युटी का भुगतान निजी स्कूलों द्वारा देने वाला कोई इनाम नहीं है बल्कि यह उनकी सेवा की न्यूनतम शर्तों में से एक है। कोर्ट ने कहा, “प्राइवेट विद्यालयों का यह तर्क कि उनके पास शिक्षकों को ग्रेच्युटी देने की क्षमता नहीं है। उनका यह तर्क बेहद अनुचित है। सभी प्रतिष्ठान PAG अधिनियम सहित अन्य कानूनों का भी पालन करने के लिए बाध्य हैं।”