डेस्क : कहा जाता है कि किसी भी घर की खूबसूरती घर में खेलने वाला बच्चा होता है। हर कोई चाहता है कि उनके घर में बच्चों की किलकारियां गूंजे। कई स्थिति में बच्चों को गोद भी लिया जाता है। कई लोग किसी कारणवश बच्चे को जन्म नहीं दे पाते। ऐसे में वे गोद लेना पसंद करते हैं। भारत में इसकी प्रक्रिया काफी जटिल है। यदि कोई व्यक्ति बच्चें को गोद लेना चाहता है तो इस प्रक्रिया को पूरी करने में 3 से 4 सालों साल गुजर जाते हैं। ऐसे में कई लोग इन प्रक्रियाओं में नहीं पड़ना चाहते। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए एक आदेश जारी किया।
बच्चों की देखभाल और गोद लेने से संबंधित मुद्दों पर जिला मजिस्ट्रेट और अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट की भूमिका बढ़ाने के लिए संशोधित कानून सुप्रीम कोर्ट के आदेश से 1 सितंबर, 2022 से लागू हो गया है। इसका मतलब है कि स्थानीय अदालत के बजाय अब जिलाधिकारी (डीएम) बच्चे को गोद लेने का आदेश दे सकते हैं। दरअसल, सरकार ने पिछले साल बजट सत्र के दौरान किशोर न्याय अधिनियम संशोधन विधेयक, 2021 को संसद में पेश किया था और इसे मानसून सत्र में पारित कर दिया गया था. संसद द्वारा पारित होने के बाद, अधिनियम 1 सितंबर से राष्ट्रपति की सहमति से लागू हुआ।
इस अधिनियम में संशोधन के बाद अब जिला मजिस्ट्रेट को गोद लेने की प्रक्रिया को पूरा करने और संकट में बच्चों के साथ सहयोग करने का अधिकार दिया गया है। इस अधिनियम के तहत बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) में सदस्यों की नियुक्ति के संबंध में नियमों को फिर से परिभाषित किया गया है। इसके साथ ही बाल कल्याण समिति में कौन अपात्र है इसको लेकर भी कुछ मापदंड तय किए गए हैं। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि सीडब्ल्यूसी में सिर्फ सही योग्यता वाले लोगों को ही नियुक्त किया जा सके।