मानवता का संदेश देता है ईद-ए-मिलाद-उन- नबी

 

मो मुस्तकीम / कदवा ।

कदवा प्रखंड क्षेत्र कुरुम हाट , भर्री, महम्मदपुर, सगुनियाँ , गेठोरा, गोपीनगर, चौकी हाट , तय्यबपुर, कुरुम हाट से बलिया बिलोन होते हुए सलमारी आरडीएस कॉलेज लगभग 70 किलोमीटर की दूरी तय करेगी जुलूस। मुस्लिम समुदाय के लोग पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्मदिन को ईद- ए- मिलाद- उन- नबी के रूप में मनाते हैं। ईद- ए- मिलाद- उन- नबी इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक तीसरे महीने रबी- उल- अव्वल के 12 वें  दिन मनाया जाता है। इस मौके पर मुस्लिम समुदाय के लोग पैगंबर मोहम्मद की याद में जगह-जगह जुलूस निकालते हैं और कई आयोजन भी करते हैं। इस साल ईद-ए- मिलाद- उन- नबी 9 सितंबर रविवार को मनाई जाएगी। इद-ए-मिलाद-उन-नबी मानवता का संदेश देता है। यह उत्सव पैगंबर मोहम्मद के जन्म और जीवन और शिक्षाओं को याद दिलाता है उक्त बातें सगुनियाँ के मौलाना आलम साहब जमा मजिद के इमाम ने कही।

 पैगंबर मोहम्मद से जुड़ी  बातों की जानकारी देते हुए आलम साहब ने बताया की पैगंबर मोहम्मद का जन्म अरब शहर के मक्का में हुई। उनके वालिद (पिता) वालिदा (माता) कुरैशी खानदान से थे। पैगंबर मोहम्मद के जन्म से पहले ही उनके पिता का इंतकाल (निधन) हो गया था। पैगंबर मोहम्मद के पैदाइश के 6 वर्ष बाद उनके माता की भी मृत्यु हो गयी। जिसके बाद पैगंबर मोहम्मद का परवरिश उनके दादा अब्दुल मुत्तलिब और चाचा अबू तालिब ने की। बचपन से ही पैगंबर मोहम्मद शांति स्वभाव के थे। पैगंबर मोहम्मद सच्ची और मीठी बातें करने वाले थे। जबकि अरब के लोग दगाफरेब, झूठ बोलने में अपना जीवन बिताते थे। पैगंबर मोहम्मद की सच्चाई को देखकर लोगों ने अल अमीन( सच्चा ईमानदार) कहने लगे थे। उस समय अरब में औरतों पर कई तरह के अत्याचार हो रहे थे। झूठ,फरेब, आतंक का बोलबाला था। लोग अंधविश्वासों में डूबा हुआ था। बड़े होने पर पैगंबर मोहम्मद ने व्यापार का काम शुरू किया। धंधे में ईमानदारी पर उन्हें बहुत यकीन था। व्यापार में उनकी मेहनत और ईमानदारी की बात इतनी फैली की बीबी खदीजा ने उनसे प्रभावित होकर शादी का संदेश भेजा। सादा खाना, सादा कपड़े, और अपना काम खुद करना तथा साफ सफाई रखना उनके स्वभाव में शामिल था। पैगंबर मोहम्मद हमेशा सोचा करते थे कि लोगों को बुराई से कैसे हटाया जाए। कभी-कभी इस विषय पर घंटों सोचा करते थे। उस समय वे खाना पीना भी भूल जाते थे। मक्का में गाढ़े हीरा नाम का  पहाड़ था जिसमें वे जाकर ध्यान लगाते थे। 1 दिन गाढ़े हीरा में खुदा का फरिश्ता आया और कहां तू ही खुदा का पैगंबर है। जा लोगों को खुदा की बातें सुना। इस तरह पैगंबर मोहम्मद ने फरिश्ते जिब्राइल द्वारा दिए गए खुदा का हुक्म लोगों को सुनाया। पैगंबर मोहम्मद ने लोगों को जो पैगाम सुनाया उसका उन्हें काफी विरोध सहना पड़ा। धर्म के प्रचार का हुक्म खुदा से मिला था। उन्होंने मक्का में लोगों से बुराई को चोर सच्चाई को अपनाने का प्रचार करने लगे और लोग धीरे-धीरे उन्हें अपना पैगंबर मानने लगे कुछ लोगों ने पैगंबर मानने से इनकार कर दिया। लेकिन, वे अपना प्रचार जारी रखें। पैगंबर ना मानने वालों के तरफ से विरोध इतना बड़ा की पैगंबर मोहम्मद को मक्का छोड़ मदीना जाना पड़ा। वे मदीना पहुंचे तो मक्का में रहने वाले उनके विरोधियों ने मदीना पर हमला कर दिया। सुलह के कोशिश के बाद भी लड़ाई छिड़ी और युद्ध हुआ। फिर बहुत दिनों बाद पैगंबर मोहम्मद एक लाख 24 हजार मुसलमानों के साथ मक्का हज के लिए गए। मक्का के लोगों ने भी हारकर इस्लाम को मान लिया। इस तरह अरब में इस्लाम धर्म का आगाज हुआ। 63 वर्ष की उम्र में पैगंबर मोहम्मद ने मक्का  आखरी हज करने पहुंचे जहां सख्त बीमार पड़ गए। लेकिन, नमाज अदा करना नहीं छोड़े। कुरान की धार्मिक सिद्धांत

कुरान इस्लाम की मुख्य किताब है। जो कि 14 सौ वर्ष पहले लिखी गई थी। जिसकी फारसी, हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। यह किताब पैगंबर मोहम्मद और उनके साथियों द्वारा 23 वर्ष में खुदा के तरफ से भेजे गए आधार पर लिखी गई है। यह किताब इस्लाम की बुनियाद है। इस्लाम धर्म के मुख सिद्धांतों में एक खुदा को मानना, भाईचारा रखना, औरतों का इज्जत करना, नौकरों के साथ मदद करना, दिन में 5 बार नमाज पढ़ना, दान देना, जीवन में एक बार हज करना आदि शामिल है। और इन इंतजामियाँ कमेटी के स्थानीय मुखिया तनवीर राही, जिला परिषद मुनतसीर अहमद, पूर्व प्रमुख गुलाम रसीद, पूर्व मुखिया शाहिदउर रहमान, उपेंद्रनाथ चौधरी, मुन्तखब अहामद, रमजान अली, अशफाक कुद्दूस भोला शर्मा,मोहम्मदपुर मुखिया अशोक कुमार मेहता, पूर्व प्रमुख पारस कुमार राय,  गोपीनगर मुखिया पति चिराग आलम ने बताया कि  दावत ई जुलूस विभिन्न जगहों दिलासपुर , कोररा, बलिया बेलौन, सालमारी,होते हुए तेघड़ा, निस्ता, बघवा, जोदपुर के रास्ते कुरुम  पहुंचकर समाप्त होगा। इस दौरान सैकड़ों वाहनों के साथ जुलूस करीब 70 किलोमीटर की दूरी तय की जुलूस के माध्यम से लोगों को कुरुम में आयोजित अहले सुबह दिन रविवार को मिलादुन्नबी के जश्न में शरीक होने की दावत दी जाती है‌। रविवार को मिलादुन्नबी के मौके पर अलग-अलग गांव से जुलूस ए  मोहम्मदी के साथ अकीदतमंदों कुरुम पहुंचकर मिलाद शरीफ में शरीक होंगे। इस मौके पर मेहमान ए खसुसी पीरे तरीकत जौनपुर यूपी के गद्दीनशीं हजरत अल्लामा मौलाना मुफ्ती ओबैदुर रहमान का बयान होने के बाद अमन व अमान के लिए दुआ करेंगे। इस दुआ में तमाम अकीदत मंद तशरीफ लाएंगे।

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *