मुगलों का ये दोस्त पड़ा खुद मुग़ल बादशाहों पर भारी, दिल्ली की हालत बद्द्तर की थी इस क्रूर शासक ने

मुगलों के अत्याचार की कहानी भारत में तो काफी सुनी होगी। लेकिन, क्या आपको पता हैं जब मुगल साम्राज्य पतन की ओर था, तब विदेशियों ने भारत में एंट्री की कोशिश शुरू कर दी थी। अफगानों ने भी इसका फायदा उठाया और वो दिल्ली तक आ गए और काफी धन लूटने के साथ ही अपनी राज्य भी स्थापित किया। ऐसा कहा जाता है कि इसकी शुरुआत नादिरशाह के आक्रमण के साथ हुई थी, जिसने भारत को 1736 के आसपास निशाना बनाया। मुगलों से लेकर जनता पर उसनेइतने अत्याचार किया कि उसकी कहानी आज भी रूह कांप उठती है।

यह बात नादिरशाह की क्रूरता की है, जिसमें फारस के शाह तहमास्प की मौत के बाद साल 1736 में शासन संभाला और अफगानों के विरोध संघर्ष शुरू किया। इसी तरह उसने कंधार पर 12 मार्च 1738 को परचम लहरा दिया और अब उसका लक्ष्य भारत था। नादिरशाह ने भारत में आने से पहले भारत की उस वक्त की आतंरिक स्थिति के बारे में अच्छे से पता किया। इसके बाद इसने पूरी प्लानिंग के साथ भूमिका निभाई और लगातार दिखावा किया कि वह सचमुच मुगल बादशाह का मित्र है और मात्र अफगानों को दंड देने के लिए वह यहां आ रहा है।

दूसरी ओर उसने काबुल, गजनी, जलालाबाद, पेशावर पर अपना अधिकार कर लिया था। इस वक्त तक भारत में वो कुछ भी क्रूरता नहीं दिखा रहा था और मुगलों की प्रजा पर अच्छे रह रहा था। ऐसा कहा जाता है कि एक बार जलालाबाद के पास उसके एक दूत की हत्या कर दी गई, जिससे वो भड़क गया। फिर उसने कत्लेआम का आदेश दिया और धीरे धीरे उसका आतंक भी स्थापित होने लगा। नादिर शाह की खास बात ये थी कि वह ज्यादा उतावला ना होकर धीरे धीरे अपना क्षेत्र विस्तार कर रहा था। फिर उसने पंजाब में प्रवेश किया और उसके सामने वहां के राजा आत्मसमर्पण करने लगे।

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नादिरशाह ने पहले पंजाब में उसे अपनी ओर से पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया और फिर वह दिल्ली की ओर बढ़ा। यह बात तक़रीबन 13 फरवरी 1739 की है, जब दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह ने उसे रोकने की कोशिश की थी। लेकिन यहां उसे हार का सामना करना पड़ा। फिर दोनों ने आपस में संधि कर ली।

बताया जाता है कि वह दिल्ली में 9 मार्च तक घुस गया और उसका स्वागत भी मुगल बादशाह मुहम्मद शाह ने किया। लालकिले में वो ठहरा और दिल्ली में उसके साथियों ने क्रूरता शुरू कर दी। अब जनता में उपद्रव की स्थिति पैदा हो गई। वहीं नादिरशाह के आदेश के बाद से ही सरेआम कत्लेआम किया गया और 20 हजार से भी अधिक लोगों को मार दिया गया। दुकानों को लूट लिया गया और काफी इलाका जला दिया गया।

बताया जाता है कि उस वक्त के हिसाब से उसने करीब 3 करोड़ रुपये की लूटपाट की। उस दौरान अपने शहर में बादशाह बंदी की तरह रहा। नादिरशाह का प्रभाव काफी बढ़ गया और मुगलों की स्थिति काफी खराब हो गई। उस दौरान वो अपने साथ कोहिनूर, मयूर सिंहासन, बहुमूल्य आभूषण और काफी पैसा ले गया। ऐसा आतंक नादिरशाह ने किया कि उसके बारे में सुनकर आज भी रूह कांप उठती है। कहते हैं कि लाशों के ढेर से उठने वाली बदबू से ही लोग परेशान हो गए थे। इसके बाद दिल्ली से लूटपाट करके वो वापस चला गया। जाते वक्त उसने मुहम्मद शाह को सिंहासन सौंप दिया। साथ ही जाते वक्त काफी पैसे और बहुमूल्य सामान लेकर अपने देश गया।

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