देश के इतिहास में मंदिरों के विध्वंस की जो कहानी लिखी गई हैं वो बताती हैं कि किस कदर मुगल क्रूर थे. मंदिरों को कैसे लूटा और तहस-नहस किया. लेकिन एक ऐसा भी मंदिर है जिसे मुगलों से छिपा लिया गया था। इसका कारण था कि उसे बचाया जा सके. कानपुर शहर में 35 किलोमीटर की दूरी पर बेहटा बुजुर्ग एक जगह है. यहां प्राचीन जगन्नाथजी का मंदिर है. यह वो मंदिर है जो मौसम की भविष्यवाणी के लिए जाना जाता है और यही वजह है कि इसे मौसम मंदिर भी कहते हैं.
स्थानीय लोगों का दावा है, 42 सौ साल पुराना यह मंदिर है. बारिश अच्छी होगी या औसत इसके भी संकेत मंदिर देता है और इस मंदिर की भविष्यवाणी सटीक साबित होती है. सदियों से बारिश का अनुमान लगाने की यह परंपरा चली आ रही है.
मौसम की भविष्यवाणी मंदिर के अंदर की दीवारें ही करती हैं. भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा के ठीक ऊपर बना गुंबद मानसून आने से 15 दिन पहले अंदर से पसीज जाता है और पानी की बूंदें गिरने लगती हैं. ये बूंदें ही बताती हैं कि कितनी बारिश होगी. पहले ही बारिश का मौसम से नमी आ जाती है. यह नमी बताती है कि औसत से कम बारिश होगी. वहीं अगर दीवार में बूंदें बनने लगती हैं तो ऐसा कहा जाता है बारिश इस साल ठीक-ठाक होगी. वहीं, बूंदें गिरना शुरू हो जाती हैं तो यह इशारा होता है कि इस साल काफ़ी अच्छी बारिश होने वाली है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि कार्बन डेटिंग के जरिये पुरातत्व विभाग ने इसका इतिहास पता किया तो पता चला कि 4 हजार साल पुराना यह मंदिर है. पहले यहां घना जंगल था और कोल – भील समुदाय के लोग रहते थे. यह भी कहा जाता है कि ऐसी शक्ति यहां थी कि समुदाय के अलावा जो भी नया इंसान आता था वो बेहोश हो जाता था.
एक बार जंगल में शिकार खेलते हुए राजा शिवि पहुंचे और बेहोश हो गए. सपने में उन्होंने देखा जंगल की जमीन में एक मूर्ति दबी हुई है. उस मूर्ति को अगर स्थापित किया जाएगा तो उनकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाएंगी. कोल-भील समुदाय ने जंगल में बेहोश पड़े राजा शिवि का इलाज किया. उन्होंने होश में आने में आने पर वही किया जो सपने में कहा गया और मंदिर का निर्माण इस तरह हुआ.
यहां के पुजारी केपी शुक्ला का कहना है कि वो इस मंदिर की पूजा पिछले 50 साल से कर रहे हैं, उनके परिवार की कई पीढ़ियां इसके पहले इससे जुड़ी थीं. मंदिर के अंदर भी ऐसी नक्काशी की गई है जैसे दक्षिण के मंदिरों में देखने को मिलती है. इसके अलावा भगवान जगन्नाथ का सिंहासन इतना बड़ा है कि उत्तर भारत के मंदिरों में यह देखने को नहीं मिलता. करीब 15 फीट तक मंदिर की दीवारें मोटी हैं, यही वजह है कि बाहर से दिखने पर मंदिर जितना भव्य दिखता है अंदर से उतना बड़ा नहीं है.
बता दें कि यह पूरा मंदिर 700 वर्ग फीट में फैला है जो कि स्तूप की तरह दिखता है. सामने प्राचीन कुआं और तालाब भी पूर्व मुखी इस मंदिर के है.