पूर्णियां/बालमुकुन्द यादव
मैं एक मां थी लेकिन कैसे एक लावारिश माँ बन गई मुझे पता ही नहीं चला। जब मुझे पता चला कि मैं मां बनने वाली हूं मेरे आंखों की खुशियां देखते बन गई थी और जब मैं मां बनी थी सब को मिठाई बाटी सबकी बलाइयाँ ली। अपने बच्चों को बेहत्तर जिंदगी दे सके इसके लिए पूरी जिंदगी मेहनत मजदूरी कर के उसे उस लायक बनाया जो ताकि वो बेहतर जिंदगी जी रही है लेकिन इन सब के पीछे मैं छूटती चली गई कि प्यारी मां, अच्छी मां , सबसे प्यारी मां से कब मैं एक लावारिस माँ बनके रोड किनारे कई दिनों से पड़ा रहा
शायद मेरी किस्मत में कुछ बेहतर काम किए होंगे जो आज मुझे रविंद्र कुमार साह एवं हेना शईद और प्रवीण जी जैसे बच्चों से मेरी मुलाकात हुई और उन लोगों ने मुझे अपना मां की तरह प्यार करते हुए पूरी देखभाल की और आज मुझे बृद्धाश्रम छोड़ गया । मैं दिल से इन सबों को दुआ देती हूं
और इन लोगों की उज्जवल भविष्य की ईश्वर से कामना करती हूं। शायद मेरी किस्मत अब वृद्ध आश्रम में लिखी है खैर कोई बात नहीं मैं जहां भी रहूंगी खुश रहूंगी और अपने बच्चों की बेहतर जिंदगी की दुआ करुंगी जो हर मां अपने बच्चों के लिए करती है शुक्रिया