वीरांगना फूलन देवी की 59 वीं जयंती पर विशेष : सामाजिक न्याय की ‘देवी’ फूलन देवी

वीरांगना फूलन देवी की 59 वीं जयंती पर विशेष : सामाजिक न्याय की ‘देवी’ फूलन देवी

● बागी से सांसद बनी फूलन देवी शोषितों की राजनेता थी
● वीरांगना फूलन देवी ने चंबल से लेकर संसद तक तय किया सफर

लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव साहित्यिक मंडली शंखनाद

अंतरराष्ट्रीय फलक पर दस्यु सुंदरी नाम से ख्यात फूलन देवी का असली नाम फुलवा था। विश्व की 16 क्रांतिकारी महिलाओं में फूलन देवी का नाम चौथे स्थान पर है। आपने काफी महिलाओं और उनसे जुड़े किस्सें-कहानियों के बारें में पढ़ा होगा या सुना भी होगा लेकिन आज जिस महिला की कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं अगर आप उनके बारें में नहीं जानतें तो यकीन मानिए यह आलेख आपको हैरान कर देगा। जी हां, हैरान और परेशान कर देने वाली कहानी है उस औरत की जिसने अपने उम्र के हर पड़ाव पर एक नयीं दास्तां लिख डाली। जिसके लिए औरत होना जीवन भर एक श्राप की तरह रहा लेकिन इस औरत की ज़िद और ताकत ने अपने दुश्मनों की सांसे ज्यादा समय तक नहीं चलने दी। तो, आईए जानते है आखिर कौन थीं ये निर्भीक महिला और कैसी रही इनकी ज़िंदगानी। यह कहानी है वीरांगना फूलन देवी की।
माता जानकी जी को उठा ले जाने वाले दैत्येंद्र रावण की लंका जलाई जाती है, उसे श्रीराम द्वारा मारा जाता है और उसके बाद आज भी बुराई का प्रतीक मानकर दैत्येंद्र रावण का पुतला जलाया जाता है। दूसरी तरफ एक पिछड़े, लाचार समाज की बेटी फूलन को बलात उठा ले जाकर जातिवादी गुंडे बलात्कार करते हैं, गांव में नंगा घुमाते हैं, सालों-साल अत्याचार करते हैं, फिर भी उनकी लंका कोई नहीं जलाता। फिर वही औरत जब हथियार उठाती है, उनकी लंका भी जलाती है और उनका पुतला भी। लेकिन ये औरत सामाजिक न्याय की ‘देवी’ नहीं कहलाती, ये ‘डकैत फूलन देवी’ कहलाती है।
जहां सहनशीलता की सीमा समाप्त होती है, वहीं से क्रांति का उदय होता है। आताताइयों ने जब जुल्म की हदें पार कर दीं तो पूर्व सांसद फूलन देवी ने उनके विनाश के लिए हथियार उठा लिया। उन्होंने क्रांति का बिगुल फूंकते हुए जालिमों को मौत की नींद सुलाने का काम किया। हम सभी को फूलन के संघर्ष और वीरता पर गर्व है।

फूलन देवी का जन्म और परिवारिक जीवन

कभी चंबल घाटी में अपने आतंक से बड़े-बड़ों की चूलें हिला देने वाली दस्यु सुंदरी फूलन देवी को पहली राजनैतिक महिला डाकू कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। ठाकुरों के प्रति बेहद तल्ख रही फूलन देवी को चंबल इलाके के एक ठाकुर राजनेता की बदौलत ही राजनीति के शीर्ष तक जाने का मौका मिला। फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 को उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के कालपी थाना पुरवा (गोरहा) गांव में हुआ था। फूलन के पिता का नाम देवी दीन और माता का नाम मूला देवी केवट जो मल्लाह जाति के थे। फूलन देवी बैंडिट क्वीन के नाम से चर्चित थीं। जब फूलन 11 साल की थीं तो उनके चचेरी भाई ने उनकी शादी पुट्टी लाल नाम के एक बूढ़े आदमी से करवा दी। दोनों में उम्र का एक बड़ा फासला होने के कारण दिक्कतें आती रहती थीं। फूलन का पति उन्हें प्रताड़ित करता रहता था। जिसकी वजह से परेशान होकर फूलन देवी ने पति का घर छोड़ कर अपने माता पिता के साथ रहने का फैसला किया।

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गैंगरेप के बाद फूलन बनीं डकैत

फूलन देवी जब 15 साल की थीं तब श्रीराम ठाकुर के गैंग ने उनका गैंगरेप किया। इतना ही नहीं यह गैंगरेप उन्होंने फूलन के माता-पिता के समाने किया। फूलन देवी ने कई जगह न्याय की गुहार लगाई लेकिन उन्हें सिर्फ निराशा का सामना करना पड़ा। नाराज दबंगों ने फूलन का चर्चित दस्यु गैंग से कहकर अपहरण करवा लिया। डकैतों ने लगातार 3 हफ्तों तक फूलन का रेप किया। जिसकी वजह से फूलन बहुत ही कठोर बन गईं। अपने ऊपर हुए जुल्मों सितम के चलते फूलन देवी ने अपना एक अलग गिरोह बनाने का फैसला किया। हालात ने ही फूलन देवी को इतना कठोर बना दिया कि जब उन्होंने बहमई में एक लाइन में खड़ा करके 22 ठाकुरों की हत्या की तो उन्हें ज़रा भी मलाल नहीं हुआ। बदला लेने के लिए फूलन ने 14 फरवरी 1981 को कानपुर के बेहमई में ठाकुरों को मौत की नींद सुला दिया था। तब से फूलन के प्रति ठाकुरों में नफरत है, लेकिन, यह भी सच है कि बेहमई कांड के बाद एक ठाकुर ने ही फूलन देवी की कदम दर कदम मदद की थी और उन्हें राजनीति का ककहरा पढ़ाया था।
बिना मुकदमा चलाये ग्यारह साल तक जेल में रहने के बाद फूलन को 1994 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने रिहा कर दिया। ऐसा उस समय हुआ जब दलित और कमजोर वर्ग के लोग फूलन के समर्थन में गोलबंद हो रहे थे और फूलन इस समुदाय के प्रतीक के रूप में देखी जाती थी। फूलन ने अपनी रिहाई के बाद बौद्ध धर्म में अपना धर्मातंरण किया।

फूलन देवी का आत्मसमर्पण और राजनीतिक जीवन

फूलन देवी एक ऐसा नाम जिसने ना केवल डकैती की दुनिया में बल्कि सियासत के गलियारों में भी खूब नाम कमाया। फूलन देवी ने 1983 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर 10 हजार लोगों और 300 पुलिस वालों के सामने आत्म समर्पण कर लिया। उन्हें यह भरोसा दिलाया गया था कि उन्हें मृत्युदंड नहीं दिया जाएगा। आत्मसमर्पण करने के बाद फूलन देवी को 8 सालों की सजा दी गई। फूलन के जेल से छूटने के बाद उम्मेद सिंह से उनकी शादी हो गई। जेल से छूटने के बाद ही उन्होंने राजनीति में एंट्री ली। वह दो बार चुन कर संसद पहुंची। पहली बार वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर मिर्जापुर से सांसद बनी थीं।
इलाके के प्रभावशाली ठाकुर नेता जसवंत सिंह सेंगर ने बेहमई कांड के बाद फूलन देवी जब गैंग के साथ जंगलों में दर-दर भटक रही थीं तब सेंगर साहब ने ही महीनों उन्हें शरण दी। उन्होनें खाने पीने से लेकर अन्य संसाधन भी उपलब्ध करवाए थे। फूलन भी जसवंत सिंह की काफी इज्जत करती थीं। जसवंत के कहने पर बतौर सांसद फूलन ने क्षेत्र में कई विकास के काम करवाए थे। चंबल के बीहड़ से उत्तर प्रदेश की राजनीति में दस्यु सुंदरी फूलन देवी ने जो कर दिखाया, वो न उनसे पहले किसी ने किया और न ही आगे कोई कर सकता है।
चंबल की धरती पर कभी अंग्रेजों और सिंधिया स्टेट के अन्याय के खिलाफ हथियार उठाने वाले बागियों से लेकर मौजूदा समय में अपहरण को उद्योग बनाने वाले डाकुओं की कहानियां बिखरी पड़ी हैं। पुलिस की नजर में ये डकैत बर्बर अपराधी हैं, लेकिन वे अपने इलाके में रॉबिनवुड हैं। अपनी जाति के हीरों हैं, अमीरों से पैसा ऐठना और गरीबों खासकर अपनी जाति के लोगों की मदद करना इनका शगल है, लेकिन दुश्मनों और मुखबिरों के साथ ये ऐसा बर्बर रवैया अपनाते हैं कि देखने वालों के दिल दहल जाएं। पुलिस भी मानती है कि जिस जाति का व्यक्ति अपराध कर डाकू बन जाता है उसे उस विशेष जाति समुदाय के लोग अपना हीरो मानने लगते हैं, उसके साथ नायक जैसा व्यवहार करते हैं। यह परंपरा आज की नहीं है, जब से यहां डाकू पैदा हुए तब से चली आ रही है। यही कारण है कि मानसिंह से लेकर दयाराम गडरिया और ददुआ तक अपनी जाति के हीरो रहे। डाकुओं की पैदा करने में प्रतिष्ठा, प्रतिशोध और प्रताड़ना तो कारण हैं ही लेकिन सबसे अहम भूमिका पुलिस की होती है। चंबल के दस्यु सरगनाओं का इतिहास देखें तो डाकू मानसिंह से लेकर फूलन देवी तक सभी लोग अमीरों या रसूख वाले लोगों के शोषण के शिकार रहे हैं और इस शोषण में पुलिस और व्यवस्था ने इनकी बजाय रसूखवालों का ही साथ दिया। ऐसे में ये लोग न्याय की उम्मीद किससे करें। इसके कई उदाहरण है, जिनमें कभी चंबल में पुलिस की नाक में दम करने वाले पूर्व दस्यु सरगना मलखान सिंह भी शामिल हैं। कहा जाता है कि गांव के सरपंच ने मंदिर की जमीन पर कब्जा कर लिया और विरोध करने पर उन्होंने मलखान सिंह के खिलाफ फर्जी केस दर्ज कर जेल भिजवा दिया और फिर विरोध करने वाले मलखान सिंह के एक साथी की हत्या भी कर दी। सरपंच तब के एक मंत्री का रिश्तोदार था जिसके घर पर दरोगा और सिपाही हाजिरी बजाते थे। ऐसे में वह किससे न्याय मागता। बंदूक उठाने के अलावा उसके पास कोई रास्ता ही नहीं था। जगजीवन परिहार को डकैत बनाने के लिए तो पुलिस ही जिम्मेदार थी। वह पुलिस का मुखबिर था, निर्भय गूजर को मारने के लिए पुलिस ने जगजीवन को हथियार मुहैया कराया और डाकू बना दिया। ऊपर से दबाव या फिर डाकू के पकड़े जाने पर भेद खुल जाने के डर से पुलिस वाले इनका इनकाउंटर कर देते हैं और फिर एक दूसरा गैंग तौयार करवा देते हैं। पुलिस भी मानती है कि इनकाउंटर स्पेस्लिस्ट लोगों की इसमें खास भूमिका होती है। ऐसे लोग जब एक गैंग को मार गिराते हैं तो उनकी चहलकदमी बंद हो जाती है। ऐसे में वे दूसरा गैंग तौयार कर देते हैं।
चंबल में डकैत समस्या के पनपने के लिए कहीं न कहीं यहां की प्राकृतिक संरचना भी जिम्मेदार है। चंबल के किनारे के मिट्टी के बड़े-बड़े टीले डाकुओं की छुपने की जगह है, अगर सरकार इन्हें समतल कर लोगों में बांट दे तो इससे न केवल डाकू समस्या पर लगाम लग सकती है, बल्कि लोगों को खेती के लिए जमीन मिल जाएगी, लेकिन टीलों के समतलीकरण की योजना भ्रष्टाचार की वजह से परवान नहीं चढ़ पा रही है। यही कारण है कि डाकुओं के अलावा अब चंबल में नक्सली भी सक्रिय हो रहे हैं। पुलिस भी यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि नक्सलियों का प्रशिक्षण शिविर कहां चल रहा है। शोषण और बेरोजगारी ही दस्यु समस्या की तरह नक्सल समस्या की भी जड़ है, अगर इस समस्या से निपटना है तो गांवों में विकास की गंगा बहानी हागी। लोगों को शिक्षा के साथ ही रोजगार भी मुहैया कराना होगा, अन्यथा चंबल का दायरा घटने के बजाय पूरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लेगा और देशभर में ऐसे बागियों की जमात पैदा हो जाएगी, जो देश के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगी।1996 में फूलन देवी ने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा और जीत गईं। मिर्जापुर से सांसद बनीं। चम्बल में घूमने वाली अब दिल्ली के अशोका रोड के शानदार बंगले में रहने लगी। फूलन 1998 में हार गईं, पर फिर 1999 में वहीं से जीत गईं।

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रॉबिनवुड क्रांतिकारी फूलन देवी का निधन

25 जुलाई 2001 को संसद का सत्र चल रहा था। दोपहर के भोजन के लिए संसद से फूलन 44 अशोका रोड के अपने सरकारी बंगले पर लौटी। बंगले के बाहर सीआईपी 907 नंबर की हरे रंग की एक मारुति कार पहले से ही खड़ी थी। 25 जुलाई 2001 को ही शेर सिंह राणा फूलन से मिलने आया। इच्छा जाहिर की कि फूलन के संगठन ‘एकलव्य सेना’ से जुड़ेगा। जैसे ही फूलन घर की दहलीज पर पहुंची। तीन नकाबपोश अचानक कार से बाहर आए और फूलन पर ताबड़तोड़ पांच गोलियां चलाई। एक गोली फूलन के माथे पर जा लगी। गोलीबारी में फूलन देवी का एक गार्ड भी घायल हो गया था। इसके बाद हत्यारे उसी कार में बैठकर फरार हो गए। उसने कहा कि मैंने बेहमई हत्याकांड का बदला लिया है। 14 अगस्त 2014 को दिल्ली की एक अदालत ने शेर सिंह राणा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अपने कुल 38 साल के जीवन में फूलन की कहानी भारतीय समाज की हर बुराई को समेटे हुए है और फूलन देवी की जीवनी प्रत्येक नारी के लिए प्रेरणा श्रोत बनीं। फूलन ने जुल्म के खिलाफ सभी को लड़ने का संदेश दिया।

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