Month: July 2022

  • काय सांगता ! मानवी मूत्रावर चालणार ट्रॅक्टर ? कसं ते जाणून घ्या





    काय सांगता ! मानवी मूत्रावर चालणार ट्रॅक्टर ? कसं ते जाणून घ्या | Hello Krushi
































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  • श्रवन कुमार मंत्री, बालू माफियाओं जिनके ऊपर थाने में केस दर्ज है एवम्

    छह महीने पहले परवलपुर प्रखंड में सामूहिक अस्पताल निर्माण को लेकर एक योजना आयी। सामूहिक अस्पताल निर्माण के लिए 76 डिसमिल जमीन की जरूरत थी। जिला प्रशासन एवं अंचलाधिकारी महोदय सहित सभी वरीय पदाधिकारियों द्वारा जमीन कि खोजबीन शुरू की गई मगर प्रखंड मुख्यालय में जमीन उपलब्ध नहीं हो सका उसके बाद पास के गांवों में भी जमीन की खोजबीन शुरू की गई। अंततः जमीन की उपलब्धता प्रखंड मुख्यालय से 4 किलोमीटर दूर सोनचरी में हुई। जिसके बाद जिला कलेक्टर सहित सभी वरीय पदाधिकारियों द्वारा अस्पताल निर्माण के लिए एन ओ सी दिया गया और टेंडर हुआ। हॉस्पिटल निर्माण का कार्य 10% कर दिया गया जिसके बाद कुछ असमाजिक तत्वों, बालू माफिया जिनके ऊपर थाने में केस दर्ज है एवम् श्रवण कुमार मंत्री द्वारा अस्पताल निर्माण कार्य को रोक दिया गया। मंत्री महोदय द्वारा झूठ बोल कर जिला कलेक्टर को पत्र लिखा गया कि जहां अस्पताल निर्माण कार्य चल रहा है उसका दूरी प्रखंड मुख्यालय से 10-11 किलोमीटर है और कार्य को रोक दिया गया जबकि पथ परिवहन के बोर्ड पर दूरी साफ तौर पर 4 किलोमीटर दिखाया गया है। इसलिए पूरे परवलपुर प्रखंड वासियों की ओर से सड़क जाम, प्रखंड बंदी और धरना प्रदर्शन किया गया। प्रखंड वासियों का कहना है कि सोनचरी जहां सामूहिक अस्पताल निर्माण कार्य चल रहा है वह बिल्कुल प्रखंड का केंद्र बिंदु है और साथ ही वहां चारों तरह से सड़क की सुविधा है जिससे लोगों को आने जाने में भी सहूलियत होगी और केवल एक मंत्री के और असमाजिक तत्वों एवम् बालू माफियाओं के मनमानेपन के कारण अस्पताल निर्माण को रोकना जायज़ नहीं। आज बंद के दौरान लोगों द्वारा श्रवन कुमार मंत्री मुर्दाबाद, श्रवन कुमार चोर है जैसा नारा भी लगाया गया साथ में यह भी कहा गया कि यह सारा कृत्य केवल इसलिए किया गया क्यूंकि इन्हें अपने हिस्से का कमिशन नहीं दिया गया है । प्रखंड वासियों का कहना है कि अस्पताल निर्माण कार्य प्रारम्भ काफी सोच विचार कर जब किया गया तब अब उसपर कुछ असमाजिक तत्वों, बालू माफिया जिनके ऊपर थाने में केस दर्ज है एवम् श्रवण कुमार मंत्री के विरोध करने मात्र से क्यूं बंद किया गया और जब उन्हें कोई समस्या नहीं तो फिर किसी मंत्री को असमाजिक तत्वों और बालू माफिया जिनके ऊपर थाने में केस भी दर्ज है उन्हें क्यूं दिक्कत है केवल इसलिए कि उनको कमिशन नहीं मिला।
    प्रखंड वासियों द्वारा यह मांग भी किया गया है कि अगर अस्पताल निर्माण का कार्य जल्द से जल्द प्रारंभ नहीं किया जाएगा तब आंदोलन लगातार होता रहेगा।

  • डिजिटल लाइब्रेरी पर नालंदा कॉलेज में व्याख्यान:

    नालंदा कॉलेज का आईक्यूएसी एवं केंद्रीय पुस्तकालय ने संयुक्य रूप से “डिजिटल लाइब्रेरी का प्रबंधन: अवसर और चुनौतियाँ” विषय पर एक व्याख्यान आयोजित किया। जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में भारतीय वन सेवा के अधिकारियों के प्रशिक्षण संस्थान इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी देहरादुन के प्रधान लाइब्रेरीयन एवं सूचना अधिकारी डॉ ए. के. सुमन ने शिरकत करते हुए अपनी पीपीटी प्रस्तुतिकरन के माध्यम से वर्तमान समय में डिजिटल लाइब्रेरी की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा की डिजिटल लाइब्ररी एक ऐसी लाइब्ररी होती है जिसमे डिजिटल और इलेक्ट्रोनिक प्रारूप में डाटा को स्टोर किया जाता है और कंप्यूटर या किसी इलेक्ट्रोनिक उपकरण के द्वारा इस डाटा को एक्सेस किया जा सकता है. डॉ सुमन ने कहा की डिजिटल लाइब्ररी में लोगो को यूजफुल इनफार्मेशन और नॉलेज को मल्टीमीडिया डाटा में सूचना प्रबंधन के तरीकों का उपयोग करके दिया जाता है. प्राचार्य डॉ राम कृष्ण परमहंस ने अध्यक्षता करते हुए कहा की इसमें देश के सभी दुर्लभ साहित्यों व प्रलेखों को सुरक्षित रखा जाता है।डिजिटल लाइब्रेरी पर नालंदा कॉलेज में व्याख्यान:

    हमारा देश बहुत तेजी से डिजिटल इंडिया बनते जा रहा है इसलिए आज युवाओं के लिए जरूरी है की नई तकनीक के साथ कदम से कदम मिलाकर चलें। आईक्यूएसी के समन्वयक डॉ बिनीत लाल डिजिटल लाइब्रेरी के लाभ के बारे में बताते हुए कहा की एक ही रिसोर्स को एक ही समय में कई यूजर्स उपयोग कर सकते हैं, इसे किसी भी समय एक्सेस किया जा सकता है, इसका यूज करने के लिए यूजर को लाइब्ररी जाने की जरूरत नही होती है आदि। पुस्तकालय के असिस्टेंट लाइब्रेरीयन डॉ अंजनि कुमार ने कहा की कोरोना काल ने अनेक अवसर उपलब्ध कराये हैं और आज के समय में बढ़ती टेक्नोलॉजी के कारण डिजिटल लाइब्रेरी को एक विशेष दर्जा मिला है। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए विभाग के समन्वयक डॉ श्याम सुंदर प्रसाद ने वक्ता एवं उपस्थित सभी लोगों का आभार जताया। कार्यक्रम में शिक्षक संघ के सचिव एवं इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ रतनेश अमन, कॉलेज के शिक्षक डॉ सुमित कुमार, प्रो संजय कुमार, प्रो सरवर अली, कुसुमलता एवं अर्चना कुमारी ने भी शिरकत की।

  • कार्यकर्म तहत जन सभा एवं वृक्षारोपण साथ में पर्यटन स्थल का भ्रमण

    दो दिवसीय राजकीय प्रवास कार्यक्रम के तहत आज दूसरे दिन173 राजगीर विधानसभा क्षेत्र में दूसरे दिन प्रवास कार्यकर्म तहत जन सभा एवं वृक्षारोपण साथ में पर्यटन स्थल का भ्रमण किया गया ग्राम घोषरामा, दुर्गापुर ,पावापुरी , तुगी,एवं कूल ग्राम मैं किए सम्मानित जनता जनार्दन भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं से आए हुए प्रवासी नेताजी को मिला ने का काम किया गया ,इस मौके डॉ प्रशांत कोराट -प्रदेश अध्यक्ष भाजयुमो गुजरात ,रामसागर सिंह :-जिला अध्यक्ष ,सुधीर कुमार :-जिला उपाध्यक्ष भाजपा

    कार्यकर्म तहत जन सभा एवं वृक्षारोपण साथ में पर्यटन स्थल का भ्रमण  कार्यकर्म तहत जन सभा एवं वृक्षारोपण साथ में पर्यटन स्थल का भ्रमण

    श्रवण सिंह -जिला प्रभारी ,धीरज पाठक -जिला अध्यक्ष भाजयुमो
    सोनू कुमार हिन्दू – जिला महामंत्री ,राजाराम पटेल ,उपेंद्र राजवंशी ,छोटेलाल राजवंशी ,गीता जादव ,तेजस्विता राधा ,राजेश्वर सिंह
    ,डॉ संजय रविदास ,नीरज कुमार सीटू
    नवीन सिंह, रणधीर कुमार,गुडु कुमार श्यानकिस्सोर जी सहित सैकड़ों कार्यकर्ता मौजूद थे ।

  • मुंशी प्रेमचंद की 142 वीं जयंती पर विशेष :

    राकेश बिहारी शर्मा – हिन्दी कथा साहित्य में प्रेमचंद जी का नाम सर्वश्रेष्ठ उपन्यासकार एवं कहानीकार के रूप में अग्रगण्य है। युग प्रवर्तक प्रेमचंद ने अपनी रचनाधर्मिता के माध्यम से भारतीय समाज की समस्त स्थितियों का अत्यन्त मनोवैज्ञानिक, यथार्थ चित्रण किया है। उनका सम्पूर्ण साहित्य तत्कालीन भारतीय जनजीवन का महाकाव्य कहा जा सकता है। उनकी रचनाओं में भारतीय किसान की ऋणग्रस्त स्थिति, भारतीय नारियों की जीवन व नियति की ऐसी कथा समाहित है, जो उसकी कारुणिक त्रासदीपूर्ण स्थितियों को अत्यन्त मर्मस्पर्शी एवं संवेदनात्मक स्तर पर चित्रित करती है। पूंजीपतियों और जमींदारों का अमानवीयतापूर्ण क्रूर शोषण व आतंक उनके कथा साहित्य में उनकी भाषा के साथ जीवन्त हो उठता है। तत्कालीन समाज की कुप्रथाओं, कुरीतियों का जो बेबाक एवं सत्यता भरा चित्रण प्रेमचंद की रचनाओं में मिलता है, वह बड़ा मर्मस्पर्शी है। अपनी आदर्शवादी और यथार्थवादी रचनाओं में पराधीनता से मुक्ति का संकल्प भी राष्ट्रीय भावना के साथ व्यक्त होता है।

    प्रेमचंद का जन्म और परिवार

    प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई सन् 1880 को बनारस शहर से चार किलोमीटर दूर लमही गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम अजायब राय और माता आनंदी देवी था। पिताजी डाकखाने में मामूली नौकर के तौर पर 7 रूपये मासिक पाते थे। प्रेमचंद का असली नाम धनपतराय था। जब ये केवल आठ साल के थे तो इनकी माता का स्वर्गवास हो गया तो पिताजी ने दूसरी शादी कर ली जिसके कारण बालक धनपतराय प्रेम व स्नेह को चाहते हुए भी ना पा सका। आपका जीवन गरीबी में ही पला। कहा जाता है कि धनपतराय के घर में भयंकर गरीबी थी। पहनने के लिए कपड़े न होते थे और न ही खाने के लिए पर्याप्त भोजन मिलता था। इन सबके अलावा घर में सौतेली माँ का व्यवहार भी हालत को खस्ता करने वाला था।

    अल्पायु में प्रेमचंद की शादी और पारिवारिक परेशानियाँ

    प्रेमचंद के पिता ने केवल 15 साल की आयू में प्रेमचंद का विवाह करा दिया। पत्नी उम्र में प्रेमचंद से बड़ी और बदसूरत थी। पत्नी की सूरत और उसके जबान ने प्रेमचंद के जले पर नमक का काम किया। प्रेमचंद ने स्वयं लिखा है, “उम्र में वह मुझसे ज्यादा थी। जब मैंने उसकी सूरत देखी तो मेरा खून सूख गया।…….” उसके साथ-साथ जबान की भी मीठी न थी। प्रेमचंद ने अपनी शादी के फैसले पर पिता के बारे में लिखा है “पिताजी ने जीवन के अंतिम सालों में एक ठोकर खाई और स्वयं तो गिरे ही, साथ में मुझे भी डुबो दिया: मेरी शादी बिना सोंचे समझे कर डाली।” हालांकि प्रेमचंद के पिताजी को भी बाद में इसका एहसास हुआ और काफी अफसोस किया।
    विवाह के एक साल बाद ही प्रेमचंद के पिताजी का देहान्त हो गया। अचानक प्रेमचंद के सिर पर पूरे घर का बोझ आ गया। एक साथ पाँच लोगों का खर्चा सहन करना पड़ा। पाँच लोगों में विमाता, उसके दो बच्चे पत्नी और स्वयं। प्रेमचंद की आर्थिक विपत्तियों का अनुमान इस घटना से लगाया जा सकता है कि पैसे के अभाव में उन्हें अपना कोट बेचना पड़ा और पुस्तकें बेचनी पड़ी। एक दिन ऐसी हालत हो गई कि वे अपनी सारी पुस्तकों को लेकर एक बुकसेलर के पास पहुंच गए। वहाँ एक हेडमास्टर मिले जिन्होंने प्रेमचंद को अपने स्कूल में अध्यापक पद पर नियुक्त किया।

    प्रेमचंद की शिक्षा-दीक्षा तंगी और अभाव में

    अपनी गरीबी से लड़ते हुए प्रेमचंद ने अपनी पढ़ाई मैट्रिक तक पहुंचाई। जीवन के आरंभ में प्रेमचंद ने गाँव से दूर बनारस पढ़ने के लिए नंगे पाँव जाया करते थे। इसी बीच पिता का देहान्त हो गया। पढ़ने का शौक था, आगे चलकर वकील बनना चाहते थे। मगर गरीबी ने तोड़ दिया। स्कूल आने-जाने के झंझट से बचने के लिए एक वकील साहब के यहाँ ट्यूशन पकड़ लिया और उसी के घर एक कमरा लेकर रहने लगे। ट्यूशन का पाँच रुपया मिलता था। पाँच रुपये में से तीन रुपये घर वालों को और दो रुपये से अपनी जिन्दगी की गाड़ी को आगे बढ़ाते रहे। इस दो रुपये से क्या होता महीना भर तंगी और अभाव का जीवन बिताते थे। इन्हीं जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों में मैट्रिक पास किया।

    प्रेमचंद की साहित्यिक रुचि और साहित्यिक सफर

    प्रेमचन्द उन साहित्यकारों में से हैं, जो साहित्यकार होने के साथ-साथ स्वतंत्रता सेनानी भी थे। गरीबी, अभाव, शोषण तथा उत्पीड़न जैसी जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियाँ भी प्रेमचंद के साहित्य की ओर उनके झुकाव को रोक न सकी। प्रेमचंद जब मिडिल में थे तभी से आपने उपन्यास पढ़ना आरंभ कर दिया था। आपको बचपन से ही उर्दू आती थी। प्रेमचंद पर हिंदी और उर्दू उपन्यास का ऐसा उन्माद छाया कि आप पुस्तक विक्रेता की दुकान पर बैठकर ही सब उपन्यास पढ़ गए। आपने दो-तीन साल के अन्दर ही सैकड़ों उपन्यासों को पढ़ डाला।
    प्रेमचंद ने बचपन में ही उर्दू के समकालीन उपन्यासकार सरुर मोलमा शार, रतन नाथ सरशार आदि के दीवाने हो गये कि जहाँ भी इनकी किताब मिलती उसे पढ़ने का हर संभव प्रयास करते थे। आपकी रुचि इस बात से साफ झलकती है कि एक किताब को पढ़ने के लिए प्रेमचंद ने एक तम्बाकू वाले से दोस्ती करली और उसकी दुकान पर मौजूद “तिलस्मे-होशरुबा” पढ़ डाली। अंग्रेजी के अपने जमाने के मशहूर उपन्यासकार रोनाल्ड की किताबों के उर्दू तरजुमो को आपने काफी कम उम्र में ही पढ़ लिया था। इतनी बड़ी-बड़ी किताबों और उपन्यासकारों को पढ़ने के बावजूद प्रेमचंद ने अपने मार्ग को अपने व्यक्तिगत विषम जीवन अनुभव तक ही सिमित रखा। तेरह वर्ष की उम्र में से ही प्रेमचंद ने लिखना आरंभ कर दिया था। शुरु में प्रेमचंद ने कुछ नाटक लिखे फिर बाद में उर्दू में उपन्यास लिखना आरंभ किया। इस तरह प्रेमचंद का साहित्यिक सफर शुरु हुआ जो मरते दम तक साथ-साथ रहा।

    प्रेमचंद ने की दूसरी शादी

    सन् 1905 में प्रेमचंद की पहली पत्नी पारिवारिक कटुताओं के कारण घर छोड़कर मायके चली गई फिर वह कभी नहीं आई। विच्छेद के बावजूद कुछ सालों तक वह अपनी पहली पत्नी को खर्चा भेजते रहे। सन् 1905 के अन्तिम दिनों में प्रेमचंद ने शीवरानी देवी से शादी कर ली। शीवरानी देवी एक विधवा थी और विधवा के प्रति प्रेमचंद सदा स्नेह के पात्र रहे थे। यह कहा जा सकता है कि दूसरी शादी के पश्चात् प्रेमचंद के जीवन में परिस्थितियां कुछ बदली और आय की आर्थिक तंगी कम हुई। प्रेमचंद के लेखन में अधिक सजगता आई। प्रेमचंद की पदोन्नति हुई तथा प्रेमचंद स्कूलों के डिप्टी इन्सपेक्टर बना दिये गए। इसी खुशहाली के जमाने में प्रेमचंद की पाँच कहानियों का संग्रह सोजे वतन प्रकाश में आया। यह संग्रह काफी मशहूर हुआ।

    प्रेमचंद का रोचक व्यक्तित्व और कृतित्व

    सादा एवं सरल जीवन के मालिक प्रेमचंद सदा मस्त रहते थे। उनके जीवन में विषमताओं और कटुताओं से वह लगातार खेलते रहे। इस खेल को उन्होंने बाजी मान लिया जिसको हमेशा जीतना चाहते थे। अपने जीवन की परेशानियों को लेकर उन्होंने एक बार मुंशी दयानारायण निगम को एक पत्र में लिखा “हमारा काम तो केवल खेलना है- खूब दिल लगाकर खेलना- खूब जी- तोड़ खेलना, अपने को हार से इस तरह बचाना मानों हम दोनों लोकों की संपत्ति खो बैठेंगे। किन्तु हारने के पश्चात्-पटखनी खाने के बाद, धूल झाड़ खड़े हो जाना चाहिए और फिर ताल ठोंक कर विरोधी से कहना चाहिए कि एक बार फिर जैसा कि सूरदास कह गए हैं, “तुम जीते हम हारे। पर फिर लड़ेंगे।” कहा जाता है कि प्रेमचंद हंसोड़ प्रकृति के मालिक थे। विषमताओं भरे जीवन में हंसोड़ होना एक बहादुर का काम है। इससे इस बात को भी समझा जा सकता है कि वह अपूर्व जीवनी-शक्ति का द्योतक थे। सरलता, सौजन्यता और उदारता के वह मूर्ति थे।
    जहां प्रेमचंद के हृदय में मित्रों के लिए उदार भाव था वहीं प्रेमचंद के हृदय में गरीबों एवं पीड़ितों के लिए सहानुभूति का अथाह सागर था। जैसा कि उनकी पत्नी कहती हैं “कि जाड़े के दिनों में चालीस-चालीस रुपये दो बार दिए गए दोनों बार उन्होंने वह रुपये प्रेस के मजदूरों को दे दिये। मेरे नाराज होने पर उन्होंने कहा कि यह कहां का इंसाफ है कि हमारे प्रेस में काम करने वाले मजदूर भूखे हों और हम गरम सूट पहनें।”
    प्रेमचंद उच्चकोटि के मानव थे। प्रेमचंद को गाँव जीवन से अच्छा प्रेम था। वह सदा साधारण गंवई लिबास में रहते थे। जीवन का अधिकांश भाग प्रेमचंद ने गाँव में ही गुजारा। बाहर से बिल्कुल साधारण दिखने वाले प्रेमचंद अन्दर से जीवनी-शक्ति के मालिक थे। अन्दर से जरा सा भी किसी ने देखा तो उसे प्रभावित होना ही था। वह आडम्बर एवं दिखावा से मीलों दूर रहते थे। जीवन में न तो उनको विलास मिला और न ही उनको इसकी तमन्ना थी। तमाम महापुरुषों की तरह अपना काम स्वयं करना पसंद करते थे।

  • सातबारा होणार हायटेक ! मिळणार विशेष क्यूआर कोड आणि आयडी नंबर





    सातबारा होणार हायटेक ! मिळणार विशेष क्यूआर कोड आणि आयडी नंबर | Hello Krushi
































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  • सिलाव में वज्रपात से मवेशी समेत चरवाहा की मौत

    सिलाव (नालंदा दर्पण)। सिलाव थाना क्षेत्र के धरहरा गांव में गुरुवार की शाम बारिश के साथ हुए वज्रपात से एक पशुपालक की मौत हो गई। वहीं एक मवेशी की भी मौके पर मौत वज्रपात के कारण हो गई। मृतक की पहचान इंदल महतो के 40 वर्षीय पुत्र अनिल प्रसाद के रूप में की गई है।

    घटना के संबंध बताया जाता है कि मृतक मवेशी चराने का काम खलिहान में कर रहे थे। तभी गुरुवार की शाम अचानक बारिश के साथ बज्रपात हो गया। जिसके चपेट में आने से अधेड़ और उनका मवेशी झुलस गया और मौके पर ही मौत हो गई। जब तक आस पास के लोग मौके पर पहुँचते, उसके पूर्व ही अधेड़ की मौत हो चुकी थी।

    घटना के बाद गांव में कोहराम मच गया मृतक के परिजनों की चीख पुकार से गांव का माहौल गमगीन हो गया। मौत की सूचना पर पहुंची पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए सदर अस्पताल भेज दिया।

  • देवघर के पर्यटन स्थल

    देवघर में घूमने के लिए और पर्यटकों की अत्यधिक रुचि के कई स्थान हैं। ये स्थान शहर के चारों ओर बिखरे हुए हैं और इनमें से कुछ ग्रामीण ब्लॉकों में भी स्थित हैं। देवघर पर्यटकों को दर्शनीय स्थलों की यात्रा, साहसिक, तीर्थयात्रा और योग पर्यटन से लेकर एक संपूर्ण पैकेज प्रदान करता है।

    Baba Baidyanath Temple: यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और 51 शक्तिपीठों में से एक है। अधिक पढ़ें

    Nandan Pahar: यह शहर के किनारे पर एक छोटी सी पहाड़ी है जो एक प्रसिद्ध नंदी मंदिर की मेजबानी करती है और प्रसिद्ध शिव मंदिर का सामना करती है। नंदन पहाड़ में बच्चों के लिए एक बड़ा पार्क है, और इसमें एक भूत घर, एक बूट हाउस, एक दर्पण घर और एक रेस्तरां है। अधिक पढ़ें

    वासुकिनाथ यह अपने शिव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, और बाबा धाम की तीर्थयात्रा बासुकीनाथ में पूजा किए बिना अधूरी मानी जाती है। यह देवघर से 43 किमी दूर जरमुंडी गांव के पास स्थित है और सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। यह एक स्वदेशी मंदिर है जिसे स्थानीय कला से सजाया गया है। अधिक पढ़ें
    Naulakha Mandir: यह बाबा बैद्यनाथ मंदिर से 1.5 किमी दूर स्थित है। यह मंदिर दिखने में बेलूर के रामकृष्ण मंदिर के समान है। अंदर राधा-कृष्ण की मूर्तियां हैं। यह 146 फीट ऊंचा है और इसके निर्माण की लागत लगभग रु। 900,000 (9 लाख) और इसलिए इसे नौलखा मंदिर के रूप में जाना जाने लगा। अधिक पढ़ें

    Ramakrishna Mission Vidyapith: यह आरके मिशन के साधुओं द्वारा संचालित एक बोर्डिंग स्कूल है। परिसर हरियाली से भरा है और इसमें 12 फुटबॉल मैदान हैं। रामकृष्ण मिशन विद्यापीठ, रामकृष्ण मिशन, बेलूर मठ, हावड़ा जिले की एक शाखा, की स्थापना 1922 में प्राचीन गुरुकुल की तर्ज पर प्राचीन संस्कृति के मूल्यों के साथ संयुक्त आधुनिक शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी। अधिक पढ़ें

    सत्संग आश्रम: यह देवघर के दक्षिण-पश्चिम में अनुकुल चंद्र द्वारा स्थापित ठाकुर अनुकुलचंद्र के भक्तों के लिए एक पवित्र स्थान है। तपोवन देवघर से 10 किमी दूर स्थित है और इसमें शिव का एक मंदिर है, जिसे तपोनाथ महादेव कहा जाता है, जो तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है। इस पहाड़ी में कई गुफाएं पाई जाती हैं। एक गुफा में शिवलिंग स्थापित है। ऐसा कहा जाता है कि ऋषि वाल्मीकि यहां तपस्या के लिए आए थे और श्री श्री बालानंद ब्रह्मचारी ने यहां सिद्धि (तपस्या के माध्यम से सफलता) प्राप्त की थी। अधिक पढ़ें

    रिखिया आश्रम यह बिहार योग विद्यालय (श्री श्री पंच दशानं परमहंस अलखबरः) है और इसकी स्थापना स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने की थी। दुनिया के विभिन्न कोनों से हजारों भक्त एक वार्षिक उत्सव में भाग लेते हैं जो नवंबर के अंत से दिसंबर की शुरुआत में आयोजित किया जाता है। विदेशी पर्यटकों को अक्सर शहर में देखा जाता है, खासकर नवंबर और फरवरी के बीच। इस आश्रम को पवित्र स्थान माना जाता है। अधिक पढ़ें

    शिवगंगा: यह बैद्यनाथ मंदिर से सिर्फ 200 मीटर की दूरी पर स्थित पानी का एक कुंड है। कहा जाता है कि जब रावण शिवलिंग को लंका ले जा रहा था तो उसे पेशाब करने की जरूरत पड़ी। बाद में, लिंगम को पकड़ने से पहले अपने हाथ धोना चाहते थे, लेकिन पास में जल स्रोत नहीं मिलने पर, उन्होंने अपनी मुट्ठी से पृथ्वी पर प्रहार किया। पानी निकला और तालाब बन गया। इस तालाब को अब शिवगंगा के नाम से जाना जाता है। अधिक पढ़ें

    हरिला जोरी: यह देवघर के उत्तर की ओर, बैद्यनाथ मंदिर से 8 किमी और टॉवर चौक से 5 किमी दूर स्थित है। प्राचीन काल में यह क्षेत्र हरीतकी (माइरोबलन) के वृक्षों से भरा हुआ था। यह दावा किया जाता है कि यह वह स्थान है जहाँ रावण ने ब्राह्मण के वेश में भगवान विष्णु को लिंगम सौंप दिया था और पेशाब करने गया था। यहां एक धारा बहती है और इसे रावण जोरी के नाम से जाना जाता है।

    एक तेंदुआ पहाड़ियाँ: यह देवघर से 13 किमी दूर दुमका के रास्ते में तीन पर्वत चोटियों का एक समूह है, जिसमें तीन मुख्य चोटियाँ हैं, जहाँ से इसका नाम त्रिकुटाचल पड़ा है। पहाड़ी 1,350 फीट (400 मीटर) ऊंची है। झारखंड राज्य में त्रिकुट का एकमात्र वर्टिकल रोप वे है। बेस कैंप से शिखर तक की सवारी में लगभग सात मिनट लगते हैं। आज इस जगह पर ग्रे बंदरों की बड़ी आबादी है। अधिक पढ़ें

    राम निवास आश्रम: यह वह जगह है जहां श्री श्री बालानंद ब्रह्मचारी महाराज, एक महान योगी और गुरु रहते थे और ध्यान करते थे। उनके शिष्य, और आश्रम के दूसरे मोहंता (प्रमुख), मोहनन्द ब्रह्मचारी भी यहीं रहे। आश्रम पेड़ों और बगीचों से घिरा हुआ है, और इसमें त्रिपुरा सुंदरी, राधा-कृष्ण और भगवती देवी के मंदिर हैं। एक स्मारक मंदिर उस स्थान को चिन्हित करता है जहाँ श्री मोहनन्द ब्रह्मचारी की अस्थियों को विसर्जित किया गया था।

    जलसर चिल्ड्रन पार्क: इस पार्क में बच्चों के लिए मजेदार राइड्स हैं, जिसमें एक आरी और टॉय ट्रेन भी शामिल है। अधिक पढ़ें

    मां काली शक्तिपीठ : यह कर्नीबाग क्षेत्र में है और इसे मां काली नगर के नाम से भी जाना जाता है। देवता, माँ, पिंडी के रूप में हैं और क्षेत्र में लोकप्रिय हैं। अधिक पढ़ें

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  • सोनपुर, बिहार के लिए ट्रेनें | बिहार का अन्वेषण करें

    सोनपुर को भारत के विभिन्न हिस्सों से जोड़ने वाली कई ट्रेनें हैं। हम कुछ प्रमुख शहरों से सोनपुर जंक्शन (SEE) के लिए ट्रेनों को सूचीबद्ध कर रहे हैं। सोनपुर से हर हफ्ते करीब 80 अनोखी ट्रेनें गुजरती हैं। इन ट्रेनों में सीट बुक करने के लिए कृपया देखें आईआरसीटीसी वेबसाइट या किसी ट्रैवल एजेंट से संपर्क करें।

    इनके अलावा, कई ट्रेनें पास के शहर पटना (PNBE) को भारत के लगभग सभी कोनों से जोड़ती हैं।

    नई दिल्ली से ट्रेनें

    15610 अवध असम एक्सप्रेस
    12566 बिहार एस क्रांति
    15708 असर किर एक्सप्रेस
    12524 ंडल्स जप सफ क्स्प
    14006 लीच्छवी एक्सप्रेस
    14016 सद्भावना एक्सप्रेस
    12554 वैशाली एक्सप्रेस
    14674 शहीद एक्सप्रेस
    12562 स्वतंत्र एक्सप्रेस एक्सप्रेस

    कोलकाता से ट्रेनें

    13105 सदाह बुई एक्सप्रेस
    15047 पूर्वांचल एक्सप्रेस
    13019 बाग एक्सप्रेस

    चेन्नई से ट्रेनें

    12522 राप्तीसागर एक्सप्रेस

    मुंबई से ट्रेनें

    11061 मुजफ्फरपुर एक्सप्रेस
    11065 दरभंगा एक्सप्रेस

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  • सोनपुर टाउन, बिहार के लिए उड़ानें

    सोनपुर टाउन में हवाई अड्डा नहीं है, इसलिए कोई उड़ान कनेक्टिविटी नहीं है। निकटतम हवाई अड्डा पटना में लोक नायक जयप्रकाश हवाई अड्डा (पीएटी, वीईपीटी) है जो सड़क मार्ग से मुश्किल से 25 किमी दूर है।

    पटना सीधी उड़ानों के माध्यम से नई दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, बैंगलोर, रांची, काठमांडू (नेपाल) जैसे शहरों से जुड़ा हुआ है। गोवा, श्रीनगर, पुणे, चेन्नई, लखनऊ, हैदराबाद, विशाखापत्तनम, जम्मू, इंदौर और अहमदाबाद के लिए भी कनेक्टिंग उड़ानें उपलब्ध हैं।

    पीक सीज़न (नवंबर-मार्च) के दौरान, लॉर्ड बुद्धा इंटरनेशनल एयरपोर्ट, गया (GAY, VEGO) की नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार थाईलैंड, भूटान जैसे पड़ोसी देशों के लिए नियमित उड़ान कनेक्टिविटी है। गया एयरपोर्ट सोनपुर से लगभग 120 किमी दूर होगा। देखें बोधगया के लिए उड़ानों की सूची

    सोनपुर को पटना हवाई अड्डे से जोड़ने के लिए नियमित टैक्सी और ऑटोरिक्शा उपलब्ध हैं।

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