सरकार की उदासीनता व विभाग की लापरवाही के कारण राज्य के 95% विद्यालय बिना एच एम के हैं। एच.एम के नहीं रहने से विद्यालय के प्रशासनिक कार्यों में पड़ता है व्यापक असर, गुणवत्तायुक्त शिक्षा भी होती है प्रभावित, अतएव सत्तासीन सरकार राज्य के विद्यालयों में शीघ्र एच.एम की बहाली सुनिश्चित करें। उक्त बातें नवनियुक्त माध्यमिक/उच्च माध्यमिक शिक्षक संघ बिहार के प्रदेश अध्यक्ष डॉ गणेश शंकर पाण्डेय ने प्रेस वक्तव्य जारी कर कहा।
उन्होंने कहा कि हेडमास्टर नियुक्ति नियमावली के तहत पचास फीसदी पद बीपीएससी परीक्षा के आधार पर तथा पचास फीसदी प्रोन्नति के आधार पर एच.एम की नियुक्ति होनी थी परन्तु उस नियम का अनुपालन विभाग द्वारा नहीं किए जाने के कारण एच.एम नियुक्ति का मामला आज तक लंबित है।
उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा वर्षों बाद हेडमास्टर पद के लिए बीपीएससी के माध्यम से जो परीक्षा आयोजित कराई गई, उसमें भी सरकार की गलत मानसिकता उजागर हो गया। क्योंकि प्रश्न की उत्कृष्टता सिविल सर्विसेज लेवल की और निगेटिव मार्किंग के थे ।उन्होंने कहा कि एच एम की परीक्षा में पहली बार प्रत्येक प्रश्न के पांच विकल्प थे जिसमें अंतिम विकल्प इनमें से कोई नहीं था,जो परीक्षार्थियों के लिए उलझन बना हुआ था, साथ ही साथ नई शिक्षा नीति -2020 से एक भी प्रश्न नहीं पूछा गया था जबकि प्रत्येक विद्यालय में आनेवाले बर्ष में इसे लागू करना अनिवार्य होगा।
आश्चर्य की बात तो यह है कि एच.एम के लिए आयोजित परीक्षा में एच.एम के कार्यों एवं चुनौतियों से संबंधित एक भी प्रश्न को शामिल नहीं किया गया था। इससे सरकार की कुत्सित मानसिकता दिखती है। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि सरकार ने जानबूझ कर ऐसा प्रश्न पत्र ही उपलब्ध करवाया कि अधिकतर शिक्षक पास हीं ना करें जिससे समाज उनके योग्यता पर सवालिया निशान लगा सके और उनकी बनी बनाई छवि समाज में धूमिल हो ।
उन्होंने कहा कि 150 के अंक में विद्यालय प्रशासन से संबंधित एक भी प्रश्न नहीं, कार्य अनुभव से संबन्धित एक भी प्रश्न नहीं। जबकि विद्यालय संचालन के लिए बहुत विषयक जानकारी की आवश्यकता नहीं होती है। विद्यालय प्रशासन और कार्य अनुभव की नितांत आवश्यकता होती है। लेकिन सरकार ने अपने गलत मनोनुकूल कार्य को पूरी कर एच.एम की परीक्षा को हीं विवादास्पद बना दिया। फलस्वरूप अपेक्षा से बहुत कम शिक्षक परीक्षा उत्तीर्ण हुए।एक तरफ उन्होंने चेतावनी भरी लहजे में कहा कि यदि सरकार की यही गलत मंशा व रवैया रही तो आगामी पचास साल में भी सूबे के सभी विद्यालयों को एच.एम नहीं मिल सकेगा।
वहीं दूसरी तरफ उन्होंने सरकार से विनम्र अनुरोध व अपील करते हुए कहा कि एच एम नियुक्ति की पूर्व निर्धारित नियमावली के अनुरूप पदोन्नति से पचास फीसदी एच.एम की नियुक्ति यथाशीघ्र करें ताकि विद्यालय स्तर पर गुणवत्तायुक्त शिक्षा को ईमानदारी व मजबूती से उतारा जा सके।
उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में सूबे के विद्यालयों का संचालन वरीय सहायक शिक्षक प्रभारी के रूप में जबरन कर रहे हैं। क्योंकि सरकार व सरकारी तंत्र द्वारा प्रभारी कार्य के बदले में तनाव के अलावा उन्हें कुछ भी अतिरिक्त परिश्रमिक नहीं दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि जिस राज्य का 95% विद्यालय एच.एम रहित हो और उस राज्य का शिक्षा मंत्री आउट पुट की अपेक्षा रखता हो हास्यास्पद प्रतीत होता है वावजूद सूबे बिहार के मैट्रिक एवं इंटरमीडिएट के रिजल्ट हीं हमारा आउटपुट है इसके आधार पर सरकार हमे शीघ्र हमारा वाजिब हक समान वेतन दें ।
उन्होंने कहा कि प्रभारी का पद कुछ समय के लिए काम चलाऊ व्यवस्था के तहत होता है, यहां तो लोग पांच और दस सालों से काम चलाऊ व्यवस्था के तहत प्रभारी बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि काम चलाऊ व्यवस्था के तहत प्रभारी बनने वालों को विद्यालय संचालन में भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है फलस्वरूप वैसे प्रभारी एच.एम अपने कार्य व दायित्व के प्रति उदासीन हो जाते हैं ।
जिससे विद्यालय का शैक्षणिक व प्रशासनिक वातावरण विषाक्त होता जा रहा है और मिशन गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रभावित हो रही है। इसीलिए राज्य सरकार यथाशीघ्र सूबे बिहार के विद्यालयों में परीक्षा के अलावे प्रोन्नति के आधार पर भी पचास फीसदी एच.एम पद की नियुक्ति कर सूबे की शिक्षा व्यवस्था को और सशक्त व सुदृढ़ बनाएं।