भारत के पहले अनुसूचित जाति के मुख्यमंत्री थे भोला पासवान शास्त्री

बिहारशरीफ,-  साहित्यिक भूमि बबुरबन्ना मोहल्ला में साहित्यिक मंडली शंखनाद के तत्वावधान में शंखनाद के वरीय सदस्य समाजसेवी सरदार वीर सिंह के आवास पर हिंदी-संस्कृत और उर्दू के प्रकांड विद्वान, भारत के पहले अनुसूचित जाति के मुख्यमंत्री व कर्मयोगी स्वतंत्रता सेनानी भोला पासवान शास्त्री की 108 वीं जयंती मनाई गई। जिसकी अध्यक्षता शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह तथा संचालन मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने किया। समारोह में साहित्यिक और सामाजिक परिचर्चा का आयोजन किया गया। चर्चा का विषय था- “भोला पासवान के विचार और सामाजिक उपलब्धि”। कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ दीप प्रज्वलित तथा उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों ने स्वर्गीय शास्त्री जी के तैल चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि अर्पित कर किया।

जयंती समारोह में विषय प्रवेश कराते हुए साहित्यिक मंडली शंखनाद के महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय भोला पासवान शास्त्री के तैल चित्र पर पुष्पांजलि व श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपने सम्बोधन में कहा कि स्वर्गीय भोला पासवान शास्त्री जी का जन्म पूर्णिया जिले के केनगर प्रखंड में पंचायत गणेशपुर के काझा कोठी स्थित बैरगाछी में 21 सितंबर 1914 को हुआ था। ये बचपन से हीं कुशाग्र बुध्धि के थे। भोला पासवान अपने गांव बैरगाछी में संस्कृत पाठशाला में पढ़े और आगे बढ़े थे। इनके पिता का नाम धुसर पासवान था ये दरभंगा महाराज के यहाँ सिपाही की नौकरी करते थे। उन्होंने कहा- शास्त्री जी अपने राजनैतिक जीवन में तीन बार मुख्यमंत्री रहे। ये भले ही अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन वो बिहार की राजनीतिक इतिहास में विदेह कहे जाने वाले एक मात्र नेता हैं। शास्त्री जी सादा जीवन और उच्च विचार के लिए बिहार की राजनीति में जाने जाते हैं। स्वतंत्रता संग्राम से आजादी के बाद कांग्रेस के साथ जुड़कर कई महत्वपूर्ण पदों सहित मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए भी भोला पासवान शास्त्री ने कोई भी निजी धन संपत्ति इकट्ठा नहीं की। यही कारण है कि उन्हें सादगी के लिए जाना जाता है। शास्त्री जी की ईमानदारी अतुलनीय ही नहीं अनुकरणीय भी है। उन्होंने बतायाकि शास्त्री जी पहली बार 22 मार्च 1968 को बिहार के मुख्यमंत्री बने। अपने इस कार्यकाल में वह 100 दिनों तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद उन्होंने 22 जून 1969 को दोबारा राज्य की सत्ता संभाली, लेकिन इस बार वह मात्र 13 दिनों के लिए मुख्यमंत्री बन सके। 2 जून 1971 को उन्होंने तीसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। इसबार वह 9 जनवरी 1972 तक बिहार की गद्दी पर बने रहे।

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मौके पर अध्यक्षीय सम्बोधन में शंखनाद के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने स्व. भोला पासवान शास्त्री के जीवन वृतांत पर विस्तृत रूप से प्रकाश डालते हुए कहा कि हर व्यक्ति अपने बच्चों को शिक्षा की ओर ले जायें तभी समाज से गरीबी मिटेगी। स्वर्गीय भोला पासवान शास्त्री जी सादगी के प्रतिमूर्ति थे और उनका सादगीपूर्ण जीवन आज भी प्रासंगिक हैं। दिवंगत शास्त्री जी एक कुशल राजनेता और स्वतंत्रता आंदोलन के साहसिक योद्धा थे। जिन्होंने समाज के सभी वर्गों के लिए काम किया। उन्होंने कहा- वर्तमान समय में समाज को अपने महापुरुषों के बारे में जानकारी नहीं होने के कारण नये दौर के बच्चे उनके त्याग व बलिदान से अवगत नहीं हैं, जो दु:ख की बात है। हमें अपने महापुरुषों के बारे में उनके त्याग और बलिदान की कहानी को समाज के पटल पर रखना होगा, ताकि हमारी नई पीढ़ी जान सके।

कार्यक्रम संचालन करते हुए “शंखनाद” के मल्टीमीडिया प्रभारी राष्ट्रीय गजलकार नवनीत कृष्ण ने कहा- बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री स्व० भोला पासवान शास्त्री जी ईमानदारी की मिसाल थे। शास्त्री जी बिहार ही नहीं, बल्कि देश के बड़े स्वतंत्रता सेनानी थे। वे सभी वर्गों के रहनुमा थे। केवल दलितों के नहीं बल्कि वें अकलियतों और पिछड़ों सहित सभी वर्गों के नेता थे। उन्होंने सभी के लिए बगैर भेदभाव के काम किया।

शंखनाद के वरीय सदस्य सरदार वीर सिंह ने कहा- भोला पासवान शास्त्री एक बेहद ईमानदार और देशभक्त स्वतंत्रता सेनानी थे। वह महात्मा गांधी से प्रभावित होकर स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सक्रिय हुए थे। बहुत ही गरीब परिवार से आने के बावजूद वह बौद्धिक रूप से काफी सशक्त थे। भोला पासवान जी दलितों ही नहीं अपितु गरीब, गुरूबों, पिछड़ों अतिपिछड़ों एवं अल्पसंख्यकों के सर्वमान नेता थे।

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शिक्षाविद् साहित्यसेवी राजहंस कुमार ने कहा कि आज हमलोग महामानव भोला पासवान शास्त्री की जयंती मना रहे हैं, उन्होंने अपने मुख्यमंत्री काल में शोषितों, पीड़ितों, पिछड़ों एवं दलितों के उत्थान के लिए उनके अधिकार और समता के अस्तित्व के लिए काम किए और गरीबों के बीच शिक्षा के लिए अलख जगाने का काम किए।

साहित्यसेवी सुरेश प्रसाद ने कहा कि भोला पासवान शास्त्री वास्तव में भोला थे। वे एक बेहद ईमानदार और देश भक्त थे। गरीबी की आग में तप कर शिक्षा अध्ययन करने वाले स्व० शास्त्री के जीवन से आज के पीढ़ियों के युवाओं को सिख लेने की जरूरत है। तभी इनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

साहित्यसेवी प्रमोद कुमार ने कहा कि स्वर्गीय भोला पासवान शास्त्री जी का जीवन राजनीतिक स्वच्छता का परिचायक है। उन्होंने कहा कि आज राजनीति में इतनी गंदगी आ गई है कि राजनेता के पावर में आने का निहितार्थ बेशुमार दौलत संग्रह हो गया है। शास्त्री जी त्याग की प्रतिमूर्ति थे।

इस दौरान परिचर्चा में साहित्यसेवी डॉ. हजारी लाल, समाजसेवी विजय कुमार, समाजसेवी राजदेव पासवान, धीरज कुमार, ललितेश्वर चौधरी, विद्या भूषण सिंह, अर्जुन प्रसाद, राजीव कुमार, रविन्द्र पासवान, यशपाल सिंह, मुन्नीलाल यादव, सुनिता देवी, शोभा देवी, युवराज सिंह, गोलू कुमार, अंजीत पासवान, बैजू कुमार सहित कई गणमान्य लोग मौजूद थे।

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