रिंकू मिर्धा/कसबा
पूर्णिया: पौराणिक धरोहर को अबतक सवार कर वैदिक पद्वति एवम तांत्रिक ढंग से मां दुर्गा की पूजा अर्चना कसबा के गढ़बनेली स्थित दुर्गा मंदिर में दूर दूर से आए आचार्यों के द्वारा किया जाता है। इस मां के दरबार में जो भी भक्त सच्चे मन से मन्नते मांगते है उनकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। इस दुर्गा मंदिर का रोचक तथ्य यह है की दुर्गा पूजा संयुक्त बनैली राज्य के द्वारा शुरू हुवा था ,जो लगभग 300वर्ष पुराना है। कालांतर में बनेली राज्य का बटवारा हुआ। बटवारा में राजा बहादुर कलानंद सिंह गढ़बनेली आए और यहां पर उसी आधार पर उसी आधार पर उसी समय से पूजा प्रारंभ हुई। यहां भगवती की पूजा तांत्रिक विधि से संपन्न होती है ,जो की अन्य जगह जगह की पूजा से भिन्न है
वैसे इस पूजा में भगवती की प्रतिमा तो बनती है लेकिन यह संकेत मात्र है ,इनकी पूजा की सारी विधाएं संशोधित बसु संस्कारित यंत्र पर होती है। यह पूजा की पद्धति को प्रकाण्ड विज्ञानों ने मिलकर राजा के समय बनाया था जो की मिथिला एवम बंगाल के पांडुलिपि के आधार पर है। इस मंदिर में पाष्टमी के दिन बिलवाभिमंत्र होता है तथा सप्तमी को बिल्वफल में भगवती की भावना कर लाया जाता है, तथा साथ में पत्रिका प्रवेश के साथ भगवती का गृह प्रवेश कराया जाता है। सप्तमी के दिन भगवती का चख्चु दान आवरण के साथ होता है, चक्च्छु दान के उपरांत आवरण हटते ही भगवती की दृष्टि उस पर पढ़ती है ,इसके बाद लगातार बली प्रक्रिया नवमी के दिन तक चलती है
अष्टमी की रात्रि को महानिशा पूजा होती है जो काफी महत्वपूर्ण है ,इस पूजा में बहुत सारी प्रक्रिया गोपनीय है ,अष्टवी पूजा की रात्रि महारात्रि कहलाती है। यहां का विशिष्ट पूजा अत्यंत गोपनीय ढंग से की जाती है ,इस पूजा में मुद्रा पूजा प्रधान है जो सामान्य आदमी के समझ से परे है , यहां पर दूर दूर से पंडित आते है जिनकी संख्या 15 से 21 तक होती है,इस पूजा के प्रधान पुरोहित के अनुसार दुर्गा मंदिर की पूजा बनेली राज के उतराधिकारी राजीव नंदन सिंह के द्वारा किया जाता है ,बोले पूजा गोपनीय है उसको बताया नही जाता है ।