कालीगंज में 52 भक्तों के कांधे पर सवार होकर माँ हुई विदा

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 हिंदू आस्था की मिसाल कालीगंज की मां दुर्गा अद्भुत परंपरा के लिए बिख्यात हैं। खासियत है मां को करीब तीन किलोमीटर तक श्रद्धालु कंधे पर विसर्जन के लिए बेलौरी सौरा नदी ले जाते हैं। इस दौरान सैकड़ों लोगों के कंधों पर मां विराजमान होती है। मंदिर की स्थापना 1939 में स्थानीय व पश्चिम बंगाल के रहने वाले कुछ पान व्यवसायियों ने की थी। बताया जाता है कि एक व्यक्ति के सपने में आने के बाद इस मंदिर की स्थापना की गई थी। इस मंदिर में मन्नत मांगने से पूरी होती है

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बिहार के अलावा सीमावर्ती राज्य सहित पड़ोसी देश नेपाल से भी श्रद्धालु पूजा करने आते हैं। परंपरा के अनुसार मंदिर का मूर्ति का विसर्जन श्रद्धालु पैदल 52 कंधे पर हीं करते आ रहे हैं। हिंदू और मुस्लिम सभी संप्रदाय के लोग मिलकर मूर्ति को कंधा देते हैं।तीन किलोमीटर की दूरी तय करने में करीब चार से पांच घंटा लगता है। वहीं इस दौरान लालबाड़ी,बेलौरी कॉलनी,बेलौरी सहित अनूपनगर की महिलाएं विधि वत मैया को अंतिम विदाई के दौरान पूजा अर्चना किया। वहीं जगह जगह श्रद्धालुओं के लिये लोग ठंढा पानी व शरबत का भी व्यवस्था वही किया गया था। पूजा-पाठ से लेकर भजन-कीर्तन सभी दिन होते रहे

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वहीं स्थानीय युवक पुरुषोत्तम कुमार बताते हैं कि विसर्जन के दिन सुबह बिना बुलाये आस पास के क्षेत्र के सैंकड़ों युवा और लोग आ जाते हैं। किसी को बुलाने का भी जरूरत नहीं पड़ती है। इस दौरान अगर कोई थक जाता है तो दूसरा व्यक्ति माता को कंधा देता है। आज तक किसी भी तरह की कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है। मंदिर कमेटी के अध्यक्ष बिनोद मंडल बताते हैं कि विसर्जन के दौरान सुरक्षा व्यवस्था का पुख्ता इंतजाम किया जाता है, ताकि किसी प्रकार का हंगामा नहीं हो। वहीं मौके पर मुफस्सिल प्रशासन भी गश्त करते दिखी।

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