देश में यहां धरती उगलती है तांबा, बिछी हैं भूमिगत रेल पटरियां…


डेस्क : तांबे के उत्पादन में झुंझुनूं जिला राजस्थान में नंबर वन है। यहां की धरती तांबे उगलती है। हर दिन बड़ी मात्रा में ताम्बा निकाला भी जा रहा है। खेतड़ी ने कभी भारत को तांबे में आत्मनिर्भर बना दिया था। वर्तमान में यहां की जमीन से करीब 370 मीटर नीचे तक खनन हो रहा है।

जहां भूमिगत रेल पटरियां बिछी हुयी हैं। KCC में अब माइनिंग व कंस्ट्रक्टर प्लांट को छोड़कर बाकी के प्लांट अन्य जगहों पर स्थानांतरित कर दिए हैं। अब यहां रॉ मटेरियल निकलता है। उसे ट्रकों में भरकर अलग-अलग जगह रिफाइनरियों में भेज भी दिया जाता है।

हिस्ट्री :

हिस्ट्री : साल 1975 से पहले रूस, चीन व अन्य देशों से भारत तांबा मंगवाता था, तब खेतडीनगर में तांबे के स्मेल्टर प्लांट की स्थापना भी हुई। हर माह यहां औसत साढ़े 3 हजार टन शुद्ध तांबे की सिल्लियां तैयार हो जाती थीं। यह सिलसिला 23 नवम्बर वर्ष 2008 तक चला। तांबे में भारत अब आत्मनिर्भर होने लगा। तांबे की खोज यहां साल 1960 से पहले से हो रही थी। तब यहां की खानें जूलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के ही अधीन थीं।

हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (HCL) की स्थापना के बाद 9 नवंबर 1967 को खानें HCL के अधीन आ गईं। तब तांबे का खनन तेज हुआ। HCL की यूनिट खेतड़ी कॉपर कॉम्पलेक्स (KCC) की स्थापना हुई। 5 फरवरी 1975 से तांबे का उत्पादन शुरू कर दिया गया। इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी यहां आईं हुई थीं। उन्होंने ये प्लांट देश को समर्पित किया था। तब हर माह करीब साढ़े 3 हजार टन शुद्ध तांबे का उत्पादन होता था। करीब 11 हजार नियमित कर्मचारी-अधिकारी कार्यरत भी थे।

यहां हैं ताम्बे के प्रचुर भंडार :

यहां हैं ताम्बे के प्रचुर भंडार : खेतड़ीनगर, कोलिहान, सिंघाना, खेतड़ी, बनवास, चांदमारी, धानी बासरी, बनीवाला की ढाणी, ढोलामाला, अकवाली, पचेरी, रघुनाथगढ़, माकड़ो, बागेश्वर, खरखड़ा, श्यामपुरा भिटेरा, जसरापुर, और मुरादपुर व भोदन इश्कपुरा जैसे इलाके। कुछ एक्सपर्ट का कहना है कि यहां अगले 100 साल तक के लिए तांबे के भंडार हैं। नई तकनीक से खुदाई की जाए तथा नई तकनीक के प्लांट भी लगाए जाएं, तो ये धरती फिर से ताम्बे के भंडार भर सकती है। वर्तमान में कोलिहान व बनवास खान से तांबे का खनन हो अत्यधिक हो रहा हैं।

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