हैलो कृषि ऑनलाइन : खेतकरी दोस्तों, अक्सर ऐसा नहीं होता है कि कोई फसल लगाई जाती है और वह आसानी से जोर से बढ़ती है। फसल की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। कवकनाशी उपचार के बिना, बीज अंकुरित नहीं होते हैं और अंकुर मिट्टी में जड़ नहीं लेते हैं। आईसीयू में भर्ती मरीज की तरह जन्म से ही समय-समय पर दवाओं की खुराक से हमारी फसलों को जिंदा रखना होता है। बिना पेपर मल्चिंग के टमाटर जैसी फसल नहीं होती। किसान सब्जियों, दालों, अनार, अंगूर, गन्ना, कपास, केला जैसी फसलों में उत्पादन की निरंतरता बनाए रखने और नई-नई बीमारियों का सामना करते-करते थक गए हैं। तो आख़िर ग़लत क्या है?
भूमि उपयोग वास्तव में क्या है?
आप एक स्वर से उत्तर देंगे, ‘जमीन कैसे घटी’ सही उत्तर है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है? यदि किसान प्रत्येक फसल में सभी उर्वरक, सूक्ष्म पोषक तत्व, दवाइयां और पोषक तत्व आवश्यक मात्रा में डाल रहा है तो भूमि की गुणवत्ता क्यों कम हो रही है? ओह, यह ‘कैसे’ वास्तव में क्या मतलब है? आख़िर गलती कहाँ है? यह कास क्या है? कास का अर्थ है काली कसदार” कास हाँ है !! मिट्टी का काला रंग उसमें कार्बनिक कार्बन के कारण होता है और जैविक कार्बन ह्यूमस या जैविक कार्बन होता है !! तो हमारे पारंपरिक उर्वरक प्रबंधन में कार्बनिक पदार्थ का प्रबंधन क्यों नहीं किया जाता है? ऐसे प्रश्न उठते हैं। निम्नलिखित जानकारी आपको उनके उत्तर को समझने में मदद करेगी।
शरद बोंडे ने जब इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश की तो कुछ वैज्ञानिक तथ्य जो सामने आए वो हमारी आज तक की मान्यताओं को झकझोर कर रख देने वाले हैं. दोस्तों शोध में पाया गया है कि जीवित प्राणियों (मनुष्य, पौधे, जानवर) के संतुलित पोषण के लिए कुल 75 तत्वों की आवश्यकता होती है। 75 तत्वों में से 16 (18) सामान्यतः आवश्यक होते हैं।
7 सूक्ष्म पोषक तत्व (काॅपर, जिंक, बोरॉन, फेरस, मैंगनीज, मैलिब्डेनम और क्लोरीन/निकल/कोबाल्ट या एक
3 माध्यमिक (कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर)
3 मुख्य तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश)। कुल 13 है तो कौन से तीन बचे?
3 प्राकृतिक तत्व (कार्बन, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन)
दोस्तों जिस प्रकार कंक्रीट बनाने के लिए साधारण निर्जीव सीमेंट के बारे में कहा जाता है उसी प्रकार रेत, बजरी, सीमेंट को एक निश्चित मात्रा में लेने की आवश्यकता होती है उसी प्रकार जीवित वनस्पतियों के स्वस्थ विकास के लिए इन 16 तत्वों के पोषण की निश्चित मात्रा में ही आवश्यकता होती है। आपको आश्चर्य होगा जब पौधे में इन तत्वों की मात्रा का प्रयोगशाला में परीक्षण किया गया तो सूखे पौधे के कुल वजन का 94% कार्बन, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन तीन तत्वों से भरा हुआ था। बेशक जब किसी भी जानवर या पौधे को जलाया जाता है तो जो राख बच जाती है उसमें 95% से अधिक कार्बन होता है, यानी पौधों में शेष 13 तत्वों का केवल 6% यानी आज का किसान अपने खर्च का 85% 6% पोषण पर खर्च करता है। सैकड़ों वर्षों तक खेती करने के बाद भी हमारे पूर्वजों ने जमीन की गुणवत्ता को बनाए रखा। क्योंकि उनका 100% पोषण कार्बनिक पदार्थों पर निर्भर था, बहुत अधिक ह्यूमस उपलब्ध था और बड़ी मात्रा में प्राकृतिक पदार्थ (कार्बन) की भरपाई की गई थी। आज का किसान 94% पोषण प्रकृति पर छोड़ कर भाग्य को दोष देता है। परिणामस्वरूप, प्रकृति में कार्बन का संतुलन बिगड़ गया है।
आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि हवा में कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में कार्बन की मात्रा बढ़ रही है और मिट्टी में ठोस कार्बनिक कार्बन की मात्रा कम हो रही है। 40-50 साल पहले 3-4% कार्बनिक कार्बन सामग्री आज दस गुना घटकर 0.3-0.5 के खतरनाक स्तर से नीचे आ गई है। इसका साफ मतलब है कि हमारे खाद प्रबंधन के तरीके में बड़े बदलाव की जरूरत है। क्योंकि यह मिट्टी जैविक कार्बन उपजाऊ मिट्टी के जीवाणुओं के लिए ऊर्जा का मुख्य स्रोत है !! ये बैक्टीरिया फसल के अपटेक सिस्टम (चेलेशन) में प्रमुख खिलाड़ी हैं। बेशक, यह पूरी फसल की खाद्य श्रृंखला को बाधित करने का कारण है, मिट्टी में कार्बनिक कार्बन की दैनिक घटती मात्रा, प्राकृतिक प्रणाली से एक घटक को खाद्यान्न, सब्जियों और फलों के रूप में हटा दिया जाता है, तो यह उसी राशि में दूसरे रूप में मुआवजा दिया जाना चाहिए। इसे संतुलित पोषण कहते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से हम इसकी आपूर्ति और पोषण में कमी कर रहे हैं।
विभिन्न पोषक तत्वों की कमी आज कृषि में 95% समस्याओं का मुख्य कारण है और कुपोषण का एकमात्र कारण है। किसान कभी-कभार घोल या जीवाणु खाद से इसका उपचार करने की कोशिश करते हैं लेकिन बुरी तरह विफल रहते हैं। यह अध्ययन का विषय है कि अगर मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी हो तो ऐसी शत्रुतापूर्ण मिट्टी में बैक्टीरिया कई दिनों तक जीवित रह सकते हैं। इसलिए, हमें ध्यान देना चाहिए कि इस समस्या का मुख्य समाधान जीवाणु उर्वरकों के उपयोग से पहले कार्बनिक पदार्थों का प्रबंधन करना है।
किसानों की आज की उर्वरक प्रयोग पद्धति को देखें तो सूक्ष्म पोषक तत्वों की ठोस मात्रा ग्राम में, द्वितीयक पोषक तत्व किग्रा में तथा प्रमुख पोषक तत्व क्विंटल में दिए जाते हैं। फिर यदि इतनी मात्रा में प्राकृतिक पोषक तत्व मिलाए जाएं तो उन्हें टन में ही डालना चाहिए। इस रहस्य को हमारे पूर्वज जानते थे !! उन्होंने मिट्टी की गुणवत्ता (जैविक अंकुश) को बनाए रखा और हजारों वर्षों तक समृद्ध और टिकाऊ कृषि की खेती की। भूमि को बनाए रखने का उनका तरीका साल भर संग्रहीत देशी पशुओं की खाद का उपयोग करना था, पूरी तरह से विघटित और खाने के लिए तैयार। आज की संकर पशु खाद ह्यूमस में बहुत कम है क्योंकि इसे अधिकतम अवशोषण के लिए डिज़ाइन किया गया है, इसलिए उनकी खाद ह्यूमस में उच्च है, जो जमीन पर सड़ने के बजाय सड़ जाती है, जिससे लाभकारी बैक्टीरिया के बजाय हानिकारक कवक का अतिवृद्धि होता है। ऐसा लगता है कि फसल किसानों को कह रही है कि “खाद नहीं तो खाद नहीं”।
कुछ मित्र घोल और शवों का प्रयोग कर मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाने का प्रयास करते हैं लेकिन उन्हें कोई स्थायी समाधान नहीं मिलता। गारा और मृत पदार्थ कुछ दिनों के लिए समाधान हो सकता है, लेकिन यह हजारों किलो कार्बनिक पदार्थ की भरपाई का विकल्प नहीं है। इसका वैज्ञानिक पक्ष देखते हैं, जैविक पदार्थ की भरपाई के लिए किसान प्रति एकड़ गोबर की 3-4 ट्रॉली लगाता है और घोल में 30-40 किलो गोबर व अन्य पदार्थ मिला देता है। यानी एक तरफ 5000 से 6000 किलो खाद और दूसरी तरफ 30-40 किलो गारा, इसकी तुलना संभव नहीं है। बड़े पैमाने पर प्रबंधन और जनशक्ति की अनुपलब्धता एक बड़ी चुनौती है। हम किसे संतुष्ट कर रहे हैं, फसल को या स्वयं को, इससे उपज को एक निश्चित सीमा से अधिक बढ़ाना असम्भव हो जाता है। ऐसा किसान आज के प्रतिस्पर्धा के युग में कुछ पीछे छूटा हुआ महसूस करता है। दोस्तों, भावुक हो जाने से कुदरत का नियम नहीं बदल जाता। इसके विपरीत प्रकृति के कठोर परिणामों का सामना करना पड़ता है। समझ आये तो देखिये..!