पूर्णियां/बालमुकुन्द यादव
पूर्णिया : नवजात शिशुओं को किसी भी तरह की संक्रामक बीमारियों से बचाव एवं सुरक्षित रखने के लिए सबसे ठोस एवं कारगर तरीका अपनाने के लिए जन्म के एक घंटा के अंदर स्तनपान कराना जरूरी है। ताकि शिशुओं के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता रहे। शत प्रतिशत स्तनपान कराने के उद्देश्य से गर्भवती एवं धात्री महिलाओं के बीच जागरूकता अभियान यूनिसेफ़, केयर इंडिया एवं जीपीएसवीएस द्वारा चलाया जा रहा है। जिसके लिए राज्य स्तर पर प्रत्येक वर्ष स्तनपान सप्ताह का आयोजन किया जाता है। इसमें एक से लेकर सात अगस्त तक विभिन्न प्रकार की गतिविधियों का आयोजन करते हुए जागरूकता फैलाई जा रही है
जन्म के पहले घंटे में स्तनपान शुरू करने वाले नवजात शिशुओं में मृत्यु की संभावना बहुत कम: एमओआईसी
प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ मोहम्मद बरकतुल्लाह ने बताया कि विश्व स्तनपान सप्ताह तो वर्ष में एक बार मनाया जाता है लेकिन गर्भवती महिलाओं एवं अभिभावकों को स्वास्थ्य विभाग के चिकित्सकों, जीएनएम एवं एएनएम द्वारा हर समय स्तनपान को लेकर जानकारी दी जाती है। जन्म के पहले घंटे में ही स्तनपान शुरू करने वाले नवजात शिशुओं में मृत्यु की संभावना लगभग 20 प्रतिशत कम हो जाती है। पहले छह महीने तक केवल स्तनपान करने वाले शिशुओं में डायरिया एवं निमोनिया से होने वाली मृत्यु की संभावना 11 से 15 गुना तक कम हो जाती है
स्तनपान की भूमिका के प्रति सामुदायिक स्तर पर किया जाता है जागरूकता: अनिल पासवान
रेफ़रल अस्पताल अमौर के अस्पताल प्रबंधक अनिल पासवान ने बताया कि विश्व स्तनपान सप्ताह के अलावा भी आशा कार्यकर्ता एवं आंगनबाड़ी सेविकाओं द्वारा अपने-अपने पोषक क्षेत्रों में आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से प्रसूता महिलाओं को नवजात शिशुओं को स्तनपान कराने के लिए प्रेरित किया जाता है। ममता कार्यकर्ताओं को भी अस्पताल परिसर स्थित प्रसव केंद्र में गर्भवती महिलाओं को स्तनपान कराने की जिम्मेदारी इन्हीं लोगों की होती है। जन्म के एक घंटे के अंदर मां का पीला गाढ़ा दूध नवजात शिशुओं के लिए अमृत के समान है
एक दिवसीय उन्मुखीकरण कार्यक्रम के तहत दिया गया प्रशिक्षण: प्रफुल्ल
जीपीएसवीएस (यूनिसेफ़) के जिला समन्वयक (पोषण) प्रफुल्ल कुमार ने बताया कि जिले के बैसा, बायसी एवं अमौर प्रखंड की आशा कार्यकर्ता, ममता एवं एएनएम को एक दिवसीय उन्मुखीकरण कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षण दिया गया। बताया गया कि प्रसव के तुरंत बाद नवजात शिशुओं को स्तनपान कराने से नवजात पूरी तरह से स्वस्थ रहता है। शिशु की पोषाहारीय एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए स्तनपान सर्वोत्तम साधन है। प्राचीन समय से ही मानव दूध की अनुपम पोषाहारीय गुणवत्ता को मान्यता दी जाती रही है। मां का दूध सुपाच्य एवं परिपाच्य होता है। मां के दूध में विद्यमान प्रोटीन अधिक विलेय होता है, जिसे शिशुओं द्वारा आसानी से पचाया तथा आत्मसात किया जा सकता है। इसी प्रकार मां के दूध में विद्यमान वसा और कैल्शियम को भी शिशुओं द्वारा आसानी से आत्मसात किया जा सकता है।