Author: Biharadmin

  • कोई अनपढ न रहियो गीत से महिला साक्षरता कार्यक्रम की दी गई जानकारी।

    महिला साक्षरता कार्यक्रम के तहत अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं इससे
    साक्षर बनकर महिलाएं हो रही जागरूक। महिला साक्षरता कार्यक्रम के तहत
    एक दिवसीय क्षेत्र भ्रमण कर बढ़ाया ज्ञान।

    इनमें केन्द्र से नामंकित महिलाओं को ज्ञान अर्जन के लिए मौदहा, जिला हमीरपुर के महिला साक्षरता केन्द्र मसगांव(दामुपुरवा), करगांव (सायर) और रमना डेरा (छिरका) की नामंकित महिलाएं (शिक्षार्थी) को क्रास लर्निग कार्यक्रम के आयोजन में जिला बांदा के साक्षरता केंद्रों पर ले जाया गया।
    उक्त जानकारी देते हुये कार्यक्रम के फील्ड कोर्डिनेटर गीता कौर ने कहा कि यह कार्यक्रम बुंदेलखंड पैकेज के अंतर्गत, पशुपालन विभाग के सहयोग से बाएफ संस्था द्वारा उत्तर प्रदेश के तीन जिले चित्रकूट, बांदा और हमीरपुर चलया जा रहा ।

    इस कार्यक्रम में समय समय पर अनेक गतिविधियां की जा रही है जिसमें सेंटर की महिलाओ को नई और रोचक तरीके से जागरूक और साक्षर किया जा रहा है इसके तहत आज हमीरपुर जिले की नामंकित महिलाओं को बांदा जिले के केंद्रों का भ्रमण क्रास लर्निंग कार्यक्रम में शामिल किया।

    इस कार्यक्रम का उद्वेश्य केन्द्र की नामंकित महिलाओ में घर से बाहर अन्य स्थान पर जाने का अवसर देना है, जिससे की उनमें आत्मविश्वास बढ़े। साथ ही अपने गांव के सेंटर को अच्छा और नया रोचक तरीके, कैसे हो सकते है उन्हे स्थानीय रूप से जानने और अपनाने के लिए प्रेरित करना है। यह कार्यक्रम
    बांदा के साक्षरता केन्द्र तिंदवारा, नंदवारा और करतल विजिट क्षेत्र की विजिट की गई।

    बांदा की महिलाओ ने सेंटर पर आए सभी प्रतिभागियों का स्वागत फूल देकर और चन्दन का टीका लगाकर किया। इसके पश्चात आपस में परिचय करते हुवे सभी ने सेंटर पर आकर सीखे कार्य की चर्चा की ।
    सब दीदी मिलकर के पढ़ रही है कोई अनपढ़ ना रहिए गीत द्वारा महिलाओं को पढ़ने के लिए प्रेरित किया गया,
    और वहां की शिक्षिका एवं लर्नरों ने खेती-बाड़ी , पढ़ाई के बारे में, पशुओं की देखरेख, कृत्रिम गर्भाधान करवाने के लाभ और पशुओं का बीमा और फसल बीमा कराने की भी जानकारी बताई की सभी महिलाएं पशुपालन करती है।
    महिलाओ (लर्नर) ने शिक्षा के बिना कोई मजा न जीने में ….. साक्षरता के गीत भी गाया, तत्पश्चात केंद्र में लगे चार्ट के महत्व को एक करके ने समझाया

    और अक्षर पहचानने वाला खेल खेलते हुवे, अक्षर और अंको का मतलब बताना, जीवन में उनका प्रयोग भी बताया।
    अन्त में महिलाओ ने शेर और बकरी के खेल के माध्यम से संगठन के बारे मे समझा। इसके पश्चात सभी हमीरपुर की महिलाओं ने बांदा की महिलाओ उनके कार्य की सराहना करते हुवे धन्यवाद दिया। सभी को बांदा सेंटर बहुत अच्छे लगे और उन्होंने भी उत्सुकता के साथ अपने सेन्टर पर भी ऐसे ही बढ़ चढ़ भागीदारी करने की सहमती दी ।
    क्रास लर्निग के लिए प्रतिभागी दोनो जिले की कुल 98 महिलाओ के साथ प्रेमवती, खुशबू, पुष्पा, शीतल देवी, सरोज, राजाबाई (शिक्षिकाएं ), विमल कुमार, रामकुमार, ऋतुराज त्रिपाठी, संदीप राजपूत, रामाश्रय (मेल मोटिवेटर), गीता कौर (फील्ड कार्डिनेटर, हमीरपुर) सुनीता कुशवाहा (फील्ड कार्डिनेटर, बांदा) शामिल रहें।

  • आखिर रेलवे हर तीसरे दिन कर्मचारी को नौकरी से क्यो निकल रहा है ? सामने आई बड़ी वजह..


    डेस्क : इंडियन रेलवे (Indian Railways) देश में सबसे ज्यादा रोजगार पैदा करने के मामले में दूसरे नंबर है. केवल रक्षा क्षेत्र ही नौकरियां देने में इंडियन रेलवे से आगे है. लोग रेलवे की नौकरी पाने के लिए सालों तक कड़ी मेहनत करते हैं, परीक्षाएं देते हैं.

    ऐसे में लोगों को अगर यह पता चले कि इस समय रेलवे हर 3 दिन में अपने एक कर्मचारी को नौकरी से निकाल रहा है तो उन्हें काफी झटका लगना लाजिमी है. और ये बात सच भी है. रेलवे वाकई में अपने कर्मचारियों को निकालने में लगा हुआ है. खबरों के मुताबिक पिछले 16 महीने में ही रेलवे ने हर तीसरे दिन कम से कम एक कर्मचारी को निकाला है.

    रेलवे के कर्मचारी क्यों निकाले जा रहे?

    रेलवे के कर्मचारी क्यों निकाले जा रहे?

    बिजनेस टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक इंडियन रेलवे ने ये कदम विभाग में परफॉर्मेंस को आधार बनाते हुए उठाया है. इसके तहत पिछले 16 महीने में औसतन हर तीसरे दिन कम से कम एक कर्मचारी को निकाला गया है. अब तक रेलवे ने कुक 139 अफसरों को वॉलेंट्री रिटायरमेंट (VRS) लेने को कहा है. वहीं कुल 38 कर्मचारियों को नौकरी से ही हटा दिया है. इन कर्मचारियों, अधिकारियों में से कई लोगों को काम में ‘खराब प्रदर्शन’ के आधार पर निकाला गया है. वहीं कुछ की नौकरी भ्रष्टाचार के चलते बर्खास्त कर दी गयी है.

    कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इंडियन रेलवे ने 2 सीनियर ग्रेड के अधिकारियों को भी नौकरी से निकाल दिया है. इनमें से एक बड़े अधिकारी को CBI ने पकड़ा भी था. उसे हैदराबाद में 5 लाख की घूस लेते हुए पकड़ा गया था. दूसरे अधिकारी को रांची में 3 लाख रुपये की घूस लेते हुए धरा गया था.

    DOPT के नियम के तहत लिया गया फैसला

    DOPT के नियम के तहत लिया गया फैसला

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  • हिलसा में चला पर्यावरण जागरुकता अभियान , बाँटे गए पौधे !

    हिलसा ( नालंदा ) मिशन हरियाली नूरसराय के बैनर तले शहर के मोमिंदपुर स्थित आरपीएस स्कूल के प्रांगण में पर्यावरण जागरुकता अभियान सह पौधा वितरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें सैंकड़ों छात्र छात्राओं ने भाग लिया . बढ़ते प्रदूषण एवं पर्यावरण की लगातार बिगड़ती स्थिति को देखते हुए मिशन के संस्थापक राजीव रंजन भारती की पहल पर यह अभियान चलाया गया . इस मौक़े पर बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित डा.

    आशुतोष कुमार मानव ने कहा कि पौधे हमारे सच्चे साथी हैं जो कभी भी धोखा नहीं दे सकते . ये हमें न केवल खाने को फल देते हैं बल्कि पूरे पर्यावरण को भी सुरक्षित रखने की ज़िम्मेवारी निभाते हैं . उन्होंने कहा कि हमें भी पौधों की तरह दूसरों के काम आना चाहिए . इसके लिए हर हाथ को कम से कम दस पौधे लगाने होंगे . श्री भारती ने कहा कि बढ़ते प्रदूषण की रोक थाम के लिए हर शहर एवं गाँव में बड़ी संख्या में पौधरोपण अभियान चलाने की दरकार है . हर संगठन को इसके लिए आगे आना होगा .

    इस मौक़े पर बच्चों के बीच शरीफा, अमरूद , कटहल, हरश्रिंगार आदि पौधों का निशुल्क वितरण किया गया .इस अवसर पर शिक्षाविद अश्विनी कुमार, उपेन्द्र कुमार, आविष्कार त्यागी, सुलभा कुमारी, आरती रानी, ख़ुश्बू कुमारी, अविनाश कुमार, रामानन्द प्रसाद, अनाविया परवीन, रूही परवीन, नाहिद परवीन समेत कई लोग उपस्थित थे

  • वर्तमान फसल की स्थिति आईसीयू में रोगियों के समान है; आखिर कहां गलत हो रहे हैं किसान?

    हैलो कृषि ऑनलाइन : खेतकरी दोस्तों, अक्सर ऐसा नहीं होता है कि कोई फसल लगाई जाती है और वह आसानी से जोर से बढ़ती है। फसल की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। कवकनाशी उपचार के बिना, बीज अंकुरित नहीं होते हैं और अंकुर मिट्टी में जड़ नहीं लेते हैं। आईसीयू में भर्ती मरीज की तरह जन्म से ही समय-समय पर दवाओं की खुराक से हमारी फसलों को जिंदा रखना होता है। बिना पेपर मल्चिंग के टमाटर जैसी फसल नहीं होती। किसान सब्जियों, दालों, अनार, अंगूर, गन्ना, कपास, केला जैसी फसलों में उत्पादन की निरंतरता बनाए रखने और नई-नई बीमारियों का सामना करते-करते थक गए हैं। तो आख़िर ग़लत क्या है?

    भूमि उपयोग वास्तव में क्या है?

    आप एक स्वर से उत्तर देंगे, ‘जमीन कैसे घटी’ सही उत्तर है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है? यदि किसान प्रत्येक फसल में सभी उर्वरक, सूक्ष्म पोषक तत्व, दवाइयां और पोषक तत्व आवश्यक मात्रा में डाल रहा है तो भूमि की गुणवत्ता क्यों कम हो रही है? ओह, यह ‘कैसे’ वास्तव में क्या मतलब है? आख़िर गलती कहाँ है? यह कास क्या है? कास का अर्थ है काली कसदार” कास हाँ है !! मिट्टी का काला रंग उसमें कार्बनिक कार्बन के कारण होता है और जैविक कार्बन ह्यूमस या जैविक कार्बन होता है !! तो हमारे पारंपरिक उर्वरक प्रबंधन में कार्बनिक पदार्थ का प्रबंधन क्यों नहीं किया जाता है? ऐसे प्रश्न उठते हैं। निम्नलिखित जानकारी आपको उनके उत्तर को समझने में मदद करेगी।


    शरद बोंडे ने जब इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश की तो कुछ वैज्ञानिक तथ्य जो सामने आए वो हमारी आज तक की मान्यताओं को झकझोर कर रख देने वाले हैं. दोस्तों शोध में पाया गया है कि जीवित प्राणियों (मनुष्य, पौधे, जानवर) के संतुलित पोषण के लिए कुल 75 तत्वों की आवश्यकता होती है। 75 तत्वों में से 16 (18) सामान्यतः आवश्यक होते हैं।
    7 सूक्ष्म पोषक तत्व (काॅपर, जिंक, बोरॉन, फेरस, मैंगनीज, मैलिब्डेनम और क्लोरीन/निकल/कोबाल्ट या एक
    3 माध्यमिक (कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर)
    3 मुख्य तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश)। कुल 13 है तो कौन से तीन बचे?
    3 प्राकृतिक तत्व (कार्बन, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन)

    दोस्तों जिस प्रकार कंक्रीट बनाने के लिए साधारण निर्जीव सीमेंट के बारे में कहा जाता है उसी प्रकार रेत, बजरी, सीमेंट को एक निश्चित मात्रा में लेने की आवश्यकता होती है उसी प्रकार जीवित वनस्पतियों के स्वस्थ विकास के लिए इन 16 तत्वों के पोषण की निश्चित मात्रा में ही आवश्यकता होती है। आपको आश्चर्य होगा जब पौधे में इन तत्वों की मात्रा का प्रयोगशाला में परीक्षण किया गया तो सूखे पौधे के कुल वजन का 94% कार्बन, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन तीन तत्वों से भरा हुआ था। बेशक जब किसी भी जानवर या पौधे को जलाया जाता है तो जो राख बच जाती है उसमें 95% से अधिक कार्बन होता है, यानी पौधों में शेष 13 तत्वों का केवल 6% यानी आज का किसान अपने खर्च का 85% 6% पोषण पर खर्च करता है। सैकड़ों वर्षों तक खेती करने के बाद भी हमारे पूर्वजों ने जमीन की गुणवत्ता को बनाए रखा। क्योंकि उनका 100% पोषण कार्बनिक पदार्थों पर निर्भर था, बहुत अधिक ह्यूमस उपलब्ध था और बड़ी मात्रा में प्राकृतिक पदार्थ (कार्बन) की भरपाई की गई थी। आज का किसान 94% पोषण प्रकृति पर छोड़ कर भाग्य को दोष देता है। परिणामस्वरूप, प्रकृति में कार्बन का संतुलन बिगड़ गया है।


    आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि हवा में कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में कार्बन की मात्रा बढ़ रही है और मिट्टी में ठोस कार्बनिक कार्बन की मात्रा कम हो रही है। 40-50 साल पहले 3-4% कार्बनिक कार्बन सामग्री आज दस गुना घटकर 0.3-0.5 के खतरनाक स्तर से नीचे आ गई है। इसका साफ मतलब है कि हमारे खाद प्रबंधन के तरीके में बड़े बदलाव की जरूरत है। क्योंकि यह मिट्टी जैविक कार्बन उपजाऊ मिट्टी के जीवाणुओं के लिए ऊर्जा का मुख्य स्रोत है !! ये बैक्टीरिया फसल के अपटेक सिस्टम (चेलेशन) में प्रमुख खिलाड़ी हैं। बेशक, यह पूरी फसल की खाद्य श्रृंखला को बाधित करने का कारण है, मिट्टी में कार्बनिक कार्बन की दैनिक घटती मात्रा, प्राकृतिक प्रणाली से एक घटक को खाद्यान्न, सब्जियों और फलों के रूप में हटा दिया जाता है, तो यह उसी राशि में दूसरे रूप में मुआवजा दिया जाना चाहिए। इसे संतुलित पोषण कहते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से हम इसकी आपूर्ति और पोषण में कमी कर रहे हैं।

    विभिन्न पोषक तत्वों की कमी आज कृषि में 95% समस्याओं का मुख्य कारण है और कुपोषण का एकमात्र कारण है। किसान कभी-कभार घोल या जीवाणु खाद से इसका उपचार करने की कोशिश करते हैं लेकिन बुरी तरह विफल रहते हैं। यह अध्ययन का विषय है कि अगर मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी हो तो ऐसी शत्रुतापूर्ण मिट्टी में बैक्टीरिया कई दिनों तक जीवित रह सकते हैं। इसलिए, हमें ध्यान देना चाहिए कि इस समस्या का मुख्य समाधान जीवाणु उर्वरकों के उपयोग से पहले कार्बनिक पदार्थों का प्रबंधन करना है।


    किसानों की आज की उर्वरक प्रयोग पद्धति को देखें तो सूक्ष्म पोषक तत्वों की ठोस मात्रा ग्राम में, द्वितीयक पोषक तत्व किग्रा में तथा प्रमुख पोषक तत्व क्विंटल में दिए जाते हैं। फिर यदि इतनी मात्रा में प्राकृतिक पोषक तत्व मिलाए जाएं तो उन्हें टन में ही डालना चाहिए। इस रहस्य को हमारे पूर्वज जानते थे !! उन्होंने मिट्टी की गुणवत्ता (जैविक अंकुश) को बनाए रखा और हजारों वर्षों तक समृद्ध और टिकाऊ कृषि की खेती की। भूमि को बनाए रखने का उनका तरीका साल भर संग्रहीत देशी पशुओं की खाद का उपयोग करना था, पूरी तरह से विघटित और खाने के लिए तैयार। आज की संकर पशु खाद ह्यूमस में बहुत कम है क्योंकि इसे अधिकतम अवशोषण के लिए डिज़ाइन किया गया है, इसलिए उनकी खाद ह्यूमस में उच्च है, जो जमीन पर सड़ने के बजाय सड़ जाती है, जिससे लाभकारी बैक्टीरिया के बजाय हानिकारक कवक का अतिवृद्धि होता है। ऐसा लगता है कि फसल किसानों को कह रही है कि “खाद नहीं तो खाद नहीं”।

    कुछ मित्र घोल और शवों का प्रयोग कर मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाने का प्रयास करते हैं लेकिन उन्हें कोई स्थायी समाधान नहीं मिलता। गारा और मृत पदार्थ कुछ दिनों के लिए समाधान हो सकता है, लेकिन यह हजारों किलो कार्बनिक पदार्थ की भरपाई का विकल्प नहीं है। इसका वैज्ञानिक पक्ष देखते हैं, जैविक पदार्थ की भरपाई के लिए किसान प्रति एकड़ गोबर की 3-4 ट्रॉली लगाता है और घोल में 30-40 किलो गोबर व अन्य पदार्थ मिला देता है। यानी एक तरफ 5000 से 6000 किलो खाद और दूसरी तरफ 30-40 किलो गारा, इसकी तुलना संभव नहीं है। बड़े पैमाने पर प्रबंधन और जनशक्ति की अनुपलब्धता एक बड़ी चुनौती है। हम किसे संतुष्ट कर रहे हैं, फसल को या स्वयं को, इससे उपज को एक निश्चित सीमा से अधिक बढ़ाना असम्भव हो जाता है। ऐसा किसान आज के प्रतिस्पर्धा के युग में कुछ पीछे छूटा हुआ महसूस करता है। दोस्तों, भावुक हो जाने से कुदरत का नियम नहीं बदल जाता। इसके विपरीत प्रकृति के कठोर परिणामों का सामना करना पड़ता है। समझ आये तो देखिये..!


    जैविक किसान
    शरद केशवराव बोंडे।
    एच अचलपुर, जिला। अमरावती।
    9404075628

  • Maruti Alto-800 की छत पर पान की दुकान – जुगाड़ देख आपका भी माथा घूम जाएगा..


    डेस्क : जुगाड़ की तकनीक भारत देश की सबसे प्रसिद्ध तकनीकों में से एक रही है. कई बार भारत के कोने कोने से ऐसी तस्वीरें और वीडियोज भी सामने आ चुके हैं जो लोगों को अचरज में डाल देती हैं. हाल ही में एक ऐसी ही तस्वीर अभी सामने आई जिसमें एक Maruti 800 कार दिख रही है. यहां तक तो सब ठीक था लेकिन इस कार के ऊपर ही एक शख्स ने पान की दुकान खोली हैं है.

    ‘बेहद शानदार हैं ये इनोवेशन’

    दरअसल, यह तस्वीर इतनी मजेदार है कि IPS पंकज जैन भी इस पर प्रतिक्रिया देने से खुद को नहीं रोक पाए. Twitter पर उन्होंने इसे शेयर करते हुए ये भी लिखा कि बहुत ही शानदार इनोवेशन है. हालांकि उन्होंने इस तस्वीर का क्रेडिट सोशल मीडिया को दे दिया है. इस तस्वीर में दिख रहा है कि Maruti की एक पुरानी 800 कार खड़ी हुई है और इस पर पान की एक दुकान भी दिख रही है.

    Maruti 800 की छत पर हैं पान की दुकान

    कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कुछ यूजर्स ने इसे लखनऊ की तस्वीर बताई है तो वहीं कुछ लोगों ने इसे किस चौराहे की है ये भी बता दिया है. कार की छत पर यह व्यक्ति पान की दुकान खोलकर बैठा हुआ है और ये कार सड़क के एक किनारे पर खड़ी हुई है. कुछ लोग इसे एक शानदार आइडिया बता रहे हैं तो कुछ लिख रहे हैं कि एक पान की दुकान को कहीं भी खोला जा सकता है.

    वहीं एक अन्य सोशल मीडिया यूजर ने इस तस्वीर को शेयर करते हुए लिखा कि मैं इस दुकान पर जा चुका हूं और एक मीठा पान भी खाया था. अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए भाई ने काफी अच्छा दिमाग लगाया है और कार को ही अपनी दुकान बना दिया है. रोज रोज की गुमटी हटाने से फुर्सत हो गई. उन्होंने यह भी लिखा कि भाई का स्वभाव भी बहुत अच्छा है और अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए ऐसे कदम उठाना कोई गलत काम नही है. फिलहाल यह तस्वीर सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है

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  • सावधान! Bank Account में मिनिमम बैलेंस नहीं रखने पर लगेगा जुर्माना? सरकार ने दिया जवाब


    डेस्क : आजकल के समय में बैंक अकाउंट में न्यूनतम बैलेंस नहीं रखने पर आपको जुर्माना देना पड़ता है. लेकिन आने वाले समय में सब अगर कुछ सही रहा तो बैंक अकाउंट में न्यूनतम धनराशि मेंटेन करने की जरूरत नहीं होगी. दरअसल, खाते में न्यूनतम धनराशि मेंटेन करने को लेकर वित्त राज्य मंत्री भागवत किशनराव कराड (Bhagwant Kishanrao Karad) ने एक अहम बयान द‍िया है.

    बैंकों के बोर्ड न्यूनतम धनराशि नहीं रखने वाले से जुर्माना हटा सकते हैं

    बैंकों के बोर्ड न्यूनतम धनराशि नहीं रखने वाले से जुर्माना हटा सकते हैं

    कराड ने बुधवार को कहा कि बैंकों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स न्यूनतम धनराशि नहीं रखने वालों खाते पर जुर्माने को खत्म करने का निर्णय ले सकते हैं. कराड ने एक सवाल के जवाब में श्रीनगर में कहा, ‘‘बैंक एक इंडिपेंडेंट बॉडी होते हैं. उनके बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स जुर्माने को खत्म करने के बारे में अहम निर्णय ले सकते हैं.’’

    J&K के 2 दिन के दौरे पर हैं वित्त राज्य मंत्री

    J&K के 2 दिन के दौरे पर हैं वित्त राज्य मंत्री

    जब मंत्री से पूछा गया था कि क्या केंद्र बैंकों को इस बारे में दिशा निर्देश देने पर विचार कर रहा है कि जिन खाते में जमा राशि न्यूनतम धनराशि का स्तर से नीचे चली जाती है उन पर कोई भी जुर्माना नहीं लगाया जाए. J&K में विभिन्न वित्तीय योजनाओं के क्रियान्वयन की समीक्षा करने के लिए वित्त राज्य मंत्री केंद्र शासित प्रदेश के अपने 2 दिवसीय के दौरे पर हैं.

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  • विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस पर विशेष

     

    राकेश बिहारी शर्मा—पर्यावरण की करो रक्षा, बच्चो को पहले ये शिक्षा।, पर्यावरण की हो सुरक्षा, जिससे बढ़कर नहीं तपस्या। प्रतिवर्ष सम्पूर्ण विश्व में 26 नवम्बर को “विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस” मनाया जाता है। यह दिवस पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने एवं लोगों को जागरूक करने के सन्दर्भ में सकारात्मक कदम उठाने के लिए मनाते हैं। वर्ष 1992 के 26 नवम्बर से विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी। विश्व के विद्वानों द्वारा किये गये कई अध्ययनों से पता चला है कि लोगों की शारीरिक क्षमता दिन-ब-दिन कम होती जा रही है और बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह पर्यावरण का ख़राब होना है। विडम्बना यह है कि आज के आधुनिक स्मार्ट युग में ज़्यादातर लोग पर्यावरण के प्रति लापरवाह होते जा रहे हैं और जाने-अनजाने पर्यावरण को ख़राब कर रहे हैं।आज ज़्यादातर लोगों को न तो पर्यावरण का मतलब पता है और न ही पर्यावरण से उन्हें कोई मतलब है। इसलिए आज दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती धरती पर पर्यावरण सुरक्षा को लेकर बनी हुई है।

    वर्ष 1992 से हर साल 26 नवंबर को पर्यावरण संरक्षण दिवस मनाया जाता है। सन् 1972 से हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। लेकिन इन दशकों में ही पर्यावरण को सबसे ज़्यादा नुक़सान पहुँचाया गया है। विश्व के पर्यावरण प्रेमी और पर्यावरण संरक्षण के नाम पर अपनी जेबें भरने वाले लोग हर साल सिर्फ़ 26 नवंबर को विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस के बहाने बिगड़ते जा रहे पर्यावरण को रोना-धोना करके शांत और निष्क्रिय हो जाते हैं। फिर भी हर साल करोड़ों रुपये पर्यावरण संरक्षण के नाम पर पानी की तरह बहाया जाता है। हालात यह हैं कि अपने फ़ायदे के लिए पर्यावरण ख़राब करने की मंशा वाले पूँजीपति पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वालों पर भारी पड़ते जा रहे हैं। उदाहरण के लिए दवा कम्पनियों के मालिकों को ही लें, तो वे कभी नहीं चाहते कि धरती का पर्यावरण शुद्ध रहे।
    साफ़ है कि पर्यावरण ख़राब होगा, तो लोग ज़्यादा-से-ज़्यादा बीमार पड़ेंगे और दवा कम्पनियों का धंधा चलेगा। दवा कम्पनियों की तरह ही प्रदूषण करने वाले कारख़ाने, धरती पर बढ़ती गंदगी और धरती में लगातार बैठते गंदे पानी और घटते जंगलों से भी पर्यावरण को गंभीर नुक़सान हो रहा है। आज हमारा पर्यावरण इस हालत तक ख़राब हो चुका है कि अगर दुनिया के सभी लोग उसे सुधारने का प्रयास करें, तो भी इसे अच्छे स्तर का बनाने में कम-से-कम तीन-चार दशक का समय लग जाएगा।

    प्रदूषण से होने वाले नुक़सान

    अब तक पर्यावरण को लेकर किये गये अध्ययनों की रिपोट्र्स से यह पता चलता है कि पर्यावरण प्रदूषित होने से पशु-पक्षियों और इंसानों से लेकर हर तरह के जीव-जंतु को नुक़सान पहुँच रहा है। हमारा पर्यावरण इतना प्रदूषित हो चुका है कि इसके प्रभाव से समुद्री जीवों और वनस्पतियों का जीवन भी ख़तरे में पड़ता जा रहा है। पर्यावरण प्रदूषण से प्राकृतिक असंतुलन पैदा हो रहा है, जिससे बीमारियाँ बढऩे के साथ-साथ पशु-पक्षियों और लोगों की शारीरिक क्षमता कमज़ोर होती जा रही है। इससे धरती का जीवन-चक्र बिगड़ रहा है, जिससे वह अपनी पाश्चुरीकृत क्षमता को खोती जा रही है।

    साथ ही तरह-तरह के प्रदूषणों से कई तरह की विषैली गैसें पैदा हो रही हैं और जीवनदायिनी गैसों की मात्रा घट रही है। कई वैज्ञानिक तो पर्यावरण प्रदूषण के चलते यहाँ तक चेतावनी दे चुके हैं कि अगर इसी प्रकार धरती पर ऑक्सीजन घटती गयी, तो आने वाले समय में हमारी पीढिय़ों को जीवनदायिनी ऑक्सीजन की पूर्ति के लिए अपनी पीठ पर ऑक्सीजन सिलेंडर लादना पड़ सकता है।

    कोरोना काल में ऑक्सीजन के लिए मारामारी

    कोरोना महामारी में ऑक्सीजन के लिए हुई मारामारी से इसे समझा जा सकता है। अपने फ़ायदे के लिए लोगों ने प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और दुरुपयोग से ख़ुद के लिए ही मुसीबतें पैदा की हैं। पर्यावरण प्रदूषण के चलते इंसानों के साथ-साथ कई तरह के पशु-पक्षियों का जीवन संकट में है।

    कई प्रकार के पशु-पक्षी विलुप्त हो चुके हैं और कई विलुप्त होने के कगार पर हैं। पर्यावरण में तेज़ी से बढ़ रही क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैस (सीएफसी) के चलते ओजोन का विघटन तेज़ी से हो रहा है। सन् 1980 में ही वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी कि ओजोन स्तर का विघटन धरती के चारों ओर हो रहा है। स्थिति यह है कि दक्षिण ध्रुव के विस्तार में ओजोन स्तर का विघटन 40 से 50 फ़ीसदी तक हो चुका है।

    पर्यावरण के प्रति वैज्ञानिकों का मत

    वैज्ञानिकों का मत है कि इंसानों की बढ़ती आबादी के चलते बढ़ते शहरीकरण के चलते ओजोन परत में छेद बढ़ रहे हैं। अब तक के अध्ययनों का निचोड़ बताता है कि इंसानों की बढ़ती आबादी और उसकी ज़रूरतों को पूरा करने की होड़ से पर्यावरण को पहुँचने वाला नुक़सान भी बढ़ता जा रहा है।

    इंसानी आबादी कम करने के साथ-साथ इंसानों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली ख़तरनाक चीज़ों पर भी पाबंदी ज़रूरी है, जिसमें प्लास्टिक, मिलावटी खाद्य पदार्थ और नशीले पदार्थों पर प्रतिबंध सबसे ज़्यादा ज़रूरी है।

    पर्यावरण संरक्षण क़ानून और वर्तमान में उसके परिणाम

  • बिहार के किसान का कमाल – अब चावल को ठंडे पानी में डाले और खा लीजिए..


    डेस्क : बिहार के बेतिया जिले में एक किसान ने रंग-बिरंगा मैजिक चावल को उपजाया है. इस किसान ने यह दावा किया है कि औषधिय गुणों से भरपूर यह चावल को उबालने की कोई जरूरत नहीं पड़ती है. खाने से चंद मिनट पहले ही इसे ठंडे पानी में भिगों कर रखे और कुछ ही मिनट बाद इसका भात बनकर तैयार हो जाता है. इस जादुई चावल को नरकटियागंज प्रखंड के एक किसान कमलेश चौबे ने सफलता पूर्वक उपजाया हुआ हैं।

    खायें भात…बीमारी होवे ठीक

    खायें भात…बीमारी होवे ठीक

    किसान कमलेश चौबे ने यह दावा किया कि हमने ऐसे एक क्वालिटी का धान उपजाया है. जो किठंडे पानी में भी पक जाता है. यह जादुई चावल इतना फायदेमंद है किस इसके सेवन से कई तरह के असाध्य बीमारियां भी ठीक हो जाते हैं. हालांकि यह सिर्फ उस किसान का दावा है. उस किसान के मुताबिक धान का रंग देखने में धान काफी सत रंगी है. इस धान से निकले चावल को उबालने की भी जरूरत नहीं पड़ती, न ही उसे गैस पर पकाने की जरूरत होती हैं यह चावल ठंडे पानी में पक कर तैयार हो जाता है.

    200 से 250 रुपये प्रति किग्रा तक बिकता है चावल

    200 से 250 रुपये प्रति किग्रा तक बिकता है चावल

    आपको बता दें कि इस मैजिक चावल को नरकटियागंज प्रखंड अंतर्गत मुशहरवा गांव के एक किसान कमलेश चौबे उपजाते हैं. किसान कमलेश चौबे ने यह बताया कि वे यहां धान के विभिन्न किस्मों की खेती जैविक तरीके से ही करते हैं. इस धान को उपजाने में वे किसी प्रकार के रासायनिक उवर्रकों का प्रयोग नहीं करते हैं. किसान ने यह दावा करते हुए कहा कि यह एक ऐसा धान है जिसे आपको उबालने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी.

    बिल्कुल ठंडे पानी में बस चावल को धोकर डालिये और महज कुछ देर बाद ही चावल से भात बनकर तैयार हो जाएगा. इस किसान ने यह बताया यह औषधिय चावल काला, लाल और हरे रंग का होता है. चावल औषधिय गुणों से भरपूर होता है. बाजार में इस चावल की कीमत 200 से 250 रुपये प्रति किग्रा तक है.

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  • मुंगेर-भागलपुर-मिर्जाचौकी फोरलेन सड़क जल्द बनकर होगा तैयार, जानें – कहां तक पहुंचा निर्माण कार्य..


    डेस्क : बिहार के मुंगेर-भागलपुर-मिर्जाचौकी फोरलेन ग्रीनफील्ड कॉरिडोर का निर्माण कार्य काफी तेजी से चल रहा है. कई जगहों पर इसके निर्माण कार्य में सुस्ती भी दिखी है. बारिश के मौसम में इसके निर्माण कार्य में बाधा भी आयी. वहीं अब तेज रफ्तार से इसके निर्माण कार्य फिर से होता दिख भीबरहा है. मुंगेर से मिर्जाचौकी तक ये सड़क 4 पैकेज में बनायी जा रही है. अभी पुलिया बनाने का कार्य हर जगह तेजी से हो रहा है.

    4 पैकेज में तैयार हो रहा फोरलेन सड़क

    4 पैकेज में तैयार हो रहा फोरलेन सड़क

    एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 4 पैकेज में तैयार हो रहे मुंगेर-मिर्जाचौकी फोरलेन सड़क में छोटी पुलिया बनने का काम आधा से अधिक हो चुका है जबकि बड़ी पुलिया बनने का काम अभी बाकी है. जिन क्षेत्रों में जलजमाव की समस्या है वहां फ्लाई ऐश से उस एरिया को भरने का भी कार्य किया जा रहा है. पिछले कुछ महीने बरसात की वजह से निर्माण कार्य बाधित रहा था. गंगा किनारे के क्षेत्रों में बाढ़ के कारण निर्माण कार्य को रोकना पड़ा था. अब फिर से उन जगहों पर काम को शुरू किया गया है.

    मिट्टी भराई व अंडरपास बनाने का कार्य तेजी से चल रहा हैं।

    मिट्टी भराई व अंडरपास बनाने का कार्य तेजी से चल रहा हैं।

    मुंगेर में मिट्टी भराई का कार्य तेजी से चल रहा है. रोड और बॉक्स स्लूइस भी कई जगह पर तैयार किये जा रहे हैं. ओवरब्रीज निर्माण के लिए सड़क के दोनों ही तरफ पीलर भी बनाने का काम चल रहा है. वहीं नाथनगर के दोगच्छी से बायपास होकर गुजरने वाले रास्ते को भी तेज गति से अब तैयार किया जा रहा है. यहां अंडरपास बनाने का काम भी तेजी से चल रहा है. बायपास में पेट्रौल पंप के सामने जलजमाव वाले क्षेत्र भी बड़ी समस्या बनकर सामने आयी है जिससे फ्लाइ ऐश से ऊंचा भी किया जा रहा है.

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  • न्यूज नालंदा – गोलीबारी के बाद ग्रामीणों ने छीना पिस्टल, बदमाश…

    सिलाव थाना अंतर्गत करियना गांव में गुरुवार को बदमाशों ने फायरिंग कर दहशत फैला दी। घटना के बाद आक्रोशित ग्रामीणों ने खदेड़कर बदमाशों से पिस्टल छीन लिया। हालांकि, किसी तरह बदमाश फरार होने में सफल रहा। फरार हुए बदमाश अनीश और विक्की कुमार है। सूचना के बाद गांव पहुंची पुलिस हथियार को जब्त कर ली।
    थानाध्यक्ष पवन कुमार ने बताया कि दहशत फैलाने की मंशा से बदमाशों ने फायरिंग की। केस दर्ज कर उनकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस छापेमारी कर रही है।

    न्यूज नालंदा – गोलीबारी के बाद ग्रामीणों ने छीना पिस्टल, बदमाश…