Author: Biharadmin

  • जलीय क्षेत्रों में अवैध अतिक्रमण पर पटना हाइकोर्ट ने सुनवाई करते हुए पटना और मगध प्रमंडल के अंचल अधिकारियो को अगली सुनवाई में तलब किया

    16 नवंबर 2022 । राज्य में जलीय क्षेत्रों में अवैध अतिक्रमण पर पटना हाइकोर्ट ने सुनवाई करते हुए पटना और मगध प्रमंडल के अंचल अधिकारियो को अगली सुनवाई में तलब किया है।रामपुनीत चौधरी की जनहित याचिका पर चीफ जस्टिस संजय क़रोल की खंडपीठ ने सुनवाई की।

    कोर्ट ने तिरहुत,दरभंगा और मुंगेर प्रमंडलों के सभी अंचल अधिकारियो को जलीय क्षेत्रों में हुए अतिक्रमण को हटा कर हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है।कोर्ट ने इस मामलें पर सख्त निर्देश दिया है।

    राज्य के विभिन्न जिलों में जलीय क्षेत्रों पर बड़े पैमाने पर हुए अवैध अतिक्रमण के मुद्दे पर याचिकाकर्ता ने ये जनहित याचिका दायर किया था।याचिकाकर्ता के अधिवक्ता सुरेन्द्र कुमार सिंह ने कोर्ट को बताया कि पटना समेत राज्य के विभिन्न जिलों में पहले बड़ी संख्या में जलीय क्षेत्र थे,जिसका उपयोग कृषि कार्य,पेय जल व अन्य कार्यों के लिए होता था।

    PatnaHighCourt
    #PatnaHighCourt

    उन्होंने कोर्ट को बताया कि अब अधिकांश जलीय क्षेत्रों पर अवैध कब्ज़ा हो गया है।उन्हें पाट कर उस भूमि पर अवैध कई प्रकार के निर्माण किये गए हैं।

    उन्होंने को बताया कि इससे जहां पेय और कृषि कार्य के लिए जल की उपलब्धता कम हुई है,वहीं वर्षा के जल को भी रोकने का मार्ग खत्म हो गया है।

    इस मामलें पर अब अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद की जाएगी।

  • राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर टी पी एस एस शिक्षक संघ ने पत्रकार को समारोह आयोजित कर सम्मानित किया

    रुपौली विकास कुमार झा

    राष्ट्रीय प्रेस दिवस के मौके पर प्रखंड मुख्यालय स्थित मालाकार चौक स्थित ब्राइट मिसन पब्लिक स्कूल के प्रांगण में एक सम्मान  समारोह का आयोजन टी पी एस एस शिक्षक संघ के द्वारा किया गया ।जिसकी अध्यक्षता प्रखंड अध्यक्ष नितेश कुमार ने किया वही मंच संचालन उदय प्रताप राठौड़ ने किया।

    मौके पर उपस्थित प्रखंड के सभी पत्रकार को फूल माला पहना कर राष्टीय प्रेस दिवस पर स्वागत किया ।वही डायरी और पेन देकर प्रखंड के सभी पत्रकारों को सम्मानित किया गया ।मौके पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए उदय प्रताप राठौड़ ने अपने संबोधन में कहा कि पत्रकार समाज का दर्पण है ।आज भी निष्पक्ष पत्रकारों की कमी नही है ।

    निष्पक्ष पत्रकारिता के बल पर ही आज भी गरीबो ,वंचितों और शोषितों को न्याय मिल रहा है  ।मौके पर टी पी एस एस के  महिला प्रखंड अध्यक्ष एकता कुमारी ,उज्ज्वल कुमार साह ,वेदव्यास ,सहित दर्जनों शिक्षक उपस्थित थे ।

  • आखिर कहां गायब हो गए 2000 के गुलाबी नोट, केंद्र सरकार ने दिया जवाब


    8 नवंबर 2016 के दिन ही 6 वर्ष पूर्व रात्रि के 12:00 बजे से भारत की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा परिवर्तन आया था। जिसके बाद अगले ही दिन से भारत की आधी आबादी बैंक और डाकघरों की लाइनों में खड़ी मिलने लगी। नोटबन्दी के फैसले को कुछ लोगों ने सहर्ष स्वीकारा तो कुछ ने विरोध भी जताया लेकिन वक्त के साथ-साथ सभी ने इसे अपना ही लिया। नोटबंदी के बाद देश में 500 और 1000 की पुरानी करेंसी नोट वापस ले लिए गए थे और कुछ दिनों के बाद ही वापस से नए 500 और 2000 के नोटों को बाहर मार्केट में लाया गया था।

    नोटबन्दी के समय 86% करेंसी सिर्फ वपास होने वाले नोट की थी

    500 और1000 के नोट सरकार द्वारा यह कह कर हटाए गए थे कि इनकी वजह से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है। अगर इन्हें वापस लिया गया तो भ्रष्टाचार में कमी आएगी। नकली नोटों की छपाई भी कम होगी क्योंकि नोटों का आकार जितना बड़ा रहता है। नकली नोट उतनी आसानी से छप जाते हैं और बाजार में बाहर आ भी जाते हैं। वह 2016 में जिस वक्त नोटबंदी की गई थी उस वक्त 86% करेंसी भारत में 500 और 1000 रुपये के नोट के रूप में ही उपलब्ध थी। अचानक से इन पर प्रतिबंध लगने से देश की अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा झटका उस वक्त लगा था।

    भ्रष्टानोटबन्दी के बाद आए गुलाबी नोट अचानक से कहाँ गायब हुए जा रहे,जानें फिर से करप्शन को वजह बता कर क्या इन्हें वपास लिया जा सकता हैचार को वजह बता कर गुलाबी नोट को फिर से बंद करने का अंदेशा मिल रहा

    रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इसके बाद पुनः 500 और 2000 के नोट मार्केट में लाए जिसमें से 500 के नोट से बड़ी आसानी से अभी भी मौजूद है।लेकिन 2000 के नोटों की कमी साफ तौर पर देखी जा सकती है। अभी तक कुल 6849 करोड़ नोट 500 और 2000 के छापे गए थे जिसमें से सिर्फ 2000 के नोट वर्ष 2019 में 329. 10 करोड एवं 2020 में 273.98 करोड नोट 2000 के छापे गए थे। लेकिन विगत 2 वर्षों से 2000 का एक भी नोट प्रिंट नहीं हो सका है। जिस वजह से लंबे वक्त से 2000की नोट बाजार में देखे ही नहीं जा रहे हैं।

    रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने लगभग 1 वर्ष से भी ज्यादा समय पहले ही सारे 2000 के नोट बैंकों को इंस्ट्रक्शन देते हुए वापस लेने को कह दिया था। बैंकों द्वारा सबसे पहले एटीएम से दो हजार के नोटों को हटाने को कहा गया और फिर धीरे-धीरे बैंक से भी 2000 के सारे नोट को हटवा दिया गया। गुलाबी नोटों के गायब होने की वजह कुछ भी हो लेकिन एक बार फिर से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इसकी वजह भ्रष्टाचार को ही बताया है। दो हजार के नोटों की वजह से भ्रष्टाचार में बढ़ोतरी वापस से देखी जाने लगी है जिससे नोटों को बाजार से हटा दिया गया है।

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  • ऐसे करें रबी प्याज की खेती; जानिए पूरी जानकारी

    हैलो कृषि ऑनलाइन: खेतकरी दोस्तों आज के इस लेख में जानें रबी सीजन में प्याज की खेती के बारे में…

    रबी प्याज के बीज अक्टूबर-नवंबर के महीनों में बोए जाते हैं और दिसंबर-जनवरी के महीनों में रोपाई की जाती है।


    एन-2-4-1 : प्याज गोल और मध्यम से बड़े होते हैं। रंग निखरता है। 5-6 महीने तक ठीक रहता है। रोपण के 12o दिन बाद इसकी कटाई की जाती है। उपज 30 से 35 टन प्रति हेक्टेयर होती है। एंग्रीफाउंड लाइट रेड, भीम किरण, भीम शक्ति, अरका निकेतन। बीज रबी किस्म के बीज का उपयोग केवल एक रबी मौसम के लिए किया जा सकता है। किसी भी मौसम के लिए बीजों की खरीद मई माह में ही कर लेनी चाहिए। क्योंकि करीब 8 से 10 किलो बीज की जरूरत होती है।

    नर्सरी

    एक हेक्टेयर प्याज की खेती के लिए 10-12 गुंटा नर्सरी क्षेत्र की आवश्यकता होती है। रबी सीजन के लिए नर्सरी के लिए साफ धूप वाली जगह का चुनाव करें।
    पौध तैयार करने के लिए चटाई तैयार की जानी चाहिए। भाप की चौड़ाई 1 मी. ऊंचाई 15 सें.मी. और लंबाई 3 से 4 मीटर होनी चाहिए। प्रत्येक भाप में गोबर की दो ढेरियां, 100 ग्राम सुफला 15:15:15 और 50 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड डालकर भाप को समान रूप से मिलाएं।
    प्रति वर्ग मीटर 10 ग्राम बीज बोयें। 10 सेमी. 2 सेमी अलग। गहरी चौड़ाई के समानांतर एक रेखा खींचकर पतले बीज बोएं। बोए गए बीजों को मिट्टी से ढक देना चाहिए और बीजों के अंकुरित होने तक पौधों को पानी देना चाहिए। बुवाई से पहले, प्रत्येक अंकुर पर 2-3 ग्राम कार्बनडाज़िम लगाया जाना चाहिए।
    पौधों को स्वस्थ रखने के लिए पौधों की दो कतारों से प्रत्येक कतार में 50 ग्राम यूरिया तथा 5 ग्राम फोरेट देना चाहिए। फफूंदनाशक एवं कीटनाशक का छिड़काव 10-15 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए।


    यदि रोपण से पहले पानी कम कर दिया जाए तो पौधे बौने हो जाते हैं। उखाड़ने से 24 घंटे पहले पौधों को पानी देने से उन्हें उखाड़ना आसान हो जाता है और जड़ों को नुकसान कम होता है। रबी सीजन के 50-55 दिन बाद पौध रोपण के लिए तैयार हो जाती है।

    पौधों का पुनर्रोपण

    रबी मौसम में 10′ x 10 सेमी. की दूरी पर लगाना चाहिए। बोने से पहले 10 लीटर पानी में 10 ग्राम कार्बोनडाज़िम और 10 मिली पानी डालें। घोल में प्रोफेनोफोस या फिप्रोनिल मिलाएं। पौधे के शीर्ष को काटकर इस घोल में डुबाकर लगाएं।


    खरपतवार नियंत्रण

    प्याज बोने के बाद निराई-गुड़ाई में काफी खर्च आता है। निराई के कारण जड़ों में हवा प्याज को अच्छी तरह से पोषित रखती है। 25 दिन बाद रबी आक्सफ्लोरफेन 7.5 मिली. और Quesalofop एथिल 10 मिली। शाकनाशी का संयुक्त छिड़काव 10 लीटर पानी की दर से करना चाहिए। फिर 45 दिन बाद एक खुरपाणी करनी चाहिए।

    उर्वरक प्रबंधन: 40 से 50 बैलगाड़ी प्रति हेक्टेयर, खाद और रासायनिक उर्वरकों की सिफारिश के अनुसार, 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर।


    पौधरोपण से पहले 50 किलो फास्फोरस की आधी मात्रा और 50 किलो पलाश को मिट्टी में भाप के साथ मिला देना चाहिए। शेष 50 किग्रा 30 और 45 दिन के बाद निराई-गुड़ाई कर देनी चाहिए। साठ दिनों के बाद प्याज की फसल पर कोई टाप ड्रेसिंग न करें।

    जल प्रबंधन

    यदि मिट्टी के सूखने पर मिट्टी लगाई जाती है, तो विकास के साथ पानी की आवश्यकता बढ़ जाती है। जैसे ही प्याज का विकास पूरा हो जाए और पत्तियां पीली हो जाएं और मन गिरना शुरू हो जाए, पानी को काट दें। रबी सीजन की फसलें अंततः पानी की कमी से पीड़ित होती हैं। इसके लिए ड्रिप या पाला सिंचाई विधि अपनाई जानी चाहिए। प्याज की कटाई से तीन सप्ताह पहले पानी काट देना चाहिए और 50% पेड़ गिरने के बाद प्याज की कटाई शुरू कर देनी चाहिए। रोग और कीट प्रबंधन: रबी मौसम में प्याज की फसल मुख्य रूप से भूरा होने से प्रभावित होती है। पत्ती की बाहरी सतह पर लंबे पीले भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। पत्तियों का आकार बढ़ जाता है और पत्तियां सूखने लगती हैं।


    15 से 20 0 सेमी. 80-90% का तापमान और आर्द्रता कवक के तेजी से विकास को बढ़ावा देती है। फरवरी-मार्च के महीने में बारिश या बादलों का मौसम इस रोग के लिए बहुत अनुकूल होता है। साथ ही इस दौरान पर्पल कार्प रोग का प्रकोप भी होता है। इस रोग के कारण पत्तियों का मध्य भाग पहले बैंगनी तथा बाद में पत्तियां काली पड़ जाती हैं। एफिड्स प्याज की फसलों के प्रमुख कीट हैं। इस कीट के लार्वा और वयस्क पत्तियों पर धब्बे पैदा करते हैं। असंख्य धब्बे लगे होने के कारण पत्तियाँ टेढ़ी और सूखी हो जाती हैं। करपा रोग का कवक फूलों से बने घावों के माध्यम से आसानी से प्रवेश कर सकता है। कीड़ों का प्रकोप बढ़ने पर बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ जाता है।

    शुष्क वायु तथा 25 से 3oC. तापमान में इस कीट की संख्या अधिक होती है। प्याज़ बोने के 1o-15 दिनों के बाद और 15 दिनों के अंतराल पर कैरपेस और मोथ के संयुक्त रोग और कोड नियंत्रण के लिए मैंकोज़ेब (o.3 प्रतिशत) या कैबंडाज़िम (o.1 प्रतिशत) कवकनाशी और डाइमेथोएट 3o EC 13 मिली के चार स्प्रे . या लैम्ब्डा साइहलोसरिन 5 ईसी 6 मिली। या क्रिनोलफॉस 25 ईसी 24 मिली। इस कीटनाशक का छिड़काव बारी-बारी से करना चाहिए। छिड़काव करते समय चिपचिपे द्रव (0.1 प्रतिशत) का प्रयोग अवश्य करें। कटाई: किस्म और जलवायु के आधार पर प्याज मुरझाने लगता है, जब नई पत्तियाँ आना बंद हो जाती हैं।


    पत्तियों से निकलने वाला रस प्याज में नीचे जाने लगता है और प्याज सख्त हो जाता है। पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं और प्याज की गर्दन मुलायम हो जाती है। पत्तियां गर्दन के बल झुक जाती हैं और जमीन पर गिर जाती हैं। सामान्यतः 50 प्रतिशत पौधों को सुखाते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए अर्थात बिना प्याज की ढेरी लगाए पहले प्याज को दूसरी पंक्ति के प्याज के पत्तों से ढककर जमीन पर समान रूप से फैलाकर पांच दिनों तक सुखाना चाहिए। उसके बाद प्याज के गले में 3 से 5 सेमी पीला रंग डाला जाता है। गरदन रखें और पत्ता काट लें। इन प्याज को पतली परत में दो हफ्ते तक छाया में सुखाना चाहिए।

    प्याज और महाराष्ट्र महाराष्ट्र का 37 प्रतिशत और देश का 10 प्रतिशत प्याज उत्पादन अकेले नासिक जिले में होता है। इसके अलावा, पुणे, जलगाँव, धुले, अहमदनगर, सोलापुर और सतारा जिलों का भी क्षेत्रफल 10.87 लाख हेक्टेयर है, जिसमें कुल उत्पादन 175.11 लाख टन और उत्पादकता 16.10 टन प्रति हेक्टेयर है।


    ऐसे में मध्यम आकार के प्याज को ही अच्छी तरह से सुखाकर प्याज की ग्रेडिंग करके स्टोर करना चाहिए। प्याज की कटाई फरवरी-मार्च (20 प्रतिशत) और रबी में अप्रैल-मई (60 प्रतिशत) में की जाती है। किसी न किसी सीजन की प्याज की कटाई सितंबर-मई की अवधि में चल रही है। यह जून से सितंबर तक रहता है। यदि प्याज का भण्डारण करना हो तो एन-2-4-1 जैसी किस्मों का चयन करते हुए 60 दिन के बाद पत्ते नहीं देने चाहिए। कटाई से 3 सप्ताह पहले पानी का ब्रेक और उचित सुखाने। स्टोरेज डैमेज: स्टोरेज के दौरान प्याज को तीन तरह से नुकसान पहुंचता है। उचित भंडारण क्षति को कम कर सकता है।

    वजन घटना: मई से जुलाई के महीने के दौरान वायुमंडलीय तापमान अधिक होता है। प्याज के श्वसन के माध्यम से पानी के उत्सर्जन के कारण 25-30% वजन कम होता है।


    प्याज सड़न: प्याज को भण्डारण से पहले अच्छी तरह न सुखाया जाये, कटाई के समय घाव न भरे जाये तो जीवाणु संक्रमण के कारण प्याज सड़ जाता है। जुलाई से सितंबर के बीच वातावरण में अधिक नमी के कारण फफूंद जनित रोग हो जाते हैं और 10 से 15 प्रतिशत नुकसान होता है।

    प्याज का अंकुरण : खरीफ सीजन का प्याज तैयार होने के बाद भी इसकी बढ़वार जारी है। नई जड़ें और अंकुर निकल रहे हैं। खरीफ की प्याज टिकती नहीं क्योंकि प्याज नहीं पकते। पत्तियां मुलायम और क्षैतिज हो जाती हैं। प्याज में निष्क्रिय रसायन छोड़े जाते हैं। इसलिए इस मौसम का प्याज तुड़ाई के तुरंत बाद अंकुरित नहीं होता और भंडारण में ही रहता है। लेकिन, अक्टूबर-नवंबर के महीनों में तापमान कम होने के कारण प्याज की परिपक्वता समाप्त हो जाती है और अंकुरण के कारण 10 से 15 प्रतिशत नुकसान होता है। इस प्रकार यदि प्याज को शुरू से ही विभिन्न पहलुओं और फसल सुरक्षा के साथ ठीक से संरक्षित किया जाता है, तो यह निश्चित रूप से कीटों और कीड़ों को नियंत्रित करके प्याज के उत्पादन को बढ़ाने में मदद करेगा।


  • बाल दिवस पखवारा के अवसर पर बाल दरबार कार्यक्रम का आयोजन

    रहुई : नालंदा जिला के रहुई प्रखंड अंतर्गत आदर्श मध्य विद्यालय में किशोर ,किशोरियों के द्वारा उड़ान परियोजना के तहत सेव द चिल्ड्रन/यूनीसेफ के सहयोग से आयोजनकर्ता प्रखंड समन्वयक सुधा कुमारी एवं श्री श्याम किशोर कुमार की अध्यक्षता में चाचा नेहरू के जन्मदिन व बाल दिवस पखवारा के अवसर पर बाल विवाह एवं बाल श्रम जैसी कुरीतियों को जड़ से मिटाने के लिए समाज के नई पीढ़ियों में बदलाव लाने हेतु किशोर/किशोरियों द्वारा अपने – अपने पंचायत पतासँग के लिए पंचायत/गांव की समस्याओं व सुझाव का मांग पत्र बनाया गया तथा कुछ बच्चों ने मिलकर पेंटिंग व भाषण के माध्यम से कार्यक्रम को सफल बनाया।

    इस अवसर पर बच्चों पंचायत के सरपंच श्री अमरेश कुमार विजय राम ,वार्ड सदस्य श्रवण कुमार तथा समाजिक कार्यकर्ता परमहंस कुमार के समक्ष मांग पत्र को प्रस्तुत करते हुए ग्राम पंचायत योजना में मुद्दे को शामिल करने के लिए और समाधान हेतु बातों को रखी गई ।पुनःसरपंच जी के द्वारा बच्चे हमारे भविष्य हैं और समाज में इन बच्चों द्वारा ही परिवर्तन लाया जा सकता है अतः समस्या निदान हेतु सन्तावना भी दिया गया और बोला गया कि जी.पी.डी. योजना में भी इन मुद्दों को डाला जाएगा।

    इस मौके पर प्रधानाध्यापक श्री सुनील कुमार,श्याम किशोर कुमार, डौली सिन्हा, रश्मि रानी सिन्हा, बन्दना कुमारी,राम सागर राम,अशोक कुमार, शैलेंद्र कुमार एवं सभी बच्चे की सफल भागीदरी रही।

  • अब इन लोगों को नहीं देना होगा Toll Tax- विभाग ने दी अहम जानकारी..


    डेस्क : सोशल मीडिया आज के समय में काफी सशक्त है। लेकिन इसके भी दो पहलू है। इसमें नकारात्मक और सकारात्मक दोनों शामिल है। सोशल मीडिया पर एक तरफ जिस तरह सकारात्मक चीजें फैल रही है ठीक उसी तरह फर्जी चीजों का पसार भी उतना ही कम समय में किया जा सकता है।

    किसी भी संदेश को वायरल होने में समय नहीं लगता। इसी कड़ी में व्हाट्सएप पर एक मैसेज काफी वायरल हो रहा है। इस मैसेज में कहा जा रहा है कि अब पत्रकारों को देश में टोल टैक्स की छूट मिलेगी। कोई पत्रकार अपना आईडी कार्ड दिखाता है तो उसे टोल टैक्स नहीं देना होगा। इस मैसेज के सर्कुलेट होने के बाद अब इस पर सरकार की मीडिया देखने वाली एजेंसी PIB की टीम ने ट्वीट कर लोगों को जागृत करने का काम किया है।

    इस संबंध में पीआईबी के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया है। ट्वीट में इस मैसेज को पूर्ण रूप से फर्जी बताया गया है। उन्होंने कहा सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की ओर से ऐसा कोई भी आदेश नहीं जारी किया है। ऐसे में पत्रकारों को भी आम लोगों की तराई टोल टैक्स देने होंगे।

    मैसेज है फर्जी

    मैसेज है फर्जी

    वायरल मैसेज में बताया गया कि सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने पत्रकारों को टोल टैक्स में राहत देने का आदेश दिया है. हालांकि पीआईबी फैक्ट चेक की पड़ताल के बाद साफ हो गया है कि गडकरी ने ऐसा कोई आदेश जारी नहीं किया है. पीआईबी फैक्ट चेक ने इस ट्वीट में मिनिस्ट्री ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट एंड हाईवे का एक लिंक भी शेयर किया है।

    इस लिंक को खोलने पर एक सूची दिखाई देगी, जिसमें बताया गया है कि किन लोगों और वाहनों पर टोल टैक्स माफ किया गया है। यहां हम आपको कुछ ऐसे लोगों के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें भारत में कहीं भी टोल टैक्स देने की जरूरत नहीं है।

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  • बे-मौसम में किसान ने कलिंगाड़ा लगाया, जिससे लाखों का मुनाफा हुआ

    हैलो कृषि ऑनलाइन: किसान अपनी फसल के दाम को लेकर परेशान हैं। लेकिन अगर सही जानकारी और सही तरीका कृषि किया जाए तो यह समस्या दूर हो सकती है और लाभ भी बढ़ सकता है। कुछ ऐसा ही किया गया है। अकोला जिले के रहने वाले किसान अन्नता भीकाजी इंगले। इस किसान ने बेमौसम में अपने पांच एकड़ में कलिंग की खेती की।

    वर्तमान में किसान को 17 रुपये प्रति किलो मिल रहा है। और इस बार तरबूज ट्रकों से बंगाल, हैदराबाद, केरल और कन्याकुमारी भेजे जा रहे हैं. किसान ने कहा कि अनुमान है कि 5 एकड़ में 100 टन तरबूज का उत्पादन होगा। अभी कीमत 17000 रुपए प्रति टन है। जिसके लिए उन्हें ढाई लाख रुपये मिलने की उम्मीद है। किसान ने कहा कि ऑफ सीजन में तरबूज की गुणवत्ता अच्छी कीमत मिलती है।


    बारिश से नुकसान

    किसान ने इसकी जानकारी देते हुए बताया कि इससे पहले उसने जून और अगस्त के महीने में अपनी 10 एकड़ जमीन में कलिंग की फसल उगाई थी. लेकिन भारी बारिश के कारण फसलों को नुकसान हुआ है। 10 एकड़ में 150 टन कलिंग उगाई जाती है, लेकिन बारिश और जलवायु परिवर्तन के कारण उन्हें 10 टन ही मिला। फिर सितंबर में उन्होंने फिर से 5 एकड़ में कलिंगदा लगाया और अब उन्हें अच्छी कीमत मिल रही है। पिछले पांच सालों से किसान ऑफ सीजन में कलिंगदा लगा रहे हैं। अकोला जिले में केवल अनंत भीकाजी बेमौसम में तरबूज की खेती करते हैं।

    अन्नता भीकाजी ने कहा कि वे न केवल ऑफ सीजन में कलिंगदा लेते हैं बल्कि पपीता और खरबूजा भी उगाते हैं। कलिंगाड की खेती में उन्हें प्रति एकड़ कम से कम 70 से 80 हजार रुपए का खर्च आता है। भीकाजी ने कहा कि ऑफ सीजन में इसकी अच्छी कीमत मिलती है। वे इन फलों की खेती मानसून और ठंड के मौसम में करते हैं। किसान ने प्लास्टिक मल्चिंग विधि से खेती की है। और इससे फल की गुणवत्ता अच्छी बनी रहती है।


    स्रोत टीवी 9


  • बिहार : हाईस्कूलों में प्रधानाध्यापक पद पर होगी बहाली – अब नए फार्मूले से भरे जाएंगे पद..


    डेस्क : सरकारी स्कूलों के प्रधानाध्यापकों की बहाली की प्रक्रिया अब सरल होगी. बिहार लोक सेवा आयोग BPSC द्वारा ली जा रही परीक्षा में अब माइनस मार्किंग का प्रावधान भी हट जायेगा. साथ ही परीक्षा की 1.5 घंटे की समय सीमा में भी अब बढ़ोतरी होगी. शिक्षा विभाग ने इस संबंध में बिहार लोक सेवा आयोग BPSC को अपनी सिफारिश भेजेगा. विभाग के प्रस्ताव को बिहार लोक सेवा आयोग ने अगर मान लिया तो अगले महीने होने वाली प्रधानाध्यपकों की नियुक्ति परीक्षा में गलत उत्तरों के लिए कोई नंबर नहीं काटे जायेंगे. साथ ही परीक्षार्थियों को 1.5 घंटे से अधिक समय भी मिल सकेगा.

    क्या है विभाग की मुख्य चिंता

    दरअसल विभाग की चिंता पिछले दिनों आयोग की तरफ से कुल 6421 प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति के लिए ली गयी परीक्षा में सिर्फ 421 के ही सफल हो पाने को लेकर है. इस तरह प्रधानाध्यापकों की 6 हजार से अधिक रिक्तियां बाकी हैं. ऐसे में बड़े पैमान पर अभ्यर्थियों के असफल हो जाने के कारण आयोग को दोबारा से विज्ञापन जारी करना पड़ा है. इसके लिए जल्द ही परीक्षा भी होगी.

    नवंबर माह तक होनी है बहाली

    एक आधिकारिक जानकारी के मुताबिक प्रधानाध्यापक पद पर बिहार लोक सेवा आयोग की तरफ से चयनित और अनुशंसित अभ्यर्थियों की स्कूलों में नियुक्ति हर हाल में नवंबर माह के अंतिम सप्ताह में हो जायेगी. लोक सेवा आयोग से जरूरी तकनीकी जानकारियां विभाग को मिल भी चुकी हैं. विभाग चयनित अभ्यर्थियों की काउंसेलिंग कराने के बाद उनकी तैनाती भी कर देगा.

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  • आचनक नेपाल बॉर्डर से आ गया इलेक्ट्रॉनिक गिद्ध – हो गया बड़ा खुलासा..


    डेस्क : 2 दिन पहले दरभंगा के बेनीपुर इलाके के हाविभौआर गांव में इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस लगे गिद्ध मिलने के हड़कंप मचने के बाद अब राहत भरी खबर सामने आयी है. इस गिद्ध को किसी साजिश के तहत नहीं भेजा गया था; बल्कि गिद्ध की विलुप्त होती प्रजाति के कारण ही गिद्ध को मॉनिटर और उसपर नजर रखने के ख्याल से गिद्ध के ऊपर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस लगाए गए थे.

    हमारे मित्रवत पड़ोसी देश नेपाल के नेशनल पार्क से गिद्ध को रिचार्ज के ख्याल से इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस लगाकर गिद्ध को छोड़ा गया था. आपको बता दें कि गिद्ध पर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस लगा मिलने के बाद तरह तरह के चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया था.

    वन विभाग के DFO सुधीर कुमार गुप्ता ने आधिकारिक रूप से इसकी पुष्टि करते हुए प्रेस को यह बताया कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जब इसकी जानकारी नेपाल सरकार से साझा की गयी तब यह स्पष्ट हो सका कि यह गिद्ध नेपाल के नेशनल पार्क से छोड़ा गया था.

    इसके ऊपर रीचार्जेबल कुछ इलेक्ट्रॉनिक्स डिवाइस भी लगाए गए थे; ताकि गिद्ध के हर प्रकार में मूवमेंट पर नजर रखी जाए. उन्होंने यह बताया कि वरीय आधिकारिक के अलावा वाइल्ड लाइफ के तरफ से मिली गाइडलाइन के तहत होगी और आगे की कार्रवाई अब की भी जायेगी. तत्काल गिद्ध को सुरक्षित रखने का प्रबंध भी किया जा रहा है.

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  • कलर कॉटन वैराइटी: अब कॉटन सफेद नहीं बल्कि रंगीन है; प्राकृतिक रंगीन स्वदेशी कपास की किस्में विकसित की गईं

    हैलो कृषि ऑनलाइन: खेतकरी दोस्तों, सफेद रंग की कोमल फसल का ख्याल तब आता है जब कपास को कपास कहा जाता है। क्या आप जानते हैं वैज्ञानिकों ने नई रंगीन स्वदेशी कपास (कलर कॉटन वेरिटी) किस्में विकसित की हैं। नागपुर में केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने प्राकृतिक रंगों के साथ कपास की स्वदेशी किस्में विकसित की हैं।

    जंगली कपास की तीन स्वाभाविक रूप से रंगीन किस्मों में से दो किस्मों को दक्षिण भारत के लिए प्रचारित किया गया है, जबकि एक खेती को मध्य भारत के लिए प्रचारित किया गया है। माना जा रहा है कि ये प्रजातियां कपड़ा उद्योग से होने वाले प्रदूषण को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।


    कपड़ा उद्योग में, निर्माण और रंगाई प्रक्रिया में विभिन्न रासायनिक एजेंटों का उपयोग किया जाता है। ये रसायन इन उद्योगों की धुलाई, विरंजन और रंगाई प्रक्रियाओं से निकलने वाले बहिस्राव में मिश्रित होते हैं। इससे क्षेत्र के जल स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं और पर्यावरण दूषित हो रहा है। पानी में घुलित ऑक्सीजन के स्तर में कमी से जलीय जीवन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वस्त्रों की स्थायी रंगाई के लिए उपयोग किए जाने वाले कई रसायन जहरीले, उत्परिवर्तनीय और कार्सिनोजेनिक भी होते हैं। यदि इस तरह के दूषित पानी का उपयोग कृषि सिंचाई के लिए किया जाता है, तो इन रसायनों के निशान कृषि उपज में जा सकते हैं। यह पूरी खाद्य श्रृंखला को प्रभावित कर सकता है।

    प्रदूषित पानी के संपर्क में आने से त्वचा रोग, विभिन्न एलर्जी, नेत्रश्लेष्मलाशोथ, राइनाइटिस, अस्थमा, सूजन, पाचन तंत्र, श्वसन, गुर्दे की विफलता और कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। जानवर मनुष्यों सहित विभिन्न बीमारियों से संक्रमित हो सकते हैं।
    इन सभी समस्याओं की जड़ में कपड़ा उद्योग ही था, रंगाई प्रक्रिया में रसायनों के उपयोग को कम करने के उद्देश्य से कपास की प्राकृतिक रंगीन किस्मों को विकसित करने के प्रयास किए गए। आठ साल के शोध के बाद प्राकृतिक रंगों वाली कपास की तीन किस्में (कलर कॉटन वेरिटी) विकसित की गई हैं।


    इस किस्म (कलर कॉटन वेरिटी) को जंगली कपास की प्रजातियों का उपयोग करके विकसित किया गया था। सफेद कपास के खेत में आइसोलेशन की दूरी 50 मीटर होनी चाहिए। इसका मतलब है कि यह अन्य सफेद किस्मों के साथ पार नहीं होगा। वेलस्पून, गोपुरी जैसे कई संगठनों से रंगीन कपास के बीज की मांग है। वैदेही-1 किस्म के बीज पायलट आधार पर 100 एकड़ में खेती के लिए तमिलनाडु के एक संगठन को उपलब्ध कराए गए हैं।

    – डॉ. विनीता गोटमारे,


    वरिष्ठ अनुसंधान वैज्ञानिक, केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर

    संदर्भ : अग्रोवन