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  • शिक्षा विभाग के अफसरों की मिलीभगत से फर्जी सर्टिफिकेट धारी को शिक्षक बना देता है यह मास्टर माइंड – Nalanda Darpan – गाँव-जेवार की बात।

    बेन  (रामावतार कुमार)। नालंदा  जिले के बेन प्रखंड में दर्जनों ऐसे व्यक्ति हैं जो फर्जी सर्टिफिकेट पर सरकारी शिक्षक बने हैं। जिसमे कई पकड़े गए हैं और उनपर जिला शिक्षा पदाधिकारी द्वारा प्राथमिकी भी दर्ज हुई है। फर्जी सर्टिफिकेट धारियों को नौकरी दिलाने के पीछे जिस मास्टर माइंड का हाथ रहा वो कोई और नहीं एक शिक्षक हीं है।

    ★ क्या है मामला:

    फर्जी शिक्षक बहाली मामले में मनीष कुमार, उ० मध्य विद्यालय रामगंज, निरंजन कुमार, मध्य विद्यालय एकसारा, रीना कुमारी, प्रा० विद्यालय रसुल्ला, सत्या कुमारी, प्राथमिक विद्यालय लालगंज की गिरफ्तारी के बाद अन्य फर्जी शिक्षकों में खलबली मच गई थी।

    बीआरसी से लेकर प्रखंड क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गया। चर्चा यह भी होने लगा कि फर्जी बहाली में बीआरसी का एक शिक्षक हीं मुख्य सरगना है। जो दर्जनों फर्जी सर्टिफिकेट धारी को शिक्षक बना दिया और अकूत संपत्ति बना ली।

    इतना हीं नहीं प्रखंड क्षेत्र में शिक्षक बहाली मामले में भारी गड़बड़ी की शिकायत है। सूत्रों की मानें तो अभी भी मनीष कुमार जैसे दर्जनों से अधिक फर्जी शिक्षक ड्यूटी कर रहे हैं और वेतन उठा रहे हैं।

    ★ क्या है पूरा मामला:

    cruption 1पंचायती राज व्यवस्था में सरकार ने नियोजित शिक्षकों की बहाली करने का जिम्मा पंचायत सचिव, बीडीओ, बीईओ, प्रमुख एवं मुखिया को दिया गया था। लेकिन प्रखंड के पदाधिकारियों, नियोजन इकाईयों एवं सरगना शिक्षक के इशारे पर शिक्षा विभाग की आंखों में धूल झोंक अयोग्य अभ्यर्थियों को सरकारी शिक्षक बना दिया और मोटी रकम लेकर फर्जी सर्टिफिकेट धारी को गुरुजी बना दिया।

    बीडीओ, बीईओ, प्रमुख, पंचायत सचिव एवं अन्य समिति में शामिल लोगों ने मनीष कुमार समेत दर्जनों की बहाली कर दी। जब वर्ष 2019 में फर्जी सर्टिफिकेट धारियों की रिपोर्ट जिला शिक्षा पदाधिकारी एवं प्रमण्डलीय आयुक्त पटना को दी गई तो जांच में पाया गया कि मनीष कुमार एवं अन्य का प्रमाणपत्र किसी दूसरे व्यक्ति का है।

    तत्पश्चात पूर्व जिला शिक्षा पदाधिकारी मनोज कुमार ने मनीष कुमार, सत्या कुमारी, निरंजन कुमार एवं रीना कुमारी के विरुद्ध बेन थानें में कई सुसंगत धाराओं 420, 467, 468, 471, 477A, 193, 120 बी के तहत 134/19 प्राथमिकी दर्ज कराई गई। गिरफ्तार कर जेल भी भेजा गया।लेकिन आज के दिनों में पुनः फर्जी प्रमाण पत्र धारी मनीष कुमार सरकारी शिक्षक बन बैठा है।

    ★ इन शिक्षकों पर हुआ मामला दर्ज:

    1.मनीष कुमार, प्रखंड शिक्षक उ० म० विद्यालय, रामगंज, बेन थाना।

    2.निरंजन कुमार, प्रखंड शिक्षक मध्य विद्यालय एकसारा, बेन थाना।

    3.सत्या कुमारी, पंचायत शिक्षिका प्राथमिक विद्यालय लालगंज, बेन थाना।

    4.रीना कुमारी, पंचायत शिक्षक प्राथमिक विद्यालय, रसुल्ला, बेन थाना।

    इस संबंध में जब बीडीओ अजमल परवेज से बात की गई तो कहा कि जिला शिक्षा पदाधिकारी के ज्ञापांक 1457 दिनांक 5/8/2022 के आदेशानुसार प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को अग्रतर कार्रवाई के लिए भेजा गया।

    वहीं प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी किरण ने बताया कि न्यायालय के आदेशानुसार जिला शिक्षा पदाधिकारी के ज्ञापांक 1457 दिनांक 5/8/22 के आलोक में ज्ञापांक 359 दिनांक 8/8/22 निर्गत कर प्रधानाध्यापक को योगदान लेने का निर्देश दिया गया है।

     

     

  • बेन अंचल में सरकारी दस्तावेज में छेड़छाड़ करते दलाल, देखिए वीडियो – Nalanda Darpan – गाँव-जेवार की बात।

    बेन (रामावतार कुमार)। बेन अंचल कार्यालय में अंचलाधिकारी के संरक्षण में अनाधिकृत व्यक्ति (दलाल) कर्मचारी के दायित्वों का निर्वहन करते नजर आते हैं। मजबूरी में लोगों को अपने कार्य के लिए इन दलालों का हीं सहारा लेते हैं।

    सबसे बड़ी  बात यह है कि हरेक कर्मचारी एक-एक दलाल रखते हैं। यह सब कार्य अंचलाधिकारी के अधिनस्थ कर्मचारी के रूप में होता है। जाहिर है कि इन्हें वेतन तो सरकार देती नहीं, भ्रष्टाचार कर ये लोग मोटी रकम वसूलते और आम आदमी का काम बिना पैसे का नहीं होता।

    हद तो यह है कि राजस्व कर्मचारी भी सरकारी दस्तावेजों को दलालों को सौंप देते हैं। जिसके कारण अनाधिकृत व्यक्ति, गैर जिम्मेदार लोग सरकारी दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ करते हैं।

    दलालों को सरकारी दस्तावेज से छेड़छाड़ करने का हक देना कैसे न्याय संगत है। इन सारे सवाल पर अंचलाधिकारी कुछ नहीं बता पाते तो दूसरी ओर जिले एवं अनुमंडल के पदाधिकारियों द्वारा संज्ञान नहीं लिया जाता।

    बहरहाल आप भी देख सकते हैं कि संध्या काल में नाजीर संतोष कुमार के कक्ष में एवं अंचल कार्यालय में किस प्रकार दलाल पप्पू कुमार नामक व्यक्ति रजिस्टर टू एवं अन्य दस्तावेजों को उलटफेर करते हैं।

    इस बाबत एकसारा पंचायत के खेदुविगहा निवासी सतेन्द्र सिंह, खैरा पंचायत के विवेक कुमार व अन्य ने कहा कि अंचल में ज्यादातर कार्य दलालों के माध्यम से हीं होता है।

    उन्होंने अनाधिकृत व्यक्ति द्वारा सरकारी कार्य किए जानें पर भी आपत्ति जताई और कहा कि अवैध तरीके से इन लोगों द्वारा कार्य किया जाना रजिस्टर से छेड़छाड़ किया जाना कतई उचित नहीं है।

    देखिए वीडियो…

     

  • सरकारी विकास का दावा खोखला, दुर्घटना का पर्याय बनी गढ्ढों में तब्दील रामघाट-रामपुर मार्ग – Nalanda Darpan – गाँव-जेवार की बात।

    नगरनौसा (नालंदा दर्पण)। किसी भी क्षेत्र के विकास का आईना सड़क होती है। सड़क अच्छी हो तो घंटों की दूरी मिनटों में तय की जा सकती है सड़क गड्ढों से भरा हो तो मिनटों का सफर घंटे लगते हैं।

    एक ओर सरकार गड्ढामुक्त सड़क होने का निरंतर दावा करती हैं लेकिन सरकार द्वारा किये जा रहे दावों के विपरीत धरातल पर यह असली नजारा रामघाट-रामपुर पथ का हैं। यह सड़क गड्ढे में तब्दील हो गया है। सड़क पर बने गड्ढे जानलेवा साबित हो रहे हैं। लेकिन जिम्मेदार आलाअधिकारियों व विभाग की नजरों से ओझल होने से यह सड़क अपनी बदहाल स्थित पर आंसू बहाते हुऐ मरम्मत एवं सुदृढ़ीकरण की बाट जोह रहा है।

    रंजीत कुमार, मनीष कुमार, रामाशीष प्रसाद, रविशंकर कुमार, जितेंद्र चौधरी आदि ग्रामीणों ने बताया कि रामघाट-रामपुर मार्ग बेहद ही जर्जर हो गया है, जिसके चलते ग्रामीण दहशत के साए में यात्रा करने को मजबूर हैं। बार-बार जिम्मेदार अधिकारियों को शिकायती पत्र सौंपने के बाद कार्रवाई नहीं हुई। सड़क में जगह-जगह बड़े-बड़े गड्ढे  होने के कारण हादसे का खतरा बना रहता है।

    Claim of government development hollow Ramghat Rampur road turned into potholes synonymous with accident 1

    रामघाट-रामपुर पथ से लगे आधा दर्जन से ज्यादा गांव के लोगों के लिए इस पर सफर करना चुनौती बन गया है। देखरेख के अभाव एवं गुणवत्ता में कमी के चलते ये सड़कें समय से पहले ही जर्जर हो गया है और अब ये जनता के लिए परेशानी का सबब बनकर आए दिन दुर्घटना को आमंत्रित कर रहा हैं। मजबूरी में जनता इस बदहाल सड़कों पर जान जोखिम में डाल कर यात्रा करने को मजबूर है।

    खास बात तो यह है कि इन सड़कों पर विकास का वादा करने वाले जनप्रतिनिधि भी यात्रा करते हैं। पर वे भी पद में आने के बाद अपने वादे भूल जाते हैं। इस मार्ग पर दो पहिया, चार पहिया वाहन चलते हैं। जहां यात्री व चालक यात्रा के पहले भगवान को याद करते हैं।

    वहीं अधिकारी भी सड़क की हालत से भलीभांति परिचित हैं, फिर भी निर्माण कार्य की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सड़क की उपेक्षा से यह साबित हो जाता है कि उच्च पदों पर बैठे अधिकारी ऐसे मामलों में कितने संवेदनशील हैं।

    Claim of government development hollow Ramghat Rampur road turned into potholes synonymous with accidentये गांव हो रहे प्रभावितः रामघाट-रामपुर से बने सड़क में गढ्ढा होने से इस मार्ग से लगे लोदीपुर, जागो बिगहा, कुकहरिया, बमपुर, रामपुर, अजयपुर, लक्ष्मी बिगहा आदि गांव सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है। इस मार्ग पर पिछले वर्षों से गड्ढों की भरमार ने लोगों का काफी परेशान कर दिया है।

    बार-बार शिकायत के बावजूद सुधार की कवायद नहीं किए जाने से क्षेत्र के ग्रामीणों में रोष व्याप्त है। अधिकारियों को सूचित किए जाने बाद भी मार्ग का जायजा लेने भी कोई नहीं पहुंचा है। सबसे ज्यादा परेशानी बारिश के मौसम में होता हैं। सड़क में गड्ढे होने के कारण बारिश के मौसम में जमा पानी सड़कों की गहराई का पता नहीं चल पाता है और वाहन चालक गड्ढा में फंस जाते हैं।

    बाइक चालक तो गढ्ढे में फसने के बाद गिर जाते हैं, जिससे वाहन चालक गंभीर रूप से जख्मी हो जाते हैं अगर किन्ही को किसी आवश्यक काम से बाहर जाना होता है ऐसी स्थिति में ऐसे बाइक चालक को फिर से कपड़ा बदल कर आना पड़ता। ऐसे स्थित में वाहन चालकों को आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है।

    पंचायत समिति सदस्या के लिखत शिकायत के बाद भी नहीं हुआ कार्रवाईः इस संबंध में रामपुर पंचायत समिति सदस्या सुशील कुमारी ने कहा कि कार्यपाल अभियंता आर,डब्लू,डी हरनौत को जनवरी में ही पत्र लिखकर सड़क मरम्मत कराने का आग्रह किया गया था लेक़िन दस माह बीत जाने के बाद भी अबतक सड़क मरम्मत कराने को लेकर कोई कार्रवाई नहीं गया है।

    उन्होंने बताया कि स्थानीय विधायक द्वारा भी सड़क मरम्मत करने को लेकर विभाग को लिखा गया लेकिन सिर्फ़ हरनौत व चंडी प्रखंड के ग्रामीण सड़कों का ही चयन किया गया। नगरनौसा प्रखंड के एक भी सड़को का चयन नहीं किया गया।

     

    मना के बावजूद खेतों में पराली जला खुद का नुकसान कर रहे हैं किसान

    मोटी कमाईः नालंदा के मगही पान पर ही चढ़ाया जा रहा बनारसिया रंग

    नालंदा डीएम-एसपी ने अवैध शराब-खनन की रोकथाम को लेकर की वीडियो कॉन्फ्रेंस मीटिंग

    रामचन्द्रपुर बस स्टैंड में वर्चस्व को लेकर हुई रोड़ेबाजी और फायरिंग में कई जख्मी

    दिल्ली पुलिस ने ओला कंपनी के नाम पर 55 करोड़ की ठगी के आरोपी को कतरीसराय से दबोचा

  • मोटी कमाईः नालंदा का मगही पान पर ही चढ़ाया जा रहा बनारसिया रंग – Nalanda Darpan – गाँव-जेवार की बात।

    एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क। नालंदा के इस्लामपुर और राजगीर प्रखंड की 5 पंचायतों में मगही पान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। यहां के मगही पान की मांग बिहार के अलावा कई राज्यों में है।

    यहां का मगही पान ही बनारस और यूपी की मंडियों में पहुंचते ही बनारसी हो जाता है। वहां के कारोबारी मगही पान के पत्ते को प्रोसेसिंग कर बनारसी पान का नाम देते हैं।

    दो घंटे तक कोयले की गर्मी में इन मगही पान के पत्तों को रखा जाता है। इसके बाद ये पीले रंग के हो जाते हैं। जिसे यूपी में बनारसी पान कहा जाता है।

    इस खेती पर बीस हजार परिवार हैं आश्रितः  नालंदा के किसानों से व्यापारी सस्ते दाम पर पत्ते खरीदते हैं, लेकिन बाद में इसे ही बनारसी का नाम देकर कारोबारी मोटी कमाई कर लेते हैं। मेहनत किसान करते हैं और मुनाफा कोई और कमा ले जाता है।

    खेती का रकबा करीब 400 बीघा है। मौसम का साथ मिलता है तो हर साल करीब 16 हजार क्विंटल पान के पत्ते की उपज किसान कर लेते हैं।

    हालांकि खेतों में लागत अधिक और मुनाफा कम होने के कारण अब युवा पीढ़ी पान की खेती से मुंह मोड़ रही है।

    खेती की जगह युवा दूसरे प्रदेशों में जाकर काम-धंधा करने लगे हैं, फिर भी करीब 20,000 चौरसिया परिवार की जीविका का मुख्य साधन अभी भी पान की खेती है।

    एक पेड़ से 2 साल तक मिलते हैं पत्तेः पान मसाला का क्रेज बढ़ने से पान के पत्ते की मांग घटने लगी है। खासकर युवा पीढ़ी पान मसाला को अधिक प्राथमिकता दे रहे हैं।

    इससे किसानों को फायदा कम और नुकसान ज्यादा हो रहा है। प्रति कट्ठा बांस का बरेजा बनाने और खेतों में 20 से 22 हजार खर्च आता है।

    पहले की तरह पत्ते की मांग मंडियों में कम हो रही है। पान की खेती करने वाले किसान बताते हैं कि हर साल अप्रैल-मई और जून में पान की खेती होती है।

    एक साल में फसल तैयार होती है 15 जनवरी से सीजन शुरू होकर मार्च तक पत्ते की तुड़ाई की जाती है। एक बार खेती करते हैं तो दो साल तक पत्ते मिलते हैं।

    पत्ते की होती हैं 3 वैरायटीः पान की पत्तों को तोड़ने के बाद उसकी छटाई की जाती है। 3 वैरायटी के पत्ते निकलते हैं, इनकी कीमतें भी अलग-अलग तय की जाती हैं।

    सबसे निम्न क्वालिटी के पत्ते को कटपीस की श्रेणी में रखा जाता है। मध्यम क्वालिटी वाले को हेरूआ या बरूसी कहते हैं, जबकि सबसे अच्छी क्वालिटी वाले को गांठ कहा जाता है।

    एक ढोली में होते हैं 200 पत्तेः साधारण पान के पत्ते गया कि मंडी में बिक जाते हैं। उच्च गुणवत्ता के पान के पत्ते की मांग बनारस में सबसे ज्यादा है।

    औसतन एक ढोली (200) पत्ते की कीमत 100 से 150 रुपए है। वहीं 1 बीघा में फसल अच्छी रही तो 130 से 150 ढोली पत्ते की उपज होती है।

    इस्लामपुर में भी है प्रोसेसिंग यूनिटः इस्लामपुर के पान अनुसंधान केंद्र में भी पत्ते की प्रोसेसिंग करने की दो यूनिट लगी हुई है, लेकिन कारोबारी पत्ते की प्रोसेसिंग करने में रुचि नहीं लेते हैं।

    किसानों के समक्ष बड़ी मंडी की समस्या है। इस्लामपुर से प्रोसेसिंग कर बनारस की मंडी तक पत्ते को पहुंचाने में कई समस्याएं आती है।

    यही कारण है कि नालंदा के किसान पत्ते की प्रोसेसिंग नहीं करते हैं। गया में बड़ी मंडी बन जाए तो किसान जरूर पत्ते की प्रोसेसिंग करेंगे।

    कैसे होती है प्रोसेसिंगः 5 फीट ऊंचे 3 फीट लंबे और 4 फीट चौड़े कमरे में छोटी-छोटी डलियों में पान के पत्ते तख्ता बनाकर रख दिए जाते हैं। कमरे में लोहे के चूल्हे में लकड़ी का कोयला जला दिया जाता है।

    उसके बाद पूरी तरह से एयरटाइट कमरे को बंद कर डेढ़ से 2 घंटे तक छोड़ दिया जाता है। जलते कोयले की गर्मी से पान के हरे पत्ते हल्के पीले हो जाते हैं इसे ही व्यापारी बनारसी पान का नाम देते हैं।

    प्रोसेसिंग के बाद पत्ते 3 माह तक खराब नहीं होते हैं। शर्त यह की पत्तों को शीतगृह में रखा जाए हवा नहीं लगनी चाहिए।

     

  • नालंदा के ग्रामीण आँचल में बिखरे ऐतिहासिक विरासत को संरक्षण की जरूरत – Nalanda Darpan – गाँव-जेवार की बात।

    नालंदा दर्पण डेस्क। इतिहास के अवशेषों से जब भी हम गुजरते हैं। सच में आश्चर्य होता है कि हम पहले क्या थे और आज क्या हैं? बीता हुआ कल काफी महत्वपूर्ण होता है। भले ही बीता हुआ समय वापस नहीं आता, किन्तु अतीत के पन्नों को हमारी विरासत के तौर पर कहीं पुस्तकों तो कहीं इमारतों के रूप में संजो कर रखा गया है।

    The need to preserve the historical heritage scattered in the rural area of Nalanda 1हमारे पूर्वजों ने निशानी के तौर पर तमाम तरह के मंदिर, किले,इमारतें, कुएँ तथा अन्य चीजों का सहारा लिया, जिनसे हम उन्हें आने वाले समय में याद रख सकें।लेकिन वक्त की मार के आगे कई बार उनकी यादों को बहुत नुकसान पहुँचा।

    उनकी यादों को पहले स्वयं हमने भी नजर अंदाज किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि हमारी अनमोल विरासत हमसे दूर होती गयी और उनका अस्तित्व भी संकट में पड़ गया।

    भारत की विरासत ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बिखरी पड़ी है। जिन्हें संरक्षित सहेजना चुनौतीपूर्ण है। देश के ग्रामीण अंचलों में ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक विरासतों की भरमार है।

    इन विरासतों की सार संभाल के साथ इन्हें ग्रामीण पर्यटन से जोड़ दिया जाए तो ना केवल क्षेत्र का समुचित विकास हो सकेगा। इससे क्षेत्र की कायापलट हो सकती है।इससे एक तरफ जहाँ अमूल्य विरासत संरक्षित होगी वहाँ दो हाथों को रोजगार भी मिलेगा। लेकिन सरकारी उपेक्षा एवं उदासीनता की वजह से ग्रामीण अंचलों में फैले पुरातात्विक विरासत बिखरे हुए हैं, जिसे सहेजने की आवश्यकता है।

    नालंदा के चंडी अंचल में ऐसे ही कई अवशेष बिखरे हुए है, विरासत और अपने इतिहास से अंजान। सिर्फ यहाँ बौद्ध कालीन सभ्यता ही नहीं मुगलिया वंश के नायाब किस्से-कहानियाँ बिखरी पड़ी हुई है। जहाँ कभी गंगा-जमुना तहजीब की धारा बहती थी।

    चंडी अंचल में कई ऐसे गाँव हैं, जिनके नामों में ध्वन्यात्मक है। इन गाँवों के नामों का अंत ‘गढ़’ या ‘आमा’ शब्द से होता है। जहाँ ऐसा माना जाता है कि ऐसे गाँव में बौद्ध कालीन इतिहास समाहित है। जहाँ के खेतों, खलिहानों, तालाबों, टीलों, मंदिरों, ब्रह्म बाबा गोरैया स्थानों पर प्राचीन मूर्तियों तथा अवशेष विधमान है।

    चंडी प्रखंड में ‘गढ़’ से शुरू होने वाले गाँव तुलसीगढ,रूखाईगढ,माधोपुर गढ़, दयालपुर गढ़, हनुमान गढ़, के अलावा ‘आमा ‘नामधारी गाँव में सिरनामा, विरनामा, अरियामा, कोरनामा, आदि कई गांव हैं। जिनके बारे में कहा जाता है कि बौद्धकालीन, मौर्य, गुप्त और पाल वंश के शासन काल की झलक मिलती है।

    चंडी अंचल के रूखाई और तुलसीगढ में विशालकाय स्तूप संरचना नजर आती है।हालाँकि रूखाई गढ़ में पुरातत्व विभाग की खुदाई में कई सभ्यताओं के अवशेष मिले हैं।इसके अलावा इस गाँव के खेतों-खलियानों में बेशकीमती प्राचीन मूर्तियां बिखरी पड़ी हुई है। जहाँ कहीं भी कुदाल-फावडे पड़ते हैं, रूखाई की जमीन से कोई न कोई मूर्ति निकल ही जाती है।जबकि देखरेख और संरक्षण के अभाव में दर्जनों बेशकीमती मूर्ति या तो चोरी हो गई या फिर नष्ट हो गया।

    रूखाई में पुरातत्व विभाग ने 13 दिन तक दफन इतिहास को खोद कर निकालने का प्रयास किया।भगवान बुद्ध से लेकर, मौर्य वंश,शुंग,कुषाण, गुप्त, पालवंश एवं मुगल काल सभ्यताओं के अवशेष प्राप्त हुए।जिसकी कल्पना गाँव वालों ने भी नहीं किया था।यहाँ बौद्ध काल से पूर्व की एक समृद्ध नगरीय व्यवस्था थी।

    वर्ष 2009 में  इसी गाँव के आगे राजाबाद गाँव में एक सरकारी तालाब खुदाई के दौरान भी एक प्राचीन स्थापत्य कला के भग्नावशेष मिले थे। तालाब खुदाई के दौरान 21 फीट लंबा व 16 फुट चौड़ा चबूतरा मिला था। इसके अलावा लकड़ी का विशाल कालम तथा लकड़ी का एक विशाल खंभा भी मिला था।

    रूखाई गढ़ में वर्ष 2015 में खुदाई के दौरान कई महत्वपूर्ण अवशेष मिलें थें।उसके बाद इसी साल 28 फरवरी को एक तालाब की खुदाई के दौरान एक खंडित बौद्ध प्रतिमा मिली थी। साथ ही दीवारों के अवशेष भी मिले। वहीं 9 मई को फिर से तालाब खुदाई के दौरान एक बेशकीमती मूर्ति बरामद हुई। इससे पहले भी यदा -कदा खेतों की जुताई के दौरान भी मूर्ति निकल जाती है।

    इधर चंडी अंचल के तुलसीगढ में भी एक विशालकाय स्तूप संरचना है। जिसकी उंचाई 30-35 फीट है व व्यास लगभग 60मीटर है। इस टीले के बारे में किंवदंती है कि पहले लोग इस टीले के आसपास ही जीवन यापन करते थे। इस टीले के चारों ओर जलाशय था।यहाँ भी लगभग 400 वर्ष पूर्व की सभ्यता का पता चल सकता है।

    इसके अलावा चंडी अंचल के कई ऐसे गाँव हैं, जहाँ पर मुगलकालीन समय की झलक आज भी देखने को मिल जाता है।उस समय ‘जागीरदारी’ उन गाँवों में चलती थी। मुगलिया सल्तनत के कई ऐसे लोग बाहर से आकर चंडी के कई गाँव को अपना बसेरा बनाया। जिसका उदाहरण प्रखंड का माहो गाँव हैं। इसका प्राचीन नाम ‘मुस्तफापुर’ माना जाता है।

    इसके अलावा मोसिमपुर, इमामगंज, सालेपुर, विरनामा, लोदीपुर, अफजलबिगहा, ओली बिगहा, हब्बीबुलाचक जैसे गाँव इसके उदाहरण है। सिर्फ इतना ही नहीं ये गाँव गंगा-जमुनी तहजीब के मिसाल भी रहे हैं।

    इन गाँवों की अपनी ही कहानी हैं। लेकिन नयी पीढ़ी के लोग अपने ही विरासत से अंजान हैं।भागदौड़ की इस जिंदगी में उन्हें यह सोचने का साहस ही नहीं बचा।उम्र के हेर फेर में विरासत को भूल चुके हैं।

    कहने की जरूरत नहीं है कि अंचल में बिखरे ऐतिहासिक विरासत को संरक्षण की जरूरत है। लेकिन सरकार की लापरवाही और उदासीनता से अनमोल विरासत काल कवलित हो जा रही है।

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  • वेशक, नालंदा विश्वविद्यालय परिसर में ऐसा जल प्रबंधन एक चमत्कार है ! – Nalanda Darpan – गाँव-जेवार की बात।

    नालंदा दर्पण डेस्क। करीब साढ़े चार हजार लोग, पर भूगर्भीय जल की एक बूंद भी प्रयोग नहीं। इतना ही नहीं, डेढ़ वर्ष तक बारिश न हो, फिर भी यहां जल का कोई संकट नहीं होगा। यह नालंदा विश्वविद्यालय के जल प्रबंधन का चमत्कार है।

    Such water management of Veshak Nalanda University is a miracle 3पटना से लगभग सौ किलोमीटर दूर 456 एकड़ में बन रहे नालंदा विश्वविद्यालय परिसर के सौ एकड़ क्षेत्र में सिर्फ तालाब और वाटर स्टारेज प्लांट है। इनकी गहराई पांच मीटर तक है। इनमें 8.5 करोड़ लीटर पानी संरक्षित है। सौ एकड़ में 12 तालाब हैं।

    यहां भूगर्भ से एक बूंद जल नहीं लिया जाता है। विश्वविद्यालय के निर्माण कार्य में इस समय यहां करीब साढ़े तीन हजार श्रमिक आदि रह रहे हैं। छात्र-शिक्षकों की संख्या भी करीब एक हजार है। इस समय यहां 32 देशों के छात्र अध्ययन कर रहे हैं। पानी की सारी आपूर्ति तालाबों से होती है।

    यहां 20 लाख लीटर क्षमता का रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम है। परिसर में एक भी बोरिंग नहीं है। नहाने से लेकर भोजन पकाने व पीने तक में इसी पानी का प्रयोग किया जाता है।

    यहाँ एक व्यक्ति प्रतिदिन औसत 235 लीटर पानी खर्च करता है। विश्वविद्यालय में पानी को रिडायरेक्ट, रियूज, रिसाइकिल, रिनेटवर्किंग, इंटरकनेक्ट व लो फ्लो फिक्शर के माध्यम से प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के अनुपात में 100 लीटर तक की बचत कर ली जाती है। आवश्यकताओं को कम नहीं किया जाता है, बल्कि उसी पानी को पुन: व्यवहार में लाया जाता है।Such water management of Veshak Nalanda University is a miracle 2

    बेसिन व नहाने वाले पानी का प्रयोग फ्लश में किया जाता है। पानी में थोड़ी एयर मिक्स करके फ्लशिंग में भी पानी का खर्च कम करते हैं। एयर मिक्स करने से आधा लीटर पानी करीब एक लीटर पानी के बराबर काम करता है। प्रेशर के साथ पानी फैल जाता है, जिससे पानी व्यर्थ नहीं जाता।

    पानी को शुद्ध करने के लिए ट्रीटमेंट प्लांट और चैंबर के किनारे पौधे भी लगाए गए हैं। केला समेत अन्य 27 तरह के पौधे पानी को साफ करने में मदद करते हैं। पौधों की जड़ें पानी में घुले नाइट्रेट व फास्फेट को खींच लेती हैं।

    वाटर ट्रीटमेंट मशीन में भेजे जाने से पहले अधिक गंदे पानी को इन पौधों से गुजारा जाता है। इस तरीके से साफ हुए पानी का प्रयोग पौधों को सिंचित करने, परिसर में छिड़काव व फ्लश में किया जाता है। जहां तेजी से वाटर ट्रीटमेंट करना है, उसे मशीन में भेज दिया जाता है।

  • कबीना मंत्री श्रवण कुमार के बेन का बीरबल बिगहा प्रा. विद्यालय, जहाँ यूँ पेड़ के उपर-नीचे पढ़ते हैं मासूम बच्चें – Nalanda Darpan – गाँव-जेवार की बात।

    नालंदा दर्पण डेस्क। नालंदा विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित ग्रामीण विकास एवं संसदीय कार्य मंत्री श्रवण कुमार और उनके कुनबे के विकास आसमान छू रहा हो, लेकिन उस क्षेत्र में शिक्षा की हालत काफी दयनीय है।

    Cabinet Minister Shravan Kumars son Birbal Bigha Pvt. School where innocent children study up and down the tree 1प्राप्त जानकारी के अनुसार मंत्री का गृह प्रखंड बेन के एकसारा पंचायत के बीरबल विगहा गांव में प्राथमिक विद्यालय का भवन ही नहीं है।

    यहाँ मासूम बच्चे पेड़ के नीचे खुले आसमान के नीचे बैठ कर शिक्षा ग्रहण करने को विवश हैं। इन बच्चों को धूप और बरसात का भी सामना करना पडता है।

    स्कूल के प्रभारी अजय पटेल ने बताया कि इस स्कूल में 53 बच्चों का नामांकन है और मात्र एक शिक्षक है। स्कूल की भवन बनवाने के लिए कई बार विभाग से गुहार लगाया है, लेकिन अब तक कुछ नहीं हो सका है।

    ग्रामीण बेबी देवी ,नयनतारा देवी, रामाश्रय कुमार बार्ड पार्षद ब्रजेश कुमार आदि ने बताया कि स्कूल का जमीन उपलब्ध है। लेकिन भवन निर्माण को लेकर कोई भी सुनने को तैयार नहीं है। इसका खामियाजा मासूम बच्चों के साथ शिक्षक को भुगतना पड़ रहा है।

    हालत यह है कि यहाँ सरकारी स्तर पर सामुदायिक भवन भी नहीं बनवाया गया है। जिस भवन में बैठकर बच्चें पढ़ सके। मिड डे मिल भी यहाँ खुले में ही बनाए-खिलाए जाते हैं….

    Cabinet Minister Shravan Kumars son Birbal Bigha Pvt. School where innocent children study up and down the tree 5 Cabinet Minister Shravan Kumars son Birbal Bigha Pvt. School where innocent children study up and down the tree 4 Cabinet Minister Shravan Kumars son Birbal Bigha Pvt. School where innocent children study up and down the tree 3

    खबर का असरः बुल्ला बिगहा रा. प्रा. विद्यालय अब उ. म. विद्यालय अमिया से संबंद्ध

    सरकारी योजनाओं का जायजा लेने पहुंचे नालंदा डीएम से ग्रामीणों ने लगाई गुहार

    बाइक की डिक्की तोड़कर 1 लाख रुपए नगद समेत 18 लाख रुपए के जेवरात ले उड़े चोर

    चंडी के गौरी बिगहा गाँव में ग्रामीणों ने देसी कट्टा के साथ नशे में धुत 3 युवक को पकड़कर पुलिस को सौंपा

  • नालंदा विश्वविद्यालय से भी प्राचीन है तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय – Nalanda Darpan – गाँव-जेवार की बात।

    नालंदा दर्पण डेस्क। नालंदा की धरती ने पूरी दुनिया को अपने ज्ञान से आलोकित किया है। उदंतपुरी, तेल्हाड़ा, तथा नालंदा विश्वविद्यालय ये अकूत ज्ञान के पुंज रहे हैं।

    तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय 2यही कारण है कि यहां की मिट्टी का तिलक लगाकर लोग आज भी स्वयं को धन्य समझते हैं। तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय का अपना गौरवशाली इतिहास रहा। जिला मुख्यालय बिहारशरीफ से 35 किलोमीटर पश्चिम एनएच 33 पर स्थित इस विश्वविद्यालय का इतिहास नालंदा विश्वविद्यालय से भी पुराना माना जाता है।

    चीनी यात्री इत्सिग ने तेल्हाड़ा का भ्रमण किया था। अपने यात्रा वृतांत में उन्होंने तेल्हाड़ा की विशालता का जिक्र करते हुए लिखा है कि यह शिक्षा का बड़ा केन्द्र रहा। जहां लोग रिसर्च को यहां आते थे। यहां तीन बड़े टेंपल तथा मठ थे, जो तांबे जड़ित थे। इन मंदिरों में टंगी घंटियां हवा के झोंकों के साथ झंकृत होती थी, जो अद्भुत था।

    तेल्हाड़ा की खुदाई से मिले अवशेषों के आधार पर कहा जा सकता है कि तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय से भी पुराना रहा है। तेल्हाड़ा के विभिन्न स्थलों की खुदाई से यहां पर तिलाधक महाविहार के अवशेष होने की जानकारी प्राप्त हुई है।

    ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा वृतांत में महाविहार की स्थापना बिम्बिसार के वंशजों के द्वारा किया जाना बताया है।

    पुरातत्वविदों ने तेल्हाड़ा में अपनी खुदाई अभियान में उस ईंट को भी खोज निकाला है, जिसे इस प्राचीन विश्वविद्यालय की नींव के रूप में इस्तेमाल किया गया था। इस ईंट की साइज लंबाई में 42 चौड़ाई में 32 और ऊंचाई में 6 सेंटीमीटर है।

    ईंट के इस आकार से पहली शताब्दी के कुषाण काल के प्रभाव का खुलासा होता है। खुदाई स्थल एक बहुत बड़े टीले के रूप में था।

    तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय 1

    मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर वर्ष 2009 में खुदाई किया गया तो कई रहस्य खुलकर सामने आए। इसकी खुदाई के वक्त हीरे-जवाहरात एवं सोने के कई सिक्के भी मिले थे।

    इस खंडहर की बनावट भी बिल्कुल अलग थी। इसके अंदर से कंकाल भी मिले हैं । इस जगह का उल्लेख आईन-ए-अकबरी में तिलदाह के रूप में भी किया गया है।

    संरक्षण के अभाव में नष्ट हो रहा धरोहर अपने अंदर ज्ञान का भंडार समेटे इस भग्नावशेष का सही तरीके से संरक्षण नही होने के कारण, यह नष्ट होता जा रहा है।

    हालांकि, बिहार सरकार ने इस स्थल को राजकीय धरोहर की सूची में रखा है। इसके बावजूद इसके दीवारों का गिरना विभाग की कार्यप्रणाली पर बड़ा प्रश्न चिन्ह है। इस स्थल की खुदाई के 10 साल से अधिक हो गए हैं, लेकिन आज तक खुदाई रिपोर्ट प्रकाशित नहीं कर सकी।

  • पिछले पांच सालों में लूटकांड का पर्याय बना रहा राजगीर नगर परिषद ! – Nalanda Darpan – गाँव-जेवार की बात।

    नालंदा दर्पण डेस्क। राजगीर नगर परिषद बोर्ड का गठन वर्ष 2017 के 9 जून को हुआ था। बोर्ड के पूरे पांच साल बीत जाने पर जब पूरे कार्यकाल का मूल्यांकन किया जाय तो पता चलता है कि पूरे पांच साल के काले कारनामों से लगातार बदनामी का दंश ही इस नगर परिषद कार्यालय को देखना पड़ा है।

    Rajgir Municipal Council remained synonymous with loot in the last five years 1जून 2017 के बोर्ड गठन के साथ ही नगर परिषद के बोर्ड बैठक में अलोकतांत्रिक फैसला लेते हुए महत्त्वपूर्ण संचिका को  नगर परिषद उपाध्यक्ष के पास पहले भेजने का प्रस्ताव पारित किया गया।

    जाहिर है कि ऐसा करके अध्यक्ष को पूरे पांच साल के लिए रिमोट से कंट्रोल करने का प्रयास किया गया। बोर्ड की अध्यक्ष बनी उर्मिला चौधरी को लॉकडाउन की अवधि में ही पद से हटा दिया गया, जिसपर अध्यक्ष ने विभागों में शिकायत दर्ज कराई की उन पर अवैध निकासी का दबाव बनाया जा रहा था।

    इन पांच सालों के कार्यकाल में सबसे बड़ा लूटकांड का आरोप मलमास मेला 2018 के आयोजन पर लगा, जिसमे टेंट पंडाल के नाम पर कुल 3,23,341,96 (तीन करोड़ तेईस लाख चौंतीस हजार एक सौ छियानवे) लाख रुपए की निकासी की गई, जबकि बाढ़ डेकोरेटर नाम की यही कंपनी वर्ष 2015 में लगभग पचास साठ लाख में ही टेंट पंडाल का पूरा काम किया था।ऐसे में मेला के नाम पर अवैध निकासी ने नगर परिषद के काले कारनामों पर जनता की नजरो में मुहर लगा दी।

    खरीददारी के मामले में तो नगर परिषद की सशक्त कमिटी ने जमकर खरीदारी की।लगभग छः करोड़ से अधिक के वाहन, जेटिंग मशीन, सुपर शकर मशीन, लोडर,हैंड कार्ट, ट्रैक्टर, ट्राई साइकिल आदि की खरीददारी बाजार मूल्य से अधिक कीमत पर खरीदे गए।

    पांच सालों के कार्यकाल में नगर परिषद ने कई लोगो को जलापूर्ति योजना में बिना कार्य किए वेतन भी देकर काफी लोकप्रियता हासिल की है। सूत्रों के अनुसार जनप्रतिनिधियों के खासम खास समर्थको को ही इसका लाभ मिलता है।

    Rajgir Municipal Council remained synonymous with loot in the last five years2राजगीर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट में अयोग्य लोगो को बहाली से यह प्लांट अब गंदगी बदबू देने लगा है। जनप्रतिनिधि और नगर परिषद में कार्यरत कर्मियों के द्वारा अपने परिवार की बहाली कर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट को बर्बाद होने के लिए छोड़ दिया गया है। अतिक्रमण के नाम पर गरीबों को हमेशा उजाड़ने वाली नगर परिषद बड़े बड़े अतिक्रमण को संरक्षण भी देने का कार्य की है।

    यही नहीं भले ही लॉक डाउन में किसी की होल्डिंग टैक्स माफ नही हुई हो, लेकिन नगर परिषद अपने खास लोगो के एक साल का वाहन पार्किंग जरूर माफ कर देती हैं।ऐसा पहली बार हुआ है कि नगर परिषद द्वारा जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र बनाने पर होल्डिंग टैक्स की वसूली करती है।

    इन पांच सालों के कार्यकाल ने नगर परिषद क्षेत्र में निर्माण कार्य में भी अभी तक का सबसे खराब कार्य देखा है। शहर में नाली,सड़क आदि की योजना बंदरबाट की भेंट चढ़ कर बर्बाद दिखती नजर आती है। शहर के संवेदकों पर कमीशन लेने का दबाव ही शहर की योजनाओं को बर्बाद कर डाला है।

    इन सबके बीच नगर परिषद की लापरवाह व्यवस्था से नागरिक सुविधाएं शून्य के बराबर हैं।जल संकट से जूझ रहे राजगीर के लोग त्राहिमाम कर रहे लेकिन नगर परिषद का भ्रष्ट सिस्टम कान में रुई डालकर सोया हुआ है।

    जल जीवन हरियाली के नाम पर मृत कुंए को डेटिंग पेंटिंग कर पैसे की निकासी हुई लेकिन वैतरणी नदी की सुध लेने को कोई तैयार नहीं हुआ। वोट बैंक की राजनीति के तहत लेदुआ पुल के पास तो नदी में ही मकान और नदी में ही रास्ता बनवा दिया गया, जिससे भविष्य में वैतरणी नदी की जलधारा अनेकों स्थान पर पहुंचने से वंचित रहेगी। पंडितपुर तालाब और लेनीन नगर तालाब का जिर्णोदार कराने में भी नगर परिषद लापरवाह साबित हुई।

    पांच साल के कार्यकाल ने ऐसे अनेकानेक कुकृत्यो की वजह से ही नगर परिषद काफी बदनाम हो गई है। बिना कार्य किए राशि की निकासी, अवैध निकासी, टेंडर घोटाला, विभागीय कार्य में अनियमित्तता आदि ने नगर परिषद को लूटकांड का पर्याय बना दिया है।

  • इतिहास के पन्नों में सिमटी ज्ञानशाला उदंतपुरी के अवशेष – Nalanda Darpan – गाँव-जेवार की बात।

    नालंदा दर्पण डेस्क। नालंदा जिले के कण-कण में इतिहास दबा है। यहां की धरा अद्भुत व निराली है। जिसके गर्भ में न जाने कितने इतिहास छिपे हैं। कभी बिहार शरीफ शहर उंदतपुरी के नाम से जाना जाता था, जो ज्ञान का विशाल व बेमिशाल कुंज था।

    The remains of Gyanshala Udantpuri shrunk in the pages of history 2सन् 730-740 ई. में पाल वंश के संस्थापक गोपाल ने इस विश्वविद्यालय की बुनियाद रखी थी। विश्वविद्यालय का बड़ा क्षेत्रफल था। बाद के शासकों ने अनुदान देकर शिक्षा के इस कुंज को सिचित करने का काम किया।

    हालांकि इस विश्वविद्यालय के संदर्भ में इतिहासकारों के बीच बड़ा विभेद है। इस विश्वविद्यालय के केन्द्र तक की अब तक स्पष्ट जानकारी नहीं है। कुछ गढ़पर को तो कोई बड़ी पहाड़ी को उदंतपुरी का केंद्र मानते हैं।

    The remains of Gyanshala Udantpuri shrunk in the pages of history 3कई बार विदेशों से अध्ययन को यहां टीम आई है। लेकिन हर बार निराशा साथ ले गई। टीम की मांग रही कि सरकार को इस अवशेष को आर्कोलाजिकल विभाग को सौंप देना चाहिए, ताकि इतिहास जीवित रह सके।

    सच कहा जाए तो सरकार की अनदेखी का ही परिणाम है कि आज उंदतपुरी इतिहास के पन्नों तक सिमट कर रह गया।

    इतिहासकार बताते हैं कि उदंतपुरी तथा नालंदा विश्वविद्यालय का स्थापना काल समान रहा, लेकिन दोनों विश्वविद्यालयों में बौद्ध धर्म के अलग-अलग मत के मानने वाले लोग थे।

    The remains of Gyanshala Udantpuri shrunk in the pages of history 1

    तिब्बती रिकार्ड के अनुसार यहां भी छात्रों की संख्या दस हजार से अधिक थी। शिक्षा के क्षेत्र में इसकी बढ़ती हुई ख्याति के कारण बख्तियार खिलजी ने 1197 ई. में इसे अपना शिकार बनाया और बड़ी संख्या में बौद्ध भिक्षुओं को मौत के घाट उतार दिया।

    जानकारों के मुताबिक उदंतपुरी ज्ञान की शाला थी। जिसने 7वीं शताब्दी में अपने ज्ञान से पुरी दुनिया को आलोकित किया।

    हालांकि इस विश्वविद्यालय के बारे में काफी कन्ट्राडिक्शन है। पांच सौ के करीब बौद्ध भिक्षुओं के रहने खाने-पीने की यहां व्यवस्था थी। चारों तरफ हरियाली तथा बहती हुई नदी यहां की शान थी।

    कई इतिहासकार तथा पुरातत्ववेता यहां आए, लेकिन मायूसी लेकर गएं क्योंकि उदंतपुरी के टीले पर एक बड़ी आबादी निवास करती है। जिसे दूसरे जगह निर्वासित किया जाना सरकार के बूते के बाहर है।