Category: ज़रा सोचिए

  • मिशन 2024 की सफलता के लिए नीतीश को अपनी छवि बनाए रखनी होगी

    मिशन 2024 की सफलता बिहार के कानून व्यवस्था की स्थिति पर निर्भर करेगा ।
    —–बेगूसराय की घटना सरकार के साख पर सवाल है—–

    बेगूसराय फायरिंग मामले की जांच के दौरान बिहार पुलिस मेंं प्रोफेशनलिज्म की कमी साफ देखने को मिला,ऐसे में मेरे जैसे व्यक्ति के लिए जो बिहार की पुलिसिंग पर खास नजर रखती है बेहद चिंता का विषय है।इस घटना के जांच के दौरान पुलिस की जो प्रवृत्ति देखी गयी है उससे आने वाले समय में अब हर घटना को जाति के चश्मे से देखने की प्रवृत्ति बढ़ेगी और इसका प्रभाव राज्य के कानून व्यवस्था पर पड़ेगा यह तय है।

    बेगूसराय फायरिंग मामले मेंं गिरफ्तार अपराधियों के खिलाफ साक्ष्य है लेकिन उस साक्ष्य को लेकर जिस स्तर तक पुलिस को काम करने कि जरुरत थी उसमें साफ कमी देखने को मिल रही है और इसका असर यह हुआ कि पुलिस बेगुनाह लोगों को जेल भेज दिया है ऐसी बात चर्चा में आनी शुरु हो गयी है और इस घटना में जो अपराधी शामिल है उसको पुलिस बचा रही है।

    घटना 13 तारीख के शाम की है बेगूसराय पुलिस का हाल यह था कि 24 घंटे तक वो अंधेरे में ही तीर चला रहा था ,14 तारीख की शाम को पुलिस ने दो तस्वीर जारी किया और कहा कि यही वो चार अपराधी जो दो मोटरसाइकिल पर सवार होकर इस घटना को अंजाम दिया है। इतने महत्वपूर्ण केस में 15 तारीख की शाम मीडिया में खबर आने लगी कि इस कांड में शामिल अपराधी पकड़े गये और इस घटना में शामिल अपराधियों का नाम क्या है यह भी मीडिया में चलने लगा जबकि उस समय तक सभी कि गिरफ्तारी भी नहीं हुई थी उन अपराधियों का नाम कैसे बाहर आ गया बड़ा सवाल है।

    फिर 16 तारीख के अहले सुबह बेगूसराय पुलिस के इनपुट पर झाझा रेलवे स्टेशन पर तैनात जीआरपी ने केशव उर्फ नागा को पकड़ा जो इस मामले की सबसे बड़ी गिरफ्तारी थी क्यों कि उससे पूछताछ के दौरान इस घटना के पीछे का खेल सामने आ सकता था लेकिन हुआ क्या जीआरपी थाना के प्रभारी फोटो खिंचवा कर 5 बजे सुबह में ही मीडिया को तस्वीर के साथ उसके गिरफ्तारी को सार्वजनिक कर दिया और मीडिया को फोनिंग देने लगा इसका असर यह हुआ कि 10 बजे नागा गैंग से जुड़े लोग बिहट चौक पर स्थित कुणाल लाइन होटल के सीसीटीव का फुटेज जारी कर बेगूसराय पुलिस की पूरी कार्रवाई पर ही सवाल खड़ा कर दिया।

    देखिए जिसको पुलिस सूटर बता रही है वो घटना के समय लाइन होटल पर बैठा हुआ है जैसे ही यह खबर मीडिया में आयी बेगूसराय पुलिस सकते में आ गया और फिर पूछताछ छोड़ कर कितनी जल्दी इसको जेल भेजा जाए इस पर काम करना शुरू कर दिया ।

    इसका असर यह हुआ कि केस का पूरी तौर पर खुलासा नहीं हो पाया बहुत सारी बाते सामने नहीं आ सकी और इस वजह से एसपी के सामने प्रेस रिलीज पढ़ने के अलावे को दूसरा चारा नहीं था । क्यों कि उनके पास क्रॉस क्यूसचन का जवाब नहीं था यही स्थिति एडीजीपी मुख्यालय का रहा मीडिया वाले सवाल करते रहे गिरफ्तार अपराधियों में गोली चलाने वाला कौन था नाम तक बताने कि स्थिति में वो नहीं थे ,केशव उर्फ नागा के होटल में बैठे होने कि बात सीसीटीवी में कैद होने पर सवाल किया गया तो कहां गया ये सब घटना की साजिश में शामिल थे, साजिश क्या है तो यह अनुसंधान का मसला है इस तरह से सवाल जवाब ने पुलिस के कार्रवाई को और भी संदेह के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया और सुशील मोदी और गिरिराज सिंह जैसे नेताओं को इस मामले की सीबीआई और एनआईए से जांच की मांग करने का मौका मिल गया।

    इतने संवेदनशील मामले में इससे पहले कभी भी इस तरह की बाते देखने को नहीं मिली है पुलिस वाले सूचना लीक कर रहे थे और झाझा जीआरपी ने तो हद कर दी तस्वीर तक जारी कर दिया जो दिखाता है कि बिहार पुलिस की कार्य प्रणाली पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है।

    याद करिए 1995 से 2005 का दौर राज्य में जो भी आपराधिक घटना घटित होता था सरकार उसको जाति से जोड़ देता था इस वजह से बिहार की पुलिसिंग धीरे धीरे कमजोर होती चली गयी वही सरकार के इस प्रवृत्ति का लाभ उठाते हुए अपराधियों ने भी अपने अपराध को छुपाने के लिए पुलिस की कार्रवाई से बचने के लिए जाति से जोड़ना शुरू कर दिया और धीरे धीरे पूरी व्यवस्था जाति के आधार पर एक दूसरे के साथ खड़े होने लगी और उसी का असर था कि बिहार की कानून व्यवस्था पटरी से उतर गया।

    नीतीश कुमार इसी व्यवस्था पर चोट करके राज्य में कानून का राज्य स्थापित करने में कामयाब रहे थे लेकिन पहली बार वो किसी घटना को जातिवादी आधार से जोड़ते हुए बयान दिया और इसका असर बेगूसराय फायरिंग मामले में पुलिस के कार्यशैली पर साफ दिखाई दिया है।

    हालांकि इसके लिए सिर्फ लालू प्रसाद या नीतीश कुमार ही जिम्मेवार नहीं है सुशील मोदी और गिरिराज सिंह जैसे नेता के साथ साथ यहां के सवर्णवादी मानसिकता वाले जो लोग है वो भी कम जिम्मेदार नहीं है क्योंकि उनको भी इसी तरह की राजनीति सूट करता है ।

    बेगूसराय की घटना पूरी तरह से अपराधिक घटना है और सरकार या फिर किसी जिले में एसपी बदलने के बाद अपराधियों की यह प्रवृत्ति रही है कि इस तरह की घटना करके वह देखना चाहता है कि सरकार और पुलिस प्रशासन की सोच क्या है ।
    याद करिए नीतीश कुमार 2005 में जब सत्ता में आये थे तो शुरुआती एक वर्ष तक किस तरीके से अपराधी सरकार को लगातार चुनौती दे रहे थे लेकिन जैसे ही अपराधियों को यह समझ में आ गया कि सरकार,कोर्ट और सत्ता में बैठे अपनी जाति वाले अधिकारियों से अब मदद मिलने वाली नहीं है स्थिति धीरे धीरे सुधरने लगी।

    लेकिन बेगूसराय की घटना के बाद अपराधी और असामाजिक तत्व एक बार फिर से सिस्टम में बैठे अधिकारियों और नेताओं पर दबाव बनाना शुरु कर सकते हैं इस उदाहरण के साथ की मेरे साथ जाति के आधार पर भेदभाव हो रहा है हालांकि इस सोच को कितना बल मिलेगा यह कहना मुश्किल है लेकिन इन नेताओं की यही कोशिश होगी कि इस आधार पर समाज को बांटा जाये।

  • सफेद हीरे की लूट की काली कहानी

    चलिए आज हम आपको बताते है सफेद हीरे की लूट की कहानी।
    चौकिए मत बिहार में झारखंड के अलग होने के बाद भले ही काले हीरे की लूट बंद हो गयी लेकिन सफेद हीरे की लूट बदस्तूर जारी है ।
    क्या है सफेद हीरे की लूट की कहानी देखिए हमारी खास रिपोर्ट :-

    कब तक हम लोग बुनियादी सवालों से मुख मोड़ते रहेंगे पिछले कई दिनों से यूरिया खाद को लेकर बिहार के किसान परेशान है सुबह तीन बजे लाइन में खड़े हो जाते हैं इस उम्मीद से कि एक बोरा भी यूरिया मिल जाये यह कहानी किसी एक जिले का नहीं है यह पूरे बिहार का मसला है और यह कोई इसी वर्ष का मसला नहीं है हर वर्ष जब किसान को धान और गेहूं के लिए यूरिया की जरूरत महसूस होती है तो कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है ।

    हम मीडिया वाले भी इस खबर को बस रूटीन खबर मानते हुए जब तक हंगामा चलता रहता है खबर किसी बुलेटिन में चला कर अपनी जिम्मेवारी से मुक्त हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ अखबार वाले भी करते हैं और कही किसी पेज पर छोटी सी तस्वीर के साथ खबर लगाकर गंगा स्नान कर लेते हैं।



    लेकिन यह समस्या क्यों है इस पर कभी उस तरीके से ध्यान नहीं दिये संयोग से खाद को लेकर बिहार के अलग अलग हिस्सों में हो रहे हंगामे की खबर पर बिहार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल का एक बयान आया कि सरकार फेल है दुकानदार किसान को एक बोरा खाद लेने के लिए छाता और मछरदानी खरीदने का शर्त लगा रहा है केन्द्र सरकार की और से बिहार को प्रयाप्त खाद दी गयी है फिर भी खाद के लिए किसान परेशान है कालाबाजारी हो रहा है और हजार रुपया में एक बोरा खाद लेने को मजबूर है किसान।

    बीजेपी नीतीश कुमार के साथ 2005 से लेकर 2022 (चार वर्ष छोड़कर)तक सरकार में साथ रही है सुशील मोदी से लेकर बीजेपी के तमाम बड़े नेता नैनो यूरिया लाने को बड़ी उपलब्धि मानते हुए बड़ी बड़ी बातें करते रहे हैं बरौनी में खाद कारखाना खोलने का श्रेय बीजेपी ले ही रही है तो फिर खाद किसानों को मिल क्यों नहीं रहा है ।

    मेरे लिए ये बड़ा सवाल था क्यों कि मेरे गांव के जो छोटे छोटे किसान हैं वो कल भी यूरिया के लिए मुझे फोन कर रहे थे हालांकि इस तरह का फोन गेहूं और धान के हर सीजन में आता है और ये कोई पहली बार नहीं आया था ।

    #स्वराज पर मैंने ये पूरी खबर पोस्ट करते हुए बीजेपी से भी सवाल किया कि सरकार से निकले जुम्मे जुम्मे एक माह भी नहीं हुआ है और आप सरकार से सवाल कर रहे हैं ये कोई इस बार की तो समस्या तो है नहीं । पता नहीं कैसे #स्वराज के इस खबर पर कृषि मंत्री सुधाकर सिंह की नजर पड़ गयी और उन्होंने मिलने की इच्छा व्यक्त की निर्धारित समय पर मैं पहुंच गया लेकिन मंत्री जी को आने में थोड़ा वक्त लगा, लेकिन आने के साथ ही करीब चार घंटे का समय उन्होंने मुझे दिया और इस दौरान बिहार में खाद के नाम पर हो रहे खेल को समझने का मौका मिला जहां कहीं भी लगता था ये क्या है और सवाल करते तो मंत्री जी मुझसे आग्रह करते थे कि यह सच जनता के सामने आना चाहिए।



    अब जरा सफेद सोना के इस लूट को आप भी समझिए यूरिया के उठाव और वितरण की पूरी प्रक्रिया क्या है पहले ये समझिए। बिहार में धान का कटोरा रोहतास से आरा तक माना जाता है जहां सोन नहर के कारण धान की जबरदस्त खेती होती है और बात उत्तर बिहार की करे तो बड़े स्तर पूर्वी और पश्चिमी चंपारण के साथ साथ दरभंगा और मधुबनी है जहां धान मुख्य फसल है।

    लेकिन यूरिया की आपूर्ति मांग के अनुरूप 90 प्रतिशत से अधिक कटिहार ,जमुई ,किशनगंज, सहरसा ,सुपौल,मधेपुरा और पूर्णिया जिले को अभी तक मिल चुका है इतना ही नहीं जिन जिलों में मौसम विभाग का डाटा है कि बरसात सबसे कब हुई है और पूरे जिले में सुखाड़ की स्थिति उत्पन्न हो गयी है और कृषि विभाग मान रही है कि यहां 10 से 15 प्रतिशत ही धान की खेती हुई है उन जिलों में भी मांग के अनुसार 60 से 70 प्रतिशत यूरिया किसानों के बीच वितरण चुका है वहीं भोजपुर,बक्सर ,रोहतास और कैमूर को मांग के अनुरूप मात्र 50 प्रतिशत यूरिया ही मुहैया कराया गया है ।

    यही स्थिति उत्तर बिहार के धान वाले इलाके की है दरभंगा और मधुबनी को भी मांग के अनुरूप 54 से 56 प्रतिशत ही यूरिया मुहैया कराया गया है। डाटा देख कर मैं हैरान रह और मंत्री जी से मैंने सवाल किया ये क्या खेल है नेपाल और बांग्लादेश से सटे बॉर्डर वाले जिलों में सबसे ज्यादा खाद की आपूर्ति हो रही है जबकि यहां उस तरह के खेती का इलाका भी नहीं है ।संतोष जी ये डाटा मेरा नहीं है पूर्व मंत्री जी के कार्यकाल का है बस इस डाटा के सहारे आप खेल को समझ सकते हैं ।

    मतलब इस सफेद सोना के खेल में ऊपर से नीचे तक सबके सब शामिल है नेपाल और बांग्लादेश में यूरिया की कीमत 1200 से 1500 सौ रुपया प्रति बोरा है और अपने यहां 250 से 300 रुपया के बीच है ,अब आप समझ सकते हैं कि बिहार की यूरिया से कहां का धान और गेहूं लहलहा रहा है।

    बात यहीं खत्म नहीं होती है बिहार में यूरिया जो भारत सरकार के कारखाने से चलती है उसके रैक प्वाइंट की सूची जहां खाद रखा जाता है इस सूची को देखकर आप हैरान रह जायेंगे।



    खाद कंपनी धान वाले इलाकों में स्थित रैक प्वाइंट पर रैक कम भेज रहा है और उन इलाकों में ज्यादा भेज रहा है जहां धान की खेती कम होती लेकिन वो नेपाल और बांग्लादेश के बॉर्डर के करीब है। जैसे जैसे मैं इस खबर पर बढ़ रहा था तो मुझे लगा कहां हम लोग एक मरे दो घायल और पांच करोड़ कैश के साथ इंनजियर पकड़े जाने वाली खबर के चक्कर में पड़े रहते हैं यहां तो एक सीजन में बैठे बिठाए 10 हजार करोड़ का खेल एक माह में हो जा रहा है ।

    ये है भ्रष्टाचार का संस्थागत खेल जहां बस यू ही चलता रहता है किसान और गरीबी मिटाने के नाम पर और हम लोग बात करते रहते हैं थाना वाला चोर है,सीओ चोर है, ब्लांक और थाने में भ्रष्टाचार चरम पर है ।