Category: दीपावली

  • दीपदान उत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।

    बिहारशरीफ के राहुई प्रखंड के गांव पचासा,मोड़ा,अमरपुर में महात्मा गौतम बुद्ध एवं डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के चित्र पर माल्यार्पण करते हुए दीप जलाकर एवं लोगों के बीच मिठाई बांटकर दीपदान उत्सव डॉक्टर भीमराव अंबेडकर संघर्ष विचार मंच के तत्वधान में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। झूठ/असत्य/ अन्याय के जितने विरोधी हैं उससे लाखों गुना सत्य/ न्याय की विरोधी इस देश में है जो इस महान देश के लिए अभिशाप बन चुके हैं हमारा मार्ग सत्य/ न्याय का है किसी की झूठी भावनाओं का बोझ उठाकर देश के साथ गद्दारी नहीं कर सकता। ये उपयुक्त युक्ति दीपदान उत्सव में रामदेव चौधरी ने कही।इस मौके पर राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल पासवान ने कहा कि दीपदान उत्सव सर्वप्रथम 17 साल गृह त्याग के बाद सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बनने के बाद कपिलवस्तु लौटे थे उनके पिता राजा शुद्धोधन ने अपने प्रजा से कहे की हमारे पुत्र सिद्धार्थ के लौटने से पूरे नगरवासी खुशी में मेवा मिष्ठान बनाकर अपने अपने घरों में दीप जलाकर दीपदान उत्सव मनाए।दीपदान उत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।

    उनके पिता जान गए थे की हमारा पुत्र सिद्धार्थ नहीं रह गया वह दुनिया के लिए सिद्धार्थ से महात्मा बुध्द बन गया है जो दुनिया को प्रकाशित करेगा।इस मौके पर प्रदेश उपाध्यक्ष रामदेव चौधरी ने कहा कि कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक बौद्ध बन गए थे और उन्होंने पूरे जम्मू दीप में 84000 धम्म बनाए थे जब उनको पता चला कि भगवान गौतम बुद्ध को 17 साल बाद लौटे गृह कपिलवस्तु के नगर वासी ने दीपदान उत्सव मनाए थे तब उन्होंने कार्तिक अमावस्या के दिन सम्राट अशोक ने 260 ईसा पूर्व दीपदान उत्सव पूरे जम्मू द्वीप में मनाने के आदेश दिए उस समय भारत पाटलिपुत्र से लेकर बर्मा श्रीलंका आफिगिस्तान भूटान नेपाल देश तक फैला था और जम्मू दीप से जाना जाता था तथा पूरे जम्मू द्वीप में दीपदान उत्सव बनाए गए स्कूल कॉलेज बनाए गए जानवर के लिए अस्पताल बनाएं दीपदान करना अर्थात प्रकाश को दान करना ज्ञान को दान करना दीपावली का मूल नाम दीपदान उत्सव है बाद में पुष्यमित्र शुंग ने मौर्य वंश के अंतिम शासक राजा बृहदत्त मौर्य की हत्या कर वैदिक धर्म की स्थापना की जिसने दीपदान उत्सव को बदलकर दीपावली के नाम से नवाजा जो आज तक चल रहा है। दीपावली मूल निवासियों का पर्व नहीं है

    दीपदान उत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।

    मूल निवासियों का दीपदान उत्सव है जो भगवान बुध्द के अपने गृह कपिलवस्तु के लौटने के क्रम में वहां के नगरवासी अपने घरों को दीपों से सजा कर दीपदान उत्सव मनाए थे।इस अवसर पर अति पिछड़ा दलित संघर्ष मोर्चा के संस्थापक बलराम दास ने कहा कि आओ आज से हम लोग मूल निवासी संकल्प लें की दीपावली के जगह पर दीपदान उत्सव मनाए।इस मौके पर जिला के महासचिव महेंद्र प्रसाद जिला उपाध्यक्ष लालती देवी उपाध्यक्ष नंदलाल दास सचिव संटू पासवान सुशील कुमार शिव शंकर दास शशिकांत जी शर्मिला देवी उषा देवी श्रीदेवी विजय दास जन रविदास आदि लोग उपस्थित थे।

  • दीपावली महज धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि अपने पुरखों को याद करने का पर्व है

     राकेश बिहारी शर्मा – भारत देश में अनेक प्रकार के त्यौहार मनाये जाते है लेकिन उन सभी त्योहारों में सबसे बड़ा त्यौहार दीपावली या दिवाली का त्यौहार है। यह कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाती है। दीवाली अपने आगे पीछे कई त्योहारों को लेकर आती है। यह त्यौहार प्रत्येक वर्ष बड़ी धूमधाम से भारत में मनाया जाता है। दीपावली का अर्थ होता है ”दीप” और ”आवली” अर्थात यह दो शब्दों से मिलकर बना है। दीपावली के यह दोनों शब्द संस्कृत भाषा के शब्द है, जिसका मतलब होता है दीपों की श्रृंखला, दीपों की पंक्ति। दीपावली भारत देश के सभी सनातनी नागरिकों का खुशियों का त्यौहार है, दीपावली के शुभ अवसर पर प्रत्येक सनातनी घरों में भगवान गणेश और लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। भारत देश के निवासी दिवाली के त्यौहार को किसी अन्य देश में रहने पर भी बड़े धूमधाम से मनाते है। दिवाली को भारत में दो दिन मनाया जाता है।

    दीपावली महज धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि अपने पुरखों को याद करने का पर्व है

    दीपावली क्यों मनाई जाती है- दीपावली पर्व का सम्बन्ध कई पौराणिक, ऐतिहासिक गाथाओं से है। पौराणिक कथा के अनुसार जब राजा बलि ने अन्य देवताओं के साथ-साथ लक्ष्मीजी को भी बंदी बना लिया था, तब भगवान् विष्णु ने वामन का रूप धारण कर इसी दिन लक्ष्मीजी को छुड़वाया था। नरकासुर इसी दिन मारा गया था। लंकापति रावण को मारकर जब भगवान् राम 14 वर्षों के वनवास की अवधि पूरी कर लक्ष्मणजी, सीताजी सहित अयोध्यापुरी पहुंचे थे, तब अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था। इसी दिन राज्याभिषेक होने पर अयोध्यावासियों ने दीपकोत्सव मनाकर रामजी का अभिनन्दन किया था सरस्वती और स्वामी रामतीर्थ ने अपने पवित्र शरीर का त्याग किया और सहस्त्रों मनुष्यों को ज्ञान का प्रकाश दिया। आज से लगभग ढाई हजार पूर्व में पावापुरी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया था। उस अंधेरी रात में सुर, मनुष्य, नाग, गन्धर्व ने रत्नों के दीपक जलाये। इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में बुद्ध के प्रमुख शिष्य इन्द्राभूति गौतम ने ज्ञान लक्ष्मी प्राप्त की थी। दीपावली पर्व वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि दीपक के प्रकाश से वातावरण की वायु शुद्ध हो जाती है। वर्षा के प्रभाव से बीमारी फैलाने वाले कीटाणु, कीट-पतंगे जलकर मर जाते हैं।

    दीपावली में किसकी पूजा की जाती है – दीपावली के शुभ अवसर में सनातनी कैलेंडर के अनुसार सूर्यास्त होने के पश्चात भगवान् गणेश और माता लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। यह पूजा धन की प्राप्ति और स्वस्थ जीवन के लिए की जाती है लक्ष्मी जी के आवागमन के लिए उस दिन घरों में रंगोली भी बनाई जाती है और लक्ष्मी जी की पूजा के लिए लक्ष्मी आरती की जाती है भगवान गणेश की पूजा करने के लिए गणेश आरती की जाती है। दीपावली त्यौहार देश में बच्चे और बड़े सभी लोगो का पसंदीदा त्यौहार है। दीपावली के बाद और उससे पहले अन्य प्रकार के त्यौहार भी भारत में मनाये जाते है। दीपावली अपने आगे पीछे कई त्योहारों को लेकर आती है।

    दीपावली महज धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि अपने पुरखों को याद करने का पर्व है

    दीपावली या लक्ष्मी पूजा – दीपावली में लक्ष्मी के साथ गणेशजी के पूजन का विधान इसलिए किया गया, क्योंकि केवल लक्ष्मी का आगमन मनुष्य को कुमार्ग पर भी ले जा सकता है। गणेशजी बुद्धि के देवता हैं। धन को बुद्धिपूर्वक उपयोग करने की प्रेरणा गणेशजी ही देते हैं। अतः दोनों को साथ-साथ पूजा जाता है। गणेशजी पार्वती माँ के पुत्र हैं तथा रामायण के अनुसार लक्ष्मीजी विष्णु पत्नी भगवान् श्रीराम का लंका विजय के पश्चात् अयोध्या में आगमन भी इसी दिन हुआ था। दीपावली के लिए तो साज-सज्जा पहले ही थी। भगवान् राम के स्वागत में तोपों की सलामी की तरह पटाखे चलाने की रीति और जुड़ गई। इस प्रकार दीपमाला सजाने तथा पटाखे छोड़कर स्वागत करने की परंपरा चलती आ रही है। इसी दिन महावीर स्वामी (जैन मत) तथा स्वामी दयानंदजी का निर्वाण दिवस भी मनाया जाता है। गुरुनानकजी का मुक्ति दिवस भी इसी दिन है। अतः समस्त सनातनी या हिंदू समाज इस पर्व को आनंदपूर्वक मनाता है।

    गोवर्धन पूजा (अन्नकूट ) – दीपावली के अगले दिन कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का पर्व होता है। कभी यह इंद्रपूजा के रूप में था। श्री कृष्णजी ने ब्रजवासियों से गोवर्धन पर्वत पुजवाया तथा स्वयं प्रत्यक्ष होकर सब प्रकार के व्यंजनों का भोग ग्रहण किया। तब से इंद्र पूजा की जगह गोवर्धन पूजा होने लगी। इस दिन घरों में गोबर से मानव आकृति बनाकर उसकी पूजा तथा परिक्रमा श्रीकृष्ण मानकर करते हैं। मंदिरों में कढ़ी, चावल, पूरी, सब्जी (सब मिलाकर) मिष्ठान आदि छप्पन प्रकार के व्यंजन मिलाकर प्रसाद वितरण किया जाता है। इसे अन्नकूट भी कहा जाता है।
    भैया दूज पूजा – कार्तिक शुक्ला द्वितीया तिथि को भैया-दूज का त्योहार मनाया जाता है। इसे यम द्वितीया भी कहा जाता है। भाई-बहनों के घर जाकर टीका करवाते हैं। भाई यथाशक्ति दक्षिणा भेंट करते हैं। यम और यमुना (नदी) दोनों सूर्य के पुत्र पुत्री हैं। यम को बहन यमुना के घर आने की कभी फुरसत नहीं मिलती थी। एक बार यम इसी द्वितीया को यमुना के पास आए। यमुना ने भाई का जोरदार स्वागत किया। तिलक लगाकर नारियल भेंट किया। अपने हाथ से तरह-तरह के व्यंजन बनाकर खिलाए। प्रसन्न यमराज ने बहन से वरदान माँगने को कहा। यमुना ने यह वरदान माँगा कि भैया-दूज को प्रतिवर्ष आप अवश्य मेरे घर आएँ तथा मेरा आतिथ्य स्वीकार करें। जो भी बहने अपने भाइयों को टीका करें, वे सभी बहन-भाई यम यातना से संतृप्त न हों। मथुरा में यम घाट पर इस दिन साथ-साथ स्नान करने पर भाई-बहन पुनर्जन्म में भी भाई-बहन ही बनें। यमराज ने बहन को वरदान दे दिया। यमराज से यह वरदान पाकर यमुना ने सभी बहन-भाइयों का उपकार किया।

    दीपावली महज धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि अपने पुरखों को याद करने का पर्व है

    दीपावली का प्रतीकात्मक महत्त्व- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा भी जाता रहा है कि लक्ष्मी देवी इस दिन भ्रमण करते हुए जिस भी स्थान को स्वच्छ, सुन्दर व आकर्षक देखती हैं, वहीं निवास करती हैं। गन्दे मलिन स्थानों की ओर वह ताकती भी नहीं। यह सत्य है कि समृद्धि और सम्पन्नता का वास स्वच्छ स्थानों पर होता है। प्रतीकात्मक रूप से हमारे देश में समाज में व्याप्त दरिद्रता का कारण बाहरी वातावरण में व्याप्त वह गन्दगी है, जो घुस आयी है हमारे शरीर में मानस में विकृतियों के रूप में, असत्य कपटाचरण. भ्रष्टाचार की वह गन्दगी, जो हमें श्रीहीन अकर्मण्य बना रही है। यदि हमारा शरीर स्वच्छ नहीं, तो स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ेगा ही, रोग उत्पन्न होंगे, शरीर आलस्य व प्रमाद से भरा होगा, क्रियाशीलता का अभाव होगा, कुछ मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी होंगे। दीपावली में की जाने वाली स्वच्छता का महत्त्व आन्तरिक एवं बाह्य दोनों प्रकार से है। नरकासुर के मारे जाने का अर्थ गन्दगी के असुर के मारे जाने से है।

    दीपावली सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और आर्थिक महत्व का पर्व – इसी दौरान धनवंतरी की पूजा यानि औषधि का आह्वान बैल-हल की पूजा यानि खेती-किसानी की तैयारी पौष्टिक भोजन यानि शरीर को मेहनत के लिए तैयार करना-कुल मिला कर दीपावली का पर्व एक सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और आर्थिक महत्व का पर्व है। यह जान लें कि दीपावली पर परंपराओं के नाम पर कुछ घंटे जलाई गई बारूद कई-कई साल तक आपकी ही जेब में छेद करेगी, जिसमें दवाइयों व डॉक्टर पर होने वाला व्यय प्रमुख है। इसकी मूल आत्मा सभी के कल्याण की है और आतिशबाजी का प्रयोग समाज, प्रकृति और परिवेश को नुकसान पहुंचाने वाला है। दुनियाभर में दीपावली भारतीयता का पर्व है, न कि किसी जाति-धर्म का। देश की अस्मिता यहां के लोक, पर्यावरण और आस्था में निमित्त है। जरूरत है कि आम लोग दीपावली की मूल भावाना को समझें और आडंबर रहित, सर्वकल्याणक और अपनी आय में समाज के अंतिम छोर में खड़े व्यक्ति की हिस्सेदारी की मूल परंपराओं की तरफ लौटें।

    दीपावली महज धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि अपने पुरखों को याद करने का पर्व है

    दीपावली का सन्देश और पनपते गलत परम्परा – उत्तर वैदिक काल में शुरू हुई आकाश दीप की परंपरा को कलयुग में दीवाली के रूप में मनाया जाता है। श्राद्ध पक्ष में भारत में अपने पुरखों को याद करने के बाद जब वे वापस अपने लोकों को लौटते थे, तो उनके मार्ग को आलोकित करने के लिए लंबे-लंबे बांसों पर कंदील जलाने की परंपरा बेहद प्रचीन रही है। फिर द्वापर युग में राजा राम लंका विजय के बाद अयोध्या लौटे तो नगरवासियों ने अपने-अपने घर के दरवाजों पर दीप जला कर उनका स्वागत किया। हो सकता है कि किसी सैनिक परिवार ने कुछ आग्नेय अस्त्र-शस्त्र चलाए हों, लेकिन दीपावली पर आतिशबाजी चलाने की परंपरा के बहुत पुराना होने के कोई प्रमाण मिलते नहीं हैं। हालांकि अब तो उच्चतम न्यायालय ने इस साल भी कड़ा संदेश दे दिया कि दूसरों के जीवन की कीमत पर आतिशबाजी दागने की छूट नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हम जश्न मनाने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हम दूसरों के जीवन की कीमत पर जश्न नहीं मना सकते हैं। पटाखे फोड़कर, शोर और प्रदूशण करके उत्सव मनाया जाए? हम बिना शोर-शराबे के भी जश्न मना सकते हैं। जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने सांसद मनोज तिवारी की याचिका पर स्पष्ट कर दिया कि अकेले दीवाली ही नहीं, छट, गुरूपर्व और नए साल पर भी आतिशबाजी पर पूरी पाबंदी रहेगी, यहां तक कि ग्रीन आतिशबाजी भी नहीं। विदित हो अदालत के जरिये आतिशबाजी पर रोक की कोशिशें कई साल से चल रही हैं, अदालतें कड़े आदेश भी देती हैं, कुछ लोग खुद ब खुद इससे प्रभावित हो कर पटाखों को तिलांजलि भी दे रहे हैं, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं है जो कुतर्क और अवैज्ञानिक तरीके से अदालत की अवहेलना करते हैं। यह कड़वा सच है कि पुलिस या प्रशासन के पास इतनी मशीनरी है नहीं कि हर एक घर पर निगाह रख सके। असल में हमारा प्रशासन ही नही चाहता कि अदालत के आदेशों से वायुमंडल शुद्ध रखने की कोशिश सफल हो। विभिन्न धार्मिक ग्रंथों से यह स्पष्ट हो चुका है कि बारूद के पटाखे चलाना कभी भी इस धर्म या आस्था की परंपरा का हिस्सा रहा नहीं है। लेकिन यह भी जानना जरूरी है कि समाज व संस्कृति का संचालन कानून या अदालतों से नहीं, बल्कि लोक कल्याण की व्यापक भावना से होता रहा है और यही इसके सतत पालन व अक्षुण्ण रहे का कारक भी है। दीपावली की असल भावना को ले कर कई मान्यताएं हैं और कई धार्मिक आख्यान भी। यदि सभी का अध्ययन करें तो उनकी मूल भावना भारतीय समाज का पर्व-प्रेम, उल्लास और सहअस्तित्व की अनिवार्यता है। विडंबना है कि आज की दीपावली दिखावे, परपीड़न, परंपराओं की मूल भावनाओं के हनन और भविष्य के लिए खतरा खड़ा करने की संवेदनशील औजार बन गई है।

    दीपावली महज धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि अपने पुरखों को याद करने का पर्व है
    दीपावली हमारे लिए कर्मठता और जागरूकता का सन्देश भी लाती है। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति लक्ष्मीजी का पूजन नहीं करता, आलस्य व प्रमाद में रमा रहता है, उसके घर लक्ष्मी नहीं आतीं। लक्ष्मी के वास के लिए जहां आन्तरिक, बाह्य शुद्धता का महत्त्व है, वहीं लक्ष्मी प्राप्त करने के लिए न्याय एवं श्रमपूर्वक उसकी उपासना भी करनी होती है। पूजा-पाठ की स्वच्छता के साथ नित्यापयोगी वस्तुओं की शुद्धता का ध्यान रखना, मन को छल-कपट, द्वेष-दम्भ, मिथ्या एवं घृणित प्रवृत्तियों से दूर रखना, यह सब आवश्यक है। जब समुद्र मन्थन से लक्ष्मीजी प्रकट हुई थीं, तब उनके साथ कुछ बुराइयों का समावेश भी था। जैसे-चन्द्रमा के साथ टेढ़ापन, उच्चैश्रवा: घोड़े के साथ चंचलता, कालकूट के साथ मोहनी शक्ति मदिरा से मद और कौस्तुभ मणि के साथ निष्ठुरता थी। अतः लक्ष्मी के आगमन के साथ-साथ मानव चित्त में यह बुराइयां समाविष्ट हो सकती हैं, अतः ऋषियों ने लक्ष्मीजी के साथ शुद्धता का दृष्टिकोण रखा। हमें अपने घर के साथ-साथ गली, गुहल्ले और सार्वजनिक स्थानों की स्वच्छता पर भी ध्यान देना चाहिए, जो समाज व राष्ट्र के लिए भी उपयोगी होगी; क्योंकि समृद्धि और सम्पन्नता शुचिपूर्ण, स्निग्ध वातावरण में ही फैलती है। हमारे देश में दीनता, दरिद्रता का जो वास है, उसका कारण पूर्णरूपेण आन्तरिक एवं बाह्य अस्वच्छता से है, गन्दगी से है। जनमानस में फैली हुई अनैतिकता व धूल-कचरे को हटाना होगा। दीपावली का त्योहार आर्थिक उत्थान का सामूहिक प्रयत्न भी है। इस दिन सभी व्यापारी साल भर में होने वाले लाभ-हानि का विचार करते हैं। लाभकारी योजनाएं बनाते हैं। धन समाज व राष्ट्र का मेरुदण्ड है। इस प्रकार दीपावली पर्व ही नहीं पर्व पुंज है। लगातार त्योहार सारे समाज को उत्साहित करते हैं और खुशी की लहर दौड़ाते हैं। कुछ लोग इस त्योहार पर जुआ खेलकर इसकी पवित्रता को नष्ट करते हैं। जुआ और शराब जैसी बुरी आदत कभी भी कल्याणकारी नहीं होती। हमें ऐसी बुरी आदतों से सदा दूर रहना चाहिए। अपने परिवार और मित्रों को भी इस सामाजिक पाप से बचाना चाहिए।

  • रंगोली दिये आतिशबाजी एवं मिठाई के साथ मनी दिवाली

    नालंदा कॉलेज में राष्ट्रीय सेवा योजना के तरफ दीपावली के अवसर पर दीपोत्सव का आयोजन किया गया। प्रकाश के इस पर्व के अवसर पर परिसर में साज सज्जा की गई एवं लोगों के बीच मिठाईयाँ बांटी गयी। एनएसएस के कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ बिनीत लाल ने कहा की कॉलेज में छात्रों ने पूरे उत्साह के साथ आयोजन में भाग लिया।

    पूरे परिसर को पिछले सात दिनों में इनलोगों ने सफाई की। हमारे जीवन में दिवाली का महत्व यह है कि यह हमें जीवन की एक नई दिशा की ओर ले जाती है। चूंकि यह प्रकाश का त्यौहार है इसलिए रंगोली के साथ दिये से भी सजावट की गयी। डॉ लाल ने कहा की दीया ज्ञान, विश्वास, सद्भाव, संतुष्टि, सफलता, भलाई और सच्चाई का प्रतीक है।

    प्राचार्य डॉ राम कृष्ण परमहंस ने सभी को दिवाली की शुभकामनाएं देते हुए कहा की इसमें अँधेरे को दूर कर प्रकाश किया जाता है एवं हमें इसी तरह अपने अन्दर के बुराईयों के अन्धकार को धो कर अपने अन्दर अनुशासन सत्य और सदाचार रुप प्रकाश करते रहना चाहिए।

    उन्होंने कहा की एनएसएस के इस पहल से निश्चित रूप से कॉलेज समुदाय में एक सकरात्मक ऊर्जा आयेगी। इस अवसर पर शामिल बीएड विभाग की संगीता कुमारी एवं उर्दू विभाग के डॉ शाहिदुर् रहमान ने भी कॉलेज परिवार को दिवाली की शुभकामनाएं दी। दीपोत्सव को आयोजित करने में शामिल सुभाषनी, सौम्या, शिशुपाल, कृजीत, पीयूष, सोनी, राजरंजन, ज्योति, अंकित आदि छात्रों ने कहा की कॉलेज में इस तरह का यह पहला आयोजन है और सभी लोगों ने पूरे उत्साह के साथ इसमें भाग लिया। सभी शिक्षकों एवं शिक्षकेत्तर कर्मचारियों ने इस आयोजन के लिए एनएसएस को धन्यवाद दिया।