Category: पर्यटन

  • 400 एकड़ में फैले नालंदा खंडहर की यूं बदल रही तस्वीर

    नालंदा दर्पण डेस्क। जब भी दुनिया के सबसे पुराने शिक्षण संस्थानों की बात आती है तो “नालंदा विश्वविद्यालय” का नाम सबसे ऊपर आता है। बिहार की राजधानी पटना से लगभग 120 किमी दक्षिण-उत्तर में प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं। इतिहासकारों के अनुसार, यह भारत में उच्च शिक्षा का सबसे […]

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  • 400 एकड़ में फैले नालंदा खंडहर की यूं बदल रही तस्वीर – Nalanda Darpan – गाँव-जेवार की बात।

    नालंदा दर्पण डेस्क। जब भी दुनिया के सबसे पुराने शिक्षण संस्थानों की बात आती है तो “नालंदा विश्वविद्यालय” का नाम सबसे ऊपर आता है।

    Nalanda ruins spread over 400 acres slowly changing picture 1बिहार की राजधानी पटना से लगभग 120 किमी दक्षिण-उत्तर में प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं।

    इतिहासकारों के अनुसार, यह भारत में उच्च शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण और विश्व प्रसिद्ध केंद्र था। बिहार के नालंदा जिला में स्थित इस विश्वविद्यालय में आठवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के बीच दुनिया के कई देशों के छात्र इस विश्वविद्यालय में पढ़ने आते थे।Nalanda ruins spread over 400 acres slowly changing picture 2

    इस विश्वविद्यालय में कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फ्रांस और तुर्की से छात्र आते थे।

    आज वह विश्वविद्यालय खंडहर में तब्दील हो गया है। अगर एक नजर इतिहास पर डाल दूं तो 1199 में, तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को जलाकर पूरी तरह से नष्ट कर दिया था।

    कुछ इतिहासकार बताते हैं कि, इस विश्वविद्यालय में इतनी किताबें थीं कि पूरे तीन महीने तक आग जलती रही। नालंदा विश्वविद्यालय के अतीत और उसके गौरवशाली इतिहास को सभी को जानना चाहिए। नालंदा प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध केंद्र था।Nalanda ruins spread over 400 acres slowly changing picture 3

    बौद्ध काल में भारत शिक्षा का केंद्र था। इस विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम (450-470) ने की थी। नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक, इस विश्वविद्यालय ने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की।

    यहां इतनी सारी किताबें रखी हुई थीं कि उन्हें गिनना आसान नहीं था। इस विश्वविद्यालय में हर विषय की पुस्तकें मौजूद थीं।Nalanda ruins spread over 400 acres slowly changing picture 5

    प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए तीन सौ कमरे, सात बड़े कमरे और नौ मंजिला पुस्तकालय था, जिसमें तीन लाख से अधिक पुस्तकें थीं।

    प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था, जिसमें एक मुख्य प्रवेश द्वार था।

    नालंदा विश्वविद्यालय बहुत प्राचीन है ओर उस समय की पढाई ओर आज की पढाई में ज़मीन आसमान का अंतर है। नालंदा से निकलने वाले एक-एक अभ्यात्री कुशल होते थे। मगर अब यह सिर्फ़ एक धरोहर मात्र हैं।

  • नालंदा के ग्रामीण आँचल में बिखरे ऐतिहासिक विरासत को संरक्षण की जरूरत – Nalanda Darpan – गाँव-जेवार की बात।

    नालंदा दर्पण डेस्क। इतिहास के अवशेषों से जब भी हम गुजरते हैं। सच में आश्चर्य होता है कि हम पहले क्या थे और आज क्या हैं? बीता हुआ कल काफी महत्वपूर्ण होता है। भले ही बीता हुआ समय वापस नहीं आता, किन्तु अतीत के पन्नों को हमारी विरासत के तौर पर कहीं पुस्तकों तो कहीं इमारतों के रूप में संजो कर रखा गया है।

    The need to preserve the historical heritage scattered in the rural area of Nalanda 1हमारे पूर्वजों ने निशानी के तौर पर तमाम तरह के मंदिर, किले,इमारतें, कुएँ तथा अन्य चीजों का सहारा लिया, जिनसे हम उन्हें आने वाले समय में याद रख सकें।लेकिन वक्त की मार के आगे कई बार उनकी यादों को बहुत नुकसान पहुँचा।

    उनकी यादों को पहले स्वयं हमने भी नजर अंदाज किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि हमारी अनमोल विरासत हमसे दूर होती गयी और उनका अस्तित्व भी संकट में पड़ गया।

    भारत की विरासत ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बिखरी पड़ी है। जिन्हें संरक्षित सहेजना चुनौतीपूर्ण है। देश के ग्रामीण अंचलों में ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक विरासतों की भरमार है।

    इन विरासतों की सार संभाल के साथ इन्हें ग्रामीण पर्यटन से जोड़ दिया जाए तो ना केवल क्षेत्र का समुचित विकास हो सकेगा। इससे क्षेत्र की कायापलट हो सकती है।इससे एक तरफ जहाँ अमूल्य विरासत संरक्षित होगी वहाँ दो हाथों को रोजगार भी मिलेगा। लेकिन सरकारी उपेक्षा एवं उदासीनता की वजह से ग्रामीण अंचलों में फैले पुरातात्विक विरासत बिखरे हुए हैं, जिसे सहेजने की आवश्यकता है।

    नालंदा के चंडी अंचल में ऐसे ही कई अवशेष बिखरे हुए है, विरासत और अपने इतिहास से अंजान। सिर्फ यहाँ बौद्ध कालीन सभ्यता ही नहीं मुगलिया वंश के नायाब किस्से-कहानियाँ बिखरी पड़ी हुई है। जहाँ कभी गंगा-जमुना तहजीब की धारा बहती थी।

    चंडी अंचल में कई ऐसे गाँव हैं, जिनके नामों में ध्वन्यात्मक है। इन गाँवों के नामों का अंत ‘गढ़’ या ‘आमा’ शब्द से होता है। जहाँ ऐसा माना जाता है कि ऐसे गाँव में बौद्ध कालीन इतिहास समाहित है। जहाँ के खेतों, खलिहानों, तालाबों, टीलों, मंदिरों, ब्रह्म बाबा गोरैया स्थानों पर प्राचीन मूर्तियों तथा अवशेष विधमान है।

    चंडी प्रखंड में ‘गढ़’ से शुरू होने वाले गाँव तुलसीगढ,रूखाईगढ,माधोपुर गढ़, दयालपुर गढ़, हनुमान गढ़, के अलावा ‘आमा ‘नामधारी गाँव में सिरनामा, विरनामा, अरियामा, कोरनामा, आदि कई गांव हैं। जिनके बारे में कहा जाता है कि बौद्धकालीन, मौर्य, गुप्त और पाल वंश के शासन काल की झलक मिलती है।

    चंडी अंचल के रूखाई और तुलसीगढ में विशालकाय स्तूप संरचना नजर आती है।हालाँकि रूखाई गढ़ में पुरातत्व विभाग की खुदाई में कई सभ्यताओं के अवशेष मिले हैं।इसके अलावा इस गाँव के खेतों-खलियानों में बेशकीमती प्राचीन मूर्तियां बिखरी पड़ी हुई है। जहाँ कहीं भी कुदाल-फावडे पड़ते हैं, रूखाई की जमीन से कोई न कोई मूर्ति निकल ही जाती है।जबकि देखरेख और संरक्षण के अभाव में दर्जनों बेशकीमती मूर्ति या तो चोरी हो गई या फिर नष्ट हो गया।

    रूखाई में पुरातत्व विभाग ने 13 दिन तक दफन इतिहास को खोद कर निकालने का प्रयास किया।भगवान बुद्ध से लेकर, मौर्य वंश,शुंग,कुषाण, गुप्त, पालवंश एवं मुगल काल सभ्यताओं के अवशेष प्राप्त हुए।जिसकी कल्पना गाँव वालों ने भी नहीं किया था।यहाँ बौद्ध काल से पूर्व की एक समृद्ध नगरीय व्यवस्था थी।

    वर्ष 2009 में  इसी गाँव के आगे राजाबाद गाँव में एक सरकारी तालाब खुदाई के दौरान भी एक प्राचीन स्थापत्य कला के भग्नावशेष मिले थे। तालाब खुदाई के दौरान 21 फीट लंबा व 16 फुट चौड़ा चबूतरा मिला था। इसके अलावा लकड़ी का विशाल कालम तथा लकड़ी का एक विशाल खंभा भी मिला था।

    रूखाई गढ़ में वर्ष 2015 में खुदाई के दौरान कई महत्वपूर्ण अवशेष मिलें थें।उसके बाद इसी साल 28 फरवरी को एक तालाब की खुदाई के दौरान एक खंडित बौद्ध प्रतिमा मिली थी। साथ ही दीवारों के अवशेष भी मिले। वहीं 9 मई को फिर से तालाब खुदाई के दौरान एक बेशकीमती मूर्ति बरामद हुई। इससे पहले भी यदा -कदा खेतों की जुताई के दौरान भी मूर्ति निकल जाती है।

    इधर चंडी अंचल के तुलसीगढ में भी एक विशालकाय स्तूप संरचना है। जिसकी उंचाई 30-35 फीट है व व्यास लगभग 60मीटर है। इस टीले के बारे में किंवदंती है कि पहले लोग इस टीले के आसपास ही जीवन यापन करते थे। इस टीले के चारों ओर जलाशय था।यहाँ भी लगभग 400 वर्ष पूर्व की सभ्यता का पता चल सकता है।

    इसके अलावा चंडी अंचल के कई ऐसे गाँव हैं, जहाँ पर मुगलकालीन समय की झलक आज भी देखने को मिल जाता है।उस समय ‘जागीरदारी’ उन गाँवों में चलती थी। मुगलिया सल्तनत के कई ऐसे लोग बाहर से आकर चंडी के कई गाँव को अपना बसेरा बनाया। जिसका उदाहरण प्रखंड का माहो गाँव हैं। इसका प्राचीन नाम ‘मुस्तफापुर’ माना जाता है।

    इसके अलावा मोसिमपुर, इमामगंज, सालेपुर, विरनामा, लोदीपुर, अफजलबिगहा, ओली बिगहा, हब्बीबुलाचक जैसे गाँव इसके उदाहरण है। सिर्फ इतना ही नहीं ये गाँव गंगा-जमुनी तहजीब के मिसाल भी रहे हैं।

    इन गाँवों की अपनी ही कहानी हैं। लेकिन नयी पीढ़ी के लोग अपने ही विरासत से अंजान हैं।भागदौड़ की इस जिंदगी में उन्हें यह सोचने का साहस ही नहीं बचा।उम्र के हेर फेर में विरासत को भूल चुके हैं।

    कहने की जरूरत नहीं है कि अंचल में बिखरे ऐतिहासिक विरासत को संरक्षण की जरूरत है। लेकिन सरकार की लापरवाही और उदासीनता से अनमोल विरासत काल कवलित हो जा रही है।

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  • वेशक, नालंदा विश्वविद्यालय परिसर में ऐसा जल प्रबंधन एक चमत्कार है ! – Nalanda Darpan – गाँव-जेवार की बात।

    नालंदा दर्पण डेस्क। करीब साढ़े चार हजार लोग, पर भूगर्भीय जल की एक बूंद भी प्रयोग नहीं। इतना ही नहीं, डेढ़ वर्ष तक बारिश न हो, फिर भी यहां जल का कोई संकट नहीं होगा। यह नालंदा विश्वविद्यालय के जल प्रबंधन का चमत्कार है।

    Such water management of Veshak Nalanda University is a miracle 3पटना से लगभग सौ किलोमीटर दूर 456 एकड़ में बन रहे नालंदा विश्वविद्यालय परिसर के सौ एकड़ क्षेत्र में सिर्फ तालाब और वाटर स्टारेज प्लांट है। इनकी गहराई पांच मीटर तक है। इनमें 8.5 करोड़ लीटर पानी संरक्षित है। सौ एकड़ में 12 तालाब हैं।

    यहां भूगर्भ से एक बूंद जल नहीं लिया जाता है। विश्वविद्यालय के निर्माण कार्य में इस समय यहां करीब साढ़े तीन हजार श्रमिक आदि रह रहे हैं। छात्र-शिक्षकों की संख्या भी करीब एक हजार है। इस समय यहां 32 देशों के छात्र अध्ययन कर रहे हैं। पानी की सारी आपूर्ति तालाबों से होती है।

    यहां 20 लाख लीटर क्षमता का रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम है। परिसर में एक भी बोरिंग नहीं है। नहाने से लेकर भोजन पकाने व पीने तक में इसी पानी का प्रयोग किया जाता है।

    यहाँ एक व्यक्ति प्रतिदिन औसत 235 लीटर पानी खर्च करता है। विश्वविद्यालय में पानी को रिडायरेक्ट, रियूज, रिसाइकिल, रिनेटवर्किंग, इंटरकनेक्ट व लो फ्लो फिक्शर के माध्यम से प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के अनुपात में 100 लीटर तक की बचत कर ली जाती है। आवश्यकताओं को कम नहीं किया जाता है, बल्कि उसी पानी को पुन: व्यवहार में लाया जाता है।Such water management of Veshak Nalanda University is a miracle 2

    बेसिन व नहाने वाले पानी का प्रयोग फ्लश में किया जाता है। पानी में थोड़ी एयर मिक्स करके फ्लशिंग में भी पानी का खर्च कम करते हैं। एयर मिक्स करने से आधा लीटर पानी करीब एक लीटर पानी के बराबर काम करता है। प्रेशर के साथ पानी फैल जाता है, जिससे पानी व्यर्थ नहीं जाता।

    पानी को शुद्ध करने के लिए ट्रीटमेंट प्लांट और चैंबर के किनारे पौधे भी लगाए गए हैं। केला समेत अन्य 27 तरह के पौधे पानी को साफ करने में मदद करते हैं। पौधों की जड़ें पानी में घुले नाइट्रेट व फास्फेट को खींच लेती हैं।

    वाटर ट्रीटमेंट मशीन में भेजे जाने से पहले अधिक गंदे पानी को इन पौधों से गुजारा जाता है। इस तरीके से साफ हुए पानी का प्रयोग पौधों को सिंचित करने, परिसर में छिड़काव व फ्लश में किया जाता है। जहां तेजी से वाटर ट्रीटमेंट करना है, उसे मशीन में भेज दिया जाता है।

  • नालंदा विश्वविद्यालय से भी प्राचीन है तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय – Nalanda Darpan – गाँव-जेवार की बात।

    नालंदा दर्पण डेस्क। नालंदा की धरती ने पूरी दुनिया को अपने ज्ञान से आलोकित किया है। उदंतपुरी, तेल्हाड़ा, तथा नालंदा विश्वविद्यालय ये अकूत ज्ञान के पुंज रहे हैं।

    तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय 2यही कारण है कि यहां की मिट्टी का तिलक लगाकर लोग आज भी स्वयं को धन्य समझते हैं। तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय का अपना गौरवशाली इतिहास रहा। जिला मुख्यालय बिहारशरीफ से 35 किलोमीटर पश्चिम एनएच 33 पर स्थित इस विश्वविद्यालय का इतिहास नालंदा विश्वविद्यालय से भी पुराना माना जाता है।

    चीनी यात्री इत्सिग ने तेल्हाड़ा का भ्रमण किया था। अपने यात्रा वृतांत में उन्होंने तेल्हाड़ा की विशालता का जिक्र करते हुए लिखा है कि यह शिक्षा का बड़ा केन्द्र रहा। जहां लोग रिसर्च को यहां आते थे। यहां तीन बड़े टेंपल तथा मठ थे, जो तांबे जड़ित थे। इन मंदिरों में टंगी घंटियां हवा के झोंकों के साथ झंकृत होती थी, जो अद्भुत था।

    तेल्हाड़ा की खुदाई से मिले अवशेषों के आधार पर कहा जा सकता है कि तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय से भी पुराना रहा है। तेल्हाड़ा के विभिन्न स्थलों की खुदाई से यहां पर तिलाधक महाविहार के अवशेष होने की जानकारी प्राप्त हुई है।

    ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा वृतांत में महाविहार की स्थापना बिम्बिसार के वंशजों के द्वारा किया जाना बताया है।

    पुरातत्वविदों ने तेल्हाड़ा में अपनी खुदाई अभियान में उस ईंट को भी खोज निकाला है, जिसे इस प्राचीन विश्वविद्यालय की नींव के रूप में इस्तेमाल किया गया था। इस ईंट की साइज लंबाई में 42 चौड़ाई में 32 और ऊंचाई में 6 सेंटीमीटर है।

    ईंट के इस आकार से पहली शताब्दी के कुषाण काल के प्रभाव का खुलासा होता है। खुदाई स्थल एक बहुत बड़े टीले के रूप में था।

    तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय 1

    मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर वर्ष 2009 में खुदाई किया गया तो कई रहस्य खुलकर सामने आए। इसकी खुदाई के वक्त हीरे-जवाहरात एवं सोने के कई सिक्के भी मिले थे।

    इस खंडहर की बनावट भी बिल्कुल अलग थी। इसके अंदर से कंकाल भी मिले हैं । इस जगह का उल्लेख आईन-ए-अकबरी में तिलदाह के रूप में भी किया गया है।

    संरक्षण के अभाव में नष्ट हो रहा धरोहर अपने अंदर ज्ञान का भंडार समेटे इस भग्नावशेष का सही तरीके से संरक्षण नही होने के कारण, यह नष्ट होता जा रहा है।

    हालांकि, बिहार सरकार ने इस स्थल को राजकीय धरोहर की सूची में रखा है। इसके बावजूद इसके दीवारों का गिरना विभाग की कार्यप्रणाली पर बड़ा प्रश्न चिन्ह है। इस स्थल की खुदाई के 10 साल से अधिक हो गए हैं, लेकिन आज तक खुदाई रिपोर्ट प्रकाशित नहीं कर सकी।

  • पिछले पांच सालों में लूटकांड का पर्याय बना रहा राजगीर नगर परिषद ! – Nalanda Darpan – गाँव-जेवार की बात।

    नालंदा दर्पण डेस्क। राजगीर नगर परिषद बोर्ड का गठन वर्ष 2017 के 9 जून को हुआ था। बोर्ड के पूरे पांच साल बीत जाने पर जब पूरे कार्यकाल का मूल्यांकन किया जाय तो पता चलता है कि पूरे पांच साल के काले कारनामों से लगातार बदनामी का दंश ही इस नगर परिषद कार्यालय को देखना पड़ा है।

    Rajgir Municipal Council remained synonymous with loot in the last five years 1जून 2017 के बोर्ड गठन के साथ ही नगर परिषद के बोर्ड बैठक में अलोकतांत्रिक फैसला लेते हुए महत्त्वपूर्ण संचिका को  नगर परिषद उपाध्यक्ष के पास पहले भेजने का प्रस्ताव पारित किया गया।

    जाहिर है कि ऐसा करके अध्यक्ष को पूरे पांच साल के लिए रिमोट से कंट्रोल करने का प्रयास किया गया। बोर्ड की अध्यक्ष बनी उर्मिला चौधरी को लॉकडाउन की अवधि में ही पद से हटा दिया गया, जिसपर अध्यक्ष ने विभागों में शिकायत दर्ज कराई की उन पर अवैध निकासी का दबाव बनाया जा रहा था।

    इन पांच सालों के कार्यकाल में सबसे बड़ा लूटकांड का आरोप मलमास मेला 2018 के आयोजन पर लगा, जिसमे टेंट पंडाल के नाम पर कुल 3,23,341,96 (तीन करोड़ तेईस लाख चौंतीस हजार एक सौ छियानवे) लाख रुपए की निकासी की गई, जबकि बाढ़ डेकोरेटर नाम की यही कंपनी वर्ष 2015 में लगभग पचास साठ लाख में ही टेंट पंडाल का पूरा काम किया था।ऐसे में मेला के नाम पर अवैध निकासी ने नगर परिषद के काले कारनामों पर जनता की नजरो में मुहर लगा दी।

    खरीददारी के मामले में तो नगर परिषद की सशक्त कमिटी ने जमकर खरीदारी की।लगभग छः करोड़ से अधिक के वाहन, जेटिंग मशीन, सुपर शकर मशीन, लोडर,हैंड कार्ट, ट्रैक्टर, ट्राई साइकिल आदि की खरीददारी बाजार मूल्य से अधिक कीमत पर खरीदे गए।

    पांच सालों के कार्यकाल में नगर परिषद ने कई लोगो को जलापूर्ति योजना में बिना कार्य किए वेतन भी देकर काफी लोकप्रियता हासिल की है। सूत्रों के अनुसार जनप्रतिनिधियों के खासम खास समर्थको को ही इसका लाभ मिलता है।

    Rajgir Municipal Council remained synonymous with loot in the last five years2राजगीर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट में अयोग्य लोगो को बहाली से यह प्लांट अब गंदगी बदबू देने लगा है। जनप्रतिनिधि और नगर परिषद में कार्यरत कर्मियों के द्वारा अपने परिवार की बहाली कर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट को बर्बाद होने के लिए छोड़ दिया गया है। अतिक्रमण के नाम पर गरीबों को हमेशा उजाड़ने वाली नगर परिषद बड़े बड़े अतिक्रमण को संरक्षण भी देने का कार्य की है।

    यही नहीं भले ही लॉक डाउन में किसी की होल्डिंग टैक्स माफ नही हुई हो, लेकिन नगर परिषद अपने खास लोगो के एक साल का वाहन पार्किंग जरूर माफ कर देती हैं।ऐसा पहली बार हुआ है कि नगर परिषद द्वारा जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र बनाने पर होल्डिंग टैक्स की वसूली करती है।

    इन पांच सालों के कार्यकाल ने नगर परिषद क्षेत्र में निर्माण कार्य में भी अभी तक का सबसे खराब कार्य देखा है। शहर में नाली,सड़क आदि की योजना बंदरबाट की भेंट चढ़ कर बर्बाद दिखती नजर आती है। शहर के संवेदकों पर कमीशन लेने का दबाव ही शहर की योजनाओं को बर्बाद कर डाला है।

    इन सबके बीच नगर परिषद की लापरवाह व्यवस्था से नागरिक सुविधाएं शून्य के बराबर हैं।जल संकट से जूझ रहे राजगीर के लोग त्राहिमाम कर रहे लेकिन नगर परिषद का भ्रष्ट सिस्टम कान में रुई डालकर सोया हुआ है।

    जल जीवन हरियाली के नाम पर मृत कुंए को डेटिंग पेंटिंग कर पैसे की निकासी हुई लेकिन वैतरणी नदी की सुध लेने को कोई तैयार नहीं हुआ। वोट बैंक की राजनीति के तहत लेदुआ पुल के पास तो नदी में ही मकान और नदी में ही रास्ता बनवा दिया गया, जिससे भविष्य में वैतरणी नदी की जलधारा अनेकों स्थान पर पहुंचने से वंचित रहेगी। पंडितपुर तालाब और लेनीन नगर तालाब का जिर्णोदार कराने में भी नगर परिषद लापरवाह साबित हुई।

    पांच साल के कार्यकाल ने ऐसे अनेकानेक कुकृत्यो की वजह से ही नगर परिषद काफी बदनाम हो गई है। बिना कार्य किए राशि की निकासी, अवैध निकासी, टेंडर घोटाला, विभागीय कार्य में अनियमित्तता आदि ने नगर परिषद को लूटकांड का पर्याय बना दिया है।

  • इतिहास के पन्नों में सिमटी ज्ञानशाला उदंतपुरी के अवशेष – Nalanda Darpan – गाँव-जेवार की बात।

    नालंदा दर्पण डेस्क। नालंदा जिले के कण-कण में इतिहास दबा है। यहां की धरा अद्भुत व निराली है। जिसके गर्भ में न जाने कितने इतिहास छिपे हैं। कभी बिहार शरीफ शहर उंदतपुरी के नाम से जाना जाता था, जो ज्ञान का विशाल व बेमिशाल कुंज था।

    The remains of Gyanshala Udantpuri shrunk in the pages of history 2सन् 730-740 ई. में पाल वंश के संस्थापक गोपाल ने इस विश्वविद्यालय की बुनियाद रखी थी। विश्वविद्यालय का बड़ा क्षेत्रफल था। बाद के शासकों ने अनुदान देकर शिक्षा के इस कुंज को सिचित करने का काम किया।

    हालांकि इस विश्वविद्यालय के संदर्भ में इतिहासकारों के बीच बड़ा विभेद है। इस विश्वविद्यालय के केन्द्र तक की अब तक स्पष्ट जानकारी नहीं है। कुछ गढ़पर को तो कोई बड़ी पहाड़ी को उदंतपुरी का केंद्र मानते हैं।

    The remains of Gyanshala Udantpuri shrunk in the pages of history 3कई बार विदेशों से अध्ययन को यहां टीम आई है। लेकिन हर बार निराशा साथ ले गई। टीम की मांग रही कि सरकार को इस अवशेष को आर्कोलाजिकल विभाग को सौंप देना चाहिए, ताकि इतिहास जीवित रह सके।

    सच कहा जाए तो सरकार की अनदेखी का ही परिणाम है कि आज उंदतपुरी इतिहास के पन्नों तक सिमट कर रह गया।

    इतिहासकार बताते हैं कि उदंतपुरी तथा नालंदा विश्वविद्यालय का स्थापना काल समान रहा, लेकिन दोनों विश्वविद्यालयों में बौद्ध धर्म के अलग-अलग मत के मानने वाले लोग थे।

    The remains of Gyanshala Udantpuri shrunk in the pages of history 1

    तिब्बती रिकार्ड के अनुसार यहां भी छात्रों की संख्या दस हजार से अधिक थी। शिक्षा के क्षेत्र में इसकी बढ़ती हुई ख्याति के कारण बख्तियार खिलजी ने 1197 ई. में इसे अपना शिकार बनाया और बड़ी संख्या में बौद्ध भिक्षुओं को मौत के घाट उतार दिया।

    जानकारों के मुताबिक उदंतपुरी ज्ञान की शाला थी। जिसने 7वीं शताब्दी में अपने ज्ञान से पुरी दुनिया को आलोकित किया।

    हालांकि इस विश्वविद्यालय के बारे में काफी कन्ट्राडिक्शन है। पांच सौ के करीब बौद्ध भिक्षुओं के रहने खाने-पीने की यहां व्यवस्था थी। चारों तरफ हरियाली तथा बहती हुई नदी यहां की शान थी।

    कई इतिहासकार तथा पुरातत्ववेता यहां आए, लेकिन मायूसी लेकर गएं क्योंकि उदंतपुरी के टीले पर एक बड़ी आबादी निवास करती है। जिसे दूसरे जगह निर्वासित किया जाना सरकार के बूते के बाहर है।

  • जिलाधिकारी ने राजगीर महोत्सव की तैयारी को लेकर आरआईसीसी में की बैठक – Nalanda Darpan – गाँव-जेवार की बात।

    राजगीर (नालंदा दर्पण)। पर्यटन विभाग के सौजन्य से जिला प्रशासन नालंदा द्वारा तीन दिवसीय राजगीर महोत्सव का आयोजन 29 नवंबर से 1 दिसंबर की अवधि में किया जा रहा है। आयोजन की  अवधि के संदर्भ में पर्यटन विभाग द्वारा सहमति प्रदान की जा चुकी है। महोत्सव के सफल आयोजन को लेकर पूर्व से तैयारी की जा रही है।

    District Magistrate held a meeting in RICC regarding the preparation of Rajgir Festival 1जिलाधिकारी द्वारा महोत्सव से संबंधित अलग-अलग 32 प्रकार के कार्यों के लिए समितियों का गठन किया गया है। इन समितियों से संबंधित कार्यों के लिए एक वरीय पदाधिकारी, एक नोडल पदाधिकारी एवं अन्य सहयोगी पदाधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई है।

    महोत्सव का आयोजन आरआईसीसी एवं हॉकी ग्राउंड के बीच स्थित स्टेट गेस्ट हाउस के भूखंड परिसर में कराया जाएगा।  महोत्सव के साथ-साथ सात दिवसीय ग्राम श्री मेला का भी आयोजन उसी परिसर में किया जाएगा। इसके साथ कृषि मेला,व्यंजन मेला का भी आयोजन होगा।

    इसके लिए कार्यक्रम स्थल के समतलीकरण के लिए कार्रवाई सुनिश्चित करने का निर्देश कार्यपालक पदाधिकारी नगर परिषद राजगीर को दिया गया।

    इस महोत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रम हेतु कलाकारों के आमंत्रण के लिए पर्यटन विभाग के स्तर से कार्रवाई की जा रही है। इस अवसर पर सात प्रकार के खेलों की प्रतियोगिता भी आयोजित की जाएगी। खेलों का आयोजन नवोदय विद्यालय के मैदान में कराया जाएगा।

    इसके साथ ही तांगा सज्जा, पालकी सज्जा, महिला महोत्सव, दंगल आदि का भी आयोजन किया जाएगा। सभी संबंधित पदाधिकारियों को उनसे संबंधित कार्यों/तैयारियों को निर्धारित समय पर पूरा करने का निर्देश दिया गया।

    इस अवसर पर राजगीर में निकाले जाने वाले सद्भावना मार्च के लिए अनुमंडल पदाधिकारी राजगीर को सभी संबंधित समूह के साथ बैठक कर पूर्व तैयारी करने को कहा गए।

    बैठक में उप विकास आयुक्त, नगर आयुक्त, अपर समाहर्ता सहित विभिन्न गठित समितियों के नोडल पदाधिकारी, अनुमंडल पदाधिकारी राजगीर, कार्यपालक पदाधिकारी नगर परिषद राजगीर सहित अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे।

  • जिलाधिकारी ने राजगीर महोत्सव की तैयारी को लेकर आरआईसीसी में की बैठक

    राजगीर (नालंदा दर्पण)। पर्यटन विभाग के सौजन्य से जिला प्रशासन नालंदा द्वारा तीन दिवसीय राजगीर महोत्सव का आयोजन 29 नवंबर से 1 दिसंबर की अवधि में किया जा रहा है। आयोजन की  अवधि के संदर्भ में पर्यटन विभाग द्वारा सहमति प्रदान की जा चुकी है। महोत्सव के सफल आयोजन को लेकर पूर्व से तैयारी की जा रही है।

    District Magistrate held a meeting in RICC regarding the preparation of Rajgir Festival 1जिलाधिकारी द्वारा महोत्सव से संबंधित अलग-अलग 32 प्रकार के कार्यों के लिए समितियों का गठन किया गया है। इन समितियों से संबंधित कार्यों के लिए एक वरीय पदाधिकारी, एक नोडल पदाधिकारी एवं अन्य सहयोगी पदाधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई है।

    महोत्सव का आयोजन आरआईसीसी एवं हॉकी ग्राउंड के बीच स्थित स्टेट गेस्ट हाउस के भूखंड परिसर में कराया जाएगा।  महोत्सव के साथ-साथ सात दिवसीय ग्राम श्री मेला का भी आयोजन उसी परिसर में किया जाएगा। इसके साथ कृषि मेला,व्यंजन मेला का भी आयोजन होगा।

    इसके लिए कार्यक्रम स्थल के समतलीकरण के लिए कार्रवाई सुनिश्चित करने का निर्देश कार्यपालक पदाधिकारी नगर परिषद राजगीर को दिया गया।

    इस महोत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रम हेतु कलाकारों के आमंत्रण के लिए पर्यटन विभाग के स्तर से कार्रवाई की जा रही है। इस अवसर पर सात प्रकार के खेलों की प्रतियोगिता भी आयोजित की जाएगी। खेलों का आयोजन नवोदय विद्यालय के मैदान में कराया जाएगा।

    इसके साथ ही तांगा सज्जा, पालकी सज्जा, महिला महोत्सव, दंगल आदि का भी आयोजन किया जाएगा। सभी संबंधित पदाधिकारियों को उनसे संबंधित कार्यों/तैयारियों को निर्धारित समय पर पूरा करने का निर्देश दिया गया।

    इस अवसर पर राजगीर में निकाले जाने वाले सद्भावना मार्च के लिए अनुमंडल पदाधिकारी राजगीर को सभी संबंधित समूह के साथ बैठक कर पूर्व तैयारी करने को कहा गए।

    बैठक में उप विकास आयुक्त, नगर आयुक्त, अपर समाहर्ता सहित विभिन्न गठित समितियों के नोडल पदाधिकारी, अनुमंडल पदाधिकारी राजगीर, कार्यपालक पदाधिकारी नगर परिषद राजगीर सहित अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे।

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    • जिलाधिकारी ने अपराधिक कार्य एवं आदतन शराब कारोबार में लिप्त इन 17 लोगों के खिलाफ लगाया सीसीए
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    • बिहार शरीफ में पढ़ाई के नाम पर करते थे चोरी-छिनतई, 5 नाबालिग समेत 8 बदमाश धराए
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  • 554वां प्रकाश पर्व के आखिरी दिन राजगीर पहुंचे बिहार के मुख्यमंत्री, बोले- गरीब राज्य में बेहतर इंतजाम – Nalanda Darpan – गाँव-जेवार की बात।

    राजगीर (नालंदा दर्पण)। गुरुनानक देव के 554 वें प्रकाश उत्सव के तीसरे व आखिरी दिन सीएम नीतीश कुमार राजगीर पहुंचे। सबसे पहले वे गुरुद्वारा पहुंचे, जहां गुरुद्वारा प्रबंधन कमिटी ने उनका भव्य स्वागत किया। इसके बाद सीएम सीधे गुरुद्वारा पहुंचे, जहां उन्होंने मत्था टेका।

    नीतीश कुमार के आगमन को लेकर सुरक्षा काफी सख्त दिखी। गुरुद्वारा प्रबंधन कमिटी ने पूरा कमान अपने हाथों में ही रखा। गुरुद्वारा के अंदर किसी को जाने की इजाजत नहीं थी। मंत्री से लेकर सांसद तक बाहर ही इंतजार दिखे। वहीं मुख्यमंत्री ने लंगर छका।

    Bihar Chief Minister reached Rajgir on the last day of 554th Prakash Parv said – better arrangements in poor state 1इसके बाद मीडिया से बात करते हुए मुख्यमंत्री ने गुरु नानक देव जी के जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गुरु नानक देव जी राजगीर में बहुत कई सालों तक प्रवास किये थे। उस वक्त यहाँ सभी कुंडों से गर्म पानी निकलता था। स्थानीय लोगों के कहने पर पत्यर से गुरु नानक जी की कृपा से यहां शीतल जल निकलने लगा था। जिसे आज शीतल कुंड के नाम से जाना जाता है।

    उन्होंने कहा कि राजगीर सभी धर्मों की स्थली रही है। पर्यटकों की सुरक्षा एवं सुविधा के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था की गई है। बिहार गरीब राज्य होते हुए भी यहां के इंतजाम काफी बेहतर होते है। राजगीर के पर्यटन स्थलों एवं यहां के निवासियों के लिए जल्द ही गंगा जल की आपूर्ति इस माह कर दी जाएगी। इसके बाद नवादा और गया कि लोगों को घरों में भी गंगाजल पहुंचा दिया जाएगा ।

    सीएम के आगमन के पूर्व डीडीसी और नगर आयुक्त ने किया निरीक्षण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राजगीर आगमन से पहले डीडीसी  वैभव श्रीवास्तव और नगर आयुक्त रणजीत सिंह गुरुद्वारा भवन से लेकर सुरक्षा व्यवस्था का निरीक्षण किया।सख्त सुरक्षा व्यवस्था के बाद भी हुई धक्का-मुक्की श्रद्धालुओं को करना परेशानियों का सामना पड़ा।

    मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राजगीर आगमन के बाद सब समरसता इतनी सख्त कर दी गई थी कि मुख्यमंत्री के आसपास मीडिया कर्मियों को भी जाने से रोका गया। गुरुद्वारा परिसर से लेकर सड़क मार्ग तक इतनी भीड़ थी की देखते ही देखते धक्का-मुक्की शुरू हो गई जिससे श्रद्धालुओं को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा।

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