Category: पुण्यतिथि

  • राम लखन सिंह वेद की 44 वी पुण्यतिथि के मौके पर उनके आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण किया।

    बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लाव लश्कर के साथ अपने पैतृक गांव हरनौत प्रखंड के कल्याण विगहा पहुंचे। जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्मृति वाटिका में अपने अपने पिता स्वर्गीय कविराज राम लखन सिंह वेद की 44 वी पुण्यतिथि के मौके पर उनके आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। मुख्यमंत्री के आगमन को लेकर कल्यानबीघा के चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा कर्मियों की तैनाती की गई थी।

    माल्यार्पण के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने पैतृक आवास भी गए और उन्होंने ग्रामीणों से मुलाकात कर उनकी समस्याओं के बारे में रूबरू हुए। वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कल्याण बीघा गांव का भ्रमण किया। अतिथि के मौके पर बिहार सरकार के कई मंत्रिब,सांसद कौशलेंद्र कुमार, हरनौत विधायक हरिनारायण सिंह,हिलसा विधायक प्रेम मुखिया,अस्थावां विधायक डॉ जितेंद्र कुमार समेत कई जदयू कार्यकर्ता व अन्य वरिष्ठ नेता मौजूद रहे।

  • डॉ. एस एन सुब्बाराव जी की प्रथम पुण्यतिथि मनाई गई

    देश और दुनिया के जाने माने प्रख्यात गांधीवादी और चंबल के दुर्दांत डाकुओं को आत्मसमर्पण कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ब्रह्मलीन डॉ. एस एन सुब्बाराव जी जिन्हे भाई जी के नाम से जाना जाता है ।उनकी प्रथम पुण्यतिथि का आयोजन सद्भावना मंच (भारत) के तत्वावधान में बिहार शरीफ कमरुद्दीगंज स्थित भारतीय जन उत्थान परिषद के सभागार में किया गया। प्रथम पुण्यतिथि की अध्यक्षता प्रख्यात शिक्षाविद तथा नालंदा महिला कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. डॉ. अनिल कुमार गुप्ता ने की ।

    जबकि संचालन मंच के संस्थापक और समाजसेवी दीपक कुमार ने की।
    पुण्यतिथि के मौके पर ब्रह्मलीन सुब्बाराव जी के चित्र पर उपस्थित लोगो ने माल्यार्पण कर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की ।
    कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. अनिल कुमार गुप्ता ने कहा कि सुब्बाराव जी देश के महान हस्ती थे और दूसरे गांधी के रूप में जाने जाते थे । वे हम सभी को राष्ट्रीय एकता और सद्भावना का पाठ आजीवन पढ़ाते रहे । उनका कार्यक्रम नालंदा महिला कॉलेज में हुआ था , उस समय लघु भारत का दृश्य उपस्थित हुआ था ।धन्य है ऐसे महापुरुष ।
    मौके पर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ.आशुतोष कुमार मानव ने कहा कि सुब्बाराव राष्ट्रीय एकता और अखंडता के महान दूत थे ।उनके द्वारा किए गए कार्य हमेशा हमेशा के लिए अमर रहेगा ।श्री मानव ने युवाओं को समाज सेवा हेतु प्रेरित किया और कहा कि अधिक से अधिक युवा समाजसेवा के क्षेत्र में आगे आए ।
    पुण्य तिथि के मौके पर समाजसेवी विनोद कुमार पांडेय एवम् समाजसेवी श्याम किशोर प्रसाद सिंह ने कहा कि सुब्बाराव जी के सानिध्य में रहकर सेवा भाव सीखने का मौका मिले ।
    वैसे व्यक्ति आज दुर्लभ है ।वे कथनी और करनी में मेल रखते थे ।और महान स्वतंत्रता सेनानी थे ।

    डॉ. सुब्बाराव जी की संक्षिप्त जीवनी

    ज्यादातर गांधीवादी चिंतकों और पत्रकारों का कहना है कि महात्मा गांधी और जयप्रकाश नारायण के बाद सुब्बाराव ही ऐसी हस्ती रहे, जिन्होंने देश के अधिकतम युवाओं को अहिंसक तरीके से राष्ट्र निर्माण के लिए प्रभावित और प्रेरित किया। वे एक संत की तरह जीवन जीते रहे। उनमें कोई दिखावा का भाव नहीं था। सादगी से रहते थे। युवाओं से घिरे रहते थे। बहुत कम उम्र में ही वे गांधी जी से प्रभावित हो गए थे और भारत छोड़ो आंदोलन ने कूद पड़े थे। उसके बाद वे वापस कभी नहीं मुड़े। वे गांधी के बताए रास्ते पर चलते ही गए। और चलते फिरते ही वे इस दुनिया से सदा के लिए चले गए। बहुत कम लोगों को इतनी लंबी जिंदगी जीने का मौका मिलता है।

    ऐसे महान व्यक्तित्व का पिछले दिनों 27 अक्टूबर को जयपुर के एक अस्पताल में निधन हो गया। वे 92 वर्ष के थे। सुब्बाराव का जन्म 7 फरबरी 1929 को कर्णाटक के बेंगलूर मे हुआ था। सुब्बाराव जी को लोग भाई जी के नाम से जानते थे ।उन्होंने 13 वर्ष की उम्र में आजादी के आंदोलन में हिस्सेदारी की और जेल गये। महात्मा गांधी के विचारों के प्रभाव में वे जीवन दानी बन गए। उन्होंने सारा जीवन सादगी से बिताया। एक हाफ पेंट सफेद आधी बाँहों की कमीज उनकी स्थाई भूषा थी। उन्होंने काफी लोगों को गांधी के विचारों से अवगत कराया और शिक्षित किया। जौरा में जो मुरैना जिले में है उन्होंने अपना आश्रम बनाया था ।यहां वे लगातार लंबे समय तक रहे और लोगों के बीच में काम करते रहें ।आस पास के आदिवासियों को शिक्षित संगठित और जागृत करने के लिए वे निरन्तर कार्य करते रहे।जब पहला दस्यु समर्पण हुआ था जिसमें आचार्य विनोबा भावे की भूमिका थी, उसमें भी सुब्बाराव जी ने प्रमुख भूमिका अदा की थी। बाद में जयप्रकाश जी के समक्ष जो आत्मसमर्पण उस समय के दस्युयों ने किया उसमें भी स्व सुब्बाराव जी की भूमिका थी। वे अपने समय का बेहतर प्रबंधन करते थे ,और शायद ही कभी खाली बैठते हो। अपने जीवन के आखिरी क्षण तक वह सक्रिय रहे।उनका सम्पूर्ण जीवन एक यायावर महर्षि की तरह बीता ।

    सुब्बाराव जिस तरह से वयोवृद्ध होते हुए भी काफी स्वस्थ जीवन जी रहे थे, उसके मद्देनजर उनके शुभचिंतकों को यह उम्मीद थी कि वे अपनी जिंदगी के एक शतक जरूर पूरे करेंगें ।लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। उनके विदा होने से देश भर में खास कर उनके प्रशिक्षित युवा काफी आहत हैं। और गांधी जगत में सन्नाटा छा गया है। क्योंकि इनकी जगह की भरपाई कोई नहीं कर सकता। डॉक्टर एसएन सुबाराव ने पिछले 8 दशकों तक देश विदेश के युवाओं का नेतृत्व किया। उनमें गांधीवादी मूल्य भरे और उन्हें अपने अपने इलाके में व्यावहारिक धरातल पर गांधी के संदेशों को उतारने के लिए प्रेरित किया । साथ ही जरूरत पड़ी तो उन्हें यथासंभव सहयोग भी किया। आज देश का कोई ऐसा कोना नहीं है, जहां उनके द्वारा प्रशिक्षित युवा नहीं हो,जहां उनके प्रशिक्षित युवा उनके गाए गीत ना गाते हों। वे सभी के बीच भाई जी और बच्चों के बीच फुग्गाराव के रूप में जाने जाते थे,क्योंकि जब वे किसी बच्चे से मिलते तो वे अपनी झोली से बैलून निकालते और उनको फुला के पकड़ा देते। विभिन्न आयोजनों के जरिए युवाओं की तरह वे बच्चों में भी अहिंसक संस्कार भरते रहे। पोशाक के लिहाज से वे भले जीवन भर खादी के हाफ पेंट और हाफ शर्ट पहनते रहे लेकिन विचारों और बर्ताव में वे पूरे गांधीवादी थे। उन्होंने गांधी और जयप्रकाश जैसा ही बेदाग जीवन जिया।

    उनके पूरे जीवन काल में किसी भी मुद्दे पर उन पर कभी कोई उंगली नहीं उठी और ना ही वे किसी आरोपों के घेरे में कभी आए। उनकी कथनी और करनी एक थी। उनके जीवन का एक एक पल पारदर्शी था। उनका जन्म भले कर्नाटक के बेंगलुरु में हुआ लेकिन वे केवल वहीं तक सीमित नहीं रहे। उनका अनौपचारिक आशियाना पूरी दुनिया में था। वे देश विदेश के कोने कोने में यात्रा करते रहते थे। उनका नाम देश में सबसे अधिक यात्रा करने वाले गांधीवादी के रूप में शुमार किया जाता रहा है। देश में जहां भी कोई अशांति होती, दंगे होते या किसी तरह का भी कोई तनाव होता। वे बिना देरी किए निर्भीक होकर वहां चले जाते और देश भर के सैकड़ों युवाओं को बुलाकर शांति बहाल करने में जुट जाते। वरिष्ठ गांधीवादी चिंतक अरविंद अंजुम कहते हैं कि गांधी और जयप्रकाश के चले जाने के बाद जो शून्य गांधी जगत में व्याप्त गया था, उसकी भरपाई सुब्बाराव कर रहे थे और अब उनके चले जाने के बाद उनकी जगह पर फिलहाल किसी के आने की दूर-दूर तक कोई उम्मीद नहीं दिखती है क्योंकि वे बहुत मौलिक थे ,वे वक्तव्यों से नहीं बल्कि राष्ट्र निर्माण के मायने भरे गीतों के जरिए गांधी का संदेश फैलाते रहे। वे सच में सच्चे गांधीवादी थे और उनके रोम रोम में गांधी के संदेश समाए हुए थे। उनका रहन-सहन, खान-पान और वेशभूषा सबसे अलग था जो दूर से ही पहचाने जा सकते थे। वे पूरी मानवता को एक सूत्र में बांधने की कोशिश करते रहे।वे चंबल में 1972 मे 654 बागियों के आत्म समर्पण और उनके पुनर्वास कर शांति स्थापित करने वाले अहिंसक संत की तरह हमेशा याद किए जाएंगे।

    वरिष्ठ समाज कर्मी रामशरण कहते हैं कि ना सिर्फ चंबल में शान्ति स्थापित करने जैसी बड़ी उपलब्धि हासिल की, बल्कि यह भी बहुत बड़ा काम था कि उन्होंने सैकड़ों शिविर लगा कर युवाओं को अहिंसा का पाठ पढ़ाया और राष्ट्र निर्माण के लिए उनका मार्गदर्शन भी करते रहे।27 अक्टूबर को उन्होंने जयपुर के हॉस्पिटल में ही अंतिम सांस ली।वे हमेशा हमेशा के लिए हम सभी से दूर चले गए।
    उनका अंतिम संस्कार मध्यप्रदेश के मुरैना स्थित महात्मा गांधी सेवा आश्रम जावरा के कैंपस में ही पुरे राजकिय सम्मान के साथ हुआ था ।

    कार्यक्रम का समापन समाजसेवी दीपक कुमार ने युवा गीत

    नौजवान आओ रे नौजवान गाओ रे ,गाकर किया । और सभी लोगो ने मुक्त कंठ से उनके सम्मान में राष्ट्रीय एकता एवम् भाईचारे संबंधी नारे लगाए।
    पुण्य तिथि के मौकेपर रोहित कुमार तिवारी ,संजीव कुमार ,नीरज कुमार ,
    पुष्पा पांडे ,सोनी कुमारी , गुड्डी कुमारी ,सविता कुमारी ,रणधीर कुमार ,रणवीर कुमार
    सहित बड़ी संख्या में युवा ,महिला एवम् समाजसेवी भाग लिए ।

  • श्रद्धा पूर्वक मनाई गई संत शिरोमणि प्रभु राम जी महाराज की पुण्यतिथि

    बिहारशरीफ-छोटी पहाड़ी स्थित रामसागर राम के आवास पर साहित्यिक मंडली शंखनाद के तत्वावधान में स्वतंत्रता सेनानी व लोकप्रिय आयुर्वेदाचार्य प्रकांड रामायणी संत शिरोमणि प्रभु राम जी की तृतीय पुण्यतिथि हर्सोल्लास के साथ शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की अध्यक्षता में साहित्यकारों, कवियों एवं समाजसेवियों ने स्व. प्रभु राम जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित एवं दीप प्रज्वलित कर श्रद्धा भाव से मनाई गई। कार्यक्रम का संचालन शंखनाद के मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने किया।

    कार्यक्रम में संगीतकार रामसागर राम, लक्ष्मीचंद्र आर्य एवं सुभाषचंद्र पासवान ने दिल को छू लेने वाले भजन- सब दिन होत न एक समाना एक दिन राजा हरिश्चन्द्र गृह कंचन भरे खजाना एक दिन भरे डोम घर पानी मरघट गहे निशाना सब दिन होत न एक समाना…,क्या तू लेकर जायेगा…, करीं हम कवन बहाना…, हर बात को तुम भूलो भले मगर माँ बाप को मत भूलना… सहित कई सुमधुर भजन-निर्गुण सुनाया।

    मौके पर साहित्यिक मंडली शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने बताया कि श्री संत शिरोमणि प्रभु राम जी बिहारशरीफ-छोटी पहाड़ी के शिक्षाविद् नाटककार रामसागर राम जी के पिता थे। ये पटना जिला के महाने नदी के तट पर स्थित बराह फतेहपुर में तपस्वी बाबा मठ के महंथ थे। स्वर्गीय प्रभु राम जी संत परम्परा के महान तपस्वी संत थे और ऋषि-कृषि व गौ सेवा तथा संत सेवा को ही अपना धर्म मानते थे।

    हमेशा मानव सेवा एवं संतों की सेवा में लगे रहते तथा आश्रम में जो भी व्यक्ति श्री प्रभु राम जी के सम्मुख आया वह खाली हाथ नहीं लौटा उसकी इच्छाओं की पूर्ति श्री प्रभु महाराज जी ने की। उन्होंने बताया कि श्री प्रभु जी हमेशा यही कहते थे कि मानव सेवा में ही परमात्मा का वास होता है और यह परम्परा हमेशा चलती रहनी चाहिए। और इस तपस्वी बाबा मठ में सदियों से सेवा चल रही थी और आज भी उनके शिष्यों द्वारा गौ सेवा एवं संत सेवा, मानव सेवा निरंतर चल रही है।

    मौके पर अध्यक्षता करते हुए साहित्यिक मंडली शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्रभु राम जी ग्राम-खिरौना, पोस्ट-रहुई, जिला-नालन्दा के निवासी थे। ये स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रीय भागीदारी दिए थे। आजादी के बाद वैष्णव संप्रदाय के फतेहपुर पटना मठ में रहते हुए प्रवचन दिया करते थे। आयुर्वेदाचार्य, जड़ी बूटियों के महान ज्ञाता संत प्रभु राम जी दूर-दूर से आये हुए रोगियों को फ्री में इलाज करते थे।

    ये अपने जीवन में हजारों भजन व गीत गाये व लिखे। उन्होंने कहा कि संत शिरोमणि प्रभु राम जी भारत-नेपाल सीमा के पास स्थित कोसी नदी पर सन 1958 से 1962 के बीच एक बाँध बनाया गया था, जिसमें ये श्रमदान किये थे। कोशी बांध बांधने में इनके कार्य कुशलता को देख कर इन्हें पुरस्कृत भी किया गया था। ये जीवनपर्यंत सरकारी लाभ लेने से इंकार किया। संत प्रभु राम जी वृद्धा पेंशन तक नहीं लिया। इनके दो पुत्र शिक्षक रामसागर राम एवं राम वृक्ष राम हैं, इनके पौत्र मशहूर गजलकार व कवि नवनीत कृष्ण एवं पुनीत हरे हैं।

    शंखनाद के वरीय सदस्य सरदार वीर सिंह ने कहा कि स्वर्गीय श्री प्रभु राम जी संत समाज व जीव सेवा को सदैव अपने कार्यों से प्रेरणा देने का कार्य करते रहे हैं। संतों के ही मार्गदर्शन में समाज आगे बढ़ रहा है। गुरु और शिष्य की परंपरा को सदैव संतों ने ही आगे बढ़ाया है। संतों के दर्शन मात्र से ही इस कलयुग में भवसागर पार किया जा सकता है।

    इस दौरान साहित्यकार इंजीनियर डॉ. आनंद वर्द्धन, शिक्षाविद् राज हंस जी, राजदेव पासवान, घनश्याम कुमार, जितेंद्र कुमार, तंग अय्यूबी, राजीव कुमार, समर वारिस, पुनीत हरे, गोल्डेन कुमार, संजीव कुमार, राधिका कुमारी, माला देवी सहित जिले के कई साहित्यकारों, कवियों व समाजसेवियों ने भाग लिया।

  • श्रवण कुमार,कौशलेंद्र कुमार रहुई प्रखंड के बलियाबीघा गांव पहुंचे।

    बिहार सरकार सरकार के मंत्री श्रवण कुमार और सांसद कौशलेंद्र कुमार रहुई प्रखंड के बलियाबीघा गांव पहुंचे। जहां उन्होंने मंत्री श्रवण कुमार ने अपने पीएस कौशलेंद्र कुमार के पिता का श्राद्धकर्म में शिरकत किया। इस दौरान रहुई प्रखंड अध्यक्ष राकेश मुखिया समाजसेवी अरविंद कुमार सिन्हा भी मौजूद रहे। गौरतलब है कि बिहार सरकार के मंत्री श्रवण कुमार के साथ करीब 9 सालो तक वर्तमान डीडीसी कौशलेंद्र कुमार ने सालों तक आप्त सचिव के पद पर काम कर चुके है। वर्तमान में कौशलेंद्र कुमार बांका जिले में उप विकास आयुक्त के पद पर कार्यरत है।

    मंत्री श्रवण कुमार ने उप विकास आयुक्त कौशलेंद्र कुमार के परिजनों से मुलाकात की और उन्हें सांत्वना भी दिया इस मौके पर मंत्री श्रवण कुमार ने नगर निकाय चुनाव पर हाई कोर्ट के द्वारा रोक लगाए जाने के सवालों पर कहा कि हाई कोर्ट के द्वारा दिए गए आदेश पर कोई टीका टिप्पणी नहीं किया जा सकता लेकिन सरकार आगे निर्णय लेने का काम जरूर करेगी निर्णय के उपरांत चुनाव जरूर होंगे सरकार इसको लेकर काफी गंभीर भी है।

  • स्वतंत्रता सेनानी नक्षत्र मालाकार की 35 वीं पूण्यतिथि पर विशेष

    राकेश बिहारी शर्मा – भारतीय जनता की मुक्ति और आजादी का एक ऐसा स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी योद्धा जो इतिहास में डकैत, हत्यारा, रॉबिनहुड कहलाया। जिसने आजादी के लड़ाई की शुरुआत कांग्रेस से की। बाद के दिनों में वह सोशलिस्ट हो गया और आखिर में कम्युनिस्ट। पर वह इन सबसे अलग अपनी तरह का निर्भीक क्रांतिकारी लड़ाका था, जो अत्याचारियों को सजा देता था। जमींदारों के गोदाम लूट लेता था और गरीबों में वितरित क्र देता था। नक्षत्र मालाकार यानी एक जीवित किंवदंती। इतिहास का ऐसा लिजेंड्री नायक जो ब्रिटिश और भारतीय दोनों सरकारों के लिए आजीवन ‘ए नोटेरियस’ डकैत और कम्युनिस्ट बना रहा। ये माली जाति के वीर योद्धा क्रांतिकारी नक्षत्र मालाकार माली समाज में जन्मे नक्षत्र मालाकार का नाम अंग्रेजों और देशी राज की फाइलों में “रॉबिनहुड” के नाम से विख्यात है।

    आज़ादी के पहले उनका अधिकांश जीवन अंग्रेज़ों तथा आततायी सामंतों से खूनी भिडंत में बीता, तो आज़ाद भारत में भी साजिस 14 साल तक उन्होंने जेल की सज़ा काटी। नक्षत्र मालाकार का जन्म तत्कालीन पूर्णिया जिले के समेली गांव में 9 अक्टूबर 1905 को एक गरीब माली परिवार में हुआ था। आज वह स्थान कटिहार जिले की सीमा में है। समेली बिहार का अपनी तरह का अकेला वह विलक्षण गांव हैं, नक्षत्र मालाकार के पिता लब्बू माली अत्यंत गरीब गृहस्थ थे। उनकी दो शादियां हुई थी। पहली पत्नी सरस्वती से दो पुत्र- जगदेव और द्वारिका हुए। पहली पत्नी के निधन के बाद दूसरी पत्नी लक्ष्मी देवी से दो पुत्र- नक्षत्र मालाकार और बौद्ध नारायण एवं तीन पुत्री- तेतरी देवी, सत्यभामा एवं विद्योतमा हुआ।

    पहले हुए नक्षत्र मालाकार। अपने 82 साल के जीवन का हर लम्हा उन्होंने सामंती शक्तियों के विरुद्ध लोहा लेते बिताया। नक्षत्र मालाकार के जन्म के सम्बंध में विभेद है। कहीं पर 1903 कहीं 1905 कहीं 1909 तो कहीं 1910 है। उनके जन्म को लेकर इस तरह की मतभिन्नता स्वयं उनके घर परिवार में भी है। निचले पायदान में जन्मी जातियों में कुंडली बनाने का विधान नहीं होने और अशिक्षा के कारण भी लोगों को उनके जन्मदिन याद नहीं रख सके थे। नक्षत्र की भी वास्तविक जन्म तिथि अनुमान पर ही तय की गई होगी। उनके घर बरारी में उनकी ही पहल पर स्थापित भगवती महाविद्यालय के रजिस्टर में उनका जन्म 9 अक्टूबर 1905 दर्ज है।

    यह प्रमाण स्वयं नक्षत्र जी ने ही कॉलेज को उपलब्ध करवाया था। एक दौर था जब 20 वीं सदी के तीसरे दशक से छठे दशक तक उतर बिहार में बस नक्षत्र मालाकार थे और उनकी तलाशी में पूर्णिया के गांवों-कस्बों के चप्पे-चप्पे की तलाशी लेती पुलिस। उन्हें गिरफ्तार करने के लिए कटिहार में बी.एम.पी.बटालियन-7 की स्थापना की गई। सरकार ने पूरे उतर बिहार के सिनेमा हॉल के रूपहले पर्दे पर उन्हें गिरफ्तार करवाने के इश्तेहार छपवाए। उस समय 25 हजार रुपए तक के इनाम की घोषणा की गई थी। लोग मार खा लेते, पुलिस की यातना सह लेते, लेकिन नक्षत्र मालाकार की सुराग नहीं बतलाते। यह थी उनकी लोकप्रियता का मास अपील। लोगों के लिए वह “रॉबिनहुड” थे- साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु के कालजयी उपन्यास ‘मैला आंचल’ के चरितर कर्मकार की तरह थे। उन्होंने दर्जनों लूट-पाट पुलिस और स्थानीय सामंतों के साथ की और उसका उपयोग मजलूम गरीब जनता के हित के लिए किया। पुलिस अफसर, मुखबिर, फसल की चोरी करने वाले लुटेरे और बलात्कारी सामंतों, महाजनों के नाक-कान काटे और उतर बिहार की जनता को अभयदान प्रदान किया। ब्रिटिश हुकूमत एवं गांव के सम्भ्रांत कहे जाने वाले जागीरदारों, जमींदारों और सवर्ण ऊंची जातियों के उत्पीड़न से शोषित-पीड़ित समाज को मुक्ति दिलाने वाले महान क्रांति योद्धा थे नक्षत्र मालाकार।

    भारतीय स्वाधीनता संग्राम, उसके इतिहास लेखन और उसकी पूरी वैचारिकी पर इस तरह के पूर्वाग्रह की गहरी छाया आप देख सकते हैं। बिहार का दृष्टांत लें तो यह खाई स्पष्ट तौर पर आजादी के आंदोलन के दौर के इतिहास लेखन से लेकर आज तक के लेखन में आपको पैबस्त नजर आएगी। इसकी जीवंत मिसाल नक्षत्र मालाकार हैं। बिहार में साम्राज्यवाद और सामंतवाद विरोध के वे सबसे बड़े प्रतीक रहे हैं। इतने बड़े प्रतीक कि अंग्रेजी शासन में 9 बार जेल गए और सामंती, महाजनी, प्रतिगामी शक्तियों के विरोध के कारण आजादी के बाद कांग्रेसी शासन में भी आजीवन कारावास की सजा पाई। लेकिन यह बिडम्बनापूर्ण सच है कि उन पर न तो कोई किताब है, न ढंग के कोई शोध ही। समाज में पददलित लोगों का भलाई स्वतंत्रता सेनानी नक्षत्र मालाकार का चिरकालिक लक्ष्य था। इसी आबादी की मान-मर्यादा के लिए वे आजीवन संघर्ष करते रहे। पूर्णिया में उनके ही प्रयासों से सिपाही और ततमा या तांती समुदाय का टोला बसाए गए।

    रूपौली गांव में मोल बाबू जमींदार द्वारा दान दी गई 14 बीघा जमीन दलित समूह में वितरित हुआ। बखरी और समेली के बीच दरभंगा महाराज की 300 एकड़ जमीन परती पड़ी थी। इसमें 10 गांव की मवेशी चरते थे। कुछ जमींदारों ने उसकी बंदोबस्ती चुपके से अपने नाम करवा ली और उसमें खरी फसल बो दी गई। नक्षत्र ने अपनी 300 गरीब मजदूर सेना के साथ फसल में मवेशी घुसा दी और अंततः वह जमीन पूर्व की भांति लोगों के उपयोग में आने लगी। पूर्णिया जिला में पदस्थापित पदाधिकारी साहित्यकार सुबोध कुमार सिंह बतलाते हैं कि एक समय रूस से उन्हें चिट्ठी आई थी। वहां की सरकार उन्हें सम्मानित करना चाहती थी, लेकिन पूर्णरूप से शिक्षित नहीं होने के कारण वे वहां नहीं जा सके। उन्होंने जनता से 90 एकड़ जमीन इकट्ठा की और अपने गांव बरारी में भगवती मंदिर महाविद्यालय की स्थापना की। महाविद्यालय के नाम रजिस्ट्री के केवला में अध्यक्ष के रूप में उन्हीं का नाम है। अंतिम समय में नक्षत्र ने एक और दुर्लभ काम किए। यह लोक जीवन से जुड़ा अपनी तरह का अनूठा काम था जो उन्होंने लोगों की संगठित श्रम शक्ति से पूरा किया।

    पूर्णिया नगर से 7 किलोमीटर दक्षिण हरदा गांव के निकट हजारों एकड़ में फैला हुआ था भुवना झील। नक्षत्र ने अंग्रेजी हुकूमत के समय से ही यह दरख्वास्त की थी कि इस झील से एक नहर निकालकर कटिहार के निकट कारी कोशी में मिला दी जाए तो हजारों एकड़ जमीन पानी से बाहर आ जाएगी। सेमापुर एवं कटिहार के बीच प्रसिद्ध यह भुवना झील पौन मील चैड़ी और 18 मील लंबी झील थी। उन्होंने कांग्रेसी सरकार से भी अपील की लेकिन जब कोई नतीजा नहीं निकाला तो गरीब किसान और मजदूरों को एकजुट कर 1 मई, 1967 को कुदाल डलिया लेकर भुवना झील की खुदाई में हाथ लगा दिया। इस पर बड़े जमींदारों ने उन पर मुकदमा चलाया। तत्कालीन जिला पदाधिकारी, आरक्षी अधीक्षक पुलिस बल के साथ झील की खुदाई रोकने आए किंतु किसान मजदूरों की संगठित चट्टानी एकता का वे बाल बांका नहीं कर पाए। जल्द ही भुवना झील से नहर कटिहार के निकट कारी कोशी में मिला दी गई। जल स्रोत वेग के साथ कारी कोशी के साथ मिलकर भवानीपुर गांव के निकट गंगा नदी में मिल गया। इससे जो जमीन बाहर निकली मालाकार जी ने उन्हें किसान मजदूरों के बीच बांट दी। वह नहर नदी के रूप में आज भी वहां के लोकमानस में मालाकार नदी के रूप में जानी जाती है। सामाजिक गैर बराबरी को मिटाने के लिए अपने यहां कई तरह के आंदोलन हुए हैं।

    बुद्ध, फुले, आंबेडकर, पेरियार से लेकर नक्सलवाद तक में हम इसका विस्तार देख सकते हैं। नक्षत्र मालाकार इतिहास की इसी धारा का प्रतिनिधित्व करने वाले अपनी तरह के विलक्षण समाज सुधारक थे। अपराधी की नाक-कान काटना-यह उनका दंड विधान था, जो सीधे-सीधे समाज से जुड़ता था। इसके पीछे उनकी धारणा रही होगी कि दंड पानेवाला समाज में निंदा और उपहास का पात्र बनने के लोक-लाज से अनैतिक काम करने से डरेगा, गरीबों के उत्पीड़न से बाज आएगा। सामाजिक बहिष्कार का इससे बड़ा दंड दूसरा नहीं हो सकता। नवजागरण पर काम करनेवालों के लिए नक्षत्र का यह प्रयोग एक रिसर्च का दिलचस्प विषय हो सकता है। अपनी अप्रकाशित डायरी में नक्षत्र ने उस दौर के जो अनुभव साझा किए हैं उसमें उनके जीवन संघर्ष का पूरा परिवेश अपनी पूरी रंगत के साथ उपस्थित है। यहां वे विस्तार से चिन्ह्ति करते हैं कि अंग्रेजी अफसरों और सामंतों का संयुक्त मोर्चा उन्हें और उनके साथियों को बदनाम करने के लिए किस तरह लूट-पाट और बलात्कार की घटना को अंजाम दे रहा था। नक्षत्र मालाकार कांग्रेस, कांग्रेस सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट तीनों पार्टियों में अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ता रहे थे इसलिए ऐसी बदनामियों से भी बेदाग निकले। लेकिन आज बिहार की नई पीढ़ी क्रांति योद्धा नक्षत्र मालाकार को नहीं जानती। इनके द्वारा स्वतंत्रता संग्राम में किए गये काम का कोई विधिवत संरक्षण नहीं किया गया। यह सब इसलिए नहीं हुआ क्योंकि ये बिहार के पिछड़े समुदाय माली जाति के थे। यह जबावदेही बिहार के अकादमिक जगत की थी कि वह इस तरह के आदर्श लोगों का लिखा, किया संजोता और उसका प्रकाशन करता।

    लेकिन बिहार के अकादमिक जगत में जिन जाति समूहों का कब्जा है उसके रहते यह सब संभव नहीं। इतिहास उनका लिखा जाता है जिन्होंने कुर्बानियां दीं, स्थापित व्यवस्था और सत्ता को चुनौती दी, लेकिन बिहार में अभी भी उच्च जाति के नेताओं के नाम ही निर्माता के रूप में अकादमिक जगत की पुस्तकों के सिरमौर हैं। बिहार राज्य अभिलेखागार के प्रकाशनों पर नजर दौड़ाएं तो यह बात बखूबी समझी जा सकती है। 27 सितंबर, 1987 को अपने घर पर ही किडनी फेल हो जाने के कारण इलाज के अभाव में उनकी मौत हो गई। उस समय वे 82 वर्ष के थे। अपने दौर के इतने बड़े दिग्गज का पूरा घर परिवार समाज की सेवा में इसी तरह अपने को होम करता हुआ एक साधारण गरीब की तरह इलाज के अभाव में मरा। जातिवादी अकादमिक बिरादरी इतिहास में उनकी एक दूसरी मौत का जश्न मना रहा है

    उनकी आपराधिक उपेक्षा करके। लेकिन जन-जन का नायक-हमारा चिरंतन विद्रोही कभी नहीं मरता! वह इतिहास के रंगमंच पर एक बार फिर अवतरित हो रहा है- आकाश में हमेशा चमकते ध्रुव नक्षत्र की तरह! नक्षत्र मलाकार शायद भारत के स्वतंत्रता संग्राम के उन सिपाहियों में थे जिन्हें यह पता चल गया था कि भारत की नयी व्यवस्था वास्तव में शक्ति का हस्तांतरण था, एक तरह का सत्ता परिवर्तन था। इससे बदलाव तो आएगा लेकिन गरीबों के लिए यथेष्ट नहीं होगा। इसलिय संघर्ष विराम देने के बदले उसके नये आयाम खोलने होंगे। भले ही उनका तरीक़ा गांधीवादी नहीं था लेकिन उद्देश्य गांधी के क़रीब था। साधन और साध्य के बहस में वे गांधी के पक्ष में भले ही नहीं हों लेकिन वह चरित्र गांधीवादी था।