Category: यशोगाथा

  • सूखाग्रस्त क्षेत्र में किसान ने लगन से सीताफल के बाग को फुलाया और लाखों का मुनाफा कमाया

    हैलो कृषि ऑनलाइन: औरंगाबाद के पैठण तालुक के कुछ हिस्से पिछले कई दिनों से सूखे और सूखे के संकट का सामना कर रहे हैं। खेतकगार पर है। इसलिए किसानों को कृषि में लगातार असफलता का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन जिले के रहने वाले संजय कांसे ने आधा एकड़ सीताफल को दृढ़ संकल्प, उचित योजना और मेहनत से लगाकर लाखों का मुनाफा कमाया है। वहीं, उनके बगीचे से करीब 11 टन सीताफल की बिक्री हो चुकी है।

    संजय कांसे धनगांव के एक छोटे किसान हैं। पहले पारंपरिक फसल उगाने वाले कांसे ने कुछ अलग करने का फैसला किया और 2016 में अपने आधे एकड़ के खेत में धनिया का बाग लगाया। इसके साथ ही अन्य क्षेत्रों में भी मौसम्बी की खेती की जाने लगी है। जिसमें कांसे ने सोलह बाई सोलह फीट पर 600 पौधे रोपे। इस दौरान सूखे जैसे संकट भी आए। लेकिन इसके माध्यम से मिला और आसपास की योजना के साथ बगीचे को बनाए रखना जारी रखा। अब उनकी मेहनत रंग ला रही है। आज एक पेड़ पर 35 से 40 किलो फल लगते हैं।


    किसान को अच्छी कीमत मिल रही है

    तीन साल से किसान कर रहे मक्का का उत्पादन, इस साल आधा एकड़ क्षेत्र में सीताफल लगाकर करीब 20 टन उत्पादन किया जा सकता है। पंद्रह दिन पहले संजय कांसे के सीताफल के पहले व दूसरे फल की छंटाई की गई है। इसमें उन्हें 110 रुपये प्रति किलो का रेट मिला और किसान को सालाना 12 लाख रुपये का अच्छा मुनाफा हो रहा है. वहीं अब तक करीब 11 टन सीताफल की बिक्री हो चुकी है। अन्य 9 से 10 टन फलों का उत्पादन होगा।

    इसका मूल्य कितना है?

    एक फल का वजन 500 से 700 ग्राम होता है। किसान ने इसकी खेती पर 80 से 90 हजार रुपए खर्च किए हैं। इस पौधे की ख़ासियत यह है कि मिलीबग रोग के अलावा कोई अन्य कीट इस फसल को प्रभावित नहीं करते हैं। लेकिन इस साल जब फूलों की बुआई शुरू हुई तो शुरुआत में तेज बारिश हुई तो फल लगने में बड़ी दिक्कतें आईं। लेकिन कृषि के क्षेत्र के जानकारों की सलाह से किसान कांसे ने सीताफल की खेती करने में सफलता हासिल की है.


  • बे-मौसम में किसान ने कलिंगाड़ा लगाया, जिससे लाखों का मुनाफा हुआ

    हैलो कृषि ऑनलाइन: किसान अपनी फसल के दाम को लेकर परेशान हैं। लेकिन अगर सही जानकारी और सही तरीका कृषि किया जाए तो यह समस्या दूर हो सकती है और लाभ भी बढ़ सकता है। कुछ ऐसा ही किया गया है। अकोला जिले के रहने वाले किसान अन्नता भीकाजी इंगले। इस किसान ने बेमौसम में अपने पांच एकड़ में कलिंग की खेती की।

    वर्तमान में किसान को 17 रुपये प्रति किलो मिल रहा है। और इस बार तरबूज ट्रकों से बंगाल, हैदराबाद, केरल और कन्याकुमारी भेजे जा रहे हैं. किसान ने कहा कि अनुमान है कि 5 एकड़ में 100 टन तरबूज का उत्पादन होगा। अभी कीमत 17000 रुपए प्रति टन है। जिसके लिए उन्हें ढाई लाख रुपये मिलने की उम्मीद है। किसान ने कहा कि ऑफ सीजन में तरबूज की गुणवत्ता अच्छी कीमत मिलती है।


    बारिश से नुकसान

    किसान ने इसकी जानकारी देते हुए बताया कि इससे पहले उसने जून और अगस्त के महीने में अपनी 10 एकड़ जमीन में कलिंग की फसल उगाई थी. लेकिन भारी बारिश के कारण फसलों को नुकसान हुआ है। 10 एकड़ में 150 टन कलिंग उगाई जाती है, लेकिन बारिश और जलवायु परिवर्तन के कारण उन्हें 10 टन ही मिला। फिर सितंबर में उन्होंने फिर से 5 एकड़ में कलिंगदा लगाया और अब उन्हें अच्छी कीमत मिल रही है। पिछले पांच सालों से किसान ऑफ सीजन में कलिंगदा लगा रहे हैं। अकोला जिले में केवल अनंत भीकाजी बेमौसम में तरबूज की खेती करते हैं।

    अन्नता भीकाजी ने कहा कि वे न केवल ऑफ सीजन में कलिंगदा लेते हैं बल्कि पपीता और खरबूजा भी उगाते हैं। कलिंगाड की खेती में उन्हें प्रति एकड़ कम से कम 70 से 80 हजार रुपए का खर्च आता है। भीकाजी ने कहा कि ऑफ सीजन में इसकी अच्छी कीमत मिलती है। वे इन फलों की खेती मानसून और ठंड के मौसम में करते हैं। किसान ने प्लास्टिक मल्चिंग विधि से खेती की है। और इससे फल की गुणवत्ता अच्छी बनी रहती है।


    स्रोत टीवी 9


  • ओसाड जमिनीवर केली डाळिंबाची यशस्वी लागवड, शेतकऱ्याला लाखोंचा नफा

    नमस्ते कृषि ऑनलाइन: महाराष्ट्र के किसान अब पारंपरिक कृषि को छोड़कर विभिन्न प्रयोगों के माध्यम से बागवानी की ओर रुख कर रहे हैं। ऐसा ही एक प्रयोग औरंगाबाद के पैठण तालुक के कोलीबोदखा गांव के किसान कृष्णा चावरे ने किया है. चावरे ने अपने दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से पथरीली बंजर भूमि पर अनार लगाए और अब बाग खिल रहा है। और किसान को लाखों का लाभ भी मिल रहा है। किसान के इस अनार के बगीचे को देखने के लिए दूर-दूर से किसान आ रहे हैं। वर्तमान में उनके बगीचे से एक कैरेट अनार की कीमत 3100 रुपये से 2100 रुपये प्रति कैरेट है।

    चावड़ा पहले पुश्तैनी खेती में कपास, अरहर और प्याज की फसल उगाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन भूमि पथरीली होने के कारण कोई उत्पादन नहीं हो रहा था। इसलिए कुछ अलग करने की कोशिश करने का फैसला किया। इसके बाद उन्होंने सात एकड़ जमीन में अनार लगाया। चावरे ने कहा कि इस वर्ष उचित योजना बनाकर पहली बार अनार से पच्चीस लाख का लाभ प्राप्त होगा।


    कृष्णा चावरे ने पारंपरिक खेती छोड़कर कुछ नया करने का फैसला किया। चूंकि वह खुद कृषि सेवा केंद्र चलाते हैं, इसलिए उन्होंने अपने सात एकड़ के खेत में अनार का बाग लगाने का फैसला किया। उन्होंने 2020 में कृषि की योजना बनाई और 2000 हजार पेड़ लगाए। इस दौरान उन्हें कई संकटों का भी सामना करना पड़ा। किसान कृष्ण ने कहा कि उन्होंने अपने बगीचे को उचित योजना और कृषि सलाह से विकसित किया। अब वे पहले साल में पूरे फल बेचेंगे। और वे लाखों लाभ कमाने की उम्मीद करते हैं। चावरे को अनार के बाग के लिए अपनी मेहनत का फल मिला है।

    सात एकड़ में लगे अनार के पौधे

    चावरे के पास कोलीबोदखा शिवर में अपनी पुश्तैनी जमीन है और उन्होंने सात एकड़ में दो हजार पौधे लगाए हैं और अब उनका अनार का बाग खिल रहा है। और बाकी क्षेत्र में अरहर की बुवाई की गई है। किसान ने कहा कि उसने अनार के बगीचे के लिए ढाई लाख रुपये खर्च किए। अब उन्हें सालाना पच्चीस लाख के लाभ की उम्मीद है। चावरे के अनार नासिक में बेचे जाते हैं। फिलहाल उन्हें इसके लिए 3100 से 2100 रुपये प्रति कैरेट मिल मिल रहा है।


    बगीचों पर रोग का आक्रमण

    इस साल मराठवाड़ा में भारी बारिश हुई है और पिछले तीन साल से यही स्थिति है. पैठण तालुका में अनार के किसान भी प्रभावित हुए। कभी-कभी बूंदाबांदी तो कभी तेज बारिश के कारण अनार के बागों में तेल रोग, काला धब्बा जैसे रोग बढ़ गए, जिससे किसान अपने बागों को नष्ट करने को मजबूर हो गए। लेकिन पैठण के कोलीबोड़खा के कृष्ण चावरे भी दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत के साथ पथरीली मिट्टी पर अनार के बाग लगाकर ऐसी परिस्थितियों का डटकर मुकाबला किया।


  • Jackfruit Plants Went To Mauritius From India

    हॅलो कृषी ऑनलाईन : शेतकरी मित्रांनो फणस (Jackfruit Cultivation) म्हंटल की आपल्या नजरेसमोर आपसूकच कोकण आल्याशिवाय राहत नाही. मात्र कोकणातला फणस आता सातासमुद्रापार पोहचलाय. पहिल्यांदाच भारतातून फणसाची झाडं परदेशात पाठवण्यात आली आहेत. विशेष म्हणजे महाराष्ट्रातल्या लांजा या गावामधून ३०० फणसाची झाडं मॉरिशसला पाठवण्यात आली आहेत. ही किमया घडवून आणली आहे फणसकिंग म्हणून प्रसिद्ध असलेल्या हरिश्चंद्र देसाई व त्यांचे सुपुत्र जॅकफ्रुट अँथ्रॅपनार मिथिलेश देसाई ह्यांनी… त्यांच्या फार्मर प्रोड्युसर कंपनी च्या माध्यमातून देशातून पहिल्यांदाच परदेशात म्हणजेच मॉरिशस देशात फणसाची झाडे पाठवली आहेत.

    यापूर्वी इतके वर्ष परदेशातून फणसाची झाड केरळ, कर्नाटक, महाराष्ट्र इथे आली पण परदेशात पहिल्यांदाच गेली आहेत. उदेश ह्या मॉरिशस मधील शेतकरी ह्यांनी ही ३०० झाड नेली असून ते देखील त्यांच्या देशातील पहिले शेतकरी आहेत जे फणसाची (Jackfruit Cultivation) बागायत शेती करणार आहेत. अर्थातच ही बाब केवळ महाराष्ट्रासाठी नव्हे तर संपूर्ण देशासाठी अभिमानस्पद आहे.

    निर्यातीसाठी अनोख्या तंत्रज्ञानाचा वापर

    देसाई पितापुत्रांपुढे सर्वात मोठा प्रश्न होता की ही ३०० झाडं परदेशात पाठवायची कशी ? तसे पाहायला गेले तर तर रोप लागवडीसाठी देताना मातीसहित दिली जातात मात्र ही फणसाची ३०० झाड मातीशिवाय सहीसलामत केवळ ३ बॉक्स बॉक्स मधून पाठवण्यात आली आहेत. माती काढून, मुळं धुवून व मॉइश्चर साठी टेक्निक वापरून ही ९ वेगवेगळ्या व्हरायटीची ३०० झाड ३ बॉक्स मधून पाठवण्यात आली आहेत. ३०० झाडांच्या बॉक्सचे वजन फक्त २० किलो इतकं झालं. म्हणजे आज पर्यंत देसाई हे फणसाची झाड देशभर पाठवत होते पण सोबत आता भविष्यात अनेक देश- विदेशामध्ये पाठवण्याचा त्यांचा (Jackfruit Cultivation) मानस आहे. शिवाय अशा वैशिष्ट्यपूर्ण पद्धतीने जर इतरही झाडं परदेशात जाऊ लागली तर शेती निर्यात क्षेत्रात एक मोठी क्रांती घडू शकेल असा विश्वास मिथिलेश यांनी ‘हॅलो कृषी ‘ सोबत बोलताना व्यक्त केला.

    नोकरीपेक्षा शेतीत रमणे उत्तम …

    मिथिलेश यांचे वडील फणसकिंग म्हणून प्रसिद्ध आहेत. २०१४ सालापासून इतर काजू आणि आंबा पिकासोबत त्यांनी फणस लागवडीला सुरुवात केली. स्वतः कृषी पदविका प्राप्त केलेले मिथिलेश. यांनी नोकरीचा मार्ग झुगारून शेती क्षेत्रात काम करण्याचे ठरवले. कठीण प्रसंग नाही आले असे नाही पण मोठ्या हिमतीने त्यांनी आज फणस लागवड क्षेत्रात आपलं नाव कमावले आहे. सध्या त्यांच्याकडे २७ एकर शेती असून १५ एकर क्षेत्रावर फणस लागवड केली जाते. ८६ प्रकारच्या फणसाची विविध जाती त्यांच्याकडे आहेत. त्याची स्वतःची शासनमान्य नर्सरी असून यंदाच्या वर्षी संपूर्ण देशभरात फणसाची २०,००० झाडं विकली आहेत. पुढे फूड प्रोसेसिंग युनिट सुरु करण्याचा त्यांचा मानस आहे. या कामात त्यांना कुटुंबातील सर्वांची मदत मिळते असे ते सांगतात.

    फणस शेती फायद्याची (Jackfruit Cultivation)

    फणस म्हणजे झिरो मेंटेनन्स असणारे झाड आहे. ते मोठ्या प्रमाणात कार्बन डायॉक्साईड शोषून घेते आणि मुळांद्वारे जमिनीत सोडते. त्यामुळे पर्यावरणाचे संतुलन राखण्यात ही झाडं अव्वल आहेत. शिवाय फणस फक्त कोकणातच उगवतो असे नाही त्याच्या अनेक जाती आहेत. तुमच्या हवामान आणि जमिनीनुसार तुम्ही त्याच्या विशिष्ट जातीची शेती करू शकता. फणस शेती मधून शेती क्रांती घडू शकते जेणे करुन येत्या काळात फणस पीक (Jackfruit Cultivation) असे आहे की जगाची भूक १०% टक्याने भागवेल अशी क्षमता ह्या फणस लागवडी मध्ये आहे. असे मिथिलेश सांगतात. फणसाची शेती शेतकऱ्यांना चांगला पर्याय आहे असे ते म्हणतात.

    संपर्क : मिथिलेश देसाई -८२७५४५५१७६,

  • A Farmer Is Earning 10 lakh Rupees A Year

    हॅलो कृषी ऑनलाईन : शेतकरी मित्रांनो, असे अनेक शेतकरी आहेत जे आपल्या अडचणींवर मात करीत नवीन काहीतरी करून नफा कमवतात आजच्या लेखात आपण अशाच एका शेतकऱ्या विषयी जाणून घेणार आहोत ज्यांनी शेतीचा आधुनिक मार्ग (Business Idea) स्वीकारला आणि आता ते नफ्याची शेती (Farming) करत आहेत. हरियाणा मधील हिस्सार येथील रहिवासी शेतकरी परविंद्र भाटिया यांच्याकडे शेती म्हणजे तोटा अशीच परिस्थिती होती. मात्र आज ते प्रत्येक वर्षी दहा लाखांचा नफा शेतीमधून कमवत आहेत.

    हरियाणा कृषी विद्यापीठ, हिसारच्या शास्त्रज्ञांच्या सल्ल्यानुसार परविंद्र यांनी त्यांच्या शेतात पॉली हाऊस (Poly House) बनवले आणि त्यात लाल, पिवळी आणि हिरवी शिमला मिरची उगवली. त्याचबरोबर आंबा, किन्नू, डाळिंब, लिंबू इत्यादींच्या बागा त्यांनी लावल्या आहेत. काकडी, खरबूज आणि टरबूज, विशेषतः उन्हाळ्यासाठी, देखील चांगले उत्पन्न देतात. विशेष म्हणजे झाडे व रोपांना सिंचनासाठी सीपेज पद्धत वापरली जाते . स्थानिक व्यापारी त्यांचा तयार भाजीपाला व फळे खरेदी करतात.

    परविंदर भाटिया यांनी सांगितले की, त्यांच्याकडे २८ एकर जमीन आहे. ते पूर्वी पारंपरिक पद्धतीने शेतीही करायचे. गव्हाची लागवड कधी हवामानामुळे तर कधी रोगराईमुळे तोट्याची (Business Idea) ठरत होती. यासोबतच पाण्याचा खर्चही भरमसाठ असल्याने कालव्याचे पाणी व कूपनलिका यातून ते भागवले जात नव्हते. 2004 साली त्यांनी शेतीत नवनवे प्रयोग सुरू केले. त्यासाठी कृषी तज्ज्ञांची भेट घेतली. हरियाणा कृषी विद्यापीठात जाऊन त्यांनी तज्ज्ञांचा सल्ला घेतला आणि आधी फळे आणि नंतर भाजीपाल्याची लागवड सुरू केली.

    नवीन पद्धती, बियाणांचा फायदा

    परविंदर भाटिया म्हणाले की, शेतकऱ्यांनी बाजारपेठेची गरज लक्षात ठेवावी. आपल्या लागवडीचा उल्लेख करताना ते म्हणाले की, डिसेंबरमध्ये खरबूजाची लागवड केली जाते, ती एप्रिलच्या पहिल्या आठवड्यात बाजारात विकली (Business Idea) जाते. त्यावेळी खूप मागणी असते. सध्या ते १८ एकरात बागायती करत असून त्यात चार एकरात पेरू, चार एकरात किन्नू, चार एकरात लिंबू, एक एकरात हंगामी, मनुका, खजूर आदींची लागवड करत आहेत. तीन एकरात पॉली हाऊस बांधण्यात आले असून त्यात शिमला मिरची लागवड करण्यात आली आहे.

    हजारो लिटर पाण्याची बचत

    आपल्या शेतीत कमीत कमी रसायनांचा वापर करणारे परविंद्र पाण्याचीही भरपूर बचत करतात. ठिबक पद्धतीने (Drip Irrigation) सिंचनासाठी त्यांनी शेतात टाकी बनवली आहे. यामध्ये कालव्याचे पाणी गोळा करून त्यातून सिंचन केले जाते. त्यामुळे शेतात पाण्याचा थेंबही वाया जात नाही. याशिवाय पिकांचा दर्जाही चांगला आहे.

     

     

     

     

     

     

  • सांगलीत पिकतोय महागडा काळा तांदूळ ; आसाममधून बियाणे मागवून जिल्ह्यात केला पहिलाच प्रयोग…

    हॅलो कृषी ऑनलाईन : सकलेन मुलाणी, सांगली

    सांगलीच्या शिराळा तालुक्यातील पुनवत: सागाव येथील प्रगतिशील शेतकरी शशिकांत रंगराव पाटील यांनी शेतात ‘ब्लॅक राईस’ जातीच्या भाताचे पीक घेतले आहे. या भाताचे बियाणे त्यांनी आसाममधून मागविले आहे. एक वेगळा प्रयोग करत काळा भात पीक घेण्याचा हा जिल्ह्यातील हा पहिलाच प्रयोग आहे. मात्र परिसरात या भात पिकाचा विषय चांगलाच रंगत आहे..

    शिराळा तालुक्यात खास करून भात शेती केली जाते. शशिकांत पाटील सात एकर शेतीत नेहमीच नवनवीन प्रयोग करत असतात. यावर्षीच्या खरीप हंगामात पारंपरिक भात बियाणांपेक्षा नवीन प्रयोग करण्याच्या उद्देशाने त्यांनी मित्रांच्या साहाय्याने आसाममधून ब्लॅक राईस हे २०० ते २५० रुपये किलो असलेले महागडे बियाणे मागविले.

    ढोलेवाडी रस्त्यालगत असलेल्या शेतात त्यांनी २३ मे रोजी या भाताची पेरणी केली. पेरणीतून उगवलेल्या रोपांतून त्यांनी बाजूच्या दुसऱ्या क्षेत्रात जुलै महिन्यात रोपलागण केली.पेरणी केलेल्या पिकापेक्षा लागणीचे पीक अधिक चांगले आहे. सध्या हे भात परिपक्व होत आलेले आहे.या भाताची लाबी आणि आतील तांदूळ काळ्या रंगाचा आहे. साधारण सात गुंठ्यांत घेतलेले हे पीक इतर भात पिकापेक्षा जास्त म्हणजे जवळजवळ चार-साडेचार फूट उंचीचे झाले आहे. या पिकासाठी त्यांनी सेंद्रिय आणि रासायनिक खतांचा वापर केला आहे.

    शिराळा तालुक्यातील पोषक वातावरणात हा भाताचा प्रयोग यशस्वी ठरत असून यातून चांगले उत्पन्न मिळेल असा पाटील यांना विश्वास आहे.परिसरात या भात पिकाचा विषय चांगलाच रंगत आहे. हा तांदूळ खाण्यास पौष्टिक आणि आरोग्यवर्धक आहे. हा तांदूळ शिजण्यास वेळ लागतो.पण पौष्टिक असतो.या तांदळाची किंमत ही जास्त आहे.उत्पादक शेतकऱ्याला ही चांगला नफा मिळवून देते.

  • Soybean : याला म्हणतात कष्टाचं चीज ! सोयाबीन रोपाला तब्बल 417 शेंगा




    Soybean : याला म्हणतात कष्टाचं चीज ! सोयाबीन रोपाला तब्बल 417 शेंगा | Hello Krushi











































    हॅलो कृषी ऑनलाईन : कमी वेळात चांगले उत्पादन आणि उत्पन्न देणारे पीक म्हणून शेतकरी सोयाबीन (Soybean) या पिकाची लागवड करतात. त्यात मागच्या दोन तीन वर्षांपासून सोयाबीनला बाजारात चांगली किंमत मिळवू लागल्याने अनेक शेतकऱ्यांचा कल सोयाबीन लागवडीकडे आहे. यंदाच्या वर्षी देखील राज्यातील अनेक शेतकऱ्यांनी सोयाबीन पिकाची लागवड केली आहे. मात्र अनेक भागात पावसामुळे सोयाबीनला फटका बसला आहे. बऱ्याच ठिकाणी सोयाबीन वर रोग आणि किडींचा हल्ला झाला आहे. तर काही ठिकाणी शेंगाचा भरल्या नाहीत. असे असताना परभणी मधील एका शेतकऱ्याच्या शेतात एका रोपाला तब्बल ४१७ शेंगा लागल्या आहेत.

    होय …! आम्ही बोलत आहोत परभणी जिल्ह्यातल्या पालम तालुक्यातल्या मुक्काम खोरस येथील शेतकरी गणेश रामराव दाढे (३२) या शेतकऱ्याबद्दल… खरे तर या भागात सर्रासपणे कपाशीचे पीक घेतले जाते. पण कपाशीच्या पिकाला खर्च येत असल्यामुळे यंदा दाढे यांनी सोयाबीन (Soybean) लागवड करायची ठरवली. पण ते एवढं सोपं नव्हतं. कारण या निर्णयाला घरच्या मंडळींसहित गावातील मित्रपरिवाराचाही विरोध होता. मात्र या सगळ्यांचा सल्ला झुगारत दाढे यांनी सोयाबीनचा घ्यायचे ठरवले. सुरवातीला लोक त्यांच्यावर हसत होते. मात्र त्यांच्या कष्टाचे चीज झाले असून त्यांच्या सोयाबीन पिकाला चांगल्या शेंगा आल्या आहेत.

    दाढे यांनी सोयाबीनचे (Soybean) वाण KDS 726 याची लागवड केली. २५ एकरमध्ये लागवडीसाठी त्यांना १८ बॅगा बियाणे लागले. विशेष म्हणजे या वाणाची बॅग 22 किलोची असते. इतर बॅगा 30 किलोच्या असतात. पिकाचे योग्य व्यवस्थापन केल्यानंतर त्यांना एकरी 15 क्विंटल प्रमाणे विक्रमी 300 क्विंटल पेक्षा जास्त सोयाबीन होण्याची शक्यता आहे.

    खरीप हंगामात घेतल्या जाणाऱ्या सोयाबीनला अतिवृष्टीचा मोठा धोका असतो. पण योग्य व्यवस्थापन केल्यामुळे पीक चांगले आले असून चांगले उत्पादन आणि उत्पन्न मिळेल अशी आशा गणेश रामराव दाढे यांना आहे.

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  • शेटफळच्या शेतकऱ्याचा पेरू केरळच्या बाजारात, दोन‌ एकरात तेवीस लाखांचे उत्पन्न

    हॅलो कृषी ऑनलाईन : शेटफळ ता करमाळा येथील दत्तात्रय लबडे या शेतकऱ्याच्या पेरूला केरळमधील बाजारपेठेत पंचाऐंशी रूपये किलोचा दर मिळत असून यावर्षी त्यांना दोन एकर पेरू पासुन सतरा लाख रूपयांपेक्षा जादा उत्पन्न अपेक्षित आहे.

    करमाळा तालुक्यातील शेटफळ येथील शेतकरी आपल्या शेतीमध्ये नेहमीच वेगवेगळे प्रयोग करताना दिसतात. येथील दत्तात्रय रामदास लबडे यांनी चार वर्षांपूर्वी आपल्या शेतामध्ये मध्यप्रदेशातील नर्सरीमधून रोपे आणून दोन एकर व्ही.एन.आर जातीच्या पेरूची लागवड केली आहे. आतापर्यंत त्यांनी भरघोस उत्पादन मिळवत दोन पिके घेतली आहेत. सध्या त्यांनी तिसऱ्यांदा आपल्या बागेतील पेरूची काढणी सुरू केली असून दोन एकरामध्ये 20 टन पेरूची विक्री करत आतापर्यंत सरासरी सत्तर रूपयाचा दर मिळवत चौदा लाख रूपयांचे उत्पन्न मिळाले आहे. आणखी दहा टनापर्यंत उत्पादन अपेक्षित असून सध्या त्यांचा पेरूला केरळ येथील बाजारपेठेत चांगली मागणी असल्याने ते एका व्यापाऱ्याच्या मध्यस्थीने पेरू केरळ येथील बाजारपेठेत पाठवत आहेत.

    केरळला सध्या प्रतिकिलो 85 रुपये प्रमाणे दर मिळत आहे. या वर्षी त्यांना दोन एकर पेरू पिकापासून तेवीस लाखापेक्षा जादा रुपयाचे उत्पन्न अपेक्षित आहे. प्रगतशील बागातदार म्हणून ओळख असलेल्या दत्तात्रेय लबडे यांनी आजपर्यंत आपल्या शेतात ऊस केळी कलिंगड शतावरी याचे भरघोस उत्पादन घेतले आहे. सध्या गावातील शेतकरी गटशेतीच्या माध्यमातून केळीबरोबरच पेरू पिकाचाही प्रयोग करत आहेत. आतापर्यंत पुणे मुंबई दिल्ली बाजारपेठेत या गावातील पेरू पाठवला जात होता परंतु लबडे यांनी प्रथमच यावर्षी केरळ राज्यांमध्ये आपला पेरू पाठवण्यास सुरुवात केली असून त्यांना दरही चांगला मिळत असल्याने समाधान व्यक्त केले जात आहे.

    त्यांना या पिकाच्या संदर्भात पोपट मांजरे रोहित लबडे विजय लबडे यांचेबरोबरच इतर प्रगतशील शेतकऱ्यांचे मार्गदर्शन वेळोवेळी मिळाले आहे. पेरू बागेत केलेल्या योग्य नियोजनामुळे मिलीभग सारख्या रोगांपासून त्यांची बाग दुर ठेवण्यात त्यांना यश मिळाले आहे. फळ खराब होऊ नये म्हणून त्यांनी क्रॉप कव्हर व प्लॅस्टिक बॅगचा वापर केला आहे यामुळे कोणत्याही रोगापासून पेरूचे संरक्षण तर झालेच असून पिकाचा गुणवत्ता व दर्जा हे चांगला राखण्यात त्यांना यश मिळाले आहे सध्या त्यांची पेरू शेती या परिसरातील इतर शेतकऱ्यांसाठी मार्गदर्शक ठरत असून आपल्या शेतीमध्ये माहितीसाठी आलेल्या इतर शेतकऱ्यांना ते आवर्जून या पिकातील बारकावे समजावून सांगत सांगतात.

    दत्तात्रेय लबडे सांगतात ,माझ्या दोन एकर क्षेत्रामध्ये मी पेरूचे पीक घेतले आहे. मागील दोन वर्षात कोरोनामुळे उत्पादन चांगले मिळूनही माझ्यासह अनेक शेतकऱ्यांना अपेक्षित उत्पन्न मिळू शकले नाही यामुळे वेगळे पीक घेण्यात आपण चुकलो तर नाहीना अशी शंका येत होती मात्र यावर्षी दरही चांगला मिळत असल्याने जादा उत्पन्न मिळण्याची अपेक्षा आहे.

  • जेव्हा एका महिलेची जिद्द शेतीचं सोनं बनवते ! होते 30 लाखांची उलाढाल; वाचा ‘या’ महिलेची प्रेरणादायी कहाणी





    जेव्हा एका महिलेची जिद्द शेतीचं सोनं बनवते ! होते 30 लाखांची उलाढाल; वाचा ‘या’ महिलेची प्रेरणादायी कहाणी | Hello Krushi































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  • Finally The Seedless Guava Discovered; Research Of A Farmer In Sangli





    Finally The Seedless Guava Discovered; Research Of A Farmer In Sangli
































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