Category: संपादकीय

  • सफेद हीरे की लूट की काली कहानी

    चलिए आज हम आपको बताते है सफेद हीरे की लूट की कहानी।
    चौकिए मत बिहार में झारखंड के अलग होने के बाद भले ही काले हीरे की लूट बंद हो गयी लेकिन सफेद हीरे की लूट बदस्तूर जारी है ।
    क्या है सफेद हीरे की लूट की कहानी देखिए हमारी खास रिपोर्ट :-

    कब तक हम लोग बुनियादी सवालों से मुख मोड़ते रहेंगे पिछले कई दिनों से यूरिया खाद को लेकर बिहार के किसान परेशान है सुबह तीन बजे लाइन में खड़े हो जाते हैं इस उम्मीद से कि एक बोरा भी यूरिया मिल जाये यह कहानी किसी एक जिले का नहीं है यह पूरे बिहार का मसला है और यह कोई इसी वर्ष का मसला नहीं है हर वर्ष जब किसान को धान और गेहूं के लिए यूरिया की जरूरत महसूस होती है तो कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है ।

    हम मीडिया वाले भी इस खबर को बस रूटीन खबर मानते हुए जब तक हंगामा चलता रहता है खबर किसी बुलेटिन में चला कर अपनी जिम्मेवारी से मुक्त हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ अखबार वाले भी करते हैं और कही किसी पेज पर छोटी सी तस्वीर के साथ खबर लगाकर गंगा स्नान कर लेते हैं।



    लेकिन यह समस्या क्यों है इस पर कभी उस तरीके से ध्यान नहीं दिये संयोग से खाद को लेकर बिहार के अलग अलग हिस्सों में हो रहे हंगामे की खबर पर बिहार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल का एक बयान आया कि सरकार फेल है दुकानदार किसान को एक बोरा खाद लेने के लिए छाता और मछरदानी खरीदने का शर्त लगा रहा है केन्द्र सरकार की और से बिहार को प्रयाप्त खाद दी गयी है फिर भी खाद के लिए किसान परेशान है कालाबाजारी हो रहा है और हजार रुपया में एक बोरा खाद लेने को मजबूर है किसान।

    बीजेपी नीतीश कुमार के साथ 2005 से लेकर 2022 (चार वर्ष छोड़कर)तक सरकार में साथ रही है सुशील मोदी से लेकर बीजेपी के तमाम बड़े नेता नैनो यूरिया लाने को बड़ी उपलब्धि मानते हुए बड़ी बड़ी बातें करते रहे हैं बरौनी में खाद कारखाना खोलने का श्रेय बीजेपी ले ही रही है तो फिर खाद किसानों को मिल क्यों नहीं रहा है ।

    मेरे लिए ये बड़ा सवाल था क्यों कि मेरे गांव के जो छोटे छोटे किसान हैं वो कल भी यूरिया के लिए मुझे फोन कर रहे थे हालांकि इस तरह का फोन गेहूं और धान के हर सीजन में आता है और ये कोई पहली बार नहीं आया था ।

    #स्वराज पर मैंने ये पूरी खबर पोस्ट करते हुए बीजेपी से भी सवाल किया कि सरकार से निकले जुम्मे जुम्मे एक माह भी नहीं हुआ है और आप सरकार से सवाल कर रहे हैं ये कोई इस बार की तो समस्या तो है नहीं । पता नहीं कैसे #स्वराज के इस खबर पर कृषि मंत्री सुधाकर सिंह की नजर पड़ गयी और उन्होंने मिलने की इच्छा व्यक्त की निर्धारित समय पर मैं पहुंच गया लेकिन मंत्री जी को आने में थोड़ा वक्त लगा, लेकिन आने के साथ ही करीब चार घंटे का समय उन्होंने मुझे दिया और इस दौरान बिहार में खाद के नाम पर हो रहे खेल को समझने का मौका मिला जहां कहीं भी लगता था ये क्या है और सवाल करते तो मंत्री जी मुझसे आग्रह करते थे कि यह सच जनता के सामने आना चाहिए।



    अब जरा सफेद सोना के इस लूट को आप भी समझिए यूरिया के उठाव और वितरण की पूरी प्रक्रिया क्या है पहले ये समझिए। बिहार में धान का कटोरा रोहतास से आरा तक माना जाता है जहां सोन नहर के कारण धान की जबरदस्त खेती होती है और बात उत्तर बिहार की करे तो बड़े स्तर पूर्वी और पश्चिमी चंपारण के साथ साथ दरभंगा और मधुबनी है जहां धान मुख्य फसल है।

    लेकिन यूरिया की आपूर्ति मांग के अनुरूप 90 प्रतिशत से अधिक कटिहार ,जमुई ,किशनगंज, सहरसा ,सुपौल,मधेपुरा और पूर्णिया जिले को अभी तक मिल चुका है इतना ही नहीं जिन जिलों में मौसम विभाग का डाटा है कि बरसात सबसे कब हुई है और पूरे जिले में सुखाड़ की स्थिति उत्पन्न हो गयी है और कृषि विभाग मान रही है कि यहां 10 से 15 प्रतिशत ही धान की खेती हुई है उन जिलों में भी मांग के अनुसार 60 से 70 प्रतिशत यूरिया किसानों के बीच वितरण चुका है वहीं भोजपुर,बक्सर ,रोहतास और कैमूर को मांग के अनुरूप मात्र 50 प्रतिशत यूरिया ही मुहैया कराया गया है ।

    यही स्थिति उत्तर बिहार के धान वाले इलाके की है दरभंगा और मधुबनी को भी मांग के अनुरूप 54 से 56 प्रतिशत ही यूरिया मुहैया कराया गया है। डाटा देख कर मैं हैरान रह और मंत्री जी से मैंने सवाल किया ये क्या खेल है नेपाल और बांग्लादेश से सटे बॉर्डर वाले जिलों में सबसे ज्यादा खाद की आपूर्ति हो रही है जबकि यहां उस तरह के खेती का इलाका भी नहीं है ।संतोष जी ये डाटा मेरा नहीं है पूर्व मंत्री जी के कार्यकाल का है बस इस डाटा के सहारे आप खेल को समझ सकते हैं ।

    मतलब इस सफेद सोना के खेल में ऊपर से नीचे तक सबके सब शामिल है नेपाल और बांग्लादेश में यूरिया की कीमत 1200 से 1500 सौ रुपया प्रति बोरा है और अपने यहां 250 से 300 रुपया के बीच है ,अब आप समझ सकते हैं कि बिहार की यूरिया से कहां का धान और गेहूं लहलहा रहा है।

    बात यहीं खत्म नहीं होती है बिहार में यूरिया जो भारत सरकार के कारखाने से चलती है उसके रैक प्वाइंट की सूची जहां खाद रखा जाता है इस सूची को देखकर आप हैरान रह जायेंगे।



    खाद कंपनी धान वाले इलाकों में स्थित रैक प्वाइंट पर रैक कम भेज रहा है और उन इलाकों में ज्यादा भेज रहा है जहां धान की खेती कम होती लेकिन वो नेपाल और बांग्लादेश के बॉर्डर के करीब है। जैसे जैसे मैं इस खबर पर बढ़ रहा था तो मुझे लगा कहां हम लोग एक मरे दो घायल और पांच करोड़ कैश के साथ इंनजियर पकड़े जाने वाली खबर के चक्कर में पड़े रहते हैं यहां तो एक सीजन में बैठे बिठाए 10 हजार करोड़ का खेल एक माह में हो जा रहा है ।

    ये है भ्रष्टाचार का संस्थागत खेल जहां बस यू ही चलता रहता है किसान और गरीबी मिटाने के नाम पर और हम लोग बात करते रहते हैं थाना वाला चोर है,सीओ चोर है, ब्लांक और थाने में भ्रष्टाचार चरम पर है ।

  • बीजेपी का बिहार मिशन कैराना बनाने में जुटा

    किशनगंज को कैराना बनाने की तैयारी है क्या? क्यों कि बिहार में सत्ता से जैसे ही बीजेपी बाहर हुई है अचानक उसका फोकस सीमांचल के जिलों में बढ़ गया है खुद अमित शाह इस अभियान की शुरुआत करने वाले हैं जेपी नड्डा भी आ रहे हैं और जो जानकारी मिल रही है इस माह के अंत में किशनगंज में बीजेपी नेताओं का बड़ा जमावड़ा लगने वाला है, तो फिर यह माना जाए कि किशनगंज के सहारे बीजेपी बिहार साधने की तैयारी शुरु कर रही है।

    वैसे बात किशनगंज कि करे तो देश और दुनिया का यह पहला इलाका है जहां समतल भूमि पर हजारों एकड़ में चाय की खेती हो रही है वो भी बढ़िया क्वालिटी की ,इतना ही नहीं बड़े स्तर पर अनानास की खेती होती है कई किसान ड्रैगन फ्रूट की खेती करके इन इलाकों में एक अलग तरह की अर्थतंत्र स्थापित किया है ।

    इसी तरह हल्दी सहित कई मशाले और सब्जी की खेती बड़े स्तर हो रहा है जिसके पीछे मुस्लिम मजदूरों की बड़ी भूमिका है ।मेरा जो अनुभव रहा है बिहार में खेती की बात करे तो किशनगंज के टक्कर में बिहार का कोई जिला दूर दूर तक नहीं है नालंदा और समस्तीपुर सब्जी के मामले में बेहतर उत्पादक जिला जरुर है लेकिन इन दोनों जिला के पास बाजार नहीं है । लेकिन किशनगंज के साथ बड़ा लाभ यह है कि उसके खेत की सब्जी कोलकाता ,दार्जिलिंग और सिलीगुड़ी सुबह सुबह पहुंच जाता है ,और इस वजह से बढ़िया दाम भी मिल जाता है । इतना खुशहाल किसान बिहार के दूसरे जिले में नहीं है अनानास की खेती करने वाले किसानों का पैदावार खेत में ही लगा रहता है कि पंजाब के बड़े से बड़े कारोबारी पहले ही खरीद लेते हैं और यहां पहली बार मैंने देखा कि व्यापारी नहीं किसान अपने उपज का कीमत खुद तय करता है क्यों कि खरीददार की कोई कमी नहीं है इस वजह से दूर से भले ही हिन्दू मुसलमान और किशनगंज जिले के डेमोग्राफी बदलने की नैरेटिव बनाया जा रहा है लेकिन एक बड़ी सच्चाई यह भी है कि बांग्लादेशी मुसलमानों की वजह से इन इलाकों में हुनरमंद और शारीरिक रूप से मजबूत मजदूर की कोई कमी नहीं है।



    बात लॉ इन ऑर्डर की करे तो उससे बुरी स्थिति सिवान और दूसरे मुस्लिम इलाके का है बॉर्डर होने के कारण काम का अवसर काफी ज्यादा है फिर यहां आपको अफगान,ईरान सहित कई मुस्लिम देश के लोग आपको मिल जायेंगे जो घोड़ा का कारोबार करने किशनगंज आता था। वही मुसलमान भी कई भागों में बंटा हुआ और वो भी बांग्लादेशी मुसलमानों से दूरी रखते हैं और कभी तनाव बढ़ता है तो बांग्लादेशी मुसलमानों के खिलाफ हिन्दू के साथ यहां के स्थायी मुसलमान भी खड़े हो जाते हैं यहां उस तरह की स्थिति नहीं है जैसा कटिहार के कुछ इलाको में है हालांकि संघ का इस इलाके में अच्छी पकड़ रही है और हिन्दू एकता को लेकर एक फोर्स जरुर तैयार कर दिया है लेकिन जब से तस्लीमुद्दीन के परिवार का वर्चस्व कमा है चीजे काफी बदल गयी है ।

    वही पैसा हिन्दू के पास संपत्ति हिन्दू के पास है इसलिए इन इलाके हिन्दू उस तरह से अपने आपको असुरक्षित महसूस नहीं करते हैं पटना के बाद होटल इंडस्ट्रीज भी किशनगंज में काफी बड़ा है। इसलिए बीजेपी के लिए किशनगंज के सहारे हिन्दू मुस्लिम नैरेटिव को साधना बहुत बड़ा टास्क होगा क्यों कि संघ भी अब पहले जैसे मजबूत स्थिति में इन इलाकों में नहीं रहा व्यापार और वाणिज्य के फैलाव के कारण पहले से स्थिति काफी बदल गयी है और लॉ इन ऑर्डर की स्थिति भी पहले से काफी बेहतर है हां ये बात हो सकती है कि किशनगंज मॉडल के सहारे बिहार के अन्य जिलों में मुसलमानों के खिलाफ एक माहौल बनाया जा सकता देखिए आगे आगे होता है क्या यह बिहार है बहुत मुश्किल है इस तरह से सियासी दाव को साधना