Category: Bihar News

  • जन अधिकार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पप्पू यादव एकदिवसीय दौरे को लेकर नालंदा जिला पहुंचे।

    जन अधिकार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पप्पू यादव एकदिवसीय दौरे को लेकर नालंदा जिला पहुंचे। इस दौरान पप्पू यादव ने अपने पार्टी के कार्यकर्ता मनीष कुमार के दादा स्वर्गीय शिवकुमार प्रसाद के श्राद्ध कर्म में शिरकत की एवं परिजनों से मिलकर उन्हें सांत्वना भी दिया। इस दौरान जन अधिकार पार्टी के युवा नेता राजू दानवीर भी मौजूद रहे। वही राष्ट्रीय अध्यक्ष पप्पू यादव ने मोकामा और गोपालगंज उपचुनाव पर चुटकी लेते हुए कहा कि सब जातियों का अपराधी उपचुनाव को लेकर मोकामा पहुंच रहा है। यादव का जितना भी अपराधी ललन सिंह को जिताने की बात कर रहे हैं वहीं भूमिहार का जितना अपराधी है वह अनंत सिंह को जिताने की बात कर रहा है। मोकामा उपचुनाव में सब बटवारा पहले ही हो चुका है।

    पूरा दिन माफियाओं को डरा धमकाकर नेताओं को ठीक करके पैसा देकर सोसाइटी में आते हैं और फिर एक के फोर्टी सेवन पर पूरी सोसाइटी चली जाती है। यदि नीतीश कुमार को देश का लीडरशिप बनना है तो उन्होंने मोकामा उपचुनाव में जो परहेज किया है वह बिल्कुल अच्छा काम किया है। हम तो नीतीश कुमार को इस चीज के लिए धन्यवाद देंगे। वही गुजरात के मोरबी में हुए पुल हादसे में बीजेपी पर भी जमकर निशाना साधते हुए कहा कि 134 लोगों के मरने के बाद भी प्रधानमंत्री दिन भर में 3 बार कपड़े बदलते हैं शायद पीएम मोदी का रोते-रोते कपड़ा भीग गया होगा।

    आज जब यह मोदी का गुजरात दौरा है तो वहां अस्पताल की रंगारंग रोहन हो रहा है। जो लोग इस हादसे में बचे हैं उसके लिए दवाई उपलब्ध नहीं है और जो लोग इस हादसे में मर चुके हैं। उसे देने के लिए दो लाख से ज्यादा और घायलों को 50,000 से ज्यादा देने की आपकी औकात भी नहीं है। 50000 तो पप्पू यादव सभी जगह जाकर लोगों को देने का काम करता है आपकी सरकार को तो हमसे भी कम औकात है । इसका मतलब सरकार का इंटेंशन सही नहीं है।

  • जिलाधिकारी को पत्र लिखकर अनाज उठाव में अनियमितता बरती जाने का आरोप

    बिहारशरीफ। नालंदा जिला राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के जिलाध्यक्ष राजकुमार पासवान ने जिलाधिकारी को पत्र लिखकर अनाज उठाव में अनियमितता बरती जाने का आरोप लगाया है। दिये गये पत्र में कहा है कि प्रभारी जिला आपूर्ति पदाधिकारी एवं प्रभारी प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी बिहारशरीफ द्वारा मिलीभगत कर अनाज का उठाव में अनियमितता बरती जा रही है। प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी सरमेरा जो वर्तमान में बिहारशरीफ प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी के प्रभार में है जो कि सरमेरा और बिहारशरीफ की दूरी करीब 40 किलोमीटर है को बिहारशरीफ प्रखंड पदाधिकारी का प्रभार दिया गया है

    जिससे इन्हें अनुश्रवण करने में काफी दिक्कत हो रही है जिसके लिए पूर्व में भी पत्र लिख कर अगल बगल के प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी का प्रभार देने की मांग किया था जिस पर जिला आपूर्ति पदाधिकारी द्वारा कोई कारवाई नहीं किया गया जिसके कारण जिला आपूर्ति पदाधिकारी के शह पर प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी के द्वारा सितंबर 2022 का बिहारशरीफ में अनाज उठाव में काफी भारी अनियमितता बरती गयी है तथा रोस्टर का भी पालन नहीं किया गया है। एक हीं वार्ड में किसी को उसना चावल तो किसी को अरबा चावल दिया गया। विभागीय तय तिथि समाप्त होने के बाद भी बिहारशरीफ के कई डीलरों को पर्व के समय भी अनाज नहीं दिया गया जो जॉच का विषय है तथा दोनों पदाधिकारियों का कार्य पर प्रश्न चिन्ह खडा करता है।

  • रहुई में 5 केजी गांजा बरामद

    रहुई थाना पुलिस ने की कार्रवाई।रहुई के खिरौना मोड़ के पास से भारी मात्रा में गांजा के साथ एक गांजा तस्कर को किया गिरफ्तार।पुलिस जानकारी देने से कर रही परहेज।

  • भारत के 6वें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 38 वीं पूण्यतिथि पर विशेष

    राकेश बिहारी शर्मा – भारत के 6वें प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी, भारतीय राजनीति के इतिहास में एक प्रमुख व्यक्ति, आयरन लेडी, भारत की तीसरी प्रधान मंत्री थीं। जवाहरलाल नेहरू उनके पिता थे, जो भारत के पहले प्रधान मंत्री और स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी के सहयोगी थे।इंदिरा गाँधी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक प्रतिष्ठित शख्सियत थीं और देश की पहली और एकमात्र महिला प्रधान मंत्री थीं।

    इंदिरा गाँधी का प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा-दीक्षा

    इंदिरा गांधी जी 19 नवंबर, 1917 को उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद शहर में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी और कमला नेहरू जी के यहां प्रियदर्शनी के रुप में जन्मीं थी। इंदिरा गांधी जी आर्थिक रुप से संपन्न, देश के जाने-माने राजनैतिक परिवार एवं देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत परिवार से संबंध रखती थी, उनके दादा मोतीलाल नेहरू और उनके पिता जवाहरलाल नेहरू जी दोनों ने ही देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वहीं अपने परिवार को देख इंदिरा गांधी जी के अंदर देशभक्ति की भावना बचपन से ही आ गई थी। इंदिरा गांधी का स्वतंत्रता संग्राम से गहरा नाता था। इंदिरा गांधी ने बचपन में ‘मंकी ब्रिगेड’ के नाम से जाने जाने वाले बच्चों का एक समूह बनाया था, जो भारतीय झंडे बांटते थे और पुलिस की जासूसी करते थे। वहीं जब इंदिरा गांधी 18 साल की थी, तब उनकी मां कमला नेहरू जी की तपेदिक बीमारी के कारण मृत्यु हो गई। इंदिरा गाँधी अपने माता-पिता की इकलौती संतान थीं और इलाहाबाद में अपनी पारिवारिक संपत्ति आनंद भवन में पली-बढ़ीं। उनके बचपन के दिन काफी अकेले थे, उनके पिता राजनीतिक गतिविधियों के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं के कारण दूर रहते थे या जेल में बंद रहते थे। उनकी माँ हमेशा बीमार रहती थी। वह अंततः तपेदिक से पीड़ित कम उम्र में ही मर गई। उस समय पत्र ही उसके पिता के साथ संपर्क का एकमात्र साधन थे।

    इंदिरा प्रियदर्शनी 1934 में मैट्रिक तक रुक-रुक कर स्कूल जाती थी, और उसे अक्सर घर पर पढ़ाया जाता था। उन्होंने शांति निकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय में भी अध्ययन किया। हालाँकि, उसने विश्वविद्यालय छोड़ दिया और अपनी बीमार माँ की देखभाल के लिए यूरोप चली गई। अपनी माँ के निधन के बाद उन्होंने कुछ समय के लिए बैडमिंटन स्कूल में पढ़ाई की। इसके बाद 1937 में उन्होंने आगे की शिक्षा के लिए सोमरविले कॉलेज में दाखिला लिया। वह अस्वस्थता के कारण और लगातार डॉक्टरों के पास जाने के चलते उसकी पढ़ाई बाधित हो गई क्योंकि उसे ठीक होने के लिए स्विट्जरलैंड की बार-बार यात्रा करनी पड़ी। अपने खराब स्वास्थ्य और अन्य व्यवधानों के कारण, उन्हें ऑक्सफोर्ड में अपनी पढ़ाई पूरी किए बिना भारत लौटना पड़ा था। हालांकि बाद में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने उन्हें मानद उपाधि से सम्मानित किया था।

    इंदिरा एवं फिरोज गांधी से शादी और परिवार

    फिरोज गांधी भारतीय संसद के एक अहम सदस्य थे, बल्कि उन्होंने भ्रष्टाचार को जड़ से ख़त्म करने का बीड़ा उठाया था। लोकतंत्र में ऐसे बहुत कम शख़्स होंगे जो खुद एक सांसद हों, जिनके ससुर देश के प्रधानमंत्री बने, जिनकी पत्नी देश की प्रधानमत्री बनीं और उनका बेटा भी प्रधानमंत्री बना। इसके अलावा उनके परिवार से जुड़ी हुई मेनका गांधी केंद्रीय मंत्री हैं, वरुण गांधी सांसद हैं और राहुल गाँधी कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं। इन सबने लोकतंत्र में इतनी बड़ी लोकप्रियता पाई। तानाशाही और बादशाहत में तो ऐसा होता है लेकिन लोकतंत्र में जहाँ जनता लोगों को चुनती हो, ऐसा बहुत कम होता है। जिस नेहरू गांधी वंश परंपरा (डायनेस्टी) की बात की जाती है, उसमें फिरोज का बहुत बड़ा योगदान था, जिसका कोई ज़िक्र नहीं होता और जिस पर कोई किताबें या लेख नहीं लिखे जाते।

    इंदिरा ने फिरोज गांधी से 26 मार्च 1942 को शादी की, जो गुजरात के एक पारसी परिवारके थे। उनके पिता का नाम जहांगीर एवं माता का नाम रतिमाई था, और वे बम्बई के खेतवाड़ी मोहल्ले के नौरोजी नाटकवाला भवन में रहते थे। फिरोज के पिता जहांगीर किलिक निक्सन में एक इंजीनियर थे, जिन्हें बाद में वारंट इंजीनियर के रूप में पदोन्नत किया गया था। फिरोज उनके पांच बच्चों में सबसे छोटे थे, उनके दो भाई दोराब और फरीदुन जहांगीर, और दो बहनें, तेहमिना करशश और आलू दस्तुर थी। फ़िरोज़ का परिवार मूल रूप से दक्षिण गुजरात के भरूच का निवासी है, जहां उनका पैतृक गृह अभी भी कोटपारीवाड़ में उपस्थित है।1920 के दशक की शुरुआत में अपने पिता की मृत्यु के बाद, फिरोज अपनी मां के साथ इलाहाबाद में उनकी अविवाहित मौसी, शिरिन कमिसारीट के पास रहने चले गए, जो शहर के लेडी डफरीन अस्पताल में एक सर्जन थी। इलाहबाद में ही फ़िरोज़ ने विद्या मंदिर हाई स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की, और फिर ईविंग क्रिश्चियन कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इंदिरा और फिरोज गांधी इलाहाबाद से एक-दूसरे को जानते थे और बाद में ब्रिटेन में मिले जब वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ रहे थे। दोनों में जान-पहचान व प्रेम के कारण ही इंदिरा गाँधी की शादी फिरोज के साथ हुई थी। इंदिरा गाँधी ने अपने छोटे बेटे संजय गांधी को राजनीति में अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुना लेकिन 23 जून 1980 को एक जहाज दुर्घटना में उनकी आकस्मिक मृत्यु के बाद, इंदिरा गाँधी ने अपने बड़े बेटे राजीव गांधी को राजनीति में शामिल होने के लिए राजी कर लिया। उस समय राजीव गांधी एक पायलट थे जिन्होंने फरवरी 1981 में राजनीति में शामिल होने के लिए अनिच्छा से अपनी नौकरी छोड़ दी।

    इंदिरा गाँधी की राजनितिक यात्रा

    इंदिरा गांधी को राजनीति विरासत में मिली थी। इंदिरा 1947 से 1964 तक वह जवाहरलाल नेहरू के प्रशासन की चीफ ऑफ स्टाफ रहीं जो अत्यधिक केंद्रीकृत थी। 1964 में वह पहली बार राज्यसभा की सदस्य चुनी गईं। उन्होंने श्री लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व वाली सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री के रूप में कार्य किया। 19 जनवरी 1966 को तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद इंदिरा गांधी ने वह कुर्सी संभाली जो स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार उनके पिता जवाहर लाल नेहरू ने संभाली थी। वह 1967 से 1977 और फिर 1980 से 1984 में उनकी मृत्यु तक इस पद पर रहीं। इंदिरा गांधी देश की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं। दृढ़ निश्चयी और अपने इरादों की पक्की इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी को उनके कुछ कठोर और विवादास्पद फैसलों के कारण याद किया जाता है। उन्होंने 1977 तक इस पद पर कार्य किया। इस कार्यकाल के दौरान उन्होंने असाधारण राजनीतिक कौशल का प्रदर्शन किया। इस शब्द ने पार्टी में आंतरिक असंतोष का भी अनुभव किया, जिससे 1969 में विभाजन हो गया। एक प्रधान मंत्री के रूप में, उन्होंने देश की राजनीतिक, आर्थिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों में आमूल-चूल परिवर्तन लागू किए। 14 प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण उस अवधि में लिए गए महत्वपूर्ण आर्थिक निर्णयों में से एक था। यह कदम अत्यंत फलदायी साबित हुआ, जिसमें बैंकों की भौगोलिक कवरेज 8,200 से बढ़कर 62,000 हो गई, जिसके परिणामस्वरूप घरेलू क्षेत्र से बचत में वृद्धि हुई और कृषि क्षेत्र और छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों में निवेश हुआ। उनका अगला कदम स्टील, तांबा, कोयला, सूती वस्त्र, रिफाइनिंग और बीमा उद्योगों जैसे कई उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करना था, जिसका उद्देश्य संगठित श्रमिकों के रोजगार और हितों की रक्षा करना था। निजी क्षेत्र के उद्योगों को सख्त नियामक नियंत्रण में लाया गया। पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के बाद 1971 के तेल संकट के दौरान, इंदिरा गाँधी ने तेल कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया, जिसमें हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (HPCL), इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) और भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (BPCL) जैसी तेल कंपनियों का गठन हुआ। उनके नेतृत्व में हरित क्रांति ने देश की कृषि उपज में उल्लेखनीय प्रगति की। नतीजतन, आत्मनिर्भरता की डिग्री में वृद्धि हुई।

    एक बार उड़ीसा में एक जनसभा के समय में श्रीमती गांधी पर भीड़ ने पथराव किया। एक पत्थर उनकी नाक पर लगा और खून बहने लगा। इस घटना के बावजूद इंदिरा गांधी का हौसला कम नहीं हुआ। वह वापस दिल्ली आई। नाक का उपचार करवाया और तीन चार दिन बाद वह अपनी चोटिल नाक के साथ फिर चुनाव प्रचार के लिए उड़ीसा पहुंची गईं। उनके इस हौसले के कारण कांग्रेस को उड़ीसा के चुनाव में काफी लाभ मिला था।

    इंदिरा गाँधी ने भारत के लिए कई साहसिक कार्य किये

    इंदिरा गाँधी ने 1971 में पाकिस्तान गृहयुद्ध के दौरान पूर्वी पाकिस्तान का पुरजोर समर्थन किया, जिसके कारण बांग्लादेश का गठन हुआ। उनकी प्रशासनिक नीति के तहत मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब को राज्य घोषित किया गया। इंदिरा गाँधी ने पाकिस्तान के साथ संबंधों को सामान्य करने और राजनयिक प्रतिष्ठानों को फिर से खोलने की कोशिश की, जिसे पाकिस्तान के जुल्फिकार अली भुट्टो ने सराहा, लेकिन 1978 में जनरल जिया-उल-हक के सत्ता में आने से बेहतर संबंध के लिए सभी प्रयास विफल हो गए। उन्होंने भारतीय संविधान में पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए किए गए काम के लिए समान वेतन की धारा लाकर सामाजिक सुधार किए। विपक्षी दलों ने उन पर 1971 के चुनावों के बाद अनुचित साधनों का उपयोग करने का आरोप लगाया। उनके खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक मामला दायर किया गया था, जिसमें उन्हें चुनाव प्रचार के लिए राज्य मशीनरी को नियोजित करने का दोषी पाया गया था। जून 1975 को अदालत ने चुनावों को शून्य और शून्य घोषित कर दिया और उन्हें लोकसभा से हटा दिया गया और अगले छह वर्षों के लिए चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इस समय के दौरान देश उथल-पुथल में था, पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध से उबर रहा था, हमलों, राजनीतिक विरोध और अव्यवस्था का सामना कर रहा था। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए, उन्होंने भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को जून 1975 से मार्च 1977 तक 21 महीने तक चलने वाले आपातकाल की स्थिति घोषित करने की सलाह दी। इसने उन्हें डिक्री या डिग्री, डिगरी’ या ‘आज्ञप्ति’ द्वारा शासन करने की शक्ति दी, चुनावों को निलंबित कर दिया और सभी अन्य नागरिक अधिकार। पूरा देश केंद्र सरकार के अधीन आ गया। इस कदम का परिणाम अगले चुनावों में परिलक्षित हुआ जब कांग्रेस पार्टी को पर्याप्त अंतर से हार का सामना करना पड़ा, जिसमें इंदिरा गाँधी और संजय गांधी दोनों अपनी सीटों से हार गए।
    1980 से प्रधान मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल का अगला कार्यकाल ज्यादातर पंजाब के राजनीतिक मुद्दों को हल करने में व्यतीत हुआ। जरनैल सिंह बिंद्रावाले और उनके सैनिकों ने 1983 में एक अलगाववादी आंदोलन शुरू किया और खुद को स्वर्ण मंदिर, अमृतसर में स्थापित किया, जो सिखों के लिए सबसे पवित्र माना जाता है।
    इंदिरा गाँधी ने आतंकवादी स्थिति को नियंत्रित करने और रोकने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया था। ऑपरेशन, हालांकि जरनैल सिंह भिंडरवाले और अन्य आतंकवादियों को सफलतापूर्वक वश में कर लिया, लेकिन कई नागरिकों की जान चली गई और धर्मस्थल को नुकसान हुआ। इसके परिणामस्वरूप सिख समुदाय में आक्रोश फैल गया, जिन्होंने उसकी निंदा की और जरनैल सिंह बिंद्रावाले को 21वीं सदी का शहीद घोषित कर दिया।

    इंदिरा गांधी ने लगातार तीन बार संभाली थी देश की बागडोर

  • मोरबी में 180 जिंदगी के मौत का सौदागर कौन ?- मोदी का गुजरात मॉडल

    गुजरात के सिरामिक दुनिया कहे जाने वाले मोरबी जिला के मच्छु नदी में पुल के गिर जाने से लगभग 180 जीवन की मृत्यु मृत्यु हो गई।
    राजद नेता अनिल कुमार अकेला ने उपरोक्त घटना को बेहद ही दर्दनाक घटना बताया है मृतक के प्रति शोक संवेदना प्रकट करते हुए छठ पर्व के अवसर पर छठी मैया से प्रार्थना की है कि मृतक के परिजनों को धैर्य की असीम शक्ति दे।
    राजद नेता अनिल कुमार अकेला ने भाजपा की सरकार पर सवाल उठाते हुए का अंग्रेजों के टाइम के पुल जो बंद थे भाजपा की सरकार ने 2 करोड़ रुपए खर्च करके मरम्मत कर 5 दिन पहले ही उसको चालू करवाया पुल फिर टूटा कैसे?
    गुजरात की जनता चीख-चीख कर मोदी सरकार से पूछ रही है क्या यही है गुजरात का मॉडल?
    मोरबी में एक 180 जिंदगी के मौत का सौदागर कौन है
    श्री अकेला ने कहा कि कहा कि सरदार भाई वल्लभ पटेल के सपनों को भाजपा की सरकार ने कुचल कुचल कर चकनाचूर कर दिया।
    श्री अकेला ने सिरामिक फैक्ट्रियों के प्रोपराइटर से अपील की है कि उक्त घटना में घायलों के लिए राहत कार्य तेजी से चलाने की हाथ जोड़कर अपील की है।

  • सरदार पटेल के कार्यों की चर्चा अनवरत होती रहेगी- प्राचार्य डॉ महेश

    आज सरदार पटेल मेमोरियल कॉलेज उदंतपुरी बिहारशरीफ नालंदा में लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की 147 वा जयंती समारोह मनाया गया प्राचार्य डॉ महेश प्रसाद सिंह ने सर्वप्रथम सरदार पटेल के आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें नमन किया एवं उनके नाम पर अवस्थित सरदार पटेल मेमोरियल कॉलेज उदंतपुरी बिहारशरीफ को पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय ही नहीं बल्कि बिहार और देश स्तर पर अग्रणी भूमिका में लाने का संकल्प लिया। शिक्षकों छात्रों शिक्षकेतर कर्मचारियों एवं एवं पत्रकारों को संबोधित करते हुए प्राचार्य डॉक्टर सिंह ने उनके कार्यों पर विशेष चर्चा की उनकी संक्षिप्त जीवनी अपने बच्चों के बीच रखा। उनकी कार्यशैली की जमकर प्रशंसा की एवं उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से सीख लेने की अपील की

    जिस खंड खंड भारत को अखंड भारत बनाने वाले भारत के शिल्पी कहे जाने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल की जितनी प्रशंसा की जाए कम होगी आज भारत की सभी पार्टियां सरदार वल्लभभाई पटेल के कार्यों का अनुकरण करने की बात कहती है जिस मजबूती से अपनी इच्छा शक्ति से उन्होंने देश का जो एकीकरण किया वह अद्वितीय है साथ ही आज देश के प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी का भी पुण्यतिथि है पुण्यतिथि के अवसर पर भी उनके तैल चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी एवं उनके कार्यों की प्रशंसा की। इस अवसर पर एनसीसी ऑफिसर डॉ शशिकांत कुमार टोनी भोला प्रसाद सुरेंद्र प्रसाद भूषण प्रसाद बलवीर कुमार रवि कुमार राजीव कुमार शशिकांत महतो अमन कुमार आदि सैकड़ों लोग उपस्थित थे

  • भारतरत्न लौह पुरुष बल्लभ भाई पटेलजी की जयन्ती श्रद्धा पूर्वक मनाई गई

    जिला कांग्रेस कार्यालय राजेन्द्र आश्रम में देश के दो महान विभूतियों पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न आइरन लेडी स्वर्गीय इंदिरा गाँधीजी की पुण्यतिथि एवं भारतरत्न लौह पुरुष स्वर्गीय बल्लभ भाई पटेलजी की जयन्ती श्रद्धा पूर्वक मनाई गई सर्वप्रथम दोनों के तैल चित्र परमाल्यार्पण एवं पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई उसके पश्चात एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया विचार गोष्ठी के दौरान दोनों की जीवनी एवं उनके द्वारा किए गए कार्यों पर विशेष रूप से चर्चा करते हुए जिलाध्यक्ष दिलीप कुमार ने कांग्रेसियों को संबोधित करते हुए कहा कि आज संयोग से हमारी पार्टी के दो महामानवों का जयन्ती एवं पुण्यतिथि है जिन्हें पूरा देश लौह पुरुष एवं लौह महिला के नाम से जानते हैं पटेल साहब ने देश की आज़ादी में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी सन 1928 भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान उस समय की प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में एकाएक 30% की वृद्धि कर दी थी सरदार पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया था एवं उस समय एक सत्याग्रह जिसका नाम बारडोली सत्याग्रह था जिसका नेतृत्व पटेल साहब ने किया था वे झुके नहीं और अंत में उस समय की सरकार को उनके सामने झुकना पड़ा था

    आज़ादी के बाद देश के पहले उप प्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री का दायित्व सम्भालने के बाद उन्होंने अपनी सुझ बुझ और कर्मठता से देश के 562 देसी रियासतों को जिसका क्षेत्रफल भारत का 40% था उसे एक कर भारत की मुख्य धारा में जोड़ने का काम अपनी सूझ बूझ से किए थे सिर्फ तीन रियासतों जम्मू एवं कश्मीर ,जूनागढ़ और हैदराबाद स्टेट को छोड़कर सभी ने इनकी बात मानी अंत में इन तीनों पर भी बल प्रयोग कर उसे भी अपनी ताकत का लोहा मनवा कर आजाद भारत का हिस्सा बनवाए थे ऐसे कई उदाहरण हैं जिन्हें शब्दों में बयान नही किया जा सकता है लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था उन्हें सन 1950 में ही काल ने हमलोगों के बीच से छीन लिया कुछ दिन अगर और पटेल साहब हमलोगों के बीच रहते तो देश की दशा कुछ और होती आज जो हमारे किसान अन्नदाता दर दर की ठोकरें खा रहे हैं नौजवान भटक रहे हैं यह देखने को नही मिलता पटेल साहब किसानों और नौजवानों के सच्चे हितैषी थे ठीक इन्हीं की तरह लौह महिला स्व इंदिराजी ने भी अपने कार्यकाल में बहुत ही साहसिक कार्य किए जिसे शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता है तीन बार देश की प्रधानमंत्री बनीं 1977 में जब कांग्रेस पूरी तरह से टूट चुकी थी सत्ता से बेदख़ल हो गयी थी फिर भी इन्दिरा जी ने हिम्मत नहीं हारीं और अकेले अपने दम पर 1980 में फिर से सत्ता में वापस आयीं उन्होंने देश की महिलाओं के लिए कई कार्य किए इसी का नतीजा था की इसी बिहार की धरती से महिलाओं ने आवाज़ उठाया था की आधी रोटी खाएँगें लेकिन फिर से इन्दिरा गाँधी को ही लाएँगें और उसी नारा का फलादेश 1980 के चुनाव में देखने को मिला की इन्दिरा जी फिर से प्रधानमंत्री बनीं उनके अदम्य साहसी कार्यों में अमृतसर का आपरेसन ब्लू स्टार भी काफी साहसी कार्य रहा जिसमें खलिस्तान उग्रवादियों को समाप्त कर देश को टूटने से बचाने का कार्य उन्होंने किया था

    उस समय अगर वह निर्णय नहीं ले पातीं तो आज देश कई भागों में बँट चुका होता भले ही उस नेक कार्यों के चलते ही सन 1984 में प्रधानमंत्री रहते भर में उनकी हत्या हो गयी हो लेकिन उनके द्वारा दिया गया अंतिम भाषण आज भी भारतवासियों के ज़ेहन में घूमता है की मैं जीवित रहूँ या ना रहूँ लेकिन मेरे शरीर का एक एक लहू का कतरा एक एक हिंदुस्तान को जीवित रखेगा अंत में सभी कांग्रेसियों ने उनके बताए रास्ते पर चलने की बचनबद्धता दुहराई इस अवसर पर जिला उपाध्यक्ष जितेंद्र प्रसाद सिंह मो जेड इस्लाम नंदू पासवान ताराचन्द मेहता नवीन गुप्ता उदयशंकर कुशवाहा महताब आलम गुड्डु अधिवक्ता इमत्याज आलम हाफ़िज़ महताब चाँदपुरवे मो बेताब अली बच्चू प्रसाद अजीत कुमार मो शदाब अकबर आलम देवेंद्र यादव मो फ़ैयाज़ नसीम अहमद के अलावे दर्जनों की संख्या में कांग्रेसी कार्यकर्ता मौजूद थे ॥

  • उदीयमान भगवान भास्कर को व्रतियो ने दिया अर्घ्य,चार दिवसीय छठ पूजा संपन्न

    बिहारशरीफ : लोक गीतों और उगते हुए सूर्य की रौशनी के बीच सोमवार की सुबह उदीयमान भगवान भाष्कर भगवान सूर्य को दूसरा अर्घ्य देने के साथ आस्था और विश्वास का महापर्व छठ वर्त संपन्न हो गया।
    साहित्यिक मंडली शंखनाद के महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा व वरीय सदस्य सरदार वीर सिंह, शिक्षाविद भारत मानस, डॉ शौरभ शंकर पटेल एवं महेन्द्र कुमार यादव इत्यादि सदस्यों के साथ मोरा तालाब के छठ घाट पर भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित किया तथा जिले एवं राज्यवासियों की सुख, शांति एवं समृद्धि के लिये ईश्वर से प्रार्थना की। मोरा तालाब के छठ घाट पर आज सामापन हो गया। आज घाट पर छठ की अद्भुत छठा बिखरी हुई नजर आई। लोकआस्था के इस महापर्व पर आस्था का जनसैलाब उमड़ा नजर आया। व्रतियों ने उदयगामी (उगते हुए) सूर्य को तालाब में खड़े होकर अर्घ्य दिया।
    छठ घाटों पर सुबह से ही लोगों के पहुंचने का सिलसिला शुरु हो गया था। जैसे ही भगवान भास्कर ने दर्शन दिए व्रतियों ने अर्घ्य के साथ भगवान से सुख शांति और समृद्धि का आशीर्वाद लिया। जिले में उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक छठ का अद्भुत रंग नजर आया। जिले में गांव से लेकर शहर तक के नदियों, तालाबो, आहर, पोखर और पइन के किनारे बने छठ घाटों पर छठ पर्व को लेकर उमड़ने वाली भारी भीड़ देखी गई।

    जिले के सभी घाटों पर व्रतियों ने भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया

    छठ पूजा के लिए औंगारी धाम, बडगांव सूर्य मंदिर, सोहसराय सूर्य मंदिर तथा कोसुत नदी से लेकर मोरा तालाब और साथ ही साथ नालंदा जिले के सभी छठ घाटों पर काफी संख्या में व्रती और श्रद्धालुओं ने सूर्यदेव को अर्घ्य दिया। इस दौरान प्रशासन और स्थानीय पूजा समितियों द्वारा श्रद्धालुओ की सुविधा के लिए व्यापक बंदोबस्त किए गये थे। रौशनी से नहाए घाट के हर जगह व्रतियों ने पूरी श्रद्धाभाव के साथ पानी में खड़े होकर भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया और छठ मैया से अपनी मनोकामना पूर्ण करने की मन्नत भी मांगी। इस के साथ छठ पूजा आज सम्पन्न हुई।

    शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हुआ था छठ पर्व

    छठ की शुरुआत शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ हुई थी। शनिवार को खरना हुआ। पर्व के तीसरे दिन रविवार व्रतियों ने डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया था और चौथे दिन यानी सोमवार उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया गया, जिसके बाद प्रसाद वितरण भी हुआ। इन सबके बाद ही व्रती महिलाएं व्रत का पारण करती हैं।

    छठ पर सूर्यदेव और उनकी बहन छठ मैया की उपासना का है महत्व

    बेहद पवित्र माने जाने वाले छठ पर्व पर सूर्यदेव और उनकी बहन छठ मैया की उपासना का बहुत महत्व है। छठ का व्रत काफी कठिन माना जाता है। 36 घंटे निर्जला व्रत रखने के बाद उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ व्रत पूर्ण हो जाता है। ये व्रत परिवार की सुख-समृद्धि और संतान की लंबी आयु के लिए रखा जाता है।

  • भारत रत्न सरदार वल्लभभाई पटेल की 147 वीं जयंती पर विशेष

    राकेश बिहारी शर्मा- भारत रत्न से सम्मानित सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म क्रांतिकारी परिवार में हुआ था। स्वतंत्र भारत को एक सूत्र में बाँधने का श्रेय भी सरदार वल्लभ भाई पटेल को ही जाता है। सरदार पटेल एक सच्चे राष्ट्रभक्त ही नहीं थे, अपितु वे भारतीय संस्कृति के महान् समर्थक थे। सादा जीवन उच्च विचार, स्वाभिमान, देश के प्रति अनुराग, यही उनके आदर्श थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् देश की सभी छोटी-बड़ी 565 रियासतों को विलय कर उन्हें भारतीय संघ बनाने में उनकी अति महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।
    भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारत रत्न सरदार वल्लभ भाई पटेल जी सबसे प्रमुख नेताओं में से एक थे। उन्होंने अंग्रेजों को देश से बाहर खदेड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह एक जन्मजात नेता थे और उन्हें अपने समर्पण पर दृढ़ विश्वास था। भारत की आजादी के बाद वे प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने थे। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरुष भी कहा जाता है। कोइ मनुष्य महान बनकर पैदा नहीं होता है। इन्होने 200 वर्षो की गुलामी के फँसे देश के अलग-अलग राज्यों को संगठित कर भारत में मिलाया और इस बड़े कार्य के लिए इन्हें सैन्य बल की जरुरत तक नहीं पड़ी। यही इनकी सबसे बड़ी ख्याति थी, जो इन्हें सभी नेताओं से पृथक करती हैं। सरदार वल्लभभाई पटेल जी भारतीय एकता के शिखर पुरुष थे।

    वल्लभ भाई पटेल का जन्म और शिक्षा-दीक्षा

    महान स्वतंत्रता सेनानी लौहपुरूष सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को ग्राम करमसद में हुआ था। इनके पिता झबेरभाई पटेल थे जिन्होंने 1857 में रानी झांसी के समर्थन में युद्ध किया था। इनकी मां का नाम लाडोबाई था। इनके पिता बहुत ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। ये गुजरात में एक लेवा पटेल (पाटीदार) जाति अर्थात कुर्मी जाति में हुआ था। वल्लभ भाई पटेल की प्रारंभिक पढ़ाई गांव के ही एक स्कूल में हुई थी। आगे की पढ़ाई के लिए वह पेटलाद गांव के स्कूल में भर्ती हुए। यह उनके मूल गांव से छह से सात किलोमीटर की दूरी पर था। वल्लभ भाई पटेल को बचपन से ही पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था। वल्लभ भाई की हाईस्कूल की शिक्षा उनके ननिहाल में हुई। उनके जीवन का वास्तविक विकास ननिहाल से ही प्रारम्भ हुआ था। वे अपने पिता झवेरभाई पटेल तथा माता लाडबा देवी की चौथी संतान थे। भाइयों में सोम भाई, बिट्ठल भाई, नरसी भाई एवं एक बहन दहिबा थी। वल्लभ भाई का विवाह 16 साल की उम्र में झावेरबा पटेल से हुआ। उन्हें एक बेटा दह्याभाई और एक बेटी मणिबेन हुई थी। वल्लभ भाई ने नडियाद, बड़ौदा व अहमदाबाद से प्रारंभिक शिक्षा लेने के उपरांत इंग्लैंड मिडल टैंपल से लॉ की पढ़ाई पूरी की व 22 साल की उम्र में जिला अधिवक्ता की परीक्षा उत्तीर्ण कर बैरिस्टर बने, और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। उसी समय महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया।

    सरदार वल्लभ भाई पटेल का राजनैतिक सफर

    वल्लभ भाई ने सबसे पहले अपने स्थानीय क्षेत्रो में शराब, छुआछूत एवं नारियों के अत्याचार के खिलाफ लड़ाई की। इन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता को बनाये रखने की पुरजोर कोशिश की। सरदार पटेल का राजनैतिक सफर 1917 में खेड़ा किसान सत्याग्रह से हुआ था। 1923 में नागपुर झंडा सत्याग्रह, 1924 में बोरसद सत्याग्रह और बारदोली सत्याग्रह भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान माह जून 1928 गुजरात में हुआ यह एक प्रमुख किसान आंदोलन था जिसका नेतृत्व वल्लभ भाई पटेल ने ही किया था। उस समय सरकार ने किसानों के लगान में 22 प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी थी। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया और इसको लेकर अपनी राष्ट्रीय पहचान कायम की।
    इसी बारदोली सत्याग्रह में उनके सफल नेतृत्व से प्रभावित होकर महात्मा गांधी और वहां के किसानों ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि दी। वहीं 1922, 1924 तथा 1927 में सरदार पटेल अहमदाबाद नगर निगम के अध्यक्ष चुने गये। 1930 के गांधी के नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आन्दोलन की तैयारी के प्रमुख शिल्पकार सरदार पटेल ही थे। 1931 के कांग्रेस के कराची अधिवेशन में सरदार पटेल को अध्यक्ष चुना गया। सविनय अवज्ञा आंदोलन में सरदार पटेल को जब 1932 में गिरफ्तार किया गया तो उन्हें गांधी के साथ 16 माह जेल में रहने का सौभाग्य हासिल हुआ। 1939 में हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में जब देशी रियासतों को भारत का अभिन्न अंग मानने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया तभी से सरदार पटेल ने भारत के एकीकरण की दिशा में कार्य करना प्रारंभ कर दिया तथा अनेक देशी रियासतों में प्रजा मण्डल और अखिल भारतीय प्रजा मण्डल की स्थापना करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

    सरदार पटेल ने 565 देशी रियासतों का भारत में शांतिपूर्ण विलय करवाया

    विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो। 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी। लौह पुरुष सरदार पटेल ने बुद्धिमानी और दृढ़ संकल्प का परिचय देते हुए वी.पी. मेनन और लार्ड माउंट बेटन की सलाह व सहयोग से अंग्रेजों की सारी कुटिल चालों पर पानी फेरकर नवंबर 1947 तक 565 देशी रियासतों में से 562 देशी रियासतों का भारत में शांतिपूर्ण विलय करवा लिया। भारत की आजादी के बाद भी 18 सितंबर 1948 तक हैदराबाद अलग ही था लेकिन लौह पुरुष सरदार पटेल ने हैदराबाद के निजाम को पाठ पढ़ा दिया और भारतीय सेना ने हैदराबाद को भारत के साथ रहने का रास्ता खोल दिया।

    नेहरू से ज्यादा लोकप्रिय थे सरदार वल्लभ भाई पटेल

    भारत की आजादी के बाद वे प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने थे। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरुष भी कहा जाता है। आजादी के पहले कांग्रेस कार्य समिति ने प्रधानमंत्री चुनने के लिए प्रक्रिया बनाई थी, जिसके तहत आंतरिक चुनावों में जिसे सबसे अधिक मत मिलेंगे वही कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष होगा और वही प्रथम प्रधानमंत्री भी होगा। कांग्रेस के 15 प्रदेश स्तर के अध्यक्षों में से 13 वोट पटेल को मिले थे और केवल एक वोट जवाहरलाल नेहरू को मिला था। लेकिन गांधी का पुरजोर पक्ष जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष व प्रधानमंत्री बनाने को लेकर था। चूंकि गांधी को आधुनिक विचार बहुत पसंद थे, इन विचारों की झलक उन्हें पटेल की जगह विदेश में पढ़े-लिखे नेहरू में अधिक दिखती थी। वहीं गांधी विदेश नीति को लेकर पटेल से असहमत थे। इस कारण उन्होंने पटेल को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने से इंकार कर दिया व अपने वीटो पॉवर का इस्तेमाल नेहरू के पक्ष में किया। इसको लेकर भारतीय राजनीति में राजेंद्र प्रसाद का यह कथन प्रासंगिक है ‘एक बार फिर गांधी ने अपने चहेते चमकदार चेहरे के लिए अपने विश्वासपात्र सैनिक की कुर्बानी दे दी।’ लेकिन सवाल पटेल को लेकर भी उठते हैं कि उन्होंने इसका विरोध क्यों नहीं किया। आखिर उनके लिए गांधी महत्वपूर्ण था या देश? निश्चित ही भारत के 2/5 भाग क्षेत्रफल में बसी देशी रियासतों जहां तत्कालीन भारत के 42 करोड़ भारतीयों में से 10 करोड़ 80 लाख की आबादी निवास करती थी, उसे भारत का अभिन्न अंग बना देना कोई मामूली बात नहीं थी। कई इतिहासकार सरदार पटेल की तुलना बिस्मार्क से भी कई आगे करते है क्योंकि बिस्मार्क ने जर्मनी का एकीकरण ताकत के बल पर किया और सरदार पटेल ने ये विलक्षण कारनामा दृढ़ इच्छाशक्ति व साहस के बल पर कर दिखाया था।
    भारत की आजादी के बाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी व प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल में जमीन आसमान का अंतर था। जब की दोनों ने इंग्लैण्ड जाकर बैरिस्टरी (वकालत) की डिग्री प्राप्त की थी लेकिन वल्लभ भाई पटेल वकालत में पं॰ नेहरू से बहुत आगे थे तथा उन्होंने सम्पूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य के विद्यार्थियों में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया था। जवाहर लाल नेहरू जी केवल सोचते रहते थे इधर सरदार वल्लभ भाई पटेल उस काम को कर डालते थे। कहा जाता है की नेहरू शास्त्रों के ज्ञाता थे, पटेल शस्त्रों के पुजारी थे। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भी ऊंची शिक्षा पाई थी उच्च स्तर की पढ़ाई की थी लेकिन उनमें चींटी बराबर भी अहंकार नहीं था। वे स्वयं कहा करते थे, मैंने कला या विज्ञान के विशाल गगन में ऊंची उड़ानें नहीं भरीं। मेरा विकास कच्ची झोपड़ियों में गरीब किसान के खेतों की भूमि और शहरों के गंदे मकानों में हुआ है।

    भारत के आदर्श सरदार वल्लभ भाई पटेल का निधन

    वल्लभ भाई पटेल अपने जीवन के माध्यम से ताकत के प्रतीक थे। सरदार वल्लभ भाई पटेल जी महात्मा गांधी जी को बहुत मानते थे उनकी इज्जत करते थे, महात्मा गांधी जी की कही हुई बातों को सर्वोपरि मानते थे। लेकिन 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी जी की हत्या कर दी गयी। इस बात का वल्लभ भाई पटेल पर बहुत गहरा असर पड़ा और कुछ समय के बाद करीब 19-20 महीनों के बाद उन्हें हृदयाघात (हार्ट अटैक) या दिल का दौरा आ गया और 15 दिसम्बर 1950 को निधन हो गया।
    भारत का इतिहास हमेशा इस महान्, साहसी, निर्भयी, दबंग, अनुशासित, अटल, शक्ति सम्पन्न महान् पुरुष को याद करेगा। 565 रियासतों का विलय कराने वाले लौह पुरुष को भारतवर्ष हमेशा याद रखेगा।

    पटेल के विचारों एवं आदर्शों को जन-जन तक पहुँचाने की आवश्यकता

    मौजूदा आर्थिक संकट, राजनीति में पनप रहे चमचावाद, स्तरहीनता के फलस्वरूप समाज में हर स्तर पर हास तथा देशभक्ति की भावना लोगों में लगातार लुप्त होते देख हम सब आज बाध्य हो रहे हैं, सरदार पटेल को याद करने के लिए। माखनलाल चतुर्वेदी जी की ये पंक्तियाँ हमें याद आ रही हैं- “दुनिया की मर्दुम शुमारी गलत हो रही है। यथार्थ में दुनिया में दो चार ही गिने-चुने जीव रहते हैं। उन्हीं की गिनती दुनिया भी करती है और उन्हीं का मत दुनिया का मत।”
    इसलिये आज जरूरत है सरदार पटेल के विचारों एवं आदर्शों को घर-घर तथा जन-जन तक पहुँचाने की, क्योंकि देश की एकता और अखण्डता की रक्षा के लिये एकजुट रहने की आवश्यकता है, ताकि भारत माँ के निकट बेड़ियों की झनझनाहट तक नहीं पहुँचने पाए। जब-जब देश को खण्डित करने वाली शक्तियाँ अपना सर ऊपर उठाती हैं, भारत के लौहपुरुष तथा राष्ट्र की एकता के प्रतीक सरदार पटेल की याद बरबस हम सभी देशवासियों के मानस-पटल पर छा जाती है। किंतु दुख की बात यह है कि आज हर मंच से देश की एकता तथा अखण्डता के नारे नेताओं द्वारा लगाए जा रहे हैं पर नाम उनका लिया जा रहा है जिनका भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान करने की बात तो दूर, उन दिनों उनकी पैदाइश भी नहीं हुई थी। यह कैसी विडंबना है।
    आज जहाँ एक तरफ हमारे यहाँ लोग राष्ट्रीय एकता की दुहाई देते नहीं थकते और दूसरी ओर बेशर्मी से ऐसे काम करते हैं जो राष्ट्रीय एकता की जड़ों पर प्रहार करने वाले हैं। मुश्किल यह है कि हमारे मन में आज राष्ट्रीयता का एक मूल आधार हमारा संविधान है। उसकी प्रस्तावना में स्वतंत्रता और समता के साथ बंधुता का अल्लेख करते हुए कहा गया है कि यह मूल्य व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तभी मजबूत हो सकती है। जब देश में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को उचित सम्मान मिले और साथ ही हममें भाईचारे का विकास हो। इसका एक निहितार्थ यह है कि यदि देश के किसी नागरिक को चोट पहुँचाई जायगी, उसके साथ भेद-भाव किया जायगा, तो राष्ट्रीय एकता कभी मजबूत नहीं होगी।
    वर्तमान दौर की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति के मद्देनजर सरदार पटेल की प्रासंगिकता इसलिए भी बढ़ गई है, क्योंकि आज की भौतिकवादी दुनिया में जहाँ नैतिक संकट है, वहीं हमारे देश भारत में देशभक्ति की भावना का तेजी से ह्रास हो रहा है। जाति, धर्म, भाषा तथा क्षेत्रीयता के नाम पर हम एक-दूसरे से दूर होते चले जा रहे हैं।

  • चार दिनों तक चलने वाला लोक आस्था का महापर्व छठपूजा का समापन

    उगते हुए सूर्य को अर्घ देते के साथी नालंदा जिले में चार दिनों तक चलने वाला लोक आस्था का महापर्व छठपूजा का समापन हो गया। इस छठपूजा के मौके पर राष्ट्रीय जनता दल के युवा नेता देवीलाल यादव के द्वारा कोसुक़ छठघाट पर मुफ्त चाय वितरण का स्टॉल लगाया गया। यह चाय का मुफ्त स्टॉल छठवर्तियों को ध्यान में रखते हुए लगाया गया था इस मुफ्त चाय की स्टाल पर खुद राजद नेता देवीलाल यादव छठव्रतियों एवं श्रद्धालुओं के बीच चाय का वितरण करते हुए दिखे। इस मौके पर राजद नेता देवी लाल यादव ने कहा कि छठपूजा लोक आस्था का महापर्व है। इसीलिए हर किसी को छठर्तियों के लिए कुछ ना कुछ सामाजिक कार्य करना चाहिए। उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा कि नालंदा जिला का कोसुक छ्ठघाट में पहली बार गंगा उद्गम योजना के तहत गंगा का पानी लाया गया है। पहली बार कोसुक़ छठघाट में छठ व्रतियों ने गंगाजल में अर्ध्य दिया। यह कठिन कार्य सिर्फ और सिर्फ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ही संभव कर दिखाया है। जिन्होंने मोकामा मराचि से होते हुए गंगाजल को राजगीर में लाने का काम किया। राजद नेता देवीलाल यादव ने कहा कि आने वाले वक्त में यह कोसुक़ छठघाट ओगारी बड़गांव छठघाट की तरह काफी प्रसिद्ध होगा क्योंकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा घोड़ा कटोरा से गंगाजल को कोसुक़ छठ घाट में लाने का काम किया। इस मौके पर कई सामाजिक कार्यकर्ता एवं राजद कार्यकर्ताओं ने भी अपना अहम योगदान दिया