Category: Bihar News

  • तेज रफ्तार कार ने सड़क किनारे खड़े साला-बहनोई को रौंदा, परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल

    लाइव सिटीज, औरंगाबाद: बिहार के औरंगाबाद जिले में तेज रफ्तार कार ने सड़क किनारे खड़े दो लोगों को रौंद डाला और खुद भी गड्ढे में पलट गई. इस हादसे में दोनों की मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गयी है जबकि कार चालक समेत उस पर सवार तीन अन्य लोग भी घायल हो गये हैं. घटना एन एच-दो पर बारूण थाना क्षेत्र के बर्डी खुर्द मोड़ के पास की है. 

    हादसा उस वक़्त हुआ जब दोनों बस पकड़ने को लेकर सड़क किनारे खड़े होकर बस का इंतज़ार कर रहे थे. इसी बीच तेज गति से आ रही एक कार अनियंत्रित हो गयी और दोनों को कुचल डाला. घटना के बाद आसपास के ग्रामीण आक्रोशित हो उठे और घटनास्थल पर ही सड़क को जाम कर दिया.

    टायर जलाकर आगजनी करते हुए पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करते हुए सभी मुआवजा दिए जाने की मांग करने लगे. हादसे के बाद सड़क जाम की सूचना पाकर बारूण थानाध्यक्ष कमलेश पासवान दल-बल के साथ मौके पर पहुंचे और फिलहाल लोगों को शांत कराने की कोशिश कर रहे हैं. 

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  • हत्या के विरोध में 3 सितंबर को जिलाधिकारी के समक्ष पैदल मार्च की जाएगी।

    बिहारशरीफ के रहुई प्रखंड के मोरा पचासा स्थित शंकर बसेरा होटल बी एन पहाड़ी अमरपुर गांव में बैठक की गई बैठक में गणेश रविदास की हत्या कांड, रामकृष्णा रविदास एवं अंकित कुमार उर्फ अंशु की हत्या के बारे में चर्चा की गई। जिले में हो रहे बहुजनों की हत्या पर लगाम लगे आदि मुद्दों पर चर्चा की गई। बैठक की अध्यक्षता अनुश्रवण समिति सदस्य एवं अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण के सदस्य सत्येंद्र पासवान ने की बैठक को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि वक्त की पुकार है कि सभी बहुजन एक हो जाएं ताकि वहुजनों पर हो रहे अत्याचार शोषण पर लगाम लग सके और वहुजनों के उत्थान के लिए निस्वार्थ भाव से सहयोग करना चाहिए।

     

    बैठक में उपस्थित लोगों ने एक स्वर से कहा कि दिनांक 3 सितंबर समय 10:00 बजे अधिक से अधिक संख्या में पचासा मोड़ पर उपस्थित होबे और पैदल मार्च को सफल बनावे यह पैदल मार्च बिहारशरीफ के भिन्न-भिन्न चौक चौराहों से गुजरते हुए नालंदा जिलाअधिकारी के मुख्य द्वार पर समाप्त होगी और जिलाधिकारी को राष्ट्रपति के नाम से एक ज्ञापन सौंपा जाएगा जिसमें मांग की जाएगी कि गणेश रविदास के हत्यारे को आजीवन करावास के बदले फांसी की सजा हो रामकृष्णा रविदास के हत्यारे को स्पीड ट्रायल के तहत फांसी की सजा हो अंकित कुमार उर्फ अंशु के हत्यारे की गिरफ्तारी जल्द से जल्द हो इस बैठक में बहुजन सेना के प्रदेश महासचिव एवं रेहड़ी पटरी फुटपाथ संघर्ष मोर्चा के जिला अध्यक्ष तथा संयुक्त किसान मोर्चा के जिला प्रवक्ता रामदेव चौधरी डॉक्टर भीमराव अंबेडकर संघर्ष विचार मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल पासवानजन कल्याण संघ एक आवाज के जिला अध्यक्ष राकेश पासवान अंकित कुमार पिंटू पासवान विक्कू कुमार पासवान शामगोरी देवी चानो देवी रिझो मांझी बहुजन सेना के जिला सचिव महेंद्र प्रसाद गिलानी मांझी आदि लोग उपस्थित थे।

  • पटना: पूर्व मंत्री कार्तिक सिंह को मिलेगी सजा?, सुनवाई पूरी, बस कुछ ही समय में आएगा फैसला

    लाइव सिटीज पटना: लगातार विवादों में चल रहे बिहार सरकार के पूर्व मंत्री रहे कार्तिक सिंह की गुरुवार को अपहरण के एक मामले में कोर्ट में पेशी हुई. हालांकि पूर्व कानून मंत्री कार्तिकेय सिंह दानापुर कोर्ट नहीं पहुंचे. उनकी अनुपस्थिति में उनके वकील के द्वारा कोर्ट के सामने पक्ष रखा गया. व्यवहार न्यायालय दानापुर पटना के ADJ 3 श्री सत्यनारायण शेवहारे के समक्ष मामले की सुनवाई हुई. इस मामले में सुनवाई पूरी हो गई है और कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है. बताया जा रहा है कि आज शाम 4:00 से 4:30 के बीच फैसला आ सकता है. दरअसल दानापुर कोर्ट ने कार्तिक सिंह की अग्रिम जमानत की अर्जी पर सुनवाई करते हुए 1 सितंबर तक राहत दी थी.

    अपहरण मामले में पूर्व मंत्री कार्तिक सिंह की सुनवाई पूरी हो गई है. कार्तिक सिंह की ओर से सरकारी वकील ने अपनी बात रखने का समय मांगा. जज ने उन्हें आज शाम तक अपनी बात रखने का समय दिया है. कोर्ट ने जजमेंट सुरक्षित रखा है. सरकारी वकील की बात सुनने के बाद शाम 4:00 से 4:30 के बीच जज अपना फैसला सुनाएंगे. इससे पहले 16 अगस्त को ही कार्तिक सिंह को कोर्ट में पेश होना था. लेकिन वो बिहार में नई सरकार के गठन के बाद उसी दिन मंत्री पद की शपथ ले रहे थे. इस बीच दानापुर कोर्ट के 12 अगस्त की आदेश की कॉपी सामने आई, जिसमें मोकामा के थाना प्रभारी को आदेश दिया गया है कि कार्तिकेय सिंह के खिलाफ एक सितंबर तक किसी भी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई न की जाए.

    दरअसल विवादों में घिरने के बाद कार्तिक़ सिंह को बुधवार को कानून मंत्री पद से हटाकर गन्ना विभाग दिया गया, लेकिन बिहार सरकार के मंत्री कार्तिक सिंह ने बुधवार देर शाम मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. बिहार में महागठबंधन की सरकार में कानून मंत्री के रूप में शपथ लेने वाले कार्तिक कुमार ने 22 दिन बाद नीतीश कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. पूर्व बाहुबली विधायक अनंत सिंह के करीबी कार्तिक कुमार साल 2014 के अपहरण के एक मामले में आरोपी हैं. इस केस को लेकर आज दानापुर कोर्ट में सुनवाई हुई.

    बता दें कि नीतीश मंत्रिमंडल में कानून मंत्री बनते ही कार्तिक सिंह विवादों में घिर गए थे. उनके ऊपर आरोप लगा था कि उनके खिलाफ कोर्ट से अपहरण के मामले में वारंट जारी किया जा चुका है. दरअसल 2014 में राजीव रंजन को अगवा कर लिया गया था, इसके बाद कोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए कार्तिक सिंह के खिलाफ वारंट जारी किया था. इसको लेकर विपक्ष लगातार नीतीश कुमार पर हमला बोल रहा था कि जिनके खिलाफ खुद गिरफ्तारी का वारंट जारी किया जा चुका हो, उसे विधि विभाग का मंत्री कैसे बनाया जा सकता है.

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  • पितृपक्ष मेला 2022: एक क्लिक पर मिलेंगी गया पिंडदान से जुड़ी सभी जानकारियां

    लाइव सिटीज, सेंट्रल डेस्क: गया में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला का आगाज 10 सितंबर से हो रहा है. ये मेला 25 सितंबर तक चलेगा. मेला में गया आने वाले लोगों को अब एक क्लिक में इससे जुड़ी सारी जानकारियां मिल सकेंगी. मगध प्रमंडल के आयुक्त द्वारा आईवीआरएस, मोबाइल ऐप तथा वेबसाइट का लोकार्पण किया गया.

    मगध प्रमंडल के आयुक्त के द्वारा पितृपक्ष मेला के अवसर पर तीर्थयात्रियों की सुविधा हेतु IVRS जिसका नम्बर 9266628168, मोबाइल ऐप PINDDDAAN GAYA तथा वेबसाइट www.pinddaangaya.bihar.gov.in का लोकार्पण किया गया.

    इस अवसर पर आयुक्त ने कहा कि पहले की तुलना में वर्तमान वर्षों में तीर्थ यात्रियों की सुविधा को सरल बनाने हेतु बिहार सरकार तथा जिला प्रशासन हमेशा तत्पर रहा है. विभिन्न जानकारियां / शिकायतों अथवा यात्रियों को मदद हेतु जिला प्रशासन द्वारा अनेकों कार्य किया जा रहा है.

    लोकार्पण के अवसर पर जिला पदाधिकारी गया डॉक्टर त्यागराजन एसएम ने कहा कि पिंडदान ऐप एवं वेबसाइट से घर बैठे-बैठे देश-विदेश के कोने-कोने के तीर्थयात्री अपनी जरूरत के अनुसार पूरी जानकारी ले सकते हैं

     

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  • पप्पू खा बजरंग दल के विरोध में दिए गए बयान बजरंग दल मर्माहत

    प्रेस विज्ञप्ति
    बिहार शरीफ के पूर्व विधायक नौशादून नबी उर्फ़ पप्पू खा बारा बजरंग दल के विरोध में दिए गए बयान समाचार पत्र एवं सोशल मीडिया पर जो आया है उससे बजरंग दल मर्माहत एवं आक्रोशित है।
    सच्चाई है कि पूर्व विधायक के नेतृत्व में एक भू माफिया का टीम गठित हुआ है जो अभी अभी नालंदा जिले के विभिन्न प्रखंड में
    जालसाजी कर जमीन रजिस्ट्री कराकर कब्जा दिलाने का काम चल रहा है । बहुत सारा जमीन पप्पू खा ने अपने पत्नी आफरीन सुल्ताना के नाम भी रजिस्ट्री कराए हैं।
    अभी-अभी नहीं प्रखंड के बेना में पांच व्यक्तियों के एक एकड़ 18 डिसमिल जमीन इन लोगों ने ऐसे लोगों से रजिस्ट्री करा लिए है जिनका जमीन कभी नहीं था जमीन पर जबरन कब्जा कर के दयान जो पप्पू खान का बेटा है इसके नाम होटल बनाने का बोर्ड लगा दिया है।
    दुखद बात यह है कि पप्पू खा के व्यक्तित्व में आया है कि जमीन पर मेरा कोई वास्ता नहीं है। एक सजाबार व्यक्ति पप्पू खा से बजरंग दल ऐसे सामाजिक संगठन का शिक्षा लेने की कोई जरूरत नहीं है।
    प्रशासनिक पदाधिकारियों से बजरंग दल नालंदा आग्रह करती है कि भू माफिया गिरोह पर अभिलंब कार्रवाई करें एवं गरीब लोगों का जमीन उन्हें वापस दिलाने की कार्रवाई करें। जिला सयोजक कुंदन कुमार ,विश्व हिंदू परिषद सह मंत्री धर्मवीर कुमार,प्रांत सह प्रशासनिक प्रमुख राम बहादुर सिंह नगर के सायोजक त्रिलोकी भारद्वाज जिला के सह सयोजक रोहित कुमार के साथ अन्य करता भी शामिल थे !

     

  • बहुजन नायक ललई सिंह यादव की 111 वीं जयंती पर विशेष

    राकेश बिहारी शर्मा –इतिहास वह नहीं जो हमको बताया जाता है, बल्कि इतिहास वह है जिसको हमारे समाज, हमारे महापुरुषों नें सहा है और जिसके लिए संघर्ष किया और जिसे कभी लिखा ही नहीं गया। इसलिए हमारा असल इतिहास वही है जो हमारे महापुरुषों नें लिखा है, इसलिए अपनें इतिहास और हकीकत को जानने के लिए अपने महापुरुषों द्वारा लिखे इतिहास का अध्ययन करना अपनी नैतिक जिम्मेदारी है।
    शिक्षित मनुष्य वही माना जा सकता है जो जागरुक है, जिसे सच और झूठ का पता है जिसे दोस्त और दुश्मन की पहचान है, जिसे शोषक और शोषित की पहचान है, जिसे जानने की जिज्ञासा है अन्यथा सच को झूँठ और झूँठ को सच मान लेना बुद्धिमत्ता नहीं, निरा मूर्खता के सिवाय और कुछ भी नहीं है, मेरी नजर में बुद्धिमान वही है जो अपना नुकसान न करे, अन्यथा अपना नुकसान खुद करने वाला सबसे बड़ा महामूर्ख होता है।
    सच में इंसान वही है जिसे इतिहास,महापुरुष,समाज और समाज में रह रहे दूसरे लोगों के दर्द का एहसास हो, यही इंसान की जिंदादिली है, इसीलिए कहा गया है कि जीना है तो दूसरों के लिये भी जियो, अन्यथा अपने लिए तो जानवर भी जी लिया करते हैं।
    असल में जिंदा रहना है तो लोगों के दिलों में जगह बनाओ। अन्यथा खुद के लिए चलते फिरते जिंदा रहने को जिंदा नहीं कहा जा सकता,यह काम तो जानवर भी बखूबी करता है। जंगली कुत्ते को भी अगर एक बार रोटी खिला दो तो जिंदगी भर एहसान नहीं भूलता, लेकिन हमारे समाज के अधिकांश जिम्मेदार लोगों ने समाज इतिहास और महापुरुषों का सबकुछ फ्री में हजम कर लिया और डकार तक नहीं ली, खाया अपना और हलाली दुश्मनों की, जिसकी सजा समाज सदियों तक भुगतेगा, आज हमारे पास जो भी उपलब्ध है वह महापुरुषों के कठिन संघर्षों की वजह से मिला हुआ है।

                               बहुजन नायक ललई सिंह यादव का जन्म और परिवारिक जीवन

    देश का सबसे बड़ा राज्य है उत्तर प्रदेश। इस प्रदेश ने कई नायकों को जन्म दिया। यही वह प्रदेश है, जहां से पिछड़े समाज को जगाने वाले नायक बड़ी संख्या में निकले। ललई सिंह यादव का नाम उसमें प्रमुखता से शामिल है। ये अंधविश्वास-सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ तर्क व मानवतावाद की बात करने वाला नेता थे। बहुजन नवजागरण में इनका बहुत बड़ा योगदान था।
    दलितों और पिछड़ों का मसीहा बहुजन नायक ललई सिंह यादव का जन्म 01 सितंबर, 1911 को कानपुर के कठारा गांव के एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। पिता का नाम था चौधरी गज्जू सिंह यादव जो कि आर्यसमाजी थे। और माता मूला देवी उस क्षेत्र के मकर दादुर गाँव के जनप्रिय नेता साधौ सिंह यादव बेटी थीं। उन्हें जाति-भेद की भावना उन्हें छू भी नहीं सकी थी। उनकी गिनती गाँव-जवार के प्रभावशाली व्यक्तियों में होती थी। माता मूला देवी के पिता साधौ सिंह भी खुले विचारों के थे। समाज में उनकी प्रतिष्ठा थी। पेरियार ललई सिंह के जुझारूपन के पीछे उनके माता-पिता के व्यक्तित्व का गहरा प्रभाव था। ललई सिंह की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई थी। ललई सिंह यादव ने 1928 में उर्दू के साथ हिन्दी से मिडिल पास किया। उन दिनों दलितों और पिछड़ों में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ने लगी थी। हालांकि सवर्ण समाज का नजरिया अब भी नकारात्मक था। उन्हें यह डर नहीं था कि दलित और शूद्र पढ़-लिख गए तो उनके पेशों को कौन करेगा। असली डर यह था कि पढ़े-लिखे दलित-शूद्र उनके जातीय वर्चस्व को भी चुनौती देंगे। उन विशेषाधिकारों को चुनौती देंगे जिनके बल पर वे शताब्दियों से सत्ता-सुख भोगते आए हैं। इसलिए दलितों और पिछड़ों की शिक्षा से दूर रखने के लिए वह हरसंभव प्रयास करते थे। ऐसे चुनौतीपूर्ण परिवेश में ललई सिंह ने 1928 में आठवीं की परीक्षा पास की। उसी दौरान उन्होंने फारेस्ट गार्ड की भर्ती में हिस्सा लिया और चुन लिए गए। वह 1929 का समय था। 1931 में मात्र 20 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह सरदार सिंह की बेटी दुलारी देवी हुआ। दुलारी देवी पढ़ी-लिखी महिला थीं। उन्होंने टाइप और शार्टहेंड का प्रशिक्षण प्राप्त किया था। ललई सिंह को फारेस्ट गार्ड की नौकरी से संतोष न था। 1929 से 1931 तक ललई यादव वन विभाग में गार्ड रहे। सो 1933 में वे सशस्त्र पुलिस कंपनी में कनिष्ठ लिपिक बनकर चले गए। वहां उनकी पहली नियुक्ति भिंड मुरैना में हुई। नौकरी के साथ-साथ उन्होंने पढ़ाई की। 1946 में पुलिस एण्ड आर्मी संघ ग्वालियर कायम करके उसके अध्यक्ष चुने गए। ललई सिंह का पारिवारिक जीवन बहुत कष्टमय था। उनकी पत्नी जो उन्हें कदम-कदम पर प्रोत्साहित करती थीं, वे 1939 में ही चल बसी थीं। परिजनों ने उनपर दूसरे विवाह के लिए दबाव डाला, जिसके लिए वे कतई तैयार न थे। सात वर्ष पश्चात 1946 में उनकी एकमात्र संतान, उनकी बेटी शकुंतला का मात्र 11 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया। कोई दूसरा होता तो कभी का टूट जाता। परंतु समय मानो बड़े संघर्ष के लिए उन्हें तैयार कर रहा था। निजी जीवन दुख-दर्द उन्हें समाज में व्याप्त दुख-दर्द से जोड़ रहे थे।

                          ललई सिंह यादव का विद्रोह और “सिपाही की तबाही” पुस्तक की रचना

    वर्ष 1946 में उन्होंने “सिपाही की तबाही” पुस्तक की रचना की। “सिपाही की तबाही” छप न सकी। भला कौन प्रकाशक ऐसी पुस्तक छापने को तैयार होता! सो ललई सिंह ने टाइप कराकर उसकी प्रतियां अपने साथियों में बंटवा दीं। पुस्तक लोक-सुरक्षा की जिम्मेदारी उठाने वाले सिपाहियों के जीवन की त्रासदी पर आधारित थी। परोक्षरूप में वह व्यवस्था के नंगे सच पर कटाक्ष करती थी। पुस्तक में सिपाही और उसकी पत्नी के बीच बातचीत के माध्यम से घर की तंगहाली को दर्शाया गया था।
    पुस्तक में आजादी और लोकतंत्र दोनों की मांग थी। पुस्तक के सामने आते ही पुलिस विभाग में खलबली मच गई। सैन्य अधिकरियों को पता चला तो पुस्तक की प्रतियां तत्काल जब्त करने का आदेश जारी कर दिया। उस घटना के बाद ललई सिंह अपने साथियों के ‘हीरो’ बन गए। मार्च 1947 में जब आजादी कुछ ही महीने दूर थी, उन्होंने अपने साथियों को संगठित करके “नान-गजेटेड पुलिस मुलाजिमान एंड आर्मी संघ” के बैनर तले हड़ताल करा दी। सरकार ने ‘सैनिक विद्रोह’ का मामला दर्ज कर, भारतीय दंड संहिता की धारा 131 के अंतर्गत मुकदमा दायर कर दिया। ललई सिंह को पांच वर्ष के सश्रम कारावास तथा 5 रुपये का अर्थदंड सुना दिया। वे जेल में चले गए। इस बीच देश आजाद हुआ। अन्य रजबाड़ों की तरह ग्वालियर स्टेट भी भारत गणराज्य का हिस्सा बन गया। 12 जनवरी को 1948 को लगभग 9 महीने की सजा काटने के बाद, ललई सिंह को कारावास से मुक्ति मिली। वे वापस सेना में चले गए।

                         ललई सिंह यादव का सामाजिक और राजनीतिक मोर्चे पर संघर्ष

    ललई सिंह यादव 1950 में सेना से सेवानिवृत्त होने के पश्चात उन्होंने अपने पैतृक गांव झींझक को स्थायी ठिकाना बना लिया। वैचारिक संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए वहीं उन्होंने “अशोक पुस्तकालय” नामक संस्था गठित की। साथ ही “सस्ता प्रेस” के नाम से प्रिंटिंग प्रेस भी आरंभ किया। कारावास में बिताए नौ महीने ललई सिंह के नए व्यक्तित्व के निर्माण हुआ। जेल में रहते हुए उन्होंने प्राचीन भारतीय ग्रंथों का अध्ययन किया। धीरे-धीरे हिंदू धर्म की कमजोरियां और ब्राह्मणवाद के षड्यंत्र सामने आने लगे। जिन दिनों उनका जन्म हुआ था, भारतीय जनता आजादी की कीमत समझने लगी थी। होश संभाला तो आजादी के आंदोलन को दो हिस्सों में बंटे पाया। पहली श्रेणी में अंग्रेजों को जल्दी से जल्दी बाहर का रास्ता दिखा देने वाले नेता थे। उन्हें लगता था वे राज करने में समर्थ हैं। उनमें से अधिकांश नेता उन वर्गों से थे जिनके पूर्वज इस देश में शताब्दियों से राज करते आए थे। लेकिन आपसी फूट, विलासिता और व्यक्तिगत ऐंठन के कारण वे पहले मुगलों और बाद में अंग्रेजों के हाथों सत्ता गंवा चुके थे। देश की आजादी से ज्यादा उनकी चाहत सत्ता में हिस्सेदारी की थी। वह चाहे अंग्रेजों के रहते मिले या उनके चले जाने के बाद। 1930 तक उनकी मांग ‘स्वराज’ की थी। ‘राज’ अपना होना चाहिए, ‘राज्य’ इंग्लेंड की महारानी का भले ही रहे। स्वयं गांधी जी ने अपनी चर्चित पुस्तक “हिंद स्वराज” का शीर्षक पहले “हिंद स्वराज्य” रखा था। बाद में उसे संशोधित कर, अंग्रेजी संस्करण में “हिंद स्वराज” कर दिया था। “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है” नारे के माध्यम से तिलक की मांग भी यही थी। वर्ष 1930 में, विशेषकर भगत सिंह की शहादत के बाद जब उन्हें पता चला कि जनता ‘स्वराज’ नहीं, ‘स्वराज्य’ चाहती है, तब उन्होंने अपनी मांग में संशोधन किया था। आगे चलकर जब उन्हें लगा कि औपनिवेशिक सत्ता के बस गिने-चुने दिन बाकी हैं, तो उन्होंने खुद को सत्ता दावेदार बताकर, संघर्ष को आजादी की लड़ाई का नाम दे दिया। अब वे चाहते थे कि अंग्रेज उनके हाथों में सत्ता सौंपकर जल्दी से जल्दी इस देश से चले जाएं।
    दूसरी श्रेणी में वे नेता थे, जो सामाजिक आजादी को राजनीतिक आजादी से अधिक महत्त्व देते थे। मानते थे कि बिना सामाजिक स्वाधीनता के राजनीतिक स्वतंत्रता अर्थहीन है। कि राजनीतिक स्वतंत्रता से उन्हें कुछ हासिल होने वाला नहीं है। उनकी दासता और उसके कारण हजारों साल पुराने हैं। नई शिक्षा ने उनके भीतर स्वाभिमान की भावना जाग्रत की थी। उनकी लड़ाई अंग्रेजों से कम, अपने देश के नेताओं से अधिक थी। वे सामाजिक और राजनीतिक मोर्चे पर साथ-साथ जूझ रहे थे। महामना फुले, संतराम बी.ए., अय्यंकालि, डॉ. आंबेडकर, पेरियार जैसे नेता इसी श्रेणी में आते हैं। स्वयं ललई सिंह इस श्रेणी से थे और जिस परिवेश से जूझते हुए वे निकले थे, उसमें अपना मोर्चा चुन लेना कोई मुश्किल बात न थी।

                       जेल में रहते हुए ललई सिंह यादव ने डा. आंबेडकर के भाषणों को सुना

    जेल में रहते हुए ललई सिंह यादव ने डा. आंबेडकर के भाषणों को सुना था, जिन्होंने हिंदू धर्म को धर्म मानने से ही इन्कार कर दिया था। आंबेडकर स्वयं हिंदू धर्म तथा उसके ग्रंथों को राजनीति मानते थे। कांग्रेसी नेताओं के व्यवहार से यह सिद्ध भी हो रहा था। 1930 के आसपास दलितों और पिछड़ी जातियों में राजनीतिक चेतना का संचार हुआ था। “त्रिवेणी संघ” जैसे संगठन उसी का सुफल थे। उसकी काट के लिए कांग्रेस ने पार्टी में पिछड़ों के लिए अलग प्रकोष्ठ बना दिया था। उसका मुख्य उद्देश्य था, किसी न किसी बहाने पिछड़ों को उलझाए रखकर उनके वोट बैंक को कब्जाए रखना।
    दूसरा कारण पिछड़ी जातियों में शिक्षा का बढ़ता स्तर तथा उसके फलस्वरूप उभरती बौद्धिक चेतना थी। उससे पहले पंडित अपने प्रत्येक स्वार्थ को ‘शास्त्रोक्त’ बताकर थोप दिया करते थे। बदले समय में बहुजन उन ग्रंथों को सीधे पढ़कर निष्कर्ष निकाल सकते थे। इसलिए महाकाव्य और पौराणिक कृतियां जिनका प्रयोग ब्राह्मणादि अल्पजन बहुजनों को फुसलाने के लिए करते थे, जिनमें बहुजनों के प्रति अन्याय और अपमान के किस्से भरे पड़े थे- वे अनायास ही आलोचना के केंद्र में आ गईं। हमें याद रखना चाहिए कि उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा आदि राज्यों में निर्णायक राजनीतिक शक्ति बन चुके यादवों को क्षत्रिय मानने पर ब्राह्मणादि अल्पजन आज भले ही मौन हों, मगर उससे पहले वे उनकी निगाह ‘क्षुद्र’ यानी शूद्र ही थे। महाभारत जिसमें कृष्ण को अवतार के रूप में प्रस्तुत किया गया है, उसमें भी ऐसे अनेक प्रसंग हैं जब कृष्ण का उसकी जाति के आधार पर मखौल उड़ाया जाता है। डी. आर. भंडारकर यादवों को भारतीय वर्ण-व्यवस्था से बाहर का गण-समूह यानी पंचम वर्ण का मानते हैं।

                                        ललई सिंह यादव द्वारा सच्ची रामायण लिखना

    ललई सिंह यादव सच्चे मानवतावादी थे। आस्था से अधिक महत्त्व वे तर्क को देते थे। सच्ची रामायण के प्रकाशन के पीछे उनका उद्देश्य हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को खारिज करना न होकर, मिथों की दुनिया से बाहर निकलकर जीवन-जगत के बारे तर्क संगत ढंग से सोचने और उसके बाद फैसला करने के लिए प्रेरित करना था। ललई सिंह यादव सच्ची रामायण के माध्यम से समाज में व्याप्त अंधविश्वास, कर्मकांड को दूर करके नई समाज की रचना कराई। ललई सिंह का कहना था कि बलि बकरे को दी जाती है शेर को नहीं। हमें शेर बनना होगा।

                                 ललई सिहं यादव ने सामाजिक न्याय के लिए पुस्तकों की रचना की

    ललई सिहं यादव ने सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष किया और सामाजिक न्याय के अपने लक्ष्य के लिए अनेक पुस्तकों की रचना की। श्री ललई सिंह यादव को उत्तर भारत का ‘पेरियार’ कहा जाता है। उन्होंने 5 नाटक लिखे- (1) अंगुलीमाल नाटक, (2) शम्बूक वध, (3) सन्त माया बलिदान, (4) एकलव्य, और (5) नाग यज्ञ नाटक. गद्य में भी उन्होंने 3 पुस्तके लिखीं – (1) शोषितों पर धार्मिक डकैती, (2) शोषितों पर राजनीतिक डकैती, और (3) सामाजिक विषमता कैसे समाप्त हो? एशिया के सुकरात कहे जाने वाले दक्षिण भारत के महान क्रांतिकारी पैरियार इरोड वेंकट नायकर रामासामी जी उस समय उत्तर भारत में कई दौरे हो रहे थे जिनसे ललई सिंह यादव जी उनके सम्पर्क में आये थे।

  • ललन सिंह का BJP पर हमला, कहा- सुशील जी, ‘चलनी दूसे सूप को जिसमें खुद बहत्तर छेद’

    लाइव सिटीज, पटना: नीतीश कुमार की सरकार में विवादों में आने पर कानून मंत्री से गन्‍ना मंत्री बनाए गए कार्तिक कुमार चौथे ऐसे मंत्री बन गए हैं, जिन्हें इस्तीफा देना पड़ा है. जिसके बाद बिहार की सियासत गर्म हो गय़ी है. बीजेपी बिहार सरकरा पर हमलावर है. वहीं जेडीयू भी बीजेपी पर पलटवार कर रही है. बीजेपी को घेरने के लिए जेडीयू ने अब यूपी सरकार  का सहारा लेते हुए हमला किया है. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने सुशील कुमार मोदी पर गुरुवार को ट्वीट कर हमला बोला. उन्होंने यूपी कैबिनेट के मंत्री राकेश सचान को निशाने पर लिया और कहावत के जरिए बीजेपी पर निशाना साधा. ललन सिंह ने कहा कि सुशील कुमार मोदी सीएम नीतीश कुमार को चुनौती देने से पहले अपने गिरेबान में झांक लें.

    ललन सिंह ने कहा- सुशील जी, उत्तर प्रदेश सरकार के कारनामों को देख लें. यूपी के मंत्री राकेश सचान को कितने साल की सजा हुई है? सजायाफ्ता होने के बाद भी मंत्री बने हैं कि नहीं? मंत्री राकेश सचान अदालत से सजा की कॉपी लेकर भाग गए. कुछ बोलने से पहले थोड़ी तो शर्मिंदगी का अहसास कीजिए. नीतीश कुमार को ज्ञान देने की जरूरत नहीं है. एक कहावत है, ‘चलनी दूसे सूप को जिसमें खुद बहत्तर छेद’.

    ललन सिंह ने आगे लिखा- नैतिकता का पाठ पढ़ाने से पहले अपनी नैतिकता का भी आकलन कर लें। लखीमपुर खीरी का जवाब भी जनता आपसे जानना चाहती है। जरा मुंह तो खोलिए, कुछ तो बोलिए..! और जरा यह भी बताइये कि लखीमपुर खीरी की घटना पर सर्वोच्च न्यायालय ने क्या-क्या टिप्पणियां की थी आपकी उत्तरप्रदेश सरकार पर. आत्ममंथन कीजिए, चिंतन-मनन कीजिए….. तब बोलिए.

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  • मंत्री कार्तिक कुमार के इस्तीफे पर सुशील मोदी का नीतीश सरकार पर तंज, कह दी ये बड़ी बात

    लाइव सिटीज, पटना: बिहार में महागठबंधन सरकार बनते ही विवादों में आए मंत्री कार्तिक कुमार उर्फ कार्तिकेय सिंह ने नीतीश कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. इस पर पूर्व डिप्टी सीएम और बीजेपी सांसद सुशील मोदी ने तंज कसा है. उन्होंने कहा कि अभी तो पहला विकेट गिरा है आगे और कई विकेट गिरेंगे. बता दें कि कार्तिक कुमार के किडनैपिंग केस में सरेंडर वारंट को लेकर बीजेपी ने बड़ा मुद्दा बनाया था और सीएम नीतीश कुमार से उन्हें बर्खास्त करने की मांग की थी.

    कार्तिक कुमार उर्फ कार्तिकेय सिंह के बिहार कैबिनेट से इस्तीफा देने के तुरंत बाद ही सुशील मोदी ने ट्वीट किया. उन्होंने लिखा कि नीतीश कुमार पहले ओवर में ही क्लीन बोल्ड हो गए. अभी तो कार्तिक कुमार का पहला विकेट गिरा है. अभी और कई विकेट गिरेंगे.

    इससे पहले सीएम नीतीश कुमार ने कार्तिक कुमार को कानून मंत्री से हटाकर गन्ना उद्योग मंत्री बना दिया था. विभाग बदले जाने के कुछ घंटों बाद ही उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. सुशील मोदी ने कार्तिक कुमार का विभाग बदले जाने को लेकर सीएम नीतीश पर चुटकी ली थी. उन्होंने कहा कि नीतीश में इतनी हिम्मत नहीं थी की वे अपहरण मामले में फरार कार्तिक कुमार को बर्खास्त कर पाते? केवल विभाग बदल दिया. नीतीश सरकार में लालू यादव की अनुमति की बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता है.

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  • राजधानी पटना समेत कई इलाके में होगी वर्षा, पांच जिलों के लिए अलर्ट जारी

    लाइव सिटीज, पटना: बिहार में मानसून की सक्रियता बढ़ने से एक बार फिर बादलों की अठखेल‍ियां शुरू हो गई हैं. तीन-चार दिनों से कहीं न कहीं वर्षा हो रही है. बुधवार को पटना समेत अरवल, गया, जहानाबाद, गोपालगंज, सिवान, मुजफ्फरपुर जिलों के एक-दो स्थानों पर वर्षा दर्ज की गई.वज्रपात से मौतें भी हुईं. मौसम विभाग की ओर से पहले ही अलर्ट जारी किया गया था. एक बार फिर विभाग ने गुरुवार के लिए अलर्ट जारी किया है.

    मौसम विज्ञानी की मानें तो गुरुवार को राजधानी पटना समेत 24 जिलों में मेघ गर्जन के साथ वर्षा का अलर्ट है. वहीं तराई वाले जिलों अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार, मधेपुरा में बहुत भारी वर्षा का पूर्वानुमान है. शुक्रवार को भी सुपौल, मधेपुरा, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया व कटिहार जिले के एक या दो स्थानों पर भारी वर्षा की चेतावनी है. लोगों से सतर्क रहने की अपील की गई है। खासकर वर्षा के दौरान पेड़ के नीचे नहीं जाने, जल्‍द से जल्‍द पक्‍के छत के नीचे जाने की सलाह दी गई है.

    बुधवार को प्रदेश के शिवहर में सर्वाधिक वर्षा 112.6 मिमी वर्षा दर्ज की गई. राजधानी का अधिकतम तापमान 34.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया वहीं 35.5 डिग्री सेल्सियस के साथ गया, सीतामढ़ी, नवादा प्रदेश का गर्म शहर रहा. मौसम विज्ञानी की मानें तो मानसून ट्रफ हिमालय की तराई वाले हिस्सों से गुजर रही है इसके प्रभाव से प्रदेश में वर्षा की गतिविधियों में वृद्धि के आसार है.

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  • बिहार में नहीं चलेगा अमित शाह का दांव, पप्पू यादव खुलकर बोले-यहां बैठे-बैठे सरकार बदल जाती है

    लाइव सिटीज पटना: बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद पहली बार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बिहार आने वाले हैं. राजनीतिक गलियारों के जानकार इस दौरे को बिहार मिशन के रूप में देख रहे हैं. वहीं अमित शाह के दौरे से पहले ही बिहार में सियासी हलचल बढ़ गई है. इस बीच जाप सुप्रीमो पप्पू यादव ने अमित शाह के दौरे पर कटाक्ष करते हुए कहा कि अमित शाह का जादू बिहार में चलने वाला नहीं है. क्योंकि सीमांचल और कोसी में कंप्लीट रूप से ओबीसी दलित माइनॉरिटी कमजोर तबके ऐसे लोगों की संख्या बहुत अधिक है. जो उनकी आइडियोलॉजी की राजनीति से मेल नहीं खाता है.

    पप्पू यादव ने कहा कि जो अत्यंत पिछड़ा का वोट है, वह कंप्लीट आपके आइडियोलॉजी से मेल नहीं खाता है. जो माइनॉरिटी, दलित, यादव या अन्य लोग आपके विचारधारा से मेल नहीं खाता है. आप सीमांचल के दौरे पर वही अपनी पुरानी राग को अपनाएंगे. कहेंगे बांग्लादेशी, घुसपैठ व सीमांचल लगातार देश के लिए खतरा बनता जा रहा है. आप हमेशा मुद्दे से क्यों भटक जाते हैं. पप्पू यादव ने कहा कि ये सीमांचल और बिहार में अमित शाह एक बात आपको बता दूं कि बिहार में ना तो कोई रिसोर्ट गया, ना किसी प्रकार का कोई अन्य खर्च हुआ. फिर भी बैठे-बैठे सरकार बदल गई.

    पप्पू यादव ने अमित शाह पर तंज कसते हुए कहा कि देश के कई राज्य जैसे कर्नाटक, मध्यप्रदेश, गोवा, महाराष्ट्र के विधायक व नेताओं को ले गए. अब झारखंड पर वार कर रहे हैं. इस तरह की राजनीति बिहार में नही चलने वाला है. बिहार का जीन हिंदू मुसलमान जाति से थोड़ा हटकर है. इसीलिए नीतीश कुमार बीजेपी के साथ रहकर भी सेकुलर वाला अपना इमेज बनाए रखा और उनके एजेंडे को कभी लागू नहीं होने दिया. वहीं उन्होंने कहा कि अमित शाह जी आप कितना भी चाह ले बिहार में आप जहर पैदा नहीं कर सकते हैं.

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