Category: Knowledge

  • क्या आप जानते है देश में Bank के खिलाफ भ्रष्टाचार की सबसे अधिक है शिकायतें..


    डेस्क : देशभर में इस साल अक्टूबर माह तक भ्रष्टाचार की सबसे अधिक 20,067 शिकायतें बैंकों के खिलाफ मिली हैं। इनमें से कुल 1,477 अभी लंबित हैं। केंद्र सरकार के प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग की 6ठी रिपोर्ट यह खुलासा हुआ है।

    सभी तरह की शिकायतों की अगर बात करें तो इसमें भी बैंकिंग प्रभाग ही सबसे ऊपर रहा है। इसके खिलाफ कुल शिकायतों की कुल संख्या 1,60,121 रही है, जिनमें से 12,263 लंबित हैं। केंद्र सरकार के सेंट्रलाइज्ड पब्लिक ग्रीवांस रिड्रेस एंड मॉनिटरिंग सिस्टम्स (CPGRMS) के अनुसार, बीते अक्टूबर माह तक 19 मंत्रालय ऐसे रहे हैं जिनके पास 1 हजार से अधिक शिकायतें लंबित हैं।

    आयकर विभाग के पास सबसे अधिक कुल 8,295 शिकायतें और इसके बाद स्वास्थ्य मंत्रालय से संबंधित कुल 7,081 शिकायतें लंबित हैं। अक्टूबर माह तक देशभर से मिलीं कुल 75,971 शिकायतें अभी लंबित हैं।

    निपटारे के समय में हो सुधार

    निपटारे के समय में हो सुधार : एक रिपोर्ट के मुताबिक, लंबित शिकायतों की संख्या घटी है। अक्टूबर माह तक लंबित मामले 75,971 हैं, जबकि पिछले महीने इनकी कुल संख्या 84,029 थी। वहीं, 35 मंत्रालयों ने शिकायतों के निपटारे के औसत समय को भी कम किया है। शिकायतों के निपटारे में अक्टूबर माह में औसतन 34 दिन लगे।

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  • क्यों इस्तेमाल किए जाते हैं अलग अलग रंग के Helmet? जानिए क्या है रंगों का भेद


    डेस्क: कई जगहों पर आपने अक्सर लोगों को अलग अलग रंग के Helmet में या फिर हार्ड हैट पहने जरूर देखा होगा। Helmet पहनने का जाहिर मतलब है कि इसे सुरक्षा के नजरिए से पहना गया है। ताकि व्यक्ति का सर बचा रहे उसपर कोई चीज यदि गिरे भी तो उसे चोट न लगे। तो क्या आप कभी सोचा कि इनके रंग अलग-अलग क्यों होते हैं? क्या ये सिर्फ इस कारण से कि कर्मचारियों को अलग लुक देने के लिए या फिर इसके पीछे कोई और वजह है? तो चलिए आज आपको बताते हैं ये अलग रंगके Helmet kya दर्शाते हैं।

    White Hard Hat

    White Hard Hat : जिस भी साइट पर निर्माण कार्य चल रहा होगा वहां सफेद हार्ड हैट (White hard hat) सुपरवाइजर, मैनेजर या ऊंचे पोस्ट वाले लोग पहनते हैं। आमतौर पर वैसे लोग जिनके अंडर में अन्य कई लोग काम करते हैं और ये उनकी जिम्मेदारी होती है कि वो दूसरों की सुरक्षा करें। ऐसा माना जाता है कि सफेद हेलमेट गर्मी के दिनों में सुपरवाइजर का दिमाग ठंडा रखता है जिससे वो निर्माण की प्लानिंग अच्छे से कर पाएं।

    Yellow Hard Hat

    Yellow Hard Hat : कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में जितने भी लोग मैनुअल लेबर में लगे होते हैं वो पीला हेलमेट (Yellow hard hat) पहनते हैं। इनका काम भारी मशीन चलाने में, गड्ढे खोदने में या फिजिकल टास्क करना होता है। पीला हेलमेट देखकर ये पता लग जाता है कि व्यक्ति कंस्ट्रक्शन वर्कर है. ऐसे में उसे कभी भी डिस्टर्ब नहीं करना चाहिए।

    Green Hard Hat

    Green Hard Hat : हरे रंग (green hard hat) की हार्ड हैट किसी साइट पर मौजूद सेफ्टी इंस्पेक्टर पहनता है। या फिर ये किसी नए कर्मचारी के लिए जो उस साइट पर नया आया है। प्रोबेशनरी स्टाफ भी ग्रीन हेलमेट पहनता है।

    Blue Hard Hat

    Blue Hard Hat : आमतौर पर बढ़ई, टेक्निकल ऑपरेटर या बिजलीकर्मी नीला हेलमेट (Blue hard hat) का इस्तेमाल करते है । आम कर्मियों के लिए नीली हार्ड हैट काफी आम बात होती है। नीला रंग ये दर्शाता है कि उनके पास किसी काम को करने की काफी एक्सपर्टीज़ और ट्रेनिंग है।

    Orange Hard Hat :

    Orange Hard Hat : नारंगी या ऑरेंज रंग (Orange hard hat) का हेलमेट लिफ्टिंग का काम करने वाले लोग पहनते हैं। इस है का इस्तेमाल मुख तौर पर सामानों को उठाने में मदद करने वाले या फिर ट्रैफिक मार्शल और सिग्नल में मदद करने वाले कर्मी पहनते हैं जब साइट पर क्रेन चलाने वाले को बेहद भारी सामान क्रेन की मदद से उठाना पड़ता है तब यही लिफ्टिंग ऑपरेटर्स उनको सामान उठाने में सहायता करते हैं और गाइड भी करते हैं।

    Brown Hard Hat :

    Red Hard Hat :

    Red Hard Hat : जिन जगहों पर कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा होता है वहां फायर मार्शल होते हैं। इनकी जिम्मेदारी होती ha उस जगह पर आग को दूर रखना और यदि आग की स्थिति उत्पन्न हो तो उससे लोगों की रक्षा करना। इन अलावा आम फायर ब्रिगेड के कर्मी भी लाल हेलमेट (red hard hat) ही पहनते हैं। ये रंग दूर से ही नजर में आ जाता है।

    Pink Hard Hat :

    Pink Hard Hat : वैसे कंस्ट्रक्शन साइट पर पिंक हार्ड हैट (pink hard hat) कम ही दिखेगा। जिन जगहों पर इसका इस्तेमाल होता है, वहां महिलाएं इसे पहनती हैं। गुलाबी रंग को महिलाओं से जोड़ा गया है। तो पिंक हेलमेट महिला कर्मियों के लिए बनाया गया है। हालांकि कई बार इस Helmet को वो कर्मी भी पहनते हैं जिन्होंने अपना Helmet खो दिया है या कहीं भूल आएं हों।

    Grey Hard Hat

    Grey Hard Hat : हल्का या गहरे रंग का ग्रे (grey hard hat) हेलमेट कंस्ट्रक्शन साइट पर विजीटर्स की लिए बनाया गया है। ये लोग वो हैं जो कर्मी नहीं है पर साइट पर मौजूद हैं तो उनकी सुरक्षा के लिए इसका निर्माण किया गया है।

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  • आखिर सड़क के बीच में ये रिफ्लेक्टर लाइट क्यों लगे रहते? आज लीजिए इसका काम..


    डेस्क : आपने हाईवे पर सड़कों के किनारे लगे हुए रिफ्लेक्टर्स जरूर देखे होंगे. इन रिफ्लेक्टर्स की वजह से रात में सड़कों पर चलने और गाड़ी चलाने में और आसानी होती है. यह लाइट कुछ-कुछ दूरी पर लगी रहती हैं और रातभर ब्लिंक भी करती रहती हैं. क्या आपने इस बात पर कभी भी गौर किया कि इसमें लाइट कहां से आती है. आखिर बिना बिजली के यह रात में कैसे जलते रहते हैं? दिन में ये लाइट्स बंद होती है तो इनको रात में आखिर कौन जलता है? आपको बता दें कि यह रिफ्लेक्टर दिखने में जितने पेचिदा नजर आते हैं. उनके काम करने तरीका उतना ही आसान होता है.

    ऐसे चमकती हैं ये लाइट :

    ऐसे चमकती हैं ये लाइट : सड़कों के किनारे लगे इन रोड लाइट को स्टड नाम से भी जानते है. ये किसी साइकिल के पैडल की तरह ही होते हैं जिनमें 2 तरह के रिफ्लेक्टर होते हैं, एक को एक्टिव रिफलेक्टर और दूसरे को पेसिव रिफलेक्टर कहा जाता हैं. कई रिफलेक्टर्स में रेडियम की वहज से रोशनी रहती है जबकि कुछ में लाइट के लिए LED बल्ब लगाया जाता है.

    क्या हैं एक्टिव रिफलेक्टर और पेसिव रिफलेक्टर :

    क्या हैं एक्टिव रिफलेक्टर और पेसिव रिफलेक्टर : पेसिव रिफलेक्टर रेडियम की वजह से ही चमकते हैं. इनमें दोनों तरफ रेडियम की पट्टी भी लगी होती है और जब रात में किसी गाड़ी की रोशनी इस पर पड़ती है तो यह और चमकने लगता है. पेसिव रिफलेक्टर के लिए इलेक्ट्रिसिटी की जरूरत नहीं पड़ती है. जबकि एक्टिव रिफलेक्टर को जलने के लिए इलेक्ट्रिसिटी की जरूरत होती है. इनमें LED बल्ब फिट किया जाता है जिसकी वजह से ये रात में ब्लिंक करते रहते हैं. इन रिफलेक्टर्स को जलाने के लिए सोलर पैनल का इस्तेमाल भी किया जाता है जिसके जरिए इनको इलेक्ट्रिसिटी मिलती है. इनको आप एक तरह की सोलर लाइट भी कह सकते हैं.

    रात में ऐसे जल जाती है ये लाइट :

    रात में ऐसे जल जाती है ये लाइट : आपको बता दें कि रात्रि के समय में इनको जलाने के लिए किसी की जरूरत नहीं होती है और न ही सुबह के समय इनको कोई बंद करता है. इन लाइट्स में एक सेंसर लगा होता है जिसे LDR कहते हैं. जैसे ही रात होती इस सेंसर की मदत से सभी लाइट्स जलने लगती हैं और सुबह खुद बंद हो जाती है.

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  • अपने शहजादे को हिंदी सिखाने के लिए औरंगजेब ने बनवाया था शब्दकोश, बेहद खास थी ये डिक्शनरी


    डेस्क: मुगल साम्राज्य ने अच्छे से अच्छा और बुरे से बुरा दिन देखा है। पीढ़ियों तक चली इस सल्तनत का सबसे क्रूर बादशाह औरंगजेब को माना जाता है। जबरदस्ती या ताकत दिखा कर उसने वो हर एक चीज हासिल की जो उसको चाहिए थी। उसने खुद अपने भाई तक की हत्या की, पिता को बंदी बनाया पर जब अपने बच्चो की परवरिश की बात आई तो उसने हर वो एक कोशिश की जिससे वो अपने बेटों को लायक बना सके। कहा जाता है कि अपने अंतिम समय में उसको अपने कर्मों पर इतना पछतावा रहा है कि अपने आप को उसने पापी कह दिया था। यही कारण है की औरंगजेब को मुगलिया सल्तनत की सबसे जटिल शख्सियत कहा गया है, जिसे समझना आसान नहीं रहा।

    मुगल सल्तनत के छठे बादशाह औरंगजेब का जन्म 3नवंबर, 1618 हुआ था। उसने भारतीय उपमहाद्वीप पर आधी सदी से भी ज्यादा समय तक शासन किया था। वो अपने समय का सबसे बड़ा और शक्तिशाली शासक था जिसने अपने शासन में मुग़ल साम्राज्य अपने विस्तार के चरमोत्कर्ष पर पहुंचा। कई सारी बुराइयों से भरे होने के बाद भी उसने कुछ ऐसा भी काम किया है जिसे सराहा गया है। अपने बेटे को बेहतर तालीम देने के लिए औरंगजेब ने हिन्दी-फारसी शब्दकोश तैयार कराया था और उसका नाम ‘तोहफ़तुल-हिन्द’ रखा गया था।

    मुगलों को हिन्दी सिखाने वाला शब्दकोश

    मुगलों को हिन्दी सिखाने वाला शब्दकोश : ‘औरंगज़ेब, एक नई दृष्टि’ किताब में इतिहासकार ओम प्रकाश प्रसाद ने लिखा है कि “औरंगजेब में उस शब्दकोश को इस तरह से तैयार कराया कि कोई भी फारसी जानने वाला इंसान आसानी से हिन्दी को सीख सके।” आपको बता दें हाल ही में इसकी एक प्रतिलिपि पटना की मशहूर खुदाबख्श खां ओरियंटल लाइब्रेरी में हाल में रखी गई है। इसे आम लोगों के लिए वहां रखवाया गया है। बादशाह ने ‘तोहफ़तुल-हिन्द’ शब्दकोष को अपने तीसरे बेटे आजम शाह के लिए बनवाया ताकि वो हिन्दी सीख सके। आजम शाह का पूरा नाम अबुल फैज़ क़ुतुबउद्दीन मोहम्मद आज़म था।

    1674 में तैयार हुआ शब्दकोश

    1674 में तैयार हुआ शब्दकोश : इस डिक्शनरी को बनाने का आदेश मुगल बादशाह ने मिर्ज़ा ख़ान बिन फ़ख़रूद्दीन मुहम्मद को दिया था। महीनों तक इस पर काम किया गया। फिर कई महीनों की मेहनत के बाद ये शब्दकोष साल 1674 में बन कर तैयार हो गया है। बता दें वर्तमान में भी इसकी कई प्रतिलिपियां पुस्तकालयों में मौजूद हैं। विदेशी मीडिया बीबीसी की रिपोर्ट में ख़ुदा बख़्श खां लाइब्रेरी की डायरेक्टर शाइस्ता बेदार का कहना है कि “उस डिक्शनरी में हिंदी और ब्रजभाषा के शब्दों का इस्तेमाल किया गया। डिक्शनरी में शब्दों के उच्चारण करने का तरीका और फिर उसके फारसी मायने को समझाया गया है। जैसे- चंपा के फूल का अर्थ बताते हुए लिखा गया है कि ऐसा जर्द यानी पीला फूल जिसमें हल्की सफेदी नजर आती है। जिसका इस्तेमाल हिन्दुस्तानी कवि अपनी माशूका की खूबसूरती को बयां करने के लिए करते हैं।”

    इस कारण से चर्चा में आई थी पुस्तक

    इस कारण से चर्चा में आई थी पुस्तक : उस समय दरबार में फारसी शब्दों का इस्तेमाल होता था। इसी कारण से मुगल दरबार में फारसी बोलने वालों की संख्या ज्यादा थी। पर हिंदुस्तान में हिंदी भाषा प्रमुख थी। ऐसे में धीरे-धीरे फारसी जुबान के साथ हिन्दी के शब्द बोले जाने लगे थे। शहजादे के लिए बनवाए गए उस शब्दकोश में भारतीय औषधि, ज्योतिष, संगीत और दूसरी विधाओं से जुड़ी जानकारियां उपलब्ध थीं।

    शाइस्ता बेदार कहती है, “उस शब्दकोष को बनवाने का उद्देश्य हर समुदाय के लोगों के बीच समरसता को बढ़ावा देना था।” इतिहासकारों का कहना है कि “औरंगजेब खुद अरबी और फारसी का अच्छा जानकार था क्योंकि परिवार की पिछली पीढ़ियों में इसी भाषा का इस्तेमाल होता रहा ह. इसके बावजूद हिन्दी भाषा को लेकर उसका रवैया नकारात्मक बिल्कुल नहीं था।”

    1707 में औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद 3 महीने के लिए शहजादे आजम शाह मुगल सल्तनत के बादशाह बने। आजम शाह से औरंगजेब को बेहद लगाव था। उसने अपने शासन काल के समय ही अपने बेटे को उत्तराधिकारी घोषिकर कर दिया था। लेकिन आजम शाह के साथ भी वही हुआ जो पिछली पीढ़ियों में होता आया था- सत्ता को हासिल करने के लिए खेला जाने वाला गृह युद्ध।

    जिसके बाद 12 जून 1707 को आगरा के पास स्थित जाजाउ के युद्ध में उसे उसके सौतेले भाई शाह आलम ने उसकी हत्या कर दी। और इसके साथ आजम शाह के साथ वही हुआ जो सत्ता पाने के लिए उसके पिता ने किया था। बता दें आजम शाह की कब्र भी महाराष्ट्र के ख़ुल्दाबाद में बनवाई गई जहां औरंगजेब को दफनाया गया।

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  • आखिर LPG Cylinder के नीचे क्यों होते हैं छेद? आप भी जान लीजिए इसकी वजह..


    डेस्क : गैस सिलेंडर के तल में एक छेद होता है, जिसे हम में से ज्यादातर लोग नोटिस करते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? दरअसल, सुरक्षा की दृष्टि से गैस सिलेंडर के तल में यह छेद काफी महत्वपूर्ण होता है। आइए इसका कारण बताते हैं।

    गैस सिलेंडर इन दिनों लगभग हर घर की रसोई में मौजूद हैं। गैस सिलेंडर ने खाना बनाना काफी आसान कर दिया है। लेकिन क्या आपने कभी घर के किचन में मौजूद गैस सिलेंडर पर ध्यान दिया है? यदि हाँ, तो आपने गैस सिलेंडर की सतह पर छेद भी देखा होगा। क्या आप जानते हैं गैस सिलेंडर पर क्यों होता है ये छेद?

    दरअसल, सुरक्षा की दृष्टि से गैस सिलेंडरों के छेद महत्वपूर्ण होते हैं। गैस सिलेंडर पर ये छेद गैस के तापमान को नियंत्रण में रखने के लिए बनाए जाते हैं। अगर गैस सिलेंडर में यह छेद नहीं होता तो बड़ा हादसा हो सकता है। पता करें कि गैस सिलिंडर पर लगे ये छेद तापमान को कैसे नियंत्रित करते हैं और सुरक्षा की दृष्टि से ये क्यों महत्वपूर्ण हैं।

    सबसे पहले, गैस सिलेंडर पर यह छेद सिलेंडर की सतह को गर्मी से बचाता है। कभी-कभी गैस सिलेंडर का तापमान काफी बढ़ जाता है, ऐसे में हवा इन छिद्रों से होकर गुजरती है जो तापमान को नियंत्रित करने में मदद करती है। वहीं, अगर यह छेद सिलेंडर के निचले हिस्से में नहीं है तो संभव है कि सिलेंडर के नीचे आने वाली नमी जंग का कारण बने। अगर सिलेंडर में जंग लग जाए तो यह खतरनाक हो सकता है। इन छिद्रों से हवा को गुजरने दिया जाता है और सिलेंडर के तल पर नमी नहीं होती है। इसलिए इस छेद को सिलेंडर में ड्रिल करना जरूरी है।

    सिलेंडर के निर्माण में विशेष सावधानी बरती गई है। बता दें कि एलपीजी एक गंधहीन गैस है। यह अत्यधिक ज्वलनशील है लेकिन इसमें कोई गंध नहीं है। ऐसे में गैस लीक होने से जान को खतरा हो सकता है। इसे रोकने के लिए सिलेंडर में तेज महक वाला एथिल मर्कैप्टन भी मिलाया जाता है, जिससे गैस रिसाव की गंध का पता लगाया जा सकता है।

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  • क्या आप जानते है ताजमहल के वास्तुकला पर निर्मित है ये 300 साल पुराना डच मकबरा, सरकार की नकामी से बना खंडहर..


    डेस्क : ताजमहल को देखने के लिए देश-विदेश से बड़ी संख्या में सैलानी उत्तर प्रदेश के आगरा शहर पहुंचते हैं. ऐसा ही, एक मकबरा बिहार के छपरा जिले में भी है, जो कि आगरा के ताजमहल की वास्तुकला पर ही बनाया गया है. मगर पर्यटन विभाग की अनदेखी के कारण अब खंडर में बदलता जा रहा है.

    बताया यह जाता है कि ये मकबरा करीब 300 साल पुराना है. इसको लोग डच मकबरा के नाम से भी जानते हैं. ये छपरा जिले के मुख्यालय से 5 किलोमीटर दूर कारिंगा गांव में स्थिति है. हालांकि, शहर से इतना पास होने के बावजूद आज तक इस मकबरे से जीर्णोद्धार के लिए कोई सही दिशा और मंशा से काम नहीं किया गया है.

    पुर्तगालियों ने छपरा को बनाया था व्यवसाय का केंद्र :

    पुर्तगालियों ने छपरा को बनाया था व्यवसाय का केंद्र : पुर्तगालियों ने छपरा जिले में अपने व्यापार का केंद्र स्थापित किया था. इस बात की जानकारी सारण राजपत्र में छपे एक लेख में उपलब्ध है. बताया यह जाता है कि जलीय मार्ग से व्यापार का छपरा भी एक मुख्य केंद्र हुआ करता था.

    डच और पुर्तगाली छपरा जिले को एक केंद्र के रुप में देखते थे. एक आलेख के अनुसार छपरा का कारिंगा हिस्सा 1770 तक डच लोगो के अधीन था. नमक के व्यापार के लिए छपरा जिले को केंद्र सत्यापित हुआ था. व्यापार के इस क्रम में यहां रहते हुए एक डच गवर्नर जैकबस वान हार्न की असमय मृत्यु हो गयी. इसके बाद इस मकबरे का निर्माण कराया गया था. आसपास के लोग इसे छोटा ताजमहल भी कहते हैं.

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  • क्या आप जानते हैं Train में बच्चों के साथ सफर करने पर ये सुविधा बिल्कुल फ्री मिलती, आज जान लीजिए..


    Indian Railway : रेलवे देश के जरूरी साधन में से एक है. खासकर, एक जगह से दूसरी जगह यात्रा के लिए। हर रोज़ करीब लाखो लोग एक जगह से दूसरी जगह ट्रेन के जरिये जाते है। रेलवे आपको हर बार बेहतर सुविधाएं देने की कोशिश करता है और यह कहना गलत नही होगा कि पिछले काफी समय से रेलवे में काफी बदलवा आया है।

    “बेबी सीट”

    रेलवे की कई बड़ी सुविधाओं का लोग हर दिन लुत्फ उठाते है जैसे कि विकलांग सेवा, महिला आरक्षण बर्थ कोटा, बुजुर्ग व्यक्ति के लिए सीट, इन्ही सब मे एक और सुविधा एड हुई है. जिसमे बच्चो के लिए एक एक्स्ट्रा सीट दी जा रही है वो भी मुफ्त इस सीट को “बेबी सीट” नाम से रखा गया है। कई ट्रेनों में बेबी सीट नाम से ये कार्य शुरू हो चुका है इसमें अब तक कई महिलाओं ने ट्रैवेल भी किया।

    आपको बता दे कि 5 साल से छोटे बच्चो के लिए कोई भी टिकट नही लगता है और रेलवे इसके लिए साफ मना भी करता है लेकिन अब आपको यह सुविधा काफी लाभ पहुँचाएगी खासकर महिलाओं को। ये सुविधा शुरू करने का प्रमुख कारण है कि जो महिलाएं बच्चे लेकर ट्रैवेल करती है और फिर भी उनको सीट नही मिलती वो अब बेबी सीट के जरिये बच्चो के साथ आराम से ट्रैवेल कर सकती है।

    बेबी सीट के लिए टिकट में अपग्रेड का है ऑप्शन :

    बेबी सीट के लिए टिकट में अपग्रेड का है ऑप्शन : अभी ये सुविधा सब ट्रेनों में नही है लेकिन धीरे धीरे ये सब ट्रेनों में उपलब्ध हो जाएगी। रेलवे टिकट में ही बेबी सीट नाम से आपको टिकट को अपग्रेड कर सकते ही वो भी बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के। फिलहाल 5 से 12 साल के बच्चों का टिकट सफर की कुल कीमत से आधा लगता है। और अब ये सुविधा जरूर आपको फायदा पहुँचाएगी।

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  • अगर आप भी अखबार में खाना खाते हैं तो हो जाएं सावधान, आपको भी हो सकता है इस बीमारी का ख़तरा


    डेस्क : अगर आप अखबारों में छपा गर्म खाना खाते हैं तो अब सावधान हो जाएं, क्योंकि ये खाद्य पदार्थ आपकी सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं। अखबार में लपेट कर खाना न खाएं: अक्सर ऐसा होता है कि खाने का सामान निकालने के बाद दुकानदार उसे अखबार में लपेट देता है। या क्या आप अपना खाना खुद पैक करते हैं, खुद को अखबार में लपेटते हैं जब आपको ले जाने के लिए कुछ नहीं मिलता है।

    अगर आपने कभी ऐसा ही किया है या अखबार में लिपटा हुआ कुछ भी देखा है, तो अब सावधान हो जाएं। ऐसा करना आपकी सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है। दरअसल, अखबारों में इस्तेमाल होने वाली स्याही में खतरनाक रसायन होते हैं जो आपके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। इसकी वजह से आप कई गंभीर बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं। तो आइए आपको बताते हैं कि अखबार में छपी कितनी चीजें सेहत के लिए हानिकारक हो सकती हैं।

    केमिकल से हो सकता है नुकसान: दरअसल अखबारों में इस्तेमाल होने वाली स्याही में खतरनाक रसायन होते हैं। इन रसायनों का हमारे शरीर पर खतरनाक प्रभाव पड़ता है। हाल ही में फूड सेफ्टी रेगुलेटर (FSSAI) ने अखबार में लिपटे खाना खाने की आदत को लोगों के लिए खतरनाक बताया था। आज मैं आपको बताऊंगा कि अखबारों में खाना खाने से कौन-कौन से रोग हो सकते हैं।

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  • गाड़ी के टायर पर क्यों बने होते रबड़ के कांटे, आज जान लीजिए इनका नाम और काम


    डेस्क : मोटरसाइकिल और गाड़ियों के टायरों को यदी ‍ आपने कभी ध्यान से देखा होगा तो पाया होगा कि इनके उपर रबर से बने कई कांटे (Hair) जैसे रेशे मौजूद होते हैं कई दफा हम लोग इसे मैन्‍युफैक्‍चरिंग डिफेक्‍ट यानी की मशीन बनते वक्त आई गई मामूली खराबी मानकर अनदेखा कर देते हैं. लेकिन चौंका देने वाली बात तो यह है कि यह कोई बनावट में हुई खराबी नहीं है अगर कोई भी टायर खरीद रहा हो और उन टायरों में ये कांटे मौजूद हैं तो इसका अर्थ है कि वो अच्‍छी Quality का है।

    इसी कारण से अगली बार यदि आप ऐसा टायर खरीदते हैं तो इसका मतलब यह समझें की ये काफी फायदेमंद रहेगा । यह टायर योजना के तहत बनाया गया है। टायरों में रबर के कांटों (Rubber Hair) को बनाने का एक काफी खास मकसद है , फिलहाल जानते हैं की इन्‍हें कहते क्या हैं और इनका प्रयोग क्‍या है? वाहनों के टायरों पर बने इन रबर के कांटों को वेंट स्‍पिउज (Vent Spews) कहा जाता है। जिसका मतलब है किसी भी वस्तु का बाहर की ओर निकले रहना। दरअसल इन्हे सड़क पर चलने वाले वाहनों के टायरों की काम करने की क्षमता को बेहतरीन करने के लिए बनाया जाता है। सरल भाषा में समझें तो गाड़ी के चलने से टायर पर एक प्रकार का दबाव बनता है, इसी दबाव के प्रभाव को कम करने के लिए करा जाता है।

    इन्हे बनाने वाली कंपनियां जब इन टायरों का निर्माण कर रही होती है तब रबर से बने इन पैने हिस्‍सों को टायर में लगाया जाता है. क्योंकि टायर के बनने के दौरान इनके अंदर बुलबुले बनने का डर रहता है और ऐसा होने पर टायर काफी कमजोर हो सकता है, यही कारण है कि इन्‍हें टायरों में लगाकर इसका खतरा कम करते हैं। अब अगली बार यदि आप भी टायर खरीदने जाएं तो इस बात का ध्यान रखें की unme ye रबर के कांटे अवशय हों।

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  • क्या आप इसका मतलब जानते हैं कि चेक काटते समय कोनों पर दो रेखाएं क्यों खींची जाती हैं?


    जब भी भुगतान चेक द्वारा किया जाता है, तो प्राप्तकर्ता का नाम, बैंक विवरण के साथ अंतरित की जाने वाली राशि दी जाती है और हस्ताक्षर किए जाते हैं। इसके अलावा, चेक के कोनों पर दो रेखाएँ खींची जाती हैं।

    जब भी आप किसी बैंक में खाता खोलते हैं तो आपको बैंक की ओर से एक पासबुक और एक चेक बुक दी जाती है। पासबुक में आपके लेन-देन की जानकारी होती है और आप चेकबुक से चेक लेकर भुगतान के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। जब भी भुगतान चेक द्वारा किया जाता है, तो प्राप्तकर्ता का नाम, बैंक विवरण के साथ अंतरित की जाने वाली राशि दी जाती है और हस्ताक्षर किए जाते हैं। इसके अलावा, चेक के कोनों पर दो रेखाएँ खींची जाती हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि ये रेखाएं क्यों खींची जाती हैं? मैं आपको बता दूँ।

    दो समान रेखाएँ क्यों खींची जाती हैं: चेक के बाएँ कोने पर खींची गई दो समान रेखाएँ किसी डिज़ाइन के लिए नहीं खींची जाती हैं, लेकिन उनका एक निश्चित अर्थ होता है। इन पंक्तियों का अर्थ है कि खाता प्राप्तकर्ता का अर्थ केवल यह है कि खाते में जमा की गई राशि केवल उसी व्यक्ति द्वारा प्राप्त की जानी चाहिए जिसके नाम पर चेक काटा गया है। चेक पर खींची गई इन पंक्तियों के बीच कई बार लोग अकाउंट पे या ए/सी पे भी लिख देते हैं। एकाउंट पेयी चेक किसी और के द्वारा भुनाया नहीं जा सकता। चेक में भुगतान की गई राशि ही उस व्यक्ति के खाते में ट्रांसफर की जाएगी जिसके नाम से चेक काटा गया है।

    चेक एंडोर्समेंट क्या है: यदि चेक के कोने में खींची गई रेखाओं के बीच A/C Payee नहीं लिखा होता है, तो इस चेक को क्रॉस चेक कहा जाता है। क्रास्ड चेक के पीछे हस्ताक्षर करके चेक एंडोर्सिंग में मदद की जा सकती है। हालाँकि, चेकों को भुगतानकर्ता द्वारा लिखे जाने के बाद पृष्ठांकित नहीं किया जा सकता है। वास्तव में, यदि चेक का प्राप्तकर्ता बैंक जाने की स्थिति में नहीं है, तो वह किसी अन्य व्यक्ति को धन प्राप्त करने के लिए अधिकृत भी कर सकता है। इस प्रक्रिया को चेक एंडोर्समेंट कहा जाता है और इन चेकों को एंडोर्स्ड चेक कहा जाता है। जब चेक का समर्थन किया जाता है, तो उस पर हस्ताक्षर किया जाना चाहिए और पीछे भुगतान किया जाना चाहिए। ऐसे में चेक की मदद से पैसा पाने वाला व्यक्ति दूसरे खाते में भी पैसे ट्रांसफर करवा सकता है.

    उदाहरण देकर समझाएं: मान लीजिए रोहित ने राहुल को उसके नाम पर एक क्रॉस चेक दिया। ऐसे में चेक का पैसा राहुल के खाते में ट्रांसफर कर दिया जाएगा. लेकिन अगर राहुल चेक का पैसा अपने खाते में नहीं लेना चाहता है तो वह वैभव या किसी तीसरे व्यक्ति के लिए उस चेक के पीछे अपना हस्ताक्षर करके पैसे का समर्थन कर सकता है। ऐसे में चेक का पैसा उसके बैंक खाते में नहीं जाएगा और वैभव के खाते में जाएगा. दूसरे शब्दों में, राहुल चेक के पीछे हस्ताक्षर करके वैभव को अपने नाम से पैसे निकालने का अधिकार दे सकता है।

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