Category: Knowledge

  • गैंडे की खाल कितनी मोटी होती है ? किसी को बोलने से पहले खुद जान लीजिये


    शायद आपने ब्योमकेश बख्शी की जासूसी कहानियां पढ़ी होंगी। भले ही आपने इसे नहीं पढ़ा हो, आपने लोगों को यह कहते सुना होगा कि इसकी खाल गैंडे की तरह मोटी होती है। यदि आपने कहानी पढ़ी है, तो एक उल्लेख है कि ‘वह एक कारखाने का चौकीदार है और उसकी खाल गैंडे से भी मोटी है।’ इसका मतलब तो आप समझ ही गए होंगे। त्वचा का अर्थ है त्वचा, शरीर का बाहरी आवरण। यदि कोई कहावत में कहे कि यार, उसकी खाल गैंडे की तरह मोटी हो गई है, तो इसका मतलब है कि वह ऐसा व्यंग्य कर रहा है जिसका उस पर कोई असर नहीं पड़ता। यह एक तरह से बर्बाद है। अब आगे जानिए गैंडे की चमड़ी कितनी मोटी होती है, इसका कोई असर नहीं होता।

    गैंडों का वजन 3500 किलोग्राम तक होता है: गैंडे को अंग्रेजी में गैंडा कहा जाता है। दुनिया में पांच प्रजातियां पाई जाती हैं। कुछ गैंडों के एक सींग होते हैं और कुछ के दो। एक गैंडे का औसत वजन 10 क्विंटल या 1000 किलो से अधिक होता है। एक स्वस्थ गैंडे का वजन भी 3,500 किलोग्राम हो सकता है। यह भी कहा जाता है कि गैंडे की खाल इतनी मोटी होती है कि 40-80 मिमी की गोलियां भी उसे प्रभावित नहीं करती हैं। लेकिन गैंडे की खाल बुलेटप्रूफ नहीं होती। यह 6 फीट लंबा और लगभग 10-11 फीट लंबा हो सकता है। भारत में गैंडे मुख्य रूप से असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में पाए जाते हैं।

    सींग इंसान के नाखूनों की तरह होते हैं: नर गैंडों को बैल और मादा को गाय कहा जाता है। उनके सींग हमारे नाखूनों के समान हैं। इनके सींग और इंसान के बाल और नाखून केराटिन प्रोटीन से बने होते हैं। सफेद गैंडे के सींग प्रति वर्ष 7 सेमी बढ़ते हैं और 150 सेमी की रिकॉर्ड लंबाई तक पहुंच सकते हैं।

    सबसे मोटा जानवर: अब बात करते हैं चमड़े की। इसकी त्वचा कई परतों में होती है जो इसे बहुत मोटी और मजबूत बनाती है। आप हाथी को लेकर थोड़ा भ्रमित हो सकते हैं, लेकिन गैंडे की खाल उससे एक इंच मोटी होती है। जी हां, गैंडे की खाल 2 इंच मोटी होती है। अब कल्पना कीजिए कि 2 इंच कितना होता है।

    हालांकि, उनमें देखने की क्षमता बहुत कम होती है। यदि कोई व्यक्ति 30 मीटर की दूरी पर भी शांति से खड़ा हो तो वह नहीं देख सकता। वे मुख्य रूप से गंध से जानते हैं। उन्हें कीचड़ में रहना पसंद है। इससे उन्हें भी फायदा होता है। शरीर पर मिट्टी लगाने से उनके शरीर में ठंडक बनी रहती है और कीड़े नहीं काटते। वह एक अच्छे तैराक भी हैं।

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  • क्या आप जानते हैं ताजमहल में दफन हैं शाहजहां की कुल 4 पत्नियां? जानिए – इतिहास में छुपा काला सच..


    डेस्क : ताजमहल अपनी सुंदरता और प्रेम के प्रतीक के रूप में पूरी दुनिया में जाना जाता है। ताजमहल से जुड़े कई दिलचस्प बातें सामने आती है। लेकिन क्या आपको पता है कि मुमताज के अलावा शाहजहां के तीन और पत्नी ताजमहल में दफन है। जी हां शाहजहां के कुल 4 पत्नियां ताजमहल में दफन है। यह बात शायद आपको नहीं पता होगा। तो आइए विस्तार से जानते हैं।

    ताजमहल में शाहजहां के चार बेगम ओं की कब्रें :

    ताजमहल में शाहजहां के चार बेगम ओं की कब्रें : ताजमहल को मुमताज की याद में शाहजहां द्वारा बनवाए गए मकबरे के नाम से दुनिया में जाना जाता है, लेकिन यहां न सिर्फ मुमताज बल्कि शाहजहां की तीन अन्य बेगमों की खूबसूरत कब्रें भी हैं। हालांकि यहां पर्यटकों का प्रवेश प्रतिबंधित है। ताज ईस्ट गेट से प्रवेश करने पर बाईं ओर अकबराबादी महल बेगम का मकबरा है। एएसआई के मुताबिक अकबराबादी बेगम का असली नाम इजुन्निसा बेगम था। उन्हें सरहिन्दू बेगम के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने दिल्ली के फैज बाजार में एक मस्जिद का निर्माण कराया था।

    ताज पश्चिमी गेट के दाईं ओर फतेहपुरी महल बेगम का मकबरा है। यहां एएसआई ने चालान लगवाया है। उनके अनुसार फतेहपुरी बेगम शाहजहाँ की पत्नी थीं। उसने दिल्ली में सराय और चौक बनवाया था। उसने ताज वेस्ट गेट के पास फतेहपुरी मस्जिद भी बनवाई। वहीं ताज ईस्ट गेट से दशहरा घाट की ओर जाने वाली सड़क पर संदाली मस्जिद से सटी शाहजहां की एक और बेगम कंधारी बेगम का मकबरा है।

    इतिहासकारों ने की इस बात की पुष्टि :

    इतिहासकारों ने की इस बात की पुष्टि : इतिहासकारों की माने तो सईद अहमद मरहेरवी की पुस्तक ‘अकबराबाद मुरक्का’ के अनुसार कंधारी बेगम मिर्जा मुजफ्फर हुसैन की बेटी थीं। उनकी शादी साल 1610 में शाहजहाँ से हुई थी। वह मुमताज से पहले शाहजहाँ की बेगम बनी थीं।

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  • क्या आप जानते हैं आधी रात में निकलती है किन्नरों की शवयात्रा? लाश को जूते से पीटा जाता है? जानें –


    डेस्क : किन्नर यानी थर्ड जेंडर जिसे भारतीय समाज में प्रायः हेय दृष्टि से ही देखा जाता रहा हैं। जिसे अक्सर समाज से बहिष्कृत ही समझा जाता हैं अपने अधिकारों के लिए इन किन्नरों को काफी संघर्ष करना पड़ा हैं। चाहे शिक्षा का अधिकार हो या फिर वजूद का।

    किन्नर शब्द सुनते ही हमारे चित्त में एक तस्वीर सी उभरती हैं। हम सबने अक्सर उन्हें ट्रेन में ताली बजाकर पैसे मांगते हुए या फिर किसी के यहाँ बेटा पैदा होने पर बधाई देकर नेग लेते हुए देखा ही हैं। किन्नरों का जीवन कैसा होगा? आम इंसानों से किस तरह से भिन्न होगा ऐसे विचार अक्सर हमारे मन मे आते ही रहते हैं तो आज हम उन किन्नरों के जीवन मरण के बारे में कुछ बताने जा रहे हैं जो आपकी उत्सुकताओं को पूर्ण करती दिखेंगी।

    अपने धर्म का पालन करते हैं किन्नर :

    अपने धर्म का पालन करते हैं किन्नर : किन्नर यानी थर्ड जेंडर भी आम इंसानों की तरह अपने अपने धर्मों का पालन करती हैं। और उनके मरण के बाद भी उनके धर्म के अनुसार ही उनका अंतिम संस्कार भी किया जाता हैं। अगर वो सनातन धर्म को मानता हैं तो उसे चिता सहित जलाते हैं अगर वो इस्लाम को मानता हैं तो उसे दफनाते हैं। आमतौर पर किन्नरों का कोई विशेष धर्म नही होता इनका एक अलग समाज और समुदाय होता हैं, कहते हैं कि इनपर ईश्वर की विशेष कृपा होती हैं।

    कोरी बकवास हैं जूतों से पीटने वाली बातें :

    कोरी बकवास हैं जूतों से पीटने वाली बातें : हमने अक्सर सुना होगा कि किन्नरों के मरने के बाद उनकी शवयात्रा आधी रात को दुनिया से छिप छिपाकर निकली जाती हैं और उनका अंतिम संस्कार से पहले उनपर जूते बरसाए जाते हैं ताकि वो अगले जन्म में किन्नर पैदा न हो। ये सारी बातें कोरी बकवास हैं किन्नरों में जूतों से पीटने की ऐसी कोई परंपरा नही है और न ही आधी रात को शवयात्रा निकालने की हैं ये सारी बाते मनगढंत हैं।

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  • आखिर लोगों को नींद में सपने क्यों आते हैं? वजह जानकर हिल जाएगा आपका सिर..


    डेस्क : अक्सर नींद में हमें सपने दिखाई पड़ते हैं.सपने वास्तव में निद्रावस्था में मस्तिष्क में होने वाली क्रियाओं का ही परिणाम है। कुछ लोगों का कहना है कि उन्हें सपने दिखाई ही नही देते, लेकिन कुछ दूसरे लोगों का कहना है कि उन्हें बहुत से सपने दिखाई देते हैं।

    वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार निद्रावस्था में हर व्यक्ति को रोजाना दो से तीन बार सपने आते हैं। सपने की घटनाएँ कुछ लोगों को याद भी रहती हैं, तो कुछ लोग सपने की घटनाओं को अक्सर भूल जाते हैं। सपनों के विषय में लोगों के कई तरह के मत हैं। ऐसे ही एक मतानुसार सोते समय व्यक्ति की जो मानसिक स्थिति होती हैं, उसी से संबंधित स्वप्न उसे दिखाई भी देते हैं। उदाहरण के लिए यदि व्यक्ति सोते समय भूखा है या प्यासा है, तो उसे भोजन और पानी के विषय में ही सपने दिखाई देंगे।

    एक दूसरे विचार के अनुसार जो इच्‍छाएँ हमारे जीवन में किसी कारणवश पूरी नहीं हो पाती हैं, वे सपनों में अक्सर पूरी हो जाती हैं। हमारे मन की दबी भावनाएँ अक्सर सपनों में जागृत हो जाती हैं। सपनों के द्वारा मानसिक तनाव भी कम हो जाता है। जब भी हमें सपने दिखाई देते हैं, तब हमारी आँखों की गति काफी तेज हो जाती है। मस्तिष्क से पैदा होने वाली तरंगों की बनावट में भी पहले से अंतर आ जाता है। शरीर में कुछ रासायनिक परिवर्तन भी होते है। इन सब परिवर्तनों के अध्ययन से निश्चित है कि सपने दिखाई देने का अपना अलग ही महत्व है।

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  • आखिर घर और दुकान के बाहर क्यों लगाते हैं नींबू-मिर्च? वजह जानकर यकीन नहीं होगा..


    डेस्क : भारत में पूजा-पाठ और टोटको में लोग काफी विश्वास रखते हैं। इसी कड़ी में आज हम बात कर रहे हैं नींबू और मिर्च की। आपने कई बार गाड़ी में, घर के दरवाजे में या फिर दुकानों में नींबू और मिर्ची के गूथे हुए गुच्छे को लटकाए देखा होगा। लोग बड़े श्रद्धा से मंगलवार और शनिवार को इसे लगाते हैं। कई लोगों का मानना है कि यह एक अंधविश्वास है तो कई लोग बड़े ही विश्वास के साथ इसे अपने दरवाजे में टांगते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि नींबू और मिर्ची का भी अपना एक विज्ञान है। तो आइए इसके पीछे का साइंस को जानते हैं।

    नींबू और मिर्ची के पीछे का साइंस :

    नींबू और मिर्ची के पीछे का साइंस : नींबू मिर्च को घर या दुकान के दरवाजे पर लटकाने को लेकर कई बातें सामने है लेकिन आज हम इसके पीछे का साइंस के बारे में बात कर रहे हैं। दरअसल, जब हम मिर्च, नींबू जैसी चीजें देखते हैं तो उसका स्वाद हमारे मन में लगने लगता है, जिसके कारण हम इसे ज्यादा देर तक नहीं देख पाते हैं और तुरंत अपना ध्यान वहीं से हटा लेते हैं। इसके अलावा स्वास्थ्य की दृष्टि से भी नींबू और मिर्च स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं और वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो नींबू बहुत खट्टा होता है और मिर्च बहुत तीखी होती है और जब यह प्रवेश द्वार पर हो तो मच्छर उड़ जाते हैं। इसके अलावा वातावरण भी स्वच्छ रहता है।

    वास्तुशास्त्र में नींबू और मिर्ची :

    वास्तुशास्त्र में नींबू और मिर्ची : वास्तु शास्त्र में नींबू और मिर्च का अपना ही महत्व है। वास्तु शास्त्र के मुताबिक नींबू और मिर्च में कीटनाशक गुण होते हैं। नींबू-मिर्च लटकाने से वातावरण शुद्ध रहता है। आमतौर पर देखा गया होगा कि जहां नींबू का पेड़ होता है वहां का वातावरण शुद्ध रहता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार जिस घर में नीबू का पेड़ होता है वह बिल्कुल पवित्र माना जाता है। क्योंकि नींबू में नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करने की क्षमता होती है।

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  • तैमूर ने कहा था मौत के बाद मैं जिन्दा होऊंगा … कब्र के साथ छेड़छाड़ करने वालों का बूरा हाल


    डेस्क : अभी विश्वभर में उजबेकिस्तान का समरकंद चर्चा में है और इसके चर्चा में आने का कारण है यहां होने वाली एससीओ समिट. 15 और 16 सितंबर को उज्बेकिस्तान के समरकंद में शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) की मीटिंग होगी और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसमें शिरकत करेंगे. जिस समरकंद की चर्चा एसईओ समिट की वजह से हो रही है, उस समरकंद को तानाशाह तैमूर की वजह से जाना जाता है. इस जगह से तैमूल लंग के नाम से मशहूर तैमूर का खास नाता रहा है और यहां ही तैमूर की कब्र है.

    कई तरह की कहानियां तैमूर की कब्र को लेकर भी प्रचलित है. कहा जाता है कि किसी ने भी इस कब्र को लेकर छेड़छाड़ की है तो उसे दिक्कत का सामना करना पड़ा है. साथ ही तैमूर की कब्र पर यह लिखा भी है कि कोई इसे अगर हटाने की कोशिश करेगा तो उसके साथ ठीक नहीं होगा. तो जानते हैं तैमूर कि क्या कहानी है कब्र की और क्यों इस कब्र की ज्यादा चर्चा की जाती है….

    साल 1336 में तैमूर का जन्म शाहरीस्बाज में हुआ था, जो समरकंद से ज्यादा दूर नहीं है. कई लोग इसे समरकंद का हिस्सा ही मानते हैं और इसलिए इसे तैमूर की जन्मस्थली कहा जाता है. यह तुर्की-मंगोल बादशाह तैमूर द्वारा स्थापित तैमूरी साम्राज्य की राजधानी रहा है और इसलिए कई चीजें तैमूर से जुड़ी हैं.

    अब बात करते हैं कि क्यों तैमूर को खूंखार माना जाता है. कई ऐसी कहानियां इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं, जो बताती हैं कि तैमूर काफी खतरनाक रहा है. भारत में भी तैमूर ने कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. इसकी बर्बरता इराक, अफगानिस्तान, ईरान, जॉर्जिया, पाकिस्तान, अजरबैजान, उज्बेकिस्तान, तुर्केमेनिस्तान, तजाकिस्तान, किर्गिस्तान तक फैली थी. कहा जाता है कि करीब 1 करोड़ से ज्यादा लोगों की मौत के लिए तैमूर जिम्मेदार था.

    उनकी कब्र के लिए कहा कहा जाता है कि उस पर लिखा था कि मैं अपनी मौत के बाद जब खड़ा होउंगा तो दुनिया कांप उठेगी. इसके साथ ही कब्र पर यह भी लिखा था कि जो कोई भी मेरी कब्र को खोलेगा, मुझसे भी भयानक दुश्मन उसे मिलेगा. इस वजह से कई शासक आए, लेकिन कब्र को उन्होंने नुकसान नहीं पहुंचाया था. हालांकि ऐसा नहीं है कि सिर्फ ये लिखा ही गया है, कई बार ये चेतावनी सच भी साबित हुई है. जी हां, कब्र से जिन शासकों ने छेड़छाड़ की थी, उन्हें इसका परिणाम भुगतना पड़ा.

    डेली ओ में छपे एक लेख के मुताबिक़,रूस के शासक जोसेफ स्टालिन ने भी साल 1941 में इस कब्र को खुदवाने का प्रयास किया था. रसियन एंथ्रोपॉलॉजिस्ट मिखैल गेरासिमॉव को स्टालिन ने इस काम के लिए भेजा था, ताकि तैमूर की बॉडी की रेप्लिका बनाई जाए. कहा जाता है कि सोवियत यूनियन पर कब्र खोदने के एक दिन बाद ही 11 जून 1941 को हिटलर ने हमला कर दिया था. इसके बाद इस कब्र को फिर से दफना दिया गया और इसके बाद यह युद्ध शांत हो गया.

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  • क्या गाय के दूध में होता है लंपी वायरस का असर? जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट..


    डेस्क : देश भर में लंपी वायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. ये रोग पालतू गायों को संक्रमित कर रहा है. इसका सबसे ज्यादा असर राजस्थान में देखने को मिला हैं जहां तकरीबन 70 हजार गाय-बछड़ों को लम्पी वायरस ने मौत के घाट उतार दिया है. मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में भी लम्पी वायरस के मामले तेजी से बढ़ते दिख रहे हैं.

    इसका सीधा असर गाय के दूध उत्पादन और उसके गर्भाशय पर भी पड़ता है. विशेषज्ञों के अनुसार बीमारी से गाय के दूध के उत्पादन में 50 प्रतिशत तक की कमी आती है. हैरानी की बात तो ये है कि लंपी वायरस से संक्रमित होने वाली गायों की मृत्यु दर 8 से 10 प्रतिशत तक पहुंच गई है. ऐसे में लोगों के मन में भी कई तरह के सवाल है कि क्या गाय का दूध पीने से भी संक्रमण हो सकता है और क्या लंपी वायरस इसानों में भी फैलता है. आइये एक-एक कर ऐसे तमाम सवालों का जवाब जानते हैं.

    कच्चा दूध भूलकर भी ना पिये :

    कच्चा दूध भूलकर भी ना पिये : एक्सपर्टस् के मुताबिक कच्चा दूध भूलकर भी ना पिये. दूध को कम से कम 15 मिनट तक अच्छे तरह उबालना चाहिए, ताकि उसमें मौजूद बैक्टीरिया काफी हद तक खत्म हो जाए. ऐसे में अगर लोग गाय के दूध को उबाल कर पीते हैं तो उससे खतरा होने की आशंका बिल्कुल नहीं है. लेकिन अगर ये दूध गाय का बच्चा सेवन करे तो ये उसके लिए बेहद हानिकारक हो सकता है. ऐसे में बछड़े को गाय से अलग ही कर देना चाहिए.

    इंसानों में भी फैलता है लंपी वायरस ?

    इंसानों में भी फैलता है लंपी वायरस ? दुनिया में अभी तक एक भी इंसान लंपी वायरस का शिकार नहीं हुआ है. पशुओ में भी इसका संक्रमण अब तक सिर्फ गायों में ही दिखने को मिला है. अगर कोई गाय संक्रमित है तो दूसरी भी उसकी चपेट में आ जाती है. अगर एक ही बाडे़ में दो या दो से ज्यादा गाय हैं तो संक्रमण आसानी से फैल भी सकता है. एक संक्रमित गाय के घाव पर बैठने वाली मक्खी, मच्छर के जरिये लंपी वायरस एक से दूसरे जानवर तक पहुंच भी रहा है. लेकिन हो सकता है आगे चलकर ये वायरस इंसानों में भी फैल जाये. हालांकि अभी तक इसकी कोई पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन आपको सावधानी बरतनी चाहिये जैसे दूध निकालते समय हाथों में ग्लव्स और मास्क जरुर पहनें और पर्सनल हाईजिन का ध्यान भी रखें.

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  • आखिर क्यों पहनते हैं वकील काला कोट? जानिए – इसके पीछे का इतिहास…


    डेस्क : देश में ऐसे कई पेशे हैं, जिनका अपना रहन-सहन और ड्रेस कोड है। ऐसे में वकीलों का पोशाक काला कोट सफेद शर्ट व काली पैंट है। कोर्ट में हर एक वकील आपको इसी पोशाक में दिखेंगे। आपके मन में भी यह ख्याल कहीं बाढ़ आया होगा कि वकील ऐसे कपड़े क्यों पहनते हैं इसके पीछे क्या कारण होगा। इस काले कोट के पीछे भी एक इतिहास है। तो आइए विस्तार से जानते हैं।

    ये है काले कोट का इतिहास :

    ये है काले कोट का इतिहास : इतिहास के अनुसार 1327 में एडवर्ड तृतीय द्वारा वकालत शुरू की गई थी। उस समय भी न्यायाधीशों के लिए एक अलग प्रकार की पोशाक तैयार की जाती थी, लेकिन उस समय वकीलों की पोशाक काले रंग की नहीं होती थी। उस समय वकील लाल कपड़े और भूरे रंग के गाउन पहनते थे। वहीं जज सफेद रंग के बालों के साथ विग पहना करते थे। लेकिन समय के साथ इसके बदलाव किया गया।

    वकीलों के पहनावे में बदलाव साल 1600 के बाद आया। 1637 में एक प्रस्ताव रखा गया था। जिसमें जजों और वकीलों को जनता से अलग दिखने के लिए काली पोशाक पहननी पड़ती थी। तभी से वकीलों ने फुल लेंथ गाउन पहनना शुरू कर दिया। माना जाता है कि इस ड्रेस को आम लोगों से अलग दिखने के लिए बनाया गया था।

    इस दिन से वकील पहनने लगे ऐसे कपड़े :

    इस दिन से वकील पहनने लगे ऐसे कपड़े : यह भी कहा जाता है कि 1694 में क्वीन मैरी की चेचक से मृत्यु हो गई और किंग विलियम्स ने सभी न्यायाधीशों और वकीलों को शोक मनाने के लिए काले गाउन में इकट्ठा होने का आदेश दिया। तब से लेकर अब तक इस प्रथा को कभी खत्म नहीं किया गया, जिसके बाद जजों और वकीलों ने इस तरह के कपड़े पहनना शुरू कर दिया।

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  • आसमान से बिजली गिरते के समय तापमान कितने डिग्री का होता है, जिससे लोगों की मौत हो जाती है..


    डेस्क : मानसून की शुरुआत के बाद से ही आसमान से बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ जाती है। इसके कारण भारत में हर साल सैकड़ों लोग अपनी जान गंवाते हैं। बिजली एक बड़ी समस्या है, इस प्रकृति के प्रकोप से बचने के लिए सावधान रहना बहुत जरूरी है। केवल सतर्कता ही लोगों के जीवन को बचा सकती है। आसमानी बिजली का तापमान बहुत अधिक होता है। आज हम आसमानी बिजली से जुड़ी चीजों और इसके बारे में चर्चा करेंगे। तो आइए विस्तार से जानते हैं।

    बिजली एक प्राकृतिक घटना है। जब अधिक गर्मी और नमी होती है, तो बिजली के साथ विशेष प्रकार के बादल ‘गरज वाले बादल’ बन जाते हैं और तूफान का रूप ले लेते हैं। सतह से लगभग 8-10 किमी ऊपर इन बादलों के निचले भाग में ऋणात्मक आवेश अधिक और ऊपरी भाग में धनात्मक आवेश अधिक होता है। जब दोनों के बीच का अंतर कम हो जाता है, तो बिजली के रूप में तेजी से निर्वहन होता है।

    इतना होता है आस-पास का तापमान :

    इतना होता है आस-पास का तापमान : हम बादलों के बीच गड़गड़ाहट देख सकते हैं और इसमें कोई नुकसान नहीं है। नुकसान तब होता है जब बिजली बादलों से जमीन पर टकराती है। साथ में, पृथ्वी के एक छोटे से हिस्से पर भारी मात्रा में ऊर्जा गिरती है। एक बिजली गिरने से कई मिलियन वाट ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है। इससे आसपास का तापमान 10,000 डिग्री से 30,000 डिग्री तक बढ़ सकता है।

    क्या कहता है रिपोर्ट :

    क्या कहता है रिपोर्ट : वार्षिक बिजली रिपोर्ट के अनुसार, 2019-20 के अनुसार, बिजली गिरने से सबसे अधिक मौतें 25-31 जुलाई के बीच हुईं। इस दौरान देशभर में बिजली गिरने की 4 लाख से ज्यादा घटनाएं दर्ज की गईं। आकाशीय बिजली का तापमान सूर्य की ऊपरी सतह की तुलना में अधिक होता है। इसकी क्षमता 300 kW यानि 12.5 करोड़ वॉट से ज्यादा चार्ज है।

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  • Pan Card – Aadhar और VOTER ID में कौन है सबसे ज्यादा पावरफुल डॉक्यूमेंट..


    डेस्क : देश के नागरिकों के पास कई डाक्यूमेंट्स होते हैं। इन सभी डाक्यूमेंट्स के अपने-अपने महत्व है। किसी भी सरकारी या प्राइवेट सेक्टर से लाभ लेने के लिए कई कागजात आपके पास होना चाहिए। इनमें पैन कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और आधार कार्ड आदि शामिल है। देश में कागजी कामकाज के लिए ये डाक्यूमेंट्स होना अनिवार्य है। तो आइए विस्तार से जानते हैं इन डाक्यूमेंट्स में से सबसे अधिक पावरफुल कौन सा है।

    PAN CARD :

    PAN CARD : हमने पहले ही बताया कि सभी डाक्यूमेंट्स के अपने अपने महत्व हैं। सबसे पहले बात करते हैं पैन कार्ड की। पैन कार्ड एक आवश्यक डाक्यूमेंट्स में से एक है। इसकी सहायता से वित्तीय लेनदेन किया जाता है। बैंक में तय सीमा से अधिक ट्रांजैक्शन के लिए पैन कार्ड की आवश्यकता होती है। वहीं ईनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते हैं तो पैन कार्ड का होना जरूरी है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के द्वारा पैन कार्ड जारी किया जाता है। इसे वित्तीय लेनदेन के अलावा ट्रेन में भी इस्तेमाल किया जाता है। यह एक आइडेंटी कार्ड के तौर पर भी उपयोग होता है।

    AAdhar Card :

    AAdhar Card : आज के समय में आधार कार्ड सबसे महत्वपूर्ण डाक्यूमेंट्स है। किसी भी सरकारी लाभ लेने के लिए आधार कार्ड का होना जरूरी है। डिजिटल युग में फोन नंबर को आधार से लिंक कर दिया गया है। किसी भी सरकारी कामकाज के दौरान आपके आधार नंबर से लिंक फोन नंबर पर ओटीपी जाता है। यहां तक की आधार नंबर के माध्यम से बैंक खाते से पैसे निकासी भी की जाती है। इस सुविधा से ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को काफी लाभ होता है। ऐसे कई सरकारी और निजी क्षेत्रों में कार्य है, जहां आधार कार्ड की अनिवार्यता है।

    VOTER ID Card :

    VOTER ID Card : भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां हर दिन चुनाव होते हैं, जिसमें वोटर आईडी कार्ड का विशेष महत्व है। चुनाव के दौरान वोट करने के लिए वोटर आईडी कार्ड बहुत जरूरी है, वोटर आईडी कार्ड इस बात का सबूत है कि आप भारत के नागरिक हैं। मतदाता पहचान पत्र पहचान पत्र के रूप में भी मान्य है, इसके अलावा कई जगहों पर इसे स्थायी पते के प्रमाण के रूप में जमा किया जाता है। भारत निर्वाचन आयोग ने चुनावों के दौरान धोखाधड़ी से बचाव के लिए वोटर आईडी कार्ड प्रणाली की शुरुआत की है, जिसके तहत संविधान में एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में मतदान करने का अधिकार दिया गया है।

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