Category: Knowledge

  • आखिर LPG Cylinder का लाल रंग ही क्यों रहता है? वजह जानकर यकीन नहीं होगा..


    डेस्क : आजकल, गैस सिलेंडर स्टोव लगभग घरेलू खाना पकाने का उपकरण है। आपने हर घर में गैस सिलेंडर देखा होगा। हम हर दिन गैस सिलेंडर देखते हैं लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि गैस सिलेंडर का रंग लाल क्यों होता है? गैस सिलेंडर के लाल रंग के पीछे एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारण है। क्या आप जानते हैं इसके पीछे की वजह?

    जैसा कि हम सभी जानते हैं कि लाल रंग को खतरे के संकेत के रूप में देखा जाता है और एलपीजी सिलेंडर में ज्वलनशील गैसें होती हैं इसलिए वे भी खतरे में हैं। ग्राहकों की सुरक्षा के लिए गैस सिलेंडरों को लाल रंग से रंगा गया है। इसके अलावा, अगर हम विज्ञान के बारे में बात करते हैं, तो दृश्यमान स्पेक्ट्रम में लाल प्रकाश की तरंग दैर्ध्य सबसे लंबी होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि लाल रंग दूर से ही दिखाई देता है। यही कारण है कि खतरनाक चीजें दूर से दिखाई देती हैं, इसलिए उन्हें लाल रंग से रंगा जाता है।

    सिलेंडर के निर्माण में विशेष सावधानी बरती गई है। बता दें कि एलपीजी एक गंधहीन गैस है। यह अत्यधिक ज्वलनशील है लेकिन इसमें कोई गंध नहीं है। ऐसे में गैस लीक होने से जान को खतरा हो सकता है। इसे रोकने के लिए सिलेंडर में तेज महक वाला एथिल मर्कैप्टन भी मिलाया जाता है, जिससे गैस रिसाव की गंध का पता लगाया जा सकता है।

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  • क्रिकेटर्स खेलते वक्त क्यों अपने होंठ और गालों पर लगाते हैं सफेद रंग की क्रीम, ये है हद से ज्यादा लगाने का कारण


    डेस्क : क्रिकेट मैच के दौरान अक्सर आपने देखा होगा कि कई खिलाड़ी अपने मुंह पर सफेद क्रीम लगाए हुए नज़र आते हैं। क्या आप जानते हैं कि चेहरे पर लगाई जाने वाली ये कौन सी क्रीम होती है और इस क्रीम के लगाए जाने का कारण क्या है?

    जो सफेद रंग की क्रीम क्रिकेटर्स के मुंह पर आप देखते हैं तो वो जिंक ऑक्साइड होती है। इसे फिजिकल सनस्क्रीन भी कहा जा सकता है। चेहरे पर ये रिफलेक्टर का काम करती है। धूप से बचने के लिए क्रिकेटर्स इसका सहारा लेते हैं। इससे उनकी स्कीन का बचाव सूर्य की सीधी पड़ने वाली किरणों से होता है। यह क्रीम सूरज की यूवीए और यूवीबी किरणों से बचाव करती है।

    स्कीन पर ये क्रीम प्रोटेक्टिव लेयर बना लेती है, जिससे सूर्य की किरणे सीधे स्कीन पर नहीं लगती है। ये सन स्क्रीन से अलग होती है। आम तौर पर लगाई जाने वाली सनस्क्रीन कैमिकल सनस्क्रीन होती है, जो कि बॉडी आब्जर्व कर लेती है। लेकिन, क्रिकेटर्स जिसका इस्तेमाल करते हैं वह जिंक ऑक्साइड होता है। ऐसे में क्रिकेटर्स रिफलेक्टिव फिजिकल सन स्क्रीन का इस्तेमाल करते हैं।

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  • ऑपरेशन करते समय डॉक्टर्स सिर्फ सफेद और हरे रंग के कपड़े ही क्यों पहनते हैं? जानें


    डेस्क : कोरोना काल में हमने डॉक्टरों के महत्व को समझा। ये फ्रंटलाइन वर्कर दिन रात लोगों का इलाज कर रहे थे. ऐसे में जब हम सोशल मीडिया पर डॉक्टरों की तस्वीरें देखते हैं तो वे या तो सफेद कोट में या हरे रंग के कोट में दिखाई देते हैं। अक्सर डॉक्टर सफेद कोट अपने साथ रखते हैं। लेकिन जब वे सर्जरी के लिए जाती हैं तो हरे रंग का लंबा कपड़ा पहनती हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि वो ऐसा क्यों करते हैं? आज के नॉलेज पैकेज में हम इसी बारे में आपसे बात कर रहे हैं…

    डॉक्टर सफेद कोट क्यों पहनते हैं: सफेद कोट में डॉक्टरों के पीछे बहुत पुरानी कहानी है। कहानी 19वीं सदी की है। उस समय सफेद कोट केवल वैज्ञानिक और प्रयोगशाला कर्मचारी ही पहनते थे। वैज्ञानिक यह कहने में व्यस्त थे कि उस समय डॉक्टरों के इलाज के तरीके गलत थे। ऐसा करने के लिए, शासकों द्वारा उनका सम्मान भी किया जाता था। तब चिकित्सा पेशे को विज्ञान में बदलने का निर्णय लिया गया था। डॉक्टर भी वैज्ञानिक बनने के लिए मैदान में उतरे। कहा जाता है कि 1889 में डॉक्टरों ने सफेद कोट पहनना शुरू किया था। आधुनिक सफेद कोट का श्रेय कनाडा के डॉ. जॉर्ज आर्मस्ट्रांग को जाता है।

    यह भी उल्लेख है कि शांति के प्रतीक के रूप में सफेद कपड़े पहने जाएंगे। यह भी माना जाता है कि अस्पताल आने के बाद तनावपूर्ण माहौल में मरीज सकारात्मक रह सकते हैं, इसलिए डॉक्टर हमेशा सफेद कोट पहनते हैं।

    तो ऑपरेशन के दौरान हरे कपड़े क्यों: अब एक सवाल यह है कि ऑपरेशन के दौरान डॉक्टर हरे रंग के कपड़े क्यों पहनते हैं? कहा जाता है कि पहले ऑपरेशन के दौरान भी डॉक्टर सफेद कोट ही पहनते थे। लेकिन 1914 में एक प्रभावशाली डॉक्टर ने इसे बदल दिया। ऐसा क्यों किया गया इसका कोई ठोस कारण नहीं है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार ऐसा रक्त का रंग देखकर डॉक्टरों को मानसिक रूप से तनावग्रस्त होने से बचाने के लिए किया जाता है। इसे लगातार चमकते रंगों की समस्या भी बताया जाता है। इसलिए डॉक्टर सिनेमा में हरे रंग का इस्तेमाल करते हैं। वे आंखों को आराम देते हैं।

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  • क्या आप जानते हैं तकिए के नीचे फोन रखकर सोना बेहद खतरनाक? आज ही बदल दें ये आदत..


    डेस्क : हम में से कई लोगों की आदत होती है कि जब हम सोते हैं तो उन्हें तकिए के नीचे रख देते हैं। ऐसा करने के कई कारण हो सकते हैं, जिसमें नींद के दौरान भी अपने फोन को देखना शामिल है। हम सोते रहते हैं लेकिन वीडियो देखना जारी रखते हैं। इसके बाद फोन को तकिए के नीचे रखकर सो जाएं। क्या आप जानते हैं कि यह कितना खतरनाक हो सकता है? यदि आप इसके बारे में नहीं जानते हैं, तो आज हम आपको उन सभी समस्याओं के बारे में बताने जा रहे हैं जो आपके तकिए के नीचे फोन रखने से हो सकती हैं।

    सेल फोन से निकलने वाला रेडिएशन है खतरनाक :

    सेल फोन से निकलने वाला रेडिएशन है खतरनाक : कुछ लोगों का मानना ​​है कि मोबाइल फोन से निकलने वाले रेडिएशन का लोगों के स्वास्थ्य पर कुछ नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। एक और मिथक यह है कि अपने तकिए के नीचे फोन रखकर सोने से आपके मस्तिष्क में सेलुलर स्तर कम हो सकता है।

    ज़्यादा गरम करने से आग लग सकती है :

    ज़्यादा गरम करने से आग लग सकती है : हमने कई ऐसे किस्से सुने हैं जहां ओवरहीटिंग की वजह से फोन फट जाते हैं। ये वाकई खतरनाक हो सकता है। बहुत से लोग रात में फोन चार्ज करते हैं और सुबह फुल बैटरी ले लेते हैं। ऐसा करना भी काफी खतरनाक साबित हो सकता है। क्योंकि बहुत से लोग रात में सिर्फ तकिए के नीचे अपना फोन चार्ज करते हैं। यह जोखिम भरा हो सकता है। तकिए के नीचे फोन रखने से फोन गर्म होना तय है। उसी समय, बाहरी ताकतें उस पर लागू होती हैं। ऐसी कई कहानियां हैं जहां बाहरी ताकतों के कारण फोन फट गए।

    चार्जिंग के दौरान, चार्जर और फोन गर्म हो जाते हैं, जिससे आग लग जाती है या अचानक विस्फोट हो जाता है। अगर आप फोन के असली चार्जर से अलग चार्ज का इस्तेमाल करते हैं, तो यह आपके और आपके फोन के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

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  • इन हिंदू राजकुमारियों न खुद चुना था अपना मुग़ल बादशाह – आज भी हैरत में दाल देगा इनका प्रेम प्रसंग


    भारत में मुगल साम्राज्य का इतिहास इतना रोचक रहा है जिसे पढ़ने में उसका एक अलग ही मजा है। यकीनन आपने भी कई मुगल बादशाहों के बारे में पढ़ा होगा और कई बादशाहों की प्रेम कहानियां भी सुनी होंगी, लेकिन हम आपको आज मुगल साम्राज्य की कुछ ऐसी बेगमों या फिर यूं कहें कि रानियों के बारे में जानकारी दे रहे हैं जो गैर मुस्लिम थीं।

    हालांकि, मुगलों की बेगमों को लेकर विवाद तो चलता रहता है। हिंदू और राजपूत रानियों के बारे में पढ़ना बहुत ही इंटरेस्टिंग विषय है। कई किताब भी इसपर लिखी जा चुकी हैं, लेकिन इतिहासकार कभी मुगल शासकों की हिन्दू रानियों को लेकर एकमत नहीं हुए हैं। आज हम आपको कुछ ऐसी बेगमों के बारे में बताने जा रहे हैं, इतिहास के पन्नों में जिनके नाम दर्ज हो गए हैं।

    मानबाई-

    मानबाई- मुगल इतिहास की सबसे बहादुर महिलाओं में मानबाई का नाम लिया जाता है, क्योंकि इन्होंने एक मुस्लिम मुगल बादशाह से शादी की थी। बता दें कि आमेर के राजा भगवंत दास की पौत्री और राजा बिहारीमल की पुत्री थीं मानबाई। जिनका बेहद कम उम्र में जहांगीर से निकाह करवा दिया गया था। इनका नाम निकाह के बाद बदलकर शाह बेगम रख दिया गया था। यह इतनी बहादुर थीं कि इन्हें ‘द रॉयल लेडी’ के नाम से भी जाना जाता था।

    हीरा कुमारी-

    हीरा कुमारी- यकीन आपने जोधा और अकबर की प्रेम कहानी के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या आपको जोधा बेगम का असली नाम पता है? अगर नहीं है तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हीरा कुमारी, जोधा बेगम का असली नाम था। हालांकि, उन्हें हरका बाई, हीर कुंवर आदि नामों से भी जाना जाता था।

    सन 1542 में इनका जन्म हुआ था, जो एक हिन्दू राजवंशी राजकुमारी थीं। उनके पिता आमेर रियासत के राजा भारमल थे। हालांकि, किसी कारणवश जोधा और अकबर के निकाह को लेकर कहा जाता है कि उनका निकाह एक राजनीतिक समझौता था

    जगत गोसाई-

    जगत गोसाई- इतिहास के मुताबिक़ बादशाह जहांगीर की एक और हिंदू बीवी थीं, जिनका नाम जगत गोसाई था। वह जोधपुर की मारवाड़ रियासत की राजकुमारी थीं और उनके पिता का नाम राजा उदयसिंह एवम् माता का नाम महारानी मानववती था। अपको बता दें कि राजकुमारी का पूरा नाम श्री मानवती बाईजी लाल साहिबा था। जिन्होंने मुगल बादशाह जहांगीर से शादी की थी। शादी के बाद रानी को बिलकिस मकानी के नाम से जाना जाता था।

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  • क्या आप जानते हैं स्मार्ट मीटर और बिजली के पुराने मीटर में क्या अंतर है? जानिए कौन है सबसे बेहतर..


    डेस्क : बदलते समय के साथ जमाना भी बदल रहा है। टेक्नोलॉजी दुनिया में इतनी आगे पहुंच गई है कि आज सब कुछ संभव है। हर दिन नए नए अविष्कार किए जा रहे हैं। यह अविष्कार छोटे से लेकर बड़े स्तर तक हो रहे हैं। जब देश में बिजली आई तब मीटर नहीं हुआ करती थी। फिर धीरे-धीरे समय बदला और मीटर सभी घरों में लगाए गए।

    जिससे खपत किए गए बिजली का पता लगाया जा सके। इस माध्यम से बिजली विभाग को उपभोक्ताओं से बिजली शुल्क लेने में भी सुविधा हुई। अब जमाना स्मार्ट हो चुका है। ऐसे में सामान्य मीटर की जगह अब स्मार्ट मीटर लगाए जा रहे हैं। कई लोगों में इस बात की दुविधा रहती है कि सामान्य और स्मार्ट मीटर मीटर में क्या अंतर है तो आइए विस्तार से जानते हैं।

    सामान्य मीटर हम आप कई सालों से उपयोग कर रहे हैं। इस मीटर के माध्यम से यह पता चलता है कि कितनी बिजली का खपत किए गए हैं। बिजली विभाग के कर्मचारी आकर आपके बिजली मीटर को देखने के बाद आपको बिजली बिल का भुगतान करने को कहते हैं। इस समय मीटर में बिजली खपत करने के बाद बिल का भुगतान करना होता है। ऐसे में बिजली चोरी की संभावना काफी अधिक होती है। वहीं स्मार्ट मीटर में आपको बिजली बिल का भुगतान पहले करना होगा।

    सरकार सभी घरों से सामान्य मीटर हटाकर स्मार्ट मीटर लगाने की योजना पर कार्य कर रही है। स्मार्ट मीटर के माध्यम से आपको अधिक बिजली बिल आने का बिल्कुल डर नहीं रहेगा। स्मार्ट मीटर के लग जाने के बाद आप जितना चाहेंगे उतना ही बिजली बिल खपत होगा। स्मार्ट मीटर में आपको रिचार्ज करना पड़ेगा। आपके रिचार्ज के प्लान के मुताबिक आपका बिजली खपत कर सकेंगे।

    स्मार्ट मीटर से उपभोक्ताओं को पहले से ही पता होगा कि कितना बिजली बिल खपत करना है, कितना अब बिल आएगा और हमें अगले महीने कितने का रिचार्ज कराना है। हालांकि रिचार्ज नहीं करने पर बिजली का लाभ नहीं मिलेगा। इसका एक फायदा यह भी है कि यदि आप कहीं बाहर जाते हैं तो आपको बिजली बिल के नाम पर ₹1 भी नहीं देना होगा। ऐसे कई मामले सामने आए हैं कि सामान्य मीटर में घर बंद रहने के बाद भी बिजली बिल आ जाती है। इन सब समस्याओं से छुटकारा मिलने की उम्मीद है।

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  • समझ नहीं आता ? तो जानें कैसे चेक करें की रोज घर पर लाने वाला दूध असली है या नकली


    डेस्क : अब तक अगर आपको लगता है कि दूध में केवल पानी की मिलावट होती है तो आप गलत है। कई बार पानी के अलावा दूध में कई हानिकारक सामग्री जैसे साबुन, डिटर्जेंट और केमिकल्स आदि को मिलाया जाता है। इससे दूध एकदम असली जैसा लगता है। हम आपको बता रहे हैं कि रोजाना घर में इस्तेमाल होने वाले दूध को कैसे पहचाने कि वह असली है या नकली? आइए, जानते हैं-

    सबसे पहले पानी की मिलावट को परखने के लिए दूध में किसी लकड़ी या पत्थर पर दूध की एक या दो बूंद गिराइए। अब अगर दूध बहकर नीचे की तरफ गिरे और सफेद निशान बन जाए तो इसका मतलब दूध पूरी तरह से शुद्ध है।

    दूध में डिटर्जेंट की मिलावट को पहचानने के लिए एक कांच की शीशी में दूध की कुछ मात्रा को लेकर जोर से हिलाइए। दूध में अगर झाग निकलने लगे तो इस दूध में डिटरर्जेंट मिला हुआ है। यह झाग अगर देर तक बना रहे, तो दूध के नकली होने में कोई संशय नही है।

    आप दूध को सूंघकर देखें। अब अगर दूध नकली है, तो साबुन की तरह गंध उसमें आएगी और अगर दूध असली है तो उसमें इस तरह की कोई गंध नहीं आती।दोनों हाथों में लेकर दूध को रगड़कर देखें। अगर दूध असली है तो सामान्य तौर पर चिकनाहट महसूस नहीं होगी। लेकिन वहीं दूध नकली है तो इसे रगड़ने पर बिल्कुल वैसी ही चिकनाहट महसूस होगी जैसी जब हम डिटर्जेंट को रगड़ते हैं तब होती है।

    दूध को देर तक रखने पर भी असली दूध अपना रंग नहीं बदलता है। जबकि दूध अगर नकली है तो वह कुछ समय के बाद पीला पड़ने लगेगा।असली दूध को उबाले जाने पर उसका रंग बिल्कुल नहीं बदलेगा, जबकि नकली दूध का रंग उबलने पर पीला हो जाएगा।

    अगर सिंथेटिक दूध में यूरिया मिला हुआ है, तो वह गाढ़े पीले रंग का हो जाता है। वहीं असली दूध स्वाद के मामले में हल्का-सा मीठा स्वाद लिए हुए होता है। जबकि नकली दूध का स्वाद डिटर्जेंट और सोडा मिला होने के कारण कड़वा हो जाता है।

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  • मुगलों का ये दोस्त पड़ा खुद मुग़ल बादशाहों पर भारी, दिल्ली की हालत बद्द्तर की थी इस क्रूर शासक ने


    मुगलों के अत्याचार की कहानी भारत में तो काफी सुनी होगी। लेकिन, क्या आपको पता हैं जब मुगल साम्राज्य पतन की ओर था, तब विदेशियों ने भारत में एंट्री की कोशिश शुरू कर दी थी। अफगानों ने भी इसका फायदा उठाया और वो दिल्ली तक आ गए और काफी धन लूटने के साथ ही अपनी राज्य भी स्थापित किया। ऐसा कहा जाता है कि इसकी शुरुआत नादिरशाह के आक्रमण के साथ हुई थी, जिसने भारत को 1736 के आसपास निशाना बनाया। मुगलों से लेकर जनता पर उसनेइतने अत्याचार किया कि उसकी कहानी आज भी रूह कांप उठती है।

    यह बात नादिरशाह की क्रूरता की है, जिसमें फारस के शाह तहमास्प की मौत के बाद साल 1736 में शासन संभाला और अफगानों के विरोध संघर्ष शुरू किया। इसी तरह उसने कंधार पर 12 मार्च 1738 को परचम लहरा दिया और अब उसका लक्ष्य भारत था। नादिरशाह ने भारत में आने से पहले भारत की उस वक्त की आतंरिक स्थिति के बारे में अच्छे से पता किया। इसके बाद इसने पूरी प्लानिंग के साथ भूमिका निभाई और लगातार दिखावा किया कि वह सचमुच मुगल बादशाह का मित्र है और मात्र अफगानों को दंड देने के लिए वह यहां आ रहा है।

    दूसरी ओर उसने काबुल, गजनी, जलालाबाद, पेशावर पर अपना अधिकार कर लिया था। इस वक्त तक भारत में वो कुछ भी क्रूरता नहीं दिखा रहा था और मुगलों की प्रजा पर अच्छे रह रहा था। ऐसा कहा जाता है कि एक बार जलालाबाद के पास उसके एक दूत की हत्या कर दी गई, जिससे वो भड़क गया। फिर उसने कत्लेआम का आदेश दिया और धीरे धीरे उसका आतंक भी स्थापित होने लगा। नादिर शाह की खास बात ये थी कि वह ज्यादा उतावला ना होकर धीरे धीरे अपना क्षेत्र विस्तार कर रहा था। फिर उसने पंजाब में प्रवेश किया और उसके सामने वहां के राजा आत्मसमर्पण करने लगे।

    नादिरशाह ने पहले पंजाब में उसे अपनी ओर से पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया और फिर वह दिल्ली की ओर बढ़ा। यह बात तक़रीबन 13 फरवरी 1739 की है, जब दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह ने उसे रोकने की कोशिश की थी। लेकिन यहां उसे हार का सामना करना पड़ा। फिर दोनों ने आपस में संधि कर ली।

    बताया जाता है कि वह दिल्ली में 9 मार्च तक घुस गया और उसका स्वागत भी मुगल बादशाह मुहम्मद शाह ने किया। लालकिले में वो ठहरा और दिल्ली में उसके साथियों ने क्रूरता शुरू कर दी। अब जनता में उपद्रव की स्थिति पैदा हो गई। वहीं नादिरशाह के आदेश के बाद से ही सरेआम कत्लेआम किया गया और 20 हजार से भी अधिक लोगों को मार दिया गया। दुकानों को लूट लिया गया और काफी इलाका जला दिया गया।

    बताया जाता है कि उस वक्त के हिसाब से उसने करीब 3 करोड़ रुपये की लूटपाट की। उस दौरान अपने शहर में बादशाह बंदी की तरह रहा। नादिरशाह का प्रभाव काफी बढ़ गया और मुगलों की स्थिति काफी खराब हो गई। उस दौरान वो अपने साथ कोहिनूर, मयूर सिंहासन, बहुमूल्य आभूषण और काफी पैसा ले गया। ऐसा आतंक नादिरशाह ने किया कि उसके बारे में सुनकर आज भी रूह कांप उठती है। कहते हैं कि लाशों के ढेर से उठने वाली बदबू से ही लोग परेशान हो गए थे। इसके बाद दिल्ली से लूटपाट करके वो वापस चला गया। जाते वक्त उसने मुहम्मद शाह को सिंहासन सौंप दिया। साथ ही जाते वक्त काफी पैसे और बहुमूल्य सामान लेकर अपने देश गया।

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  • आखिर किस वजह से रात में नहीं जलाते शव को- ये है मुख वजह


    डेस्क : हिंदू धर्म में कुल सोलह अनुष्ठानों का वर्णन किया गया है। इन सोलह कर्मकांडों में से 16वें कर्मकांड यानी अंतिम संस्कार को अंतिम संस्कार कहा जाता है, जो व्यक्ति की मृत्यु के बाद किया जाता है। इस अनुष्ठान के लिए कुछ नियम भी बनाए गए हैं। जिसमें कभी भी सूर्यास्त के बाद शवों का अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है। साथ ही दाह संस्कार के दौरान, जो व्यक्ति छेद वाले बर्तन में पानी से अंतिम संस्कार करता है, वह ताबूत पर मृत शरीर के चारों ओर घूमता है और अंत में बर्तन को तोड़ देता है। इन अनुष्ठानों का उल्लेख गरुड़ पुराण में भी मिलता है। जानें कि यह किस बारे में है।

    सूर्यास्त के बाद क्यों नहीं होता है दाह संस्कार: गरुड़ पुराण के अनुसार, रात में सूर्यास्त के बाद दाह संस्कार को हिंदू शास्त्रों के खिलाफ माना जाता है। इसलिए अगर रात में किसी की मौत हो जाती है तो उसकी लाश को रख दें और सुबह होने का इंतजार करें। सूर्योदय के बाद अगले दिन दाह संस्कार किया जाता है जब रात में दाह संस्कार किया जाता है, सूर्यास्त के बाद माना जाता है कि स्वर्ग के द्वार बंद हो जाते हैं और नरक के द्वार खुल जाते हैं। ऐसे में जीव की आत्मा को नर्क की पीड़ा भोगनी पड़ती है। वहीं ऐसा माना जाता है कि अगले जन्म में ऐसे व्यक्ति को कुछ अंग दोष हो सकते हैं।

    दाह संस्कार के दौरान मटके को छिद्रित बर्तन से परिक्रमा करके तोड़ने का भी नियम है। इसके पीछे मान्यता है कि मृत व्यक्ति का मोह को भंग करने के लिए ऐसा किया जाता है। चक्कर के दौरान, व्यक्ति की जीवन की कहानी भी बताई जाती है। वह मनुष्य को घड़ा मानता है और उसमें उपस्थित जल उसका समय है। घड़े से टपकने वाले पानी की एक-एक बूंद, उसका जीवन पल-पल कम होता जाता है और अंत में घड़ा टूट जाता है और शरीर समाप्त हो जाता है और शरीर में मौजूद आत्मा निकल जाती है। इस विधि से शरीर और उसकी आत्मा के बीच का मोह भंग हो जाता है

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  • कार के विंडशील्ड पर अब ये मार्किंग अनिवार्य, ट्रैफिक नियमों में एक महत्वपूर्ण बदलाव


    डेस्क : कृपया ध्यान दें कि अब कारों के लिए अपनी विंडस्क्रीन पर फिटनेस प्रमाणपत्र और मोटर वाहन पंजीकरण चिह्न प्रदर्शित करना अनिवार्य है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने हाल ही में एक मसौदा अधिसूचना जारी की। नियमों का उल्लंघन करने पर कार्रवाई की जा सकती है। ऐसा करने के लिए, अपनी कार की सामने की खिड़की पर दोनों जानकारी दर्ज करें। साथ ही केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने भी नियमों में बदलाव को लेकर अधिकारियों से फीडबैक मांगा है. इसलिए, विशेष रूप से दिल्ली एनसीआर में, सभी ड्राइवरों को जल्द ही दो स्टिकर अपने शीशों पर चिपकाने होंगे।

    आपको बता दें कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के निर्देशन में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के प्रारूप के अनुसार वाहन की विंडस्क्रीन पर तिथि, माह एवं वर्ष के प्रारूप में फिटनेस। प्रमाण पत्र की सूचना देनी होगी। साथ ही वाहन पर निर्धारित तरीके से मोटर वाहन पंजीकरण चिह्न भी लगाया जाएगा। अधिसूचना में कहा गया है कि भारी माल, यात्री वाहन, मध्यम माल, यात्री वाहन और हल्के मोटर वाहनों के मामले में, इसे विंडस्क्रीन के बाईं ओर ऊपरी किनारे पर नीले रंग की पृष्ठभूमि के खिलाफ पीले रंग में टाइप एरियल बोल्ड स्क्रिप्ट में प्रदर्शित किया जाएगा। इसी तरह, ऑटो-रिक्शा, ई-रिक्शा, ई-कार्ट और क्वाड्रिक साइकिल में, यदि विंड स्क्रीन लगाई जाती है, तो स्क्रीन के ऊपरी बाएं किनारे पर जानकारी प्रदर्शित होगी।

    इसके अलावा, मोटरसाइकिल के मामले में, यह वाहन के स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाले हिस्से पर प्रदर्शित होगा। यह नीले रंग की पृष्ठभूमि पर पीले रंग में टाइप एरियल बोल्ड स्क्रिप्ट में प्रदर्शित होगा। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने जानकारी सार्वजनिक की। इसलिए वाहन मालिक समय रहते नियमों का पालन करें।

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