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  • डॉ. एस एन सुब्बाराव जी की प्रथम पुण्यतिथि मनाई गई

    देश और दुनिया के जाने माने प्रख्यात गांधीवादी और चंबल के दुर्दांत डाकुओं को आत्मसमर्पण कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ब्रह्मलीन डॉ. एस एन सुब्बाराव जी जिन्हे भाई जी के नाम से जाना जाता है ।उनकी प्रथम पुण्यतिथि का आयोजन सद्भावना मंच (भारत) के तत्वावधान में बिहार शरीफ कमरुद्दीगंज स्थित भारतीय जन उत्थान परिषद के सभागार में किया गया। प्रथम पुण्यतिथि की अध्यक्षता प्रख्यात शिक्षाविद तथा नालंदा महिला कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. डॉ. अनिल कुमार गुप्ता ने की ।

    जबकि संचालन मंच के संस्थापक और समाजसेवी दीपक कुमार ने की।
    पुण्यतिथि के मौके पर ब्रह्मलीन सुब्बाराव जी के चित्र पर उपस्थित लोगो ने माल्यार्पण कर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की ।
    कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. अनिल कुमार गुप्ता ने कहा कि सुब्बाराव जी देश के महान हस्ती थे और दूसरे गांधी के रूप में जाने जाते थे । वे हम सभी को राष्ट्रीय एकता और सद्भावना का पाठ आजीवन पढ़ाते रहे । उनका कार्यक्रम नालंदा महिला कॉलेज में हुआ था , उस समय लघु भारत का दृश्य उपस्थित हुआ था ।धन्य है ऐसे महापुरुष ।
    मौके पर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ.आशुतोष कुमार मानव ने कहा कि सुब्बाराव राष्ट्रीय एकता और अखंडता के महान दूत थे ।उनके द्वारा किए गए कार्य हमेशा हमेशा के लिए अमर रहेगा ।श्री मानव ने युवाओं को समाज सेवा हेतु प्रेरित किया और कहा कि अधिक से अधिक युवा समाजसेवा के क्षेत्र में आगे आए ।
    पुण्य तिथि के मौके पर समाजसेवी विनोद कुमार पांडेय एवम् समाजसेवी श्याम किशोर प्रसाद सिंह ने कहा कि सुब्बाराव जी के सानिध्य में रहकर सेवा भाव सीखने का मौका मिले ।
    वैसे व्यक्ति आज दुर्लभ है ।वे कथनी और करनी में मेल रखते थे ।और महान स्वतंत्रता सेनानी थे ।

    डॉ. सुब्बाराव जी की संक्षिप्त जीवनी

    ज्यादातर गांधीवादी चिंतकों और पत्रकारों का कहना है कि महात्मा गांधी और जयप्रकाश नारायण के बाद सुब्बाराव ही ऐसी हस्ती रहे, जिन्होंने देश के अधिकतम युवाओं को अहिंसक तरीके से राष्ट्र निर्माण के लिए प्रभावित और प्रेरित किया। वे एक संत की तरह जीवन जीते रहे। उनमें कोई दिखावा का भाव नहीं था। सादगी से रहते थे। युवाओं से घिरे रहते थे। बहुत कम उम्र में ही वे गांधी जी से प्रभावित हो गए थे और भारत छोड़ो आंदोलन ने कूद पड़े थे। उसके बाद वे वापस कभी नहीं मुड़े। वे गांधी के बताए रास्ते पर चलते ही गए। और चलते फिरते ही वे इस दुनिया से सदा के लिए चले गए। बहुत कम लोगों को इतनी लंबी जिंदगी जीने का मौका मिलता है।

    ऐसे महान व्यक्तित्व का पिछले दिनों 27 अक्टूबर को जयपुर के एक अस्पताल में निधन हो गया। वे 92 वर्ष के थे। सुब्बाराव का जन्म 7 फरबरी 1929 को कर्णाटक के बेंगलूर मे हुआ था। सुब्बाराव जी को लोग भाई जी के नाम से जानते थे ।उन्होंने 13 वर्ष की उम्र में आजादी के आंदोलन में हिस्सेदारी की और जेल गये। महात्मा गांधी के विचारों के प्रभाव में वे जीवन दानी बन गए। उन्होंने सारा जीवन सादगी से बिताया। एक हाफ पेंट सफेद आधी बाँहों की कमीज उनकी स्थाई भूषा थी। उन्होंने काफी लोगों को गांधी के विचारों से अवगत कराया और शिक्षित किया। जौरा में जो मुरैना जिले में है उन्होंने अपना आश्रम बनाया था ।यहां वे लगातार लंबे समय तक रहे और लोगों के बीच में काम करते रहें ।आस पास के आदिवासियों को शिक्षित संगठित और जागृत करने के लिए वे निरन्तर कार्य करते रहे।जब पहला दस्यु समर्पण हुआ था जिसमें आचार्य विनोबा भावे की भूमिका थी, उसमें भी सुब्बाराव जी ने प्रमुख भूमिका अदा की थी। बाद में जयप्रकाश जी के समक्ष जो आत्मसमर्पण उस समय के दस्युयों ने किया उसमें भी स्व सुब्बाराव जी की भूमिका थी। वे अपने समय का बेहतर प्रबंधन करते थे ,और शायद ही कभी खाली बैठते हो। अपने जीवन के आखिरी क्षण तक वह सक्रिय रहे।उनका सम्पूर्ण जीवन एक यायावर महर्षि की तरह बीता ।

    सुब्बाराव जिस तरह से वयोवृद्ध होते हुए भी काफी स्वस्थ जीवन जी रहे थे, उसके मद्देनजर उनके शुभचिंतकों को यह उम्मीद थी कि वे अपनी जिंदगी के एक शतक जरूर पूरे करेंगें ।लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। उनके विदा होने से देश भर में खास कर उनके प्रशिक्षित युवा काफी आहत हैं। और गांधी जगत में सन्नाटा छा गया है। क्योंकि इनकी जगह की भरपाई कोई नहीं कर सकता। डॉक्टर एसएन सुबाराव ने पिछले 8 दशकों तक देश विदेश के युवाओं का नेतृत्व किया। उनमें गांधीवादी मूल्य भरे और उन्हें अपने अपने इलाके में व्यावहारिक धरातल पर गांधी के संदेशों को उतारने के लिए प्रेरित किया । साथ ही जरूरत पड़ी तो उन्हें यथासंभव सहयोग भी किया। आज देश का कोई ऐसा कोना नहीं है, जहां उनके द्वारा प्रशिक्षित युवा नहीं हो,जहां उनके प्रशिक्षित युवा उनके गाए गीत ना गाते हों। वे सभी के बीच भाई जी और बच्चों के बीच फुग्गाराव के रूप में जाने जाते थे,क्योंकि जब वे किसी बच्चे से मिलते तो वे अपनी झोली से बैलून निकालते और उनको फुला के पकड़ा देते। विभिन्न आयोजनों के जरिए युवाओं की तरह वे बच्चों में भी अहिंसक संस्कार भरते रहे। पोशाक के लिहाज से वे भले जीवन भर खादी के हाफ पेंट और हाफ शर्ट पहनते रहे लेकिन विचारों और बर्ताव में वे पूरे गांधीवादी थे। उन्होंने गांधी और जयप्रकाश जैसा ही बेदाग जीवन जिया।

    उनके पूरे जीवन काल में किसी भी मुद्दे पर उन पर कभी कोई उंगली नहीं उठी और ना ही वे किसी आरोपों के घेरे में कभी आए। उनकी कथनी और करनी एक थी। उनके जीवन का एक एक पल पारदर्शी था। उनका जन्म भले कर्नाटक के बेंगलुरु में हुआ लेकिन वे केवल वहीं तक सीमित नहीं रहे। उनका अनौपचारिक आशियाना पूरी दुनिया में था। वे देश विदेश के कोने कोने में यात्रा करते रहते थे। उनका नाम देश में सबसे अधिक यात्रा करने वाले गांधीवादी के रूप में शुमार किया जाता रहा है। देश में जहां भी कोई अशांति होती, दंगे होते या किसी तरह का भी कोई तनाव होता। वे बिना देरी किए निर्भीक होकर वहां चले जाते और देश भर के सैकड़ों युवाओं को बुलाकर शांति बहाल करने में जुट जाते। वरिष्ठ गांधीवादी चिंतक अरविंद अंजुम कहते हैं कि गांधी और जयप्रकाश के चले जाने के बाद जो शून्य गांधी जगत में व्याप्त गया था, उसकी भरपाई सुब्बाराव कर रहे थे और अब उनके चले जाने के बाद उनकी जगह पर फिलहाल किसी के आने की दूर-दूर तक कोई उम्मीद नहीं दिखती है क्योंकि वे बहुत मौलिक थे ,वे वक्तव्यों से नहीं बल्कि राष्ट्र निर्माण के मायने भरे गीतों के जरिए गांधी का संदेश फैलाते रहे। वे सच में सच्चे गांधीवादी थे और उनके रोम रोम में गांधी के संदेश समाए हुए थे। उनका रहन-सहन, खान-पान और वेशभूषा सबसे अलग था जो दूर से ही पहचाने जा सकते थे। वे पूरी मानवता को एक सूत्र में बांधने की कोशिश करते रहे।वे चंबल में 1972 मे 654 बागियों के आत्म समर्पण और उनके पुनर्वास कर शांति स्थापित करने वाले अहिंसक संत की तरह हमेशा याद किए जाएंगे।

    वरिष्ठ समाज कर्मी रामशरण कहते हैं कि ना सिर्फ चंबल में शान्ति स्थापित करने जैसी बड़ी उपलब्धि हासिल की, बल्कि यह भी बहुत बड़ा काम था कि उन्होंने सैकड़ों शिविर लगा कर युवाओं को अहिंसा का पाठ पढ़ाया और राष्ट्र निर्माण के लिए उनका मार्गदर्शन भी करते रहे।27 अक्टूबर को उन्होंने जयपुर के हॉस्पिटल में ही अंतिम सांस ली।वे हमेशा हमेशा के लिए हम सभी से दूर चले गए।
    उनका अंतिम संस्कार मध्यप्रदेश के मुरैना स्थित महात्मा गांधी सेवा आश्रम जावरा के कैंपस में ही पुरे राजकिय सम्मान के साथ हुआ था ।

    कार्यक्रम का समापन समाजसेवी दीपक कुमार ने युवा गीत

    नौजवान आओ रे नौजवान गाओ रे ,गाकर किया । और सभी लोगो ने मुक्त कंठ से उनके सम्मान में राष्ट्रीय एकता एवम् भाईचारे संबंधी नारे लगाए।
    पुण्य तिथि के मौकेपर रोहित कुमार तिवारी ,संजीव कुमार ,नीरज कुमार ,
    पुष्पा पांडे ,सोनी कुमारी , गुड्डी कुमारी ,सविता कुमारी ,रणधीर कुमार ,रणवीर कुमार
    सहित बड़ी संख्या में युवा ,महिला एवम् समाजसेवी भाग लिए ।

  • ओला दुष्काळ जाहीर करा, मागणीसाठी शेतकरी संघटनाची आज ऑनलाईन मोहीम

    हॅलो कृषी ऑनलाईन : राज्यात परतीच्या पावसामुळे शेतकऱ्यांचे आतोनात नुकसान झाले आहे. अद्यापही शेतकऱ्यांना त्याची नुकसानभरपाई मिळाली नाही. त्यामुळे सरकारचे लक्ष वेधण्यासाठी आज वेगवेगळ्या शेतकरी संघटनांनी सोशल मीडियावर ऑनलाईन ट्रेंड मोहीम राबवण्याची घोषणा केली आहे. त्यासाठी शेतकऱ्यांची मुलं, बुद्धिजीवी आणि सामाजिक कार्यकर्त्यांना या मोहिमेत सहभागी होण्याचं आवाहन केलं आहे. किसान सभा आणि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पक्षाच्या विविध संघटनांनी या मोहिमेला सक्रिय पाठिंबा दर्शवला आहे.

    या काळात सोशल मीडियावर ट्रेंड

    सरकारने या संकट काळात पुरेशा उपाययोजना कराव्यात यासाठी महाराष्ट्रातील शेतकरी पुत्रांनी आज (27 ऑक्टोबर) ऑनलाईन ट्रेंड आयोजित केला आहे. ओला दुष्काळ व त्या संबंधीच्या मागण्यांची पोस्टर्स व पोस्ट आज सकाळी 11 ते रात्री 11 या काळात सोशल मीडियावर मोठ्या प्रमाणात शेअर करून समाजात या प्रश्नांबाबत जागृती निर्माण करणे, सरकारला या बाबतच्या मागण्या मान्य करायला भाग पाडणे असा या ऑनलाईन ट्रेंडचा उद्देश आहे.

    काय आहेत नेमक्या मागण्या

    –किसान सभा व मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पक्षाच्या भ्रातृभावी संघटनांनी या मोहिमेला सक्रिय पाठिंबा दिला आहे.
    –राज्यात ओला दुष्काळ जाहीर करावा, खरीपाचे कर्ज माफ करावे, शेतकऱ्यांना प्रति एकर 50 हजार रुपये मदत करावी व अग्रीमसह शेतकऱ्यांना विमा भरपाई द्यावी या मागण्या ऑनलाईन ट्रेंडच्या माध्यमातून करण्यात येणार आहेत.
    — विविध शेतकरी संघटना, शेतमजूर व कामगार संघटना, विद्यार्थी, युवक व महिला संघटना या मोहिमेत मोठ्या प्रमाणात सहभागी होत आहेत.

    राज्य सरकारनं राज्यात ओला दुष्काळ जाहीर करावा, अशी मागणी किसान सभेनं केली आहे. यासाठी उद्या दिवसभर ओला दुष्काळप्रश्नी ऑनलाईन ट्रेंडची मोहिम चालवली जाणार आहे. यामध्ये सर्वांनी सहभागी व्हावं असं आवाहन अजित नवले यांनी केलं आहे.

     

  • Ola S1 Air या TVS IQube? जानें – दोनों में से कौन सा Electric Scooter है बेहतर..


    डेस्क : Ola S1 Air & TVS iQube : डिजाइन Ola S1 Air में स्माइली शेप की ड्यूल -पॉड LED हेडलाइट, रबर मैट के साथ फ्लैट फुटबोर्ड, फ्लैट-टाइप सीट, स्मूद LED टेललैंप, निचली बॉडी पर ब्लैक क्लैडिंग, 12 इंच के स्टील वील और 7.0- इंच TFT टचस्क्रीन इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर भी मिलता है। वहीं TVS iQube में एप्रन-माउंटेड LED हेडलैंप, फ्लैट सीट, LED टेललाइट, SmartXonnect सिस्टम के साथ साथ 5.0-इंच TFT इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर और 12-इंच के अलॉय वील हैं।

    Ola S1 Air & TVS iQube :

    Ola S1 Air & TVS iQube : परफॉर्मेंस Ola S1 Air में 4.5 किलोवाट हब-माउंटेड इलेक्ट्रिक मोटर है, जो 2.5kWh बैटरी पैक से जुड़ा हुआ है। वहीं TVS iQube में 4.4किलो वाट हब-माउंटेड इलेक्ट्रिक मोटर मिलता है, जिसे 3.04kWh बैटरी पैक के साथ ही पेश किया गया है।

    Ola S1 Air & TVS iQube :

    Ola S1 Air & TVS iQube : रेंज Ola S1 Air EV मात्र 4.3 सेकंड में 0 से 40 किमी/घंटे की रफ्तार पकड़ लेती है। वहीं TVS iQube 0 से 40 किमी/घंटे की रफ्तार सिर्फ 4.2 सेकेंड में ही पकड़ सकती है। इन दोनों स्कूटर्स को एक बार चार्ज करने पर 100 Km तक की रेंज मिल सकती है।

    Ola S1 Air & TVS iQube :

    Ola S1 Air & TVS iQube : सेफ्टी राइडर की सेफ्टी के लिए, S1 Air दोनों वील्स पर ड्रम ब्रेक से लैश है, जबकि iQube को फ्रंट वील पर डिस्क ब्रेक और रियर पर भी ड्रम ब्रेक मिलता है। इन दोनों इलेक्ट्रिक वीइकल्स EV में कंबाइंड ब्रेकिंग सिस्टम (CBS) मिलता है। दोनों में सस्पेंशन ड्यूटी के लिए फ्रंट में टेलिस्कोपिक फोर्क्स और रियर पर ड्यूल शॉक एब्जॉर्बर भी मौजूद हैं।

    Ola S1 Air & TVS iQube :

    Ola S1 Air & TVS iQube : कीमतभारत में, Ola S1 Air की कीमत कुल 84,999 रुपये है। वहीं TVS iQube की कीमत कुल 99,130 रुपये (​​फेम II सब्सिडी के साथ) है। यह कीमतें X-शोरूम के मुताबिक हैं।

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  • बड़गांव सूर्य मंदिर देश की धरोहर एवं अनूठी विरासत है

    राकेश बिहारी शर्मा – भारतवर्ष पर्व-त्यौहारों की एक लम्बी एवं समृद्ध श्रृंख्ला वाला देश है। साल भर देश के अलग-अलग हिस्सों में भिन्न-भिन्न जातियों, धर्मो एवं संप्रदाय के लोगों द्वारा उनके पर्व त्यौहारों को काफी हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता है। बिहार का महापर्व ‘छठ’ ऐसा ही एक पर्व है। गौतम और महावीर की धरती से शुरू हुआ लोक आस्था का यह महापर्व विशेष रूप से भगवान सूर्य को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि सृषिट के सुचारू रूप से चलाने में उनके योगदान के लिए धन्यवाद स्वरूप प्राचीन काल से ही बिहार की धरती पर इसे मनाया जाता है। इस तालाब के विषय में यह भी मान्यता है कि यहां स्नान करने से सफेद दाग की बीमारी सहित अनेक प्रकार के चर्म रोग ठीक हो जाते है। वही तालाब के किनारे पर कई छोटे-बड़े मंदिर है। बदलते समय-काल के साथ इस महापर्व की महिमा देश विदेश में फैल चुकी है। भारत का शायद ही कोर्इ ऐसा कोना बचा हो जो इससे अछूता हो। गौरतलब है कि, भारत के अलावा पड़ोसी देश नेपाल के तरार्इ क्षेत्र में भी बड़ी आस्था के साथ ‘छठ’ मनाया जाता है। ऐसे में बिहार के बडगांव स्थित प्राचीन “बड़गांव सूर्य मंदिर” के बारे में जाने बिना ‘छठ’ पर्व का ज्ञान अधूरा सा है। विदित है कि “बड़गांव सूर्य मंदिर” भारत का एक ऐसा सूर्य मंदिर है जहां एक साथ लाखों लोग हर वर्ष ‘छठ’ पर्व मनाते है। यह परंपरा सदियों से यहां निभार्इ जा रही है। “बड़गांव सूर्य मंदिर” बिहारशरीफ से 15.2 किलोमिटर तथा पटना से 87.6 किलोमिटर की दुरी पर है। ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व के साथ-साथ प्रसिद्ध मान्यताओं के कारण यहां छठ व्रत करने बिहार के कोने-कोने से ही नहीं बल्कि पूरे देश से लोग यहां आते हैं और काफी परेशानियों को सहकर भी सूर्योपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ व्रत करते हैं।
    वर्तमान में पौराणिक सूर्य तालाब जमींदोज हो गया है। ऐसी मान्यता है कि उसी तालाब के ऊपर एक विशाल तालाब वर्तमान में मौजूद है। चीनी यात्री ह्वेनसांग की डायरी में इस सूर्यपीठ का वर्णन मिलता है। डायरी के अनुसार यहां सूर्य उपासक इस तालाब में स्नान और अर्घ्यदान करते थे। इस तालाब के उत्तर-पूर्व होने पर पत्थर की एक मंदिर हुआ करती थी। मंदिर में भगवान सूर्य की भव्य प्रतिमा थी। इस मंदिर का निर्माण पाल राजा नारायण पाल ने 10 वीं सदी में कराया था। वर्तमान में वह मंदिर अस्तित्व में नहीं है। 1934 ई. के भूकंप में वह मंदिर ध्वस्त हो गया था। दूसरे स्थान पर इस सूर्य मंदिर का निर्माण कराया गया है। इस मंदिर में पुरानी मंदिर की प्रतिमाएं स्थापित की गई है। यहां स्थापित सभी प्रतिमाएं पाल कालीन बताई जाती है। शायद छठ ही एक ऐसी पूजा और व्रत है, जिसमें ब्राह्मण की कोई जरूरत नहीं होती है। इस व्रत में जजमान ही स्वयं ब्राह्मण होते हैं। यह पूजन कोई पंडित द्वारा नहीं कराया जाता है। बल्कि सूर्य उपासक स्वयं करते हैं। ईश्वर और आस्था के बीच सीधे संवाद का यह व्रत माना जाता है। इस पर्व में जीवनदायिनी की आराधना की जाती है। चाहे वह जल की हो या सूर्य या फल के रूप में वनस्पतियों की। महापर्व छठ साल में दो बार यानी कार्तिक और चैत्र माह में होता है, जिसमें लोग भगवान भास्कर की पूजा करते हैं। छठ पर्व के मौके पर यहां लाखों लोग भगवान भास्कर की अराधना के लिए आते हैं। छठ पूजा के दिन माता छठी की पूजा की जाती है। जिन्हें छठी मैयां कहते है। शास्त्रों के अनुसार छठी मैयां को सूर्य भगवान के बहन कहा गया है। इसलिए इस दिन सूर्य भगवान के पूजा का काफी महत्त्व है। सूर्य भगवान के कारण ही इस जगत पर जीवन है। मार्कण्डय पुराण में सृष्टि के अधिष्ठात्री देवी प्रकृति ने खुद को छः भागों में बांटा हुआ है और इसके छठे अंश को मातृ देवी के रूप में पूजा जाता है जो भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री है। बच्चे के जन्म के छठवें दिन बाद भी छठी मैया की पूजा की जाती है और उनसे प्रार्थना की जाती है की वो बच्चे को स्वस्थ, सफलता और दीर्घ आयु का वरदान दें।

    बड़गांव सूर्य मंदिर देश की धरोहर एवं अनूठी विरासत है

    चार दिविसीय छठ महापर्व का आयोजन

    छठ पर्व वर्ष भर में दो बार कार्तिक छठ पर्व और चैती छठ पर्व, दोनों माह के शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है। पहले दिन शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की साफ सफाई कर स्वच्छ व पवित्र बनाया जाता है। इसके बाद छठव्रति नदी तालाब या कुआं के जल मे स्नान कर पवित्र तरीके से कदू, चने की दाल और अरवा चावल का प्रसाद बनाकर भगवान को भोग लगाने के बाद व्रती को प्रसाद ग्रहण करने के बाद अन्य लोगों को प्रसाद खिलाया जाता है। दूसरे दिन शुक्ल पक्ष पंचवी को व्रति दिनभर उपवास रहकर मीठा चावल, घी चुपड़ी रोटी और चावल का पीठा बनाकर शाम को भगवान भास्कर को भोग लगाकर व्रती भोजन प्रसाद ग्रहण करती हैं उसके बाद लोगों को लोहंडा का प्रसाद ग्रहण करवाया जाता है। इस दिन नमक या चीनी का प्रयोग नही किया जाता है। इसी समय के बाद व्रती लोग क 36 घंटे का निर्जल उपवास व्रत शुरू हो जाता है। तीसरे दिन शुक्ल पक्ष षष्ठी को दिन में छठ का प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, चावल के लड्डू बनाते है। इसके अलावा प्रसाद के रूप में फल भी चढ़ाया जाता है। बांस की टोकरी में प्रसाद सजाकर अर्ध्य का सूप सजाया जाता है। व्रती लोग सपरिवार के साथ अस्ताचल गामी सूर्य भगवान को विधिवत पूजा करते हुए जल और दूध के अर्ध्य देती है। चौथे दिन शुक्ल पक्ष सप्तमी को सुबह उगते उदयाचल सूर्य को व्रती लोग सपरिवार पुनः सूर्य भगवान को विधिवत पूजा करते हुए जल और दूध के अर्ध्य देती है। खरना के बाद शुरू हुआ व्रतियों का 36 घंटों का निर्जला उपवास अस्ताचलगामी सूर्य एवं उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद संपन्न हो जाता है। इसके बाद व्रती लोग निर्जल उपवास को कच्चे दूध का शरबत और प्रसाद ग्रहण कर पूर्ण करती है। जिसे पारण कहते है। कहा जाता है कि जो श्रद्धालु भक्त मन से इस मंदिर में भगवान सूर्य की पूजा करते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। यहां मंदिर के समीप स्थित सूर्यकुंड तालाब का विशेष महत्व है। इस तालाब में स्नान कर व्रती सूर्य भगवान की आराधना करते हैं।प्रति रविवार को असंख्यं श्रधालु भक्ततगण बड़गांव सूर्य मंदिर आकर तालाब में स्नान के बाद भगवान भास्कार का पूजन करते हैं। यहाँ सालभर देश के विभिन्न जगहों से लोग इस मंदिर में दर्शन के लिए आते रहते हैं और मनौतियां मांगते हैं, मनौती पूरी होने पर यहां लोग भगवान भास्कर को अघ्र्य देने के लिए विशेषकर आया करते है।

    भगवान कृष्ण ने अपने पुत्र को दिया था शाप

    ऐसी मान्यता है कि द्वापर युग में श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब काफी रूपवान थे। उन्हें देखकर रानियां भी मोहित हो जाती थीं। एक बार की बात है कि वे सरोवर में रानियों के साथ रास रचा रहे थे, तभी उधर से नारद मुनि गुजरे। रास रचाने में व्यस्त साम्ब ने उनका अभिवादन नहीं किया, जिससे वे कुपित हो गए और उन्होंने जाकर श्रीकृष्ण से इसकी शिकायत की। श्री कृष्ण को इस पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन नारद मुनि के बहुत कहने पर जब वे सरोवर की ओर गए तो उन्हें भी यह दृश्य दिखा। कुपित होकर उन्होंने अपने पुत्र को कुष्ठ रोग का शिकार होने का श्राप दे दिया।

    शाप से मुक्ति का भगवान सूर्य ने ही बताया उपाय

    धार्मिक मान्यताओं एवं आस्थाओं के अनुसार राजा साम्ब द्वारा अपने पिता कृष्ण से काफी क्षमा याचना के बाद श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम्हें दिया गया श्राप तो वापस नहीं लिया जा सकता, लेकिन इसका उपाय नारद मुनि ही बता सकते हैं। तब वे नारद मुनि के पास गए और उनसे श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा। नारद अपने साथ साम्ब को लेकर श्रीकृष्ण के दरबार में पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने कहा कि इसके लिए सूर्य भगवान की उपासना करनी होगी। साम्ब ने सूर्य भगवान की उपासना की। तब जाकर सूर्य भगवान प्रकट हुए और 12 जगहों पर सूर्य धाम की स्थापना कर वहां अपनी प्रतिमा स्थापित कर पूजा करने को कहा। जिससे कंचन काया प्राप्त होगी। सूर्य देव द्वारा शाप मुक्ति के बताए गए रास्ते पर चलकर 12 वर्षों में देश के 12 स्थानों पर सूर्य धाम की स्थापना की गई। जिसमें औंगारी और बड़गांव सूर्य धाम शामिल है। प्रचलित धारणाओं के अनुसार राजा साम्ब ने ही बड़गांव सूर्य तालाब में दो कुण्ड बनवाये थे, जो आज भी जीर्ण-शीर्ण हालत में तालाब में मौजूद है। राजा साम्ब ने इस स्थल की खुदाई कराई तो भगवान सूर्य की मूर्ति मिली, जो सात घोड़े के रथ पर सवार, रथ के दोनों तरफ कमल का फूल और बीच में सूर्य भगवान के भाई श्यमदित, बांयी ओर कल्पादित, दाहिनी ओर माता अदिति की प्रतिमाएं मिली जो आज मंदिर में स्थापित है।

    इन 12 जगहों पर हुई थी सूर्य धाम की स्थापना : – लोलार्क, चोलार्क, अलार्क, अंगारक वर्तमान में औंगारी, पून्यार्क, बरारक वर्तमान में बड़गांव, देवार्क, कोणार्क, ललितार्क, यामार्क, खखोलार्क और उतार्क में सूर्य धाम की स्थापना साम्ब ने कराई थी।

  • बड़गांव तालाब के किनारे सूर्यनारायण जगृति मंच द्वारा आयोजित

    ‘बड़गांव छठ महोत्सव’: सूर्य नगरी के आँगन में आज बहेगी कविताओं और लोकगीतों की धारा

    बड़गांव तालाब के किनारे सूर्यनारायण जगृति मंच द्वारा आयोजित “अखिल भारतीय कवि सम्मेलन” व “सांस्कृतिक संध्या में देश भर के नामचीन कवि करेंगें काव्यपाठ, फोक स्टार ऑफ इंडिया सत्येंद्र संगीत व युवा लोकगायक सागर सम्राट के लोकगीतों पर झूमेंगे श्रद्धालु

    कार्यक्रम का आयोजन सूर्य नारायण जागृति मंच बड़गांव कर रहा है।

    ऐहिसाहिक सूर्य नगरी बड़गांव को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुनः स्थापित करने के उद्देश्य एवं बडगांव छठ करने के लिए आने वाले भक्तों की सेवा हेतु विगत 4 वर्ष पूर्व बड़गांव इलाके के युवाओं द्वारा ‘सूर्य नारायण जागृति मंच’ की स्थापना की गयी थी। युवाओं द्वारा स्थापितसंस्था के प्रयास से ‘बड़गांव छठ महोत्सव’ की शुरुआत की गई है। महोत्सव का उद्देश्य बड़गांव की महत्ता को भारत के अलावे विदेशों में भी प्रचारित-प्रसारित करना है। महोत्सव को भव्यता प्रदान करने के हेतु इस वर्ष कवि सम्मेलन व लोक गीत का कार्यक्रम रखा गया है। संस्था के मार्गदर्शक युवा कवि संजीव कुमार मुकेश ने बताया कि साहित्य और संस्कृति का सम्बंध बहुत गहरा होता है। साहित्य से संस्कृति का संवाक होता है। इसी उद्देश्य से अखिल भारतीय कवि सम्मेलन व सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। जिसमें देश भर से प्रसिद्ध शालीन कवियों को आमंत्रित किया गया है। सूर्य नारायण जागृति मंच के संयोजक अखिलेश कुमार, महामंत्री पंकज कुमार एवं मंच के सभी सक्रिय सदस्यों द्वारा कार्यक्रम की भव्यता हेतु मंच के स्वरूप व श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु लगातार प्रतास कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि 10000 श्रोताओं के बैठने की व्यवस्था की जा रही है। श्री कुमार के बताया कि इस महोत्सव को सफल बनाने में बड़गांव एवं आस-पास के गांव के आम नागरिकों के साथ-साथ शिक्षाविद, समाजसेवी एवं प्रबुद्ध जनों का मार्गदर्शन एवं सार्थक सहयोग निरंतर मिल रहा है।

    श्री मुकेश ने बताया कि साहित्य संस्कृति का सबसे बड़ा संबाहक होता है। कविताओं और गीतों के माध्यम से हम जन-जन तक सूर्यनगरी की महिमा पहुंचा सकते हैं। बड़गांव छठ महोत्सव की परिकल्पना ऐतिहासिक सूर्यनगरी बडगांव की महिमा को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पुनर्स्थापित करने का सार्थक साझा प्रयास है। सबों का सहयोग और मार्गदर्शन से ही हम इसे उत्कृष्टता प्रदान कर सकते हैं। इस वर्ष का आयोजन अन्य वर्षों से और भव्य होगा। देश भर से अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर ख्याति प्राप्त कवि-कवयित्री के साथ-साथ बिहार प्रसिद्ध गायक फोक स्टार ऑफ इंडिया सत्येंद्र संगीत और उनकी टीम द्वारा लोकगीतों का भी आनंद उठाया जा सकेगा।

    कवि सम्मेलन में शालिम होने वाले कवियों के नाम:

    दिनेश देवघरिया, राष्ट्रीय ओज कवि, पटियाला (पंजाब)
    अनंत महेंद्र, युवा गीतकार, धनबाद झारखंड
    यह छठ जरूरी है फेम कुमार रजत, पटना (बिहार)
    चंदन द्विवेदी, प्रसिद्ध कवि, पटना (बिहार)
    रंजीत दुधु, मगही हास्य कवि
    प्रशांत बजरंगी, युवा ओज कवि, बनारस
    आराधना अन्नू, बेगूसराय
    केशव प्रभाकर, बाल कवि, बेगूसराय
    अध्यक्षता – उमेश प्रसाद उमेश, वरिष्ठ साहित्यकार व कवि
    संचालन – संजीव कुमार मुकेश, युवा कवि , नालंदा

    लोकगायन हेतु:
    सत्येंद्र संगीत एवं सागर सम्राट एवं टीम

    50 सूर्य सेवक भी ड्रेस में रहेंगे तैनात

    गत वर्षों की तरह इस वर्ष भी 50 सूर्य सेवक ड्रेस कोड में पहचान पत्र के साथ सूर्य घाट एवं मंदिर परिसर में तैनात रहेंगें। सभी सूर्य सेवकों की सूची प्रशासन को भी उपलब्ध कराया जाएगा। सूर्य सेवक छठ व्रती माताओं-बहनों की सेवा के साथ-साथ प्रशासन के दिशा निर्देशों का अक्षरसः पालन करेंगें। मंच के सूर्यसेवक कोरोना सम्बन्धी नियमों के पालन हेतू जगह-जगह सूचना व पोस्टर के माध्यम से लोगों को जागरूक करेंगे। मंच द्वारा फर्स्ट एड बॉक्स की व्यवस्था भी की जा रही है। पेयजल, छठव्रती माताओं के लिये चेंजिंग रूम इत्यादि की व्यवस्था भी सूर्यनारायण जगृति मंच द्वारा किया जाएगा।

    बैठक में समाजसेवी बबलू सिंह, संजीव गुप्ता, संजय सिंह, बिपिन कुमार, अभय कुमार, कृष्णकांत कश्यप, प्रेस सागर पासवान, कृष्णा जी , अजीत कुमार , गोपाल जी सहित अन्य सक्रिय सदस्यों की उपस्थिति थी।

  • आखिर ताले के नीचे ये छोटा सा छेद क्यों होता है? आज जान लीजिए इसका काम..


    डेस्क : जब हम घर से बाहर जा रहे होते हैं तो सबसे महत्वपूर्ण चीज जो हम कभी नहीं भूलते हैं वह है घर का दरवाजा बंद करना। घर की सुरक्षा के लिए ताले बहुत जरूरी होते हैं। लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि लॉक का इस्तेमाल करते समय की-होल के साथ-साथ ताले में एक और छोटा सा छेद होता है? क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है?

    जैसे ताला हमारे घरों की सुरक्षा का काम करता है, वैसे ही ताले का यह छोटा सा छेद ताले की सुरक्षा का काम करता है। अक्सर घर के बाहर ताला लगा रहता है, जिससे कभी-कभी पानी ताले में घुस जाता है। इस वजह से, लॉक के अंदर जंग लगने से नुकसान होने की संभावना है। लेकिन ताले के नीचे का यह छेद ताले को जंग से बचाता है और आपके ताले को कई सालों तक सुरक्षित रखता है।

    ताले के नीचे के इस छेद को बहुत सोच समझकर बनाया गया है। दरअसल, जब किसी कारणवश ताला में पानी भर जाता है तो ताले के नीचे बने इस छोटे से छेद से पानी निकल जाता है। ऐसे में लॉक के अंदर की मशीन में जंग नहीं लगती है। यदि यह छेद ताले के नीचे नहीं दिया गया है, तो ताला पानी से भर जाने के बाद कोई रास्ता नहीं बचेगा और ताला क्षतिग्रस्त हो जाएगा।

    साथ ही जब ताले कई साल पुराने हो जाते हैं तो वे धीरे-धीरे काम करना बंद कर देते हैं। कई बार ऐसा होता है कि चाबी ठीक से नहीं मुड़ती। ऐसे में आप उस छोटे से छेद की मदद से ताले के अंदर तेल लगा सकते हैं. यह ताला और चाबी को ठीक से काम करने में मदद करता है।

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  • अल्पभूधारक शेतकऱ्यांसाठी आले शेती वरदान ! जाणून घ्या लागवडीसाठी कोणत्या जाती आहेत उत्तम ?

    हॅलो कृषी ऑनलाईन : आल्याचा उपयोग मसाला, ताजी भाजी आणि औषध म्हणून प्राचीन काळापासून केला जातो. आता आल्याचा वापर शोभिवंत वनस्पती म्हणूनही केला जात आहे. भारतात आल्याचे लागवडीखालील क्षेत्र १३६ हजार हेक्टर आहे. आल्यापासून सुंठ देखील तयार करून विकली जाते त्यालाही चांगली किंमत बाजारात मिळते.

    एक हेक्‍टरी 15 ते 20 टन आल्याचे उत्पादन

    आल्याची लागवड उष्ण व दमट ठिकाणी केली जाते. अद्रकाच्या कंद निर्मितीसाठी पेरणीच्या वेळी मध्यम पावसाची आवश्यकता असते. यानंतर झाडांच्या वाढीसाठी आणखी थोडा पाऊस आवश्यक आहे. आणि खोदण्यापूर्वी एक महिना कोरडे हवामान आवश्यक आहे. 1500-1800 मिमी वार्षिक पर्जन्यमान असलेल्या भागात चांगले उत्पादन घेऊन त्याची लागवड करता येते. परंतु योग्य निचरा न झालेल्या ठिकाणी शेतीचे मोठे नुकसान होते. उन्हाळ्यात सरासरी २५ अंश सेंटीग्रेड, ३५ अंश सेंटीग्रेड तापमान असलेल्या ठिकाणी फळबागांमध्ये आंतरपीक म्हणून लागवड करता येते. विशेष म्हणजे अद्रकाची लागवड अल्प जमीन असलेले शेतकरी सहज करू शकतात. त्याचे पीक तयार होण्यासाठी 7 ते 8 महिने लागतात. प्रति हेक्टर 15 ते 20 टन आले मिळू शकतात. अशा परिस्थितीत सर्व खर्च वजा जाता आल्याच्या लागवडीतून शेतकऱ्यांना हेक्टरी सुमारे दोन लाख रुपयांचा नफा मिळतो.

    नांगरणी मार्च व एप्रिल महिन्यात

    आल्याची लागवड करण्यापूर्वी शेतकऱ्यांना शेताची पूर्ण तयारी करावी लागते. मार्च आणि एप्रिल महिन्यात शेतीची चांगली नांगरणी करावी लागते. यानंतर माती काही दिवस उन्हात सुकविण्यासाठी सोडली जाते. त्यानंतर मे महिन्यात डिस्क हॅरो किंवा रोटाव्हेटरने शेताची नांगरणी केली जाते. त्यामुळे माती भुसभुशीत होते. त्यानंतर, आले कंद शेत पूर्णपणे तयार करण्यासाठी पेरले जातात.

    आल्याच्या जाती

    १) वरदा :

    कालावधी : २०० दिवस., तंतूचे प्रमाण ३.२९ ते ४.५० टक्के.
    सरासरी ९ ते १० फुटवे, रोग व किडीस सहनशील.
    सुंठेचे प्रमाण २०.०७ टक्के, उत्पादन : प्रतिहेक्‍टरी २२.३ टन.

    २)महिमा :

    कालावधी : २०० दिवस, तंतूचे प्रमाण : ३.२६ टक्के
    सरासरी १२ ते १३ फुटवे, सूत्रकृमीस प्रतिकारक
    सुंठेचे प्रमाण :१९ टक्के, उत्पादन : प्रतिहेक्‍टरी २३.२ टन

    ३)रीजाथा :

    कालावधी : २०० दिवस , तंतूचे प्रमाण : ४ टक्के
    सुगंधी द्रव्याचे प्रमाण : २.३६ टक्के, सरासरी ८ ते ९ फुटवे
    सुंठेचे प्रमाण : १८.७ टक्के,सरासरी उत्पादन :प्रतिहेक्‍टरी २२.४ टन

    ४) माहीम :

    महाराष्ट्रामध्ये प्रचलित जात, कालावधी : २१० दिवस
    मध्यम उंचीची सरळ वाढणारी जात, ६ ते १२ फुटवे
    सुंठेचे प्रमाण : १८.७ टक्के, उत्पादन : प्रतिहेक्‍टरी २० टन

  • बाइक की ठोकर से बाजार से लौट रहे साइकिल सवार वृद्ध की मौत – Nalanda Darpan – गाँव-जेवार की बात।

    इसलामपुर (नालंदा दर्पण)। खुदागंज थाना के बेगमपुर मोड़ के पास बाइक की ठोकर से एक 65 वर्षीय साइकिल सवार व्यक्ति का मौत हो गया है। मृतक कटवा रसलपुर गांव के सीताराम मिस्त्री बताया जाता है।

    थानाध्यक्ष श्रीमंत कुमार सुमन ने बताया कि सीताराम मिस्त्री साइकिल से कुछ काम के लिए खुदागंज बाजार गए थे और बाजार से शाम को वापस घर लौट रहे थे कि रास्ते में बेगमपुर मोड़ के पास बाइक चालक ने धक्का मार दिया। जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गये। जिसे निजी चिकित्सा केंद्र में इलाज के लिए भर्ती करवाया गया था। परिजन वहां से इलाज करवाने के लिए बाहर ले जा रहे थे कि रास्ते में मौत हो गया।

    उन्होंने बताया कि घटनास्थल के पास से दुर्घटनाकारित बाइक को जप्त कर लिया गया है। जबकि चालक भागने में सफल रहा है। शव को वरामद कर पोस्टमार्टम करवाकर परिजनों को सुपुर्द कर दिया गया है।

  • SBI दे रहा कमाई करने का शानदार तरीका, हर महीने कमाएं 80,000 रूपए


    डेस्क : यदि आप भी अपनी नौकरी छोड़ बिजनेस करना चाहते हैं तो आपके लिए अच्छा विकल्प है। अपनी इस रिपोर्ट में आपको बताते हैं एक शानदार बिजनेस आइडिया के बारे में  जिसकी मदद से आप घर बैठे आसानी से 80 हजार रुपये महीना कमा सकते हैं। खास बात ये की आप ये बेहद सुरक्षित तरीका है। और तो और ये मौका देश का सबसे बाद सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक SBI (State Bank of India) की ओर से दिया जा रहा है।

    SBI की ATM फ्रेंचाइजी

    SBI की ATM फ्रेंचाइजी
    स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की एटीएम फ्रेंचाइजी (SBI ATM Franchise) के जरिए आप तगड़ी कमाई कर सकते हैं वो भी बेहद आसानी से। बता दें बैंक का एटीएम कोई भी बैंक अपनी तरफ से नही लगती, इसके लिए अलग कंपनी होती है। बैंक की ओर से इसका कॉन्ट्रैक्ट दिया जाता है जो जगह-जगह एटीएम लगवाने का काम करती हैं।

    SBI ATM की जरूरीशर्ते

    SBI ATM की जरूरीशर्ते

    1. एसबीआई एटीएम की फ्रेंचाइजी लेने के लिए आपके पास 50-80 स्‍क्‍वॉयर फुट की जगह अनिवार्य है
    2. दूसरे एटीएम से कम से कम 100 मीटर की दूरी जरूरी
    3. एटीएम की जहमगाह यह स्‍पेस ग्राउंड फ्लोर और गुड विजिबिलिटी वाली होनी चाहिए
    4. यहां 24 घंटे पावर सप्‍लाई होनी चाहिए इसके अलावा 1 किलोवाट का बिजली कनेक्‍शन भी जरूरी है
    5. इस एटीएम से प्रतिदिन करीब 300 ट्रांजैक्‍शन की क्षमता होनी चाहिए
    6. ATM की जगह में कंक्रीट की छत होनी चाहिए
    7. वी-सैट लगाने के लिए सोसायटी या अथॉरिटी से नो ऑब्‍जेशन सर्टिफिकेट चाहिए

    एटीएम की फ्रेंचाइजी के लिए ये दस्तावेज ज़रूरी

    एटीएम की फ्रेंचाइजी के लिए ये दस्तावेज ज़रूरी

    1. आईडी प्रूफ – Aadhaar Card , Pan Card , Voter Card
    2. एड्रेस प्रूफ – राशन कार्ड, इलेक्ट्रिसिटी बिल
    3. बैंक अकाउंट और पासबुक
    4. फोटोग्राफ, ई-मेल आईडी, फोन नंबर
    5. अन्य डॉक्युमेंट्स
    6. जीएसटी नंबर
    7. फाइनेंशियल डॉक्युमेंट्स

    ऐसे करें आवेदन

    ये है ऑफिशियल वेबसाइट
    Tata Indicash – www.indicash.co.in
    Muthoot ATM – www.muthootatm.com/suggest-atm.html
    India One ATM – india1atm.in/rent-your-space

    कर सकते हैं इतनी कमाई

    कर सकते हैं इतनी कमाई
    इन कंपनियों में सबसे बड़ी और पुरानी कंपनी टाटा इंडिकैश है। इन सबमें सबसे बड़ी और पुरानी कंपनी टाटा इंडिकैश है। टाटा इंडिकैश 2 लाख की सिक्यॉरिटी डिपॉजिट पर फ्रेंचाइजी देती है जोकि पूरी तरह से रिफंडेबल होती है। बता दें इसके लिए आपको 3 लाख रुपए तक का वर्किंग कैपिटल जमा करने होंगे। इस विधि में आपको 5 लाख का निवेश करना पड़ेगा। वहीं दूसरी ओर यदि कमाई पर नजर डाला जाए तो ट्रांजैक्शन पर 8 रुपये और नॉन कैश ट्रांजैक्शन पर 2 रुपये मिलते हैं। यानी सालाना आधार पर रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट 33-50 फीसदी तक है।

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  • important tips for banana farmers

    हॅलो कृषी ऑनलाईन : आता पावसानंतर हिवाळा आला आहे. अशा परिस्थितीत केळीच्या (Banana Cultivation Tips) झाडांवर रोग होण्याची शक्यता वाढली आहे. त्यामुळे ऑक्टोबर ते डिसेंबर या काळात शेतकऱ्यांनी पिकांची विशेष काळजी घेणे गरजेचे आहे. देशातील ज्येष्ठ फळ शास्त्रज्ञ डॉ. एस.के. सिंग केळीची व्यावसायिक लागवड करणाऱ्या शेतकऱ्यांना पिकांची काळजी घेण्याच्या टिप्स देत आहेत. डॉ.एस.के.सिंग यांच्या म्हणण्यानुसार, केळीची लागवड करणाऱ्या शेतकऱ्यांना यावेळी अळीचा सर्वाधिक त्रास होतो.

    अशा स्थितीत अळीच्या नियंत्रणासाठी 40 ग्रॅम कार्बोफुरॉन प्रति झाड वापरावे. नंतर, तण काढल्यानंतर, खताचा पहिला डोस म्हणून युरिया 100 ग्रॅम, सुपर फॉस्फेट 300 ग्रॅम आणि म्युरेट ऑफ पोटॅश (एमओपी) 100 ग्रॅम प्रति झाड सुमारे 30 सेमी अंतरावर असलेल्या बेसिन मध्ये टाका.

    खतांच्या वापरामध्ये किमान 2-3 आठवड्यांचे अंतर असावे

    जर तुमची केळीची झाडे चार महिन्यांची झाली असतील तर ३० ग्रॅम अझोस्पिरिलम आणि फॉस्फोबॅक्टेरिया, ३० ग्रॅम ट्रायकोडर्मा विराइड आणि ५-१० किलोग्रॅम चांगले कुजलेले (Banana Cultivation Tips) कंपोस्ट प्रति झाडाच्या दराने वापरा. रासायनिक खते आणि सेंद्रिय खतांचा वापर यामध्ये किमान २-३ आठवड्यांचे अंतर असावे. यासोबतच मुख्य रोपाच्या शेजारी (साइड डकर्स) बाहेर येणारी झाडे जमिनीच्या पृष्ठभागावर कापून वेळोवेळी काढून टाकावीत.

    प्रति झाड 50 ग्रॅम कृषी चुना आणि 25 ग्रॅम मॅग्नेशियम सल्फेट वापरा

    शेतात विषाणूग्रस्त झाडे दिसल्यास ती ताबडतोब काढून नष्ट करा. तसेच विषाणू वाहून नेणाऱ्या कीटक वाहकांना मारण्यासाठी कोणत्याही प्रणालीगत कीटकनाशकांची फवारणी करा. केळीचे रोप पाच महिन्यांचे झाल्यावर, युरिया 150 ग्रॅम, एमओपी 150 ग्रॅम आणि 300 ग्रॅम निम केक (निमकेक) खताचा दुसरा (Banana Cultivation Tips) डोस म्हणून झाडापासून सुमारे 45 सेंटीमीटर अंतरावर असलेल्या बेसिनमध्ये टाका. कोरडी व रोगट पाने नियमितपणे कापून शेतातून काढून टाकावीत.
    खते देण्यापूर्वी हलकी खुरपणी व खुरपणी करावी. 50 ग्रॅम कृषी चुना आणि 25 ग्रॅम मॅग्नेशियम सल्फेट प्रति झाड वापरा आणि त्यांची कमतरता दूर करण्यासाठी रोपाची सूक्ष्म अन्नद्रव्यांची गरज भागवा.

    कीटकनाशकांची फवारणी

    अंडी घालणे आणि भुंग्याचे पुढील आक्रमण नियंत्रित करण्यासाठी ‘नेमोसोल’ 12.5 ml/Ltr किंवा Chlorpyrifos 2.5 ml/Ltr ची फवारणी देठावर करा. कोम आणि स्टेम भुंग्यांच्या (Banana Cultivation Tips) निरीक्षणासाठी, 2 फूट लांब रेखांशाचा स्टेम ट्रॅप (प्रति एकर 40 सापळे) वेगवेगळ्या ठिकाणी लावले जाऊ शकतात. गोळा केलेले माइट्स रॉकेलने मारावेत. केळीचे शेत तसेच आजूबाजूचा परिसर तणमुक्त ठेवा आणि कीटक वाहकांवर नियंत्रण ठेवण्यासाठी पद्धतशीर कीटकनाशकांची फवारणी करा.