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  • मुंशी प्रेमचंद की 142 वीं जयंती पर विशेष :

    राकेश बिहारी शर्मा – हिन्दी कथा साहित्य में प्रेमचंद जी का नाम सर्वश्रेष्ठ उपन्यासकार एवं कहानीकार के रूप में अग्रगण्य है। युग प्रवर्तक प्रेमचंद ने अपनी रचनाधर्मिता के माध्यम से भारतीय समाज की समस्त स्थितियों का अत्यन्त मनोवैज्ञानिक, यथार्थ चित्रण किया है। उनका सम्पूर्ण साहित्य तत्कालीन भारतीय जनजीवन का महाकाव्य कहा जा सकता है। उनकी रचनाओं में भारतीय किसान की ऋणग्रस्त स्थिति, भारतीय नारियों की जीवन व नियति की ऐसी कथा समाहित है, जो उसकी कारुणिक त्रासदीपूर्ण स्थितियों को अत्यन्त मर्मस्पर्शी एवं संवेदनात्मक स्तर पर चित्रित करती है। पूंजीपतियों और जमींदारों का अमानवीयतापूर्ण क्रूर शोषण व आतंक उनके कथा साहित्य में उनकी भाषा के साथ जीवन्त हो उठता है। तत्कालीन समाज की कुप्रथाओं, कुरीतियों का जो बेबाक एवं सत्यता भरा चित्रण प्रेमचंद की रचनाओं में मिलता है, वह बड़ा मर्मस्पर्शी है। अपनी आदर्शवादी और यथार्थवादी रचनाओं में पराधीनता से मुक्ति का संकल्प भी राष्ट्रीय भावना के साथ व्यक्त होता है।

    प्रेमचंद का जन्म और परिवार

    प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई सन् 1880 को बनारस शहर से चार किलोमीटर दूर लमही गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम अजायब राय और माता आनंदी देवी था। पिताजी डाकखाने में मामूली नौकर के तौर पर 7 रूपये मासिक पाते थे। प्रेमचंद का असली नाम धनपतराय था। जब ये केवल आठ साल के थे तो इनकी माता का स्वर्गवास हो गया तो पिताजी ने दूसरी शादी कर ली जिसके कारण बालक धनपतराय प्रेम व स्नेह को चाहते हुए भी ना पा सका। आपका जीवन गरीबी में ही पला। कहा जाता है कि धनपतराय के घर में भयंकर गरीबी थी। पहनने के लिए कपड़े न होते थे और न ही खाने के लिए पर्याप्त भोजन मिलता था। इन सबके अलावा घर में सौतेली माँ का व्यवहार भी हालत को खस्ता करने वाला था।

    अल्पायु में प्रेमचंद की शादी और पारिवारिक परेशानियाँ

    प्रेमचंद के पिता ने केवल 15 साल की आयू में प्रेमचंद का विवाह करा दिया। पत्नी उम्र में प्रेमचंद से बड़ी और बदसूरत थी। पत्नी की सूरत और उसके जबान ने प्रेमचंद के जले पर नमक का काम किया। प्रेमचंद ने स्वयं लिखा है, “उम्र में वह मुझसे ज्यादा थी। जब मैंने उसकी सूरत देखी तो मेरा खून सूख गया।…….” उसके साथ-साथ जबान की भी मीठी न थी। प्रेमचंद ने अपनी शादी के फैसले पर पिता के बारे में लिखा है “पिताजी ने जीवन के अंतिम सालों में एक ठोकर खाई और स्वयं तो गिरे ही, साथ में मुझे भी डुबो दिया: मेरी शादी बिना सोंचे समझे कर डाली।” हालांकि प्रेमचंद के पिताजी को भी बाद में इसका एहसास हुआ और काफी अफसोस किया।
    विवाह के एक साल बाद ही प्रेमचंद के पिताजी का देहान्त हो गया। अचानक प्रेमचंद के सिर पर पूरे घर का बोझ आ गया। एक साथ पाँच लोगों का खर्चा सहन करना पड़ा। पाँच लोगों में विमाता, उसके दो बच्चे पत्नी और स्वयं। प्रेमचंद की आर्थिक विपत्तियों का अनुमान इस घटना से लगाया जा सकता है कि पैसे के अभाव में उन्हें अपना कोट बेचना पड़ा और पुस्तकें बेचनी पड़ी। एक दिन ऐसी हालत हो गई कि वे अपनी सारी पुस्तकों को लेकर एक बुकसेलर के पास पहुंच गए। वहाँ एक हेडमास्टर मिले जिन्होंने प्रेमचंद को अपने स्कूल में अध्यापक पद पर नियुक्त किया।

    प्रेमचंद की शिक्षा-दीक्षा तंगी और अभाव में

    अपनी गरीबी से लड़ते हुए प्रेमचंद ने अपनी पढ़ाई मैट्रिक तक पहुंचाई। जीवन के आरंभ में प्रेमचंद ने गाँव से दूर बनारस पढ़ने के लिए नंगे पाँव जाया करते थे। इसी बीच पिता का देहान्त हो गया। पढ़ने का शौक था, आगे चलकर वकील बनना चाहते थे। मगर गरीबी ने तोड़ दिया। स्कूल आने-जाने के झंझट से बचने के लिए एक वकील साहब के यहाँ ट्यूशन पकड़ लिया और उसी के घर एक कमरा लेकर रहने लगे। ट्यूशन का पाँच रुपया मिलता था। पाँच रुपये में से तीन रुपये घर वालों को और दो रुपये से अपनी जिन्दगी की गाड़ी को आगे बढ़ाते रहे। इस दो रुपये से क्या होता महीना भर तंगी और अभाव का जीवन बिताते थे। इन्हीं जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों में मैट्रिक पास किया।

    प्रेमचंद की साहित्यिक रुचि और साहित्यिक सफर

    प्रेमचन्द उन साहित्यकारों में से हैं, जो साहित्यकार होने के साथ-साथ स्वतंत्रता सेनानी भी थे। गरीबी, अभाव, शोषण तथा उत्पीड़न जैसी जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियाँ भी प्रेमचंद के साहित्य की ओर उनके झुकाव को रोक न सकी। प्रेमचंद जब मिडिल में थे तभी से आपने उपन्यास पढ़ना आरंभ कर दिया था। आपको बचपन से ही उर्दू आती थी। प्रेमचंद पर हिंदी और उर्दू उपन्यास का ऐसा उन्माद छाया कि आप पुस्तक विक्रेता की दुकान पर बैठकर ही सब उपन्यास पढ़ गए। आपने दो-तीन साल के अन्दर ही सैकड़ों उपन्यासों को पढ़ डाला।
    प्रेमचंद ने बचपन में ही उर्दू के समकालीन उपन्यासकार सरुर मोलमा शार, रतन नाथ सरशार आदि के दीवाने हो गये कि जहाँ भी इनकी किताब मिलती उसे पढ़ने का हर संभव प्रयास करते थे। आपकी रुचि इस बात से साफ झलकती है कि एक किताब को पढ़ने के लिए प्रेमचंद ने एक तम्बाकू वाले से दोस्ती करली और उसकी दुकान पर मौजूद “तिलस्मे-होशरुबा” पढ़ डाली। अंग्रेजी के अपने जमाने के मशहूर उपन्यासकार रोनाल्ड की किताबों के उर्दू तरजुमो को आपने काफी कम उम्र में ही पढ़ लिया था। इतनी बड़ी-बड़ी किताबों और उपन्यासकारों को पढ़ने के बावजूद प्रेमचंद ने अपने मार्ग को अपने व्यक्तिगत विषम जीवन अनुभव तक ही सिमित रखा। तेरह वर्ष की उम्र में से ही प्रेमचंद ने लिखना आरंभ कर दिया था। शुरु में प्रेमचंद ने कुछ नाटक लिखे फिर बाद में उर्दू में उपन्यास लिखना आरंभ किया। इस तरह प्रेमचंद का साहित्यिक सफर शुरु हुआ जो मरते दम तक साथ-साथ रहा।

    प्रेमचंद ने की दूसरी शादी

    सन् 1905 में प्रेमचंद की पहली पत्नी पारिवारिक कटुताओं के कारण घर छोड़कर मायके चली गई फिर वह कभी नहीं आई। विच्छेद के बावजूद कुछ सालों तक वह अपनी पहली पत्नी को खर्चा भेजते रहे। सन् 1905 के अन्तिम दिनों में प्रेमचंद ने शीवरानी देवी से शादी कर ली। शीवरानी देवी एक विधवा थी और विधवा के प्रति प्रेमचंद सदा स्नेह के पात्र रहे थे। यह कहा जा सकता है कि दूसरी शादी के पश्चात् प्रेमचंद के जीवन में परिस्थितियां कुछ बदली और आय की आर्थिक तंगी कम हुई। प्रेमचंद के लेखन में अधिक सजगता आई। प्रेमचंद की पदोन्नति हुई तथा प्रेमचंद स्कूलों के डिप्टी इन्सपेक्टर बना दिये गए। इसी खुशहाली के जमाने में प्रेमचंद की पाँच कहानियों का संग्रह सोजे वतन प्रकाश में आया। यह संग्रह काफी मशहूर हुआ।

    प्रेमचंद का रोचक व्यक्तित्व और कृतित्व

    सादा एवं सरल जीवन के मालिक प्रेमचंद सदा मस्त रहते थे। उनके जीवन में विषमताओं और कटुताओं से वह लगातार खेलते रहे। इस खेल को उन्होंने बाजी मान लिया जिसको हमेशा जीतना चाहते थे। अपने जीवन की परेशानियों को लेकर उन्होंने एक बार मुंशी दयानारायण निगम को एक पत्र में लिखा “हमारा काम तो केवल खेलना है- खूब दिल लगाकर खेलना- खूब जी- तोड़ खेलना, अपने को हार से इस तरह बचाना मानों हम दोनों लोकों की संपत्ति खो बैठेंगे। किन्तु हारने के पश्चात्-पटखनी खाने के बाद, धूल झाड़ खड़े हो जाना चाहिए और फिर ताल ठोंक कर विरोधी से कहना चाहिए कि एक बार फिर जैसा कि सूरदास कह गए हैं, “तुम जीते हम हारे। पर फिर लड़ेंगे।” कहा जाता है कि प्रेमचंद हंसोड़ प्रकृति के मालिक थे। विषमताओं भरे जीवन में हंसोड़ होना एक बहादुर का काम है। इससे इस बात को भी समझा जा सकता है कि वह अपूर्व जीवनी-शक्ति का द्योतक थे। सरलता, सौजन्यता और उदारता के वह मूर्ति थे।
    जहां प्रेमचंद के हृदय में मित्रों के लिए उदार भाव था वहीं प्रेमचंद के हृदय में गरीबों एवं पीड़ितों के लिए सहानुभूति का अथाह सागर था। जैसा कि उनकी पत्नी कहती हैं “कि जाड़े के दिनों में चालीस-चालीस रुपये दो बार दिए गए दोनों बार उन्होंने वह रुपये प्रेस के मजदूरों को दे दिये। मेरे नाराज होने पर उन्होंने कहा कि यह कहां का इंसाफ है कि हमारे प्रेस में काम करने वाले मजदूर भूखे हों और हम गरम सूट पहनें।”
    प्रेमचंद उच्चकोटि के मानव थे। प्रेमचंद को गाँव जीवन से अच्छा प्रेम था। वह सदा साधारण गंवई लिबास में रहते थे। जीवन का अधिकांश भाग प्रेमचंद ने गाँव में ही गुजारा। बाहर से बिल्कुल साधारण दिखने वाले प्रेमचंद अन्दर से जीवनी-शक्ति के मालिक थे। अन्दर से जरा सा भी किसी ने देखा तो उसे प्रभावित होना ही था। वह आडम्बर एवं दिखावा से मीलों दूर रहते थे। जीवन में न तो उनको विलास मिला और न ही उनको इसकी तमन्ना थी। तमाम महापुरुषों की तरह अपना काम स्वयं करना पसंद करते थे।

  • सातबारा होणार हायटेक ! मिळणार विशेष क्यूआर कोड आणि आयडी नंबर





    सातबारा होणार हायटेक ! मिळणार विशेष क्यूआर कोड आणि आयडी नंबर | Hello Krushi
































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  • सिलाव में वज्रपात से मवेशी समेत चरवाहा की मौत

    सिलाव (नालंदा दर्पण)। सिलाव थाना क्षेत्र के धरहरा गांव में गुरुवार की शाम बारिश के साथ हुए वज्रपात से एक पशुपालक की मौत हो गई। वहीं एक मवेशी की भी मौके पर मौत वज्रपात के कारण हो गई। मृतक की पहचान इंदल महतो के 40 वर्षीय पुत्र अनिल प्रसाद के रूप में की गई है।

    घटना के संबंध बताया जाता है कि मृतक मवेशी चराने का काम खलिहान में कर रहे थे। तभी गुरुवार की शाम अचानक बारिश के साथ बज्रपात हो गया। जिसके चपेट में आने से अधेड़ और उनका मवेशी झुलस गया और मौके पर ही मौत हो गई। जब तक आस पास के लोग मौके पर पहुँचते, उसके पूर्व ही अधेड़ की मौत हो चुकी थी।

    घटना के बाद गांव में कोहराम मच गया मृतक के परिजनों की चीख पुकार से गांव का माहौल गमगीन हो गया। मौत की सूचना पर पहुंची पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए सदर अस्पताल भेज दिया।

  • बिहार में शिक्षक भर्ती के नियम में बदलाव.. जानिए अब कैसे होगी 7वें चरण की बहाली

    बिहार में पहली क्लास से लेकर 12वीं क्लास तक के शिक्षकों की बहाली प्रक्रिया में बड़ा बदलाव किया जा रहा है । यानि बिहार में सातवें चरण और उसके बाद की बहाली के लिए सरकार नियम बदलने जा रही है। इसका प्रारुप तैयार कर लिया गया है। बस अब सिर्फ कैबिनेट की मुहर का इंतजार है ।

    क्या है नए नियम
    शिक्षक नियुक्ति के लिए नई नियमावली-2022 तैयार है। 2020 की शिक्षक भर्ती नियमावली के मुताबिक BTET,CTET,STET के रिजल्ट पर 60 प्रतिशत और शैक्षणिक एवं प्रशिक्षण योग्यता (मैट्रिक से स्नातकोत्तर, डीएलएड और बीएड तक) 40 प्रतिशत वेटेज मिलेगा।

    नए नियम से भर्ती का फॉर्मूला समझिए

    > कक्षा 1 से 5 क्लास तक भर्ती के लिए
    मैट्रिक और इंटरमीडिएट और प्रशिक्षण के कुल प्राप्त अंकों के योग को तीन से भाग देने पर कुल मेधा अंक आएगा, इसका 40 प्रतिशत निकाला जाएगा। BTET या CTET के कुल अंकों का 60% अंक निकाल कर दोनों को जोड़ कर फाइनल मेधासूची बनेगी।

    > कक्षा 6 से 8 तक की भर्ती के लिए
    स्नातक और प्रशिक्षण के कुल प्राप्त अंकों को 2 से भाग देकर जो अंक होगा, इसका 40 प्रतिशत निकाला जाएगा। फिर BTET या CTET के कुल अंकों का 60% अंक निकाल कर दोनों को जोड़ कर फाइनल मेधासूची बनेगी।

    > कक्षा 9 और 10 के लिए
    स्नातक और प्रशिक्षण के कुल अंकों को 2 से भाग देने के बाद कुल अंकों को 40%के हिसाब से निकाला जाएगा। फिर, STET के कुल अंकों का 60% निकाल कर दोनों को जोड़ कर अंतिम मेधासूची बनेगी।

    > कक्षा 11 और 12 तक की भर्ती के लिए
    स्नातकोत्तर (पीजी) और ट्रेनिंग के कुल प्राप्त अंकों को दो से भाग देने के बाद के अंकों का 40 प्रतिशत निकलेगा। इसके बाद STET के कुल अंकों को 60 प्रतिशत के हिसाब से अंक निकाल कर दोनों को जोड़ कर फाइनल मेधासूची बनेगी।

    अतिथि शिक्षक को अलग वेटेज
    उच्च माध्यमिक स्कूलों में अतिथि शिक्षक के रूप में कार्य कर चुके अभ्यर्थियों को 5 अंकों का वेटेज मिलेगा।

    भूतपूर्व सैनिक की विधवा
    भूतपूर्व सैनिक की विधवा को मेधा अंक में 10 अंकों का अतिरिक्ति वेटेज मिलेगा।

    कब कितनी सीटों के लिए आएगी वैकेंसी
    बिहार में प्रारंभिक स्कूलों में लगभग एक लाख शिक्षकों की बहाली के लिए वैकेंसी अगस्त के अंत तक आएगी। हाईस्कूलों में लगभग 75 से 80 हजार पदों के लिए रिक्तियां सितंबर या अक्टूबर में आएंगी।

  • महानंदा एक्सप्रेस ट्रैन से शराब बरामद

     

    किशनगंज/सिटीहलचल न्यूज़

    किशनगंज रेलवेस्टेशन के प्लेटफार्म नंबर दो पर गस्त कर रहे आरपीएफ जवानों ने तस्करी कर ले जाये जा रहे शराब की खेप को जब्त किया है। जब्त शराब एक बैग में छिपा कर रखा गया था। लेकिन 15483 डाउन महानंदा एक्सप्रेस की चेकिंग के दौरान एस 4 डब्बे में बैग को लावारिस पड़ा देख जवानों का शक गहरा गया। तलाशी के दौरान बैग से 56 टेट्रा पैक शराब बरामद कर ली गई

    लेकिन तस्कर को गिरफ्तार नहीं किया जा सका। आरपीएफ थाना में अज्ञात शराब तस्कर के विरुद्ध केस दर्ज कर मामले की जांच की जा रही है।

  • अगर बिहार में आज लोकसभा चुनाव हों तो किस पार्टी को कितनी सीटें मिलेगी.. जानिए सर्वे में क्या है ?

    अगर बिहार में आज लोकसभा चुनाव हों तो किस पार्टी को कितनी सीटें मिलेगी.. जानिए सर्वे में क्या है ? | Nalanda Live



  • रामनगर निवासी कैलाश मंडल बीते कई दिनों से है लापता परिजन परेशान

    मनीष कुमार/ कटिहार

    कटिहार जिले के समेली प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत रामनगर निवासी कैलाश मंडल बीते कई दिनों से लापता है, जिसे लगातार उनके परिजनों द्वारा उन्हें ढूंढा जा रहा हैं। मगर अब तक कुछ पता नहीं चल सका है जिससे परिजन काफी परेशान है। कैलाश मंडल के भाई धीरेंद्र मंडल ने बताया कि उनका भाई देवघर के लिए रवाना हुआ था

    जिसके बाद अब तक उसका कुछ पता नहीं चल सका है। जिससे परिजन काफी परेशान है। वहीं उनके भाई धीरेंद्र मंडल  ने सभी से अपील करते हुए कहा की किन्हीं को हमारे भाई कैलाश मंडल,पिता बेकुंठ मंडल कहीं भी नजर आए तो कृपया हमारे संपर्क सूत्र- 7488531149 पर कॉल कर सूचना दें।

  • मारपीट व लूटपाट के पीड़ित को पुलिस ने किया गिरफ्तार,एसपी से न्याय की गुहार

    कटिहार /सिटी हलचल न्यूज़ 

    कटिहार : लूटपाट और जान से मारने को लेकर पीड़ित व्यक्ति ने एसपी को आवेदन देकर न्याय की गुहार लगाई हैं। मामला मनसाही थाना क्षेत्र के हफला का हैं। मारपीट और लूटपाट करने के बाद आरोपियों ने पीड़ित पर ही मामला दर्ज करा दिया, जहां पुलिस ने बिना किसी जांच के पीड़ित व्यक्ति को ही गिरफ्तार कर लिया, जबकि मारपीट में पीड़ित व्यक्ति का एक पांव भी तोड़ दिया गया है और बीच-बचाव करने आए उनके दो कर्मचारियों के साथ भी मारपीट की गई

    जिसका इलाज पुलिस के अभिरक्षा में सदर अस्पताल में जारी हैं। घटना के बारे में पीड़ित हर्ष कुमार ने बताया कि हफला चौक के समीप उनका कोल्ड स्टोर है जहां कुछ दिनों पूर्व 15 से 20 की संख्या में लोग उनकी कोल्ड स्टोर पर हमला बोल दिया। उस समय वह घर जाने की तैयारी में थे। जहां उन लोगों ने दो लाख 64 हजार भी उनसे लूट लिया, विरोध करने पर उन लोगों ने लाठी-डंडों के साथ उन पर हमला बोल दिया

    घटना को अंजाम देने के बाद आरोपी पक्ष ने थाना में जाकर इनके ऊपर ही मारपीट का मामला दर्ज करा दिया जहां पुलिस मामले की जांच ना करते हुए पीड़ित हर्ष कुमार को ही गिरफ्तार कर लिया है, जिसके बाद पीड़ित हर्ष कुमार ने एसपी से न्याय की गुहार लगाई है।

  • RJD विधायक दोषी करार.. अदालत ने सुनाई सजा, जुर्माना भी लगाया.. जानिए पूरा मामला

    आरजेडी विधायक प्रकाशवीर को अदालत से बड़ा झटका लगा है । कोर्ट ने नवादा के रजौली विधानसभा क्षेत्र के आरजेडी विधायक प्रकाशवीर को छह महीने की सजा सुनाई है। साथ ही एक हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है।

    किस मामले में सजा
    नवादा की एमपी एमएलए कोर्ट ने 17 साल पुराने चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के मामले में प्रकाशवीर को दोषी करार दिया है। अदालत ने रजौली के आरजेडी विधायक प्रकाशवीर को छह महीने की सजा और एक हजार रुपये का जुर्माना लगाया है।

    क्या है मामला
    मामला साल 2005 के विधानसभा चुनाव का है । बताया जा रहा है कि उस समय प्रकाशवीर लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर रजौली विधान सभा के उम्मीदवार थे। चुनाव प्रचार के क्रम में 5 अक्टूबर 2005 को तत्कालीन रजौली थानाध्यक्ष शिवनारायण राम ने पाया कि प्रकाशवीर ने रजौली थाना मोड़ और गोलाई मोड़ के समीप बिजली के खम्भे और एनएच 31 पर पीपल के पेड़ पर काफी संख्या में बैनर और पोस्टर लगवाए हुए थे। जिसमें प्रकाशवीर को अभियुक्त बनाया गया था।

    17 साल बाद सजा
    17 साल तक मुकदमा चलने के बाद अब आरजेडी विधायक प्रकाशवीर दोषी करार दिया है। मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी कुमार अविनाश ने अदालत में गवाहों के बयान के आधार पर विधायक प्रकाशवीर को बिहार सम्पत्ति विरूपण निवारण अधिनियम 1985 की धारा 3 (1) के तहत दोषी करार देते हुए छह माह का कारावास और एक हजार रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई।

    बेल पर रिहा
    हालांकि एमपी-एमएलए कोर्ट ने सजा मिलने के बाद अपीलीय बेल बांड पर उन्हें रिहा भी कर दिया । अब वो इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करेंगे। अगर हाईकोर्ट से भी सजा बरकरार रहती है तो उन्हें जेल जाना पड़ेगा।

  • जिला स्तरीय सुब्रतो मुखर्जी फुटबॉल टूर्नामेंट का हुआ आयोजन

    मनीष कुमार / कटिहार 

    कला संस्कृति एवं युवा विभाग तथा बिहार राज्य खेल प्राधिकरण के संयुक्त तत्वाधान में जिला स्तरीय सुब्रतो मुखर्जी फुटबॉल कप प्रतियोगिता का आयोजन बीएमपी 7 मैदान में किया गया। जिसका उद्घाटन विधान पार्षद अशोक अग्रवाल एवं बीएमपी कमांडेड दिलनवाज अहमद ने किया

    बताते चलें कि यह प्रतियोगिता 29 और 30 जुलाई को आयोजित की गई हैं। जिसमें पुरुष वर्ग के 2 टीम और महिला वर्ग के 2 टीम भाग लेंगे। जिले के अन्य प्रखंडों से फुटबॉल से जुड़े खिलाड़ी इस प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं। जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग भी शामिल हो रहे हैं।