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  • आध्यन कर रहें छात्रो एंव छात्राओं को हो रहें दोहन में निजी विधालय के खिलाफ

    निजी प्राईवेट विधालय कि जांच जिलाधिकारी कि अध्यक्षता मे किया जाए..NCP..नालंदा जिले आध्यन कर रहें छात्रो एंव छात्राओं को हो रहें दोहन में निजी विधालय के खिलाफ शिक्षा विमाग के अधिकारियों को शक्ति से निपटना चाहिए उन्होनो निजी विधालय के संचलाकों के वैठक पर पर खुशी व्याक्त करतें हुए कहा कि संचालन गण मानवोंत्कर्ष नामक संस्था कि जांच ईडी से कराई जाए

    और उनका लेखा जोखा कि सत्यापन करवा कर वस्तविकता पता लगाकर दोषी पायें जाने पर संलिप्त पदाधिकारी या संस्था का संचालक कि मिली भगत का स्पस्टता स्वयं प्रभावित होगा दुसरी तरफ एन.सी.पी .नालंदा के जिलाध्याक्ष ने कहा कि छुट भैया नेता वतानें वाले स्कूल संचालक एक संस्था के नाम पर नालंदा जिला से लेकर पूरे राज्य में मानो उत्कर्ष के विरूध सडक से लेकर न्यायलय तक सघंर्ष पूर्ण लंबा लडाई लडकर सचाई का पर्दाफाश किया जाएगा

    पार्टी की कायर्कता द्वारा एक-एक विधालय अनुदानित छात्रों एंव छात्राओं का आधार नम्वर सहित सभी छाचों को भौतिक सत्यापन किया जाएगा। राजकुमार पासवान अध्यक्ष-राष्ट्रवादी कांग्रेंस पार्टी नालंदा।

  • त्याग और तपस्या का दूसरा नाम है किसान

    राकेश बिहारी शर्मा – भारत गांवों का देश है। भारत की अधिकतर जनसंख्या गांवों में ही निवास करती है। उनमें से सबसे अधिक किसान हैं। भारतीय किसान का जीवन अत्यंत कठिन होता है। वह त्याग और तपस्या की सजीव मूर्ति होता है। इनका मुख्य व्यवसाय कृषि ही होता है। वह दिनभर खेतों में कार्य करते हैं। यह दिन ही नहीं अपितु जीवन भर मिट्टी से सोना उत्पन्न करने की तपस्या करता रहता है। भारतीय अर्थव्यवस्था एक कृषिप्रधान अर्थव्यवस्था है इसलिए हमारे देश में किसान का बहुत महत्व है।

    मानव सभ्यता के विकास में कृषि की अमूल्य भूमिका रही है। मानव का अस्तित्व ही कृषि और शिकार पर टिका रहा। रेमंड विलियम के अनुसार तो कृषि से ही संस्कृति का जन्म होता है। कृषि ने ही हमे संस्कारित बनाया। प्रारम्भिक खेती, पशुपालन व शिकार की प्रक्रिया प्रकृति द्वारा नियंत्रित होती रही ,जिसमें संघर्ष था, मानवीयता थी और त्याग की भावना थी। प्रकृति के विरुद्ध उसमे कुछ भी नहीं था। जैसे-जैसे मानव के अन्दर संग्रह की प्रवृत्ति ने जगह बनाई मानव अधिक लालची, द्वेषी और दम्भी बनने लगा। त्याग और तपस्या का दूसरा नाम है किसान। हमारे देश की लगभग सत्तर प्रतिशत आबादी आज भी गांवों में निवास करती है। जिनका मुख्य व्यवसाय कृषि है।

    भारत किसानों का देश

    एक कहावत है कि भारत की आत्मा किसान है जो गांवों में निवास करते हैं। किसान हमें खाद्यान्न देने के अलावा भारतीय संस्कृति और सभ्यता को भी सहेज कर रखे हुए हैं। यही कारण है कि शहरों की अपेक्षा गांवों में भारतीय संस्कृति और सभ्यता अधिक देखने को मिलती है। किसान की कृषि ही शक्ति है और यही उसकी भक्ति है।
    किसान शब्द का अर्थ रेडफील्ड ने इस प्रकार दिया है, ” किसान वे छोटे उत्पादनकर्ता हैं, जो केवल उपयोग के लिए ही उत्पादन करते हैं।’

    राष्ट्रीय किसान नीति में “किसान” शब्द के अंतर्गत आते हैं-” जो भूमिहीन कृषि श्रमिक, बंटाईदार, काश्तकार, लघु, सीमान्त और उप-सीमान्त खेतीहर, बड़े धारणों वाले किसान, मछेरे, डेयरी, भेड़, कुक्कुट व अन्य किसान जो पशुपालन में लगे हों। इसके साथ ही बागान श्रमिक और साथ ही वे ग्रामीण और जनजातीय परिवार शामिल हैं, जो कृषि संबद्ध व्यवसायों, जैसे कि रेशम पालन और कृषि पालन के अनेक कार्यों में लगे हैं। इसमें वे जनजातीय परिवार सम्मिलित हैं, जो कभी-कभी भूमि, खेती में और गैर-इमारती लकड़ी वन उत्पादों के संग्रह तथा उपयोग में लगे हैं।

    किसान हमारे पालनहार आधुनिक विष्णु

    वर्तमान संदर्भ में हमारे देश में किसान आधुनिक विष्णु है। वह देशभर को अन्न, फल, साग, सब्जी आदि दे रहा है लेकिन बदले में उसे उसका पारिश्रमिक तक नहीं मिल पा रहा है। प्राचीन काल से लेकर अब तक किसान का जीवन अभावों में ही गुजरा है। किसान मेहनती होने के साथ-साथ सादा जीवन व्यतीत करने वाला होता है। किसान भारतीय जवान के मेरुदंड है। वे भारतीय समाज की केंद्रस्थ धुरी है। अतः उनके विकास, उद्धार एवं उन्नयन से ही भारत का विकास, उद्धार एवं उन्नयन संभव है। भारत का भविष्य भारतीय किसानों का भविष्य है।

    भारतीय किसानों की गम्भीर समस्या

    भारतीयों कृषकों की दिनावस्था के एक नहीं, अनेक कारण हैं। पहला कारण है- उनकी बेहद गरीबी। इस गरीबी के कारण ही वे खेती के आधुनिक और विकसित उपकरण खरीद नहीं पाते। वे न सिंचाई का प्रबंध कर पाते हैं, न खेतों में उर्वरक डाल पाते हैं, न उत्तम बीज खरीद पाते हैं तो आप ही बताइए कि उनका फसल अच्छा कैसे होगा? आज देश में खेती का योगदान कुल अर्थव्यवस्था में 15 प्रतिशत के लगभग होने पर भी इससे गरीब 60 प्रतिशत लोगों को रोजगार मिल रहा।

    लेकिन भारत में अभी तक खेती और किसान को अर्थनीति में जितना महत्व मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल पाया है। भारत की रचना ऐसी है कि जब तक खेती संकट से नहीं निकलेगी किसान खुशहाल नहीं हो सकता। यहां खेत का औसत आकार 1.15 हैक्टेयर है, जो काफी छोटा है। यह आकार 1970-71 से लगातार घटता जा रहा है। लघु और सीमांत भू-स्वामित्व 2.0 हैक्टेयर से कम है,

    जो कुल भू-स्वामित्व का 72 प्रतिशत है। छोटी काश्तकारी की प्रधानता कृषि क्षेत्र में बड़े पैमाने पर आर्थिक किफायत की राह में मुख्य बाधा है। इसके अतिरिक्त छोटे और सीमांत किसानों के पास मोलभाव की शक्ति कम है क्योंकि उनके पास विक्री योग्य अधिशेष कम होता है और वे बाजार की कीमत स्वीकार करने वाले होते हैं। बड़े पैमाने पर कृषि के लाभ के लिए लघु क्षेत्र वाले किसानों की बहुलता एक बड़ी चुनौती है।

    भारत में 60 प्रतिशत खेती वर्षा पर आधारित है। केवल 40 प्रतिशत खेती के लिए सिंचाई के साधन उपलब्ध है। काफी समय से फसलों के सही दाम की मांग की जा रही है। किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिलना चाहिए। इसी आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली शुरू की गई थी। पहले केवल गेहूं और धान के लिए यह व्यवस्था की गई, वर्ष 1986 में यह 22 जिलों के लिए लागू किया गया है।

    पंजाब, हरियाणा, पूर्वी व उत्तरी राजस्थान, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश आदि को छोड़कर कहीं भी न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली पर फसल खरीदने की कोई व्यवस्था नहीं है। इस कारण किसान साल भर मेहनत करके फसलें तैयार करता है लेकिन उसे लागत भी नहीं मिल पाती, जबकि बिचौलिए मोटा लाभ कमा रहे हैं। लेकिन इसमें भी अनेक खामियां हैं, जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है। इन खामियों को दूर करने के लिए किसान आयोग का गठन किया गया था। फल एवं मौसमी सब्जियों का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित नहीं होता। जिन फसलों का समर्थन मूल्य निर्धारित होता है, वह भी किसानों को नहीं मिल पता है।

    भारत में स्वतंत्रता पूर्व किसान आंदोलन

    भारतीय संस्कृति में पर्व-त्योहार, रीति-रिवाज, संस्कार, कर्मकांड आदि खेती से जुड़े हुए हैं। खेती ही भारत के आत्मनिर्भर होने का मूल आधार थी लेकिन अंग्रेजों ने भारत की अर्थव्यवस्था को नष्ट करने के लिए भूमि व्यवस्था को बदलकर जमींदारी प्रथा आरंभ की। इससे वास्तविक किसान निरंतर गरीब होते रहे। खेती पर देश की आत्मनिर्भरता नष्ट होती गई। भारत में किसान आंदोलन का लगभग 200 वर्षों का इतिहास है।

    19 वीं शताब्दी में बंगाल का संथाल एंव नील विद्रोह तथा मद्रास, पंजाब एवं बिहार में किसान आंदोलन इसके उदाहरण है। भारतीय किसान आंदोलन की राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही। किसान आंदोलन और राष्ट्रीय आंदोलन का अटूट रिश्ता था। अप्रैल, 1917 में नील कृषकों द्वारा बिहार के चम्पारण जिले में गांधी जी के नेतृत्व में चलाया गया किसान संघर्ष देश का राजनीतिक दृष्टि से पहला संगठित आंदोलन था। अंग्रेजी शासन ने किसानों के संघर्षों को दंगों और न्याय तथा कानून से संबंधित प्रशासनिक समस्या के रूप में देखा था।

    किसान आंदोलन वहीं उभरे जहां राष्ट्रीय आंदोलन की नींव पड़ चुकी थी उदाहरण के लिए केरल, पंजाब, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार। वर्ष 1908 में” हिंद स्वराज” में गांधी जी ने किसानों को आत्मबल युक्त समुदाय के रूप में देखा था और उसे सत्याग्रह का परंपरागत प्रयोगकर्ता बताया था। हमारे यहां की एक प्रसिद्ध कहावत थी, “उत्तम खेती मध्यम बान, करे चाकरी अधम समान” अर्थात आजीविका श्रेष्ठ साधन कृषि है, व्यापार और नौकरी का स्थान उसके बाद आता है। इसे पुनः चरितार्थ किया जा सकता है। किसान चाहे तो अपने गाँव में अपनी सरकार चला सकते हैं मगर उनके यहाँ पारस्परिक सद्भाव, बुद्धि-विचार व संगठन का आभाव हैं।

    संघर्ष भरा किसानों का जीवन

    वर्ष 2001 और 2011 की जनगणना के आंकड़ो का तुलनात्मक अध्ययन कर देखें तो पता चलता है कि 70 लाख किसानों ने खेती करना बंद कर दिया है। किसानों को आत्महत्या की दशा तक पहुँचाने के मुख्य कारणों में खेती का आर्थिक दृष्टि से नुकसानदायक होना ,भारतीय कृषि का मानसून पर निर्भर होना, मानसून की असफलता, सूखा, ऋण का बोझ तथा सरकार की किसान विरोधी नीतियाँ आदि जिम्मेदार कारक हैं।

    उदारीकरण की नीतियों के बाद नकदी खेती को बढ़ावा मिला। सामाजिक-आर्थिक बाधाओं के कारण पिछड़ी जाती के किसानों के पास नकदी फसल उगने लायक तकनीकी जानकारी का अक्सर आभाव रहा है। यही कारण है कि आज का किसान नकदी फसलों की लालच में परम्परागत फसलों को छोड़कर कर्ज में डूब गया है।

    भारतीय किसान आज भी आत्महत्या करने पर मजबूर

    आजादी के बाद और उदारीकरण, औद्योगीकरण एवं अन्य आर्थिक सामाजिक सुधारों के माध्यम से उद्योगों का कायाकल्प हुआ और उद्योगों को घाटे से उबरने के लिए करोड़ों रुपये की सरकारी राहत दी जाती रही है लेकिन जब कृषि क्षेत्र की बात आती है, किसानों के कर्ज की बात आती है तो इतनी कम राशि दी जाती है, उससे किसानों को लाभ तो नहीं होता है, हां उनका मखौल जरूर उड़ाया जाता है। किसानों की बदहाली का अंदाजा उसके कर्ज पर लगाया जा सकता है।

    किसानों पर वर्तमान में देशभर के किसानों पर 12 लाख 60 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है। इसे माफ करने के लिए राज्य सरकारों के पास पैसा ही नहीं है। जो किसान प्रकृति की रक्षा के साथ सभी जाति वर्ग को कृषि से रोजगार देता था, आज वह समय के साथ अपने में बदलाव नहीं करने के कारण संकटों से जूझ रहा है।

    पिछले लगभग 20 वर्षों से भारत के किसान लगातार आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं। वर्ष 1997-98 में किसानों द्वारा की गई आत्महत्या विदर्भ, महाराष्ट्र के बाद बुंदेलखंड आंध्रप्रदेश और में भी सिलसिला शुरू हो गया।एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार पहली बार वर्ष 1997 में आत्महत्याओं को रिकार्ड में दर्ज किया गया। इसके अनुसार वर्ष 1997-98 में लगभग 6,000 किसानों ने आत्महत्याएं की।

    किसानों की आत्महत्याओं का पहला कारण ऋण और दूसरा प्राकृतिक आपदाओं से फसल का नुकसान है। इसके साथ ही कृषि उपज से होने वाली कमी, खराब बीज और उर्वरक की उपलब्धता भी अन्य कारण है। इस कारण एक बड़ा वर्ग किसानी छोड़ रहा है। वह किसानी की बजाय शहरी मजदूरी को अच्छा समझने लगा है। विदेशी कंपनियों ने भी बेतहाशा शोषण किया है।

    देशी बीज और खाद के स्वरूप को कुछ देशी और कुछ विदेशी कंपनियों ने खत्म कर दिया है। अक्सर यह देखा जाता है कि अनाज क्रय केंद्र पर दलालो की मिलीभगत से अनाज व्यवसायी ही किसानों से सस्ते दर पर खरीद कर क्रय केंद्र पर अपना अनाज बेच देते हैं। इससे न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसान अपना अनाज बेचने में सफल नहीं हो पाता है। जमाखोर किसानों के उत्पाद का उचित मूल्य नहीं दे रहे है।

    उदाहरण के लिए किसानों से कई बार प्याज 2 रुपये किलो की दर से खरीदने के बाद जमाखोर 60 रुपये की दर से बेच देते हैं। भूमि अधिग्रहण को लेकर भी देश भर के किसानों में असंतोष है। वर्ष 2013 में देश में अंग्रेजी राज के भूमि अधिग्रहण कानून को बदलकर नया कानून बनाया गया है। इस कानून में भी अनेक खामियां हैं। उचित मुआवजे के लिए किसान अदालत के दरवाजे खटखटा रहे हैं।

    अभी ताजे आकड़े के अनुसार- “एक तरफ देश में लोग भूख से मर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ 670 लाख टन खाद्य पदार्थ बर्बाद हो रहा है। एक अध्ययन के मुताबिक उचित भंडारण की कमी ने खाद्यान की बर्बादी को बढ़ाया है, जिससे एक तरफ महगाई बढ़ रही है वहीं दूसरी तरफ किसानों को निवेश पर लाभ तो क्या, लागत की वसूली भी नहीं हो पा रही है।

    किसानों के हित में बेहतर सुझाव

    किसानों की बदहाली को ठीक करने के लिए सरकार को फिजूलखर्ची और भ्रष्टाचार पर रोक लगाना होगा। इस तरह से बचाई गयी धनराशि किसानों के कल्याण पर खर्च किये जा सकते हैं। देश की बदहाली बुलेट ट्रेन और एक्सप्रेस-वे से दूर नहीं होगी। देश की बदहाली कृषि क्षेत्र का विकास ही दूर करेगा। जिसके ऊपर देश की 70 प्रतिशत आबादी निर्भर करती है। सरकार के पास किसानों का कर्ज माफ़ करने के लिए पैसे नहीं हैं वहीं देश में कई सौ करोड़ रूपये खर्च करके बडें-बड़े भवन और मेमोरियल बनाया जा रहा है।

    समय रहते किसानों ने यदि अपनी उत्पादन प्रणाली नहीं बदली तो स्थिति शायद ही बदले। इसलिए किसानों को समय के साथ फलों की खेती, सब्जी की खेती तथा दुग्ध उत्पादन को बढ़ाना होगा। किसानों की हालात सुधारने के लिए सरकारों को विशेष प्रयास करना होगा। किसानों की कर्जमाफी को लेकर पूरे देश में कदम उठाने का वक्त आ गया है।

    भारत में मॉनसून की सटीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। इसके बावजूद देश के तमाम हिस्सों में सिंचाई व्यवस्था की उन्नत तकनीकों का प्रसार नहीं हो सका है। उदाहरण के लिए पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र मंो सिंचाई के अच्छे इंतजाम है लेकिन देश का एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी है जहां कृषि, मॉनसून पर निर्भर है। इसके इतर भूमिगत जल के गिरते स्तर ने भी लोगों की समस्याओं में इजाफा किया है।

    75 साल के स्वतंत्र भारत मे विकास तो बहुत हुआ पर किसान वहीं का वहीं रह गया। जहां पहले था। उसका ह्रदय आज भी भूखा प्यासा है। वर्तमान का किसान बेचैन है, उदास है। अपने अंधकारमय भविष्य के प्रति निराश है। किसान सारी पूंजी लगाकर लगन से खेती करता है पर भरोसा नहीं रहता की खेती होगी या नहीं।

    अंग्रेज भारत के किसानों को सबसे धनी मानते थे क्योंकि वे किसानों के उत्पादन का लागत कम देते और ऋण भी किसानों पर लाद देते थे। भारत का वही किसान सुखी है। जिसके पास नौकरी, बिजनेस या अन्य व्यवसाय से आय प्राप्त होती है। जो मात्र कृषि पर निर्भर रहते हैं उनकी स्थिति बदतर है जिसे देख स्वयं दरिद्रता भी डरती है।

    किसान की दयनीय दशा को देखने वाला कोई नहीं है। किसान कितना भी गरीब क्यों न हो उसे सरकारी आंकड़े में अमीर ही दिखाया जाता है। आत्मतृप्ति, दूसरों का पेट भरने के लिए किसान दिन-रात कड़ी परिश्रम करता है। तब जाकर अन्न पैदा होता है। जून की गर्मी हो,बरसात हो या पूस की रात किसान कोल्हू के बैल की तरह काम करता है। उसे कभी भी आराम नहीं मिलता। तब भी उसे रोटी, कपड़ा जुटाने में असमर्थता ही रहती है उसका कारण है अनाज की कम कीमत।

    किसानों की स्थितियाँ सुधरने की बजाय और अधिक बिगड़ गयी हैं। किसानों के अनाज का उचित मूल्य मिलना चाहिए। जिससे कि उनके जीवन मे भी बदलाव आए। हम कितने भी मॉर्डन क्यों न हो जाएं पर रोटी गूगल से डाउनलोड नहीं होगी बल्कि वह भी किसानों के खेत से ही आएगी।

    अब हमें गाँवों में स्वर्ग उतारना है, नंदनकानन बसाना है, युगों से कृषकों की मुरझाया हुआ मुखाकृति पर मुसकराहटों के फूल खिलाने है। कृषक मानवजाति की विभूति है। जिसने अनाज के दाने उपजाए, पौधों के पत्ते लहराए, वह मानवता का महान सेवक है और उसका महत्व किसी भी राजनीतिज्ञ से कम नहीं।अगर किसान बर्बाद हुए तो देश के चमकते महानगर भी बर्बाद हो जायेंगे। इस प्रकार इन तमाम सुझावों और विचार-विमर्शों के माध्यम से किसान के बदहाल जीवन को खुशहाल बनाया बनाया जा सकता हैं।

  • प्रतिभा किसी की मोहताज नही होती

    सृजन द्वारा आयोजित सृजन प्रतिभा खोज 2022 के अंतर्गत बिहार वाटर डेवलपमेंट सोसाइटी, कुर्जी संस्था द्वारा संचालित सिलाव के माधोपुर दलित बस्ती में हमारी पाठशाला के बच्चों ने अपनी कलाकृतियों से रंगोली बना कर एवम गुलजस्ता (बुके ) व मालाओ से नगर पंचायत सिलाव एवम राजगिर के ब्रांड एम्बेसडर भैया अजित का भव्य स्वागत किया।
    हमारी पाठशाला की अनुदेशिका सुश्री कृतिका कुमारी ने कहा की हम सबका सौभाग्य है कि भैया अजीत जी के द्वारा दलित समाज एवम बस्तियों में छुपे हुए प्रतिभा को उभारने एवम मंच प्रदान किया जा रहा है जो अति सराहनीय कार्य है हम अपनी पाठशाला के बच्चों तथा संस्था की ओर से इन्हें धन्यवाद एवम आभार व्यक्त करते हैं। कॉन्वेंट स्कूल के बच्चों एवम शहरी क्षेत्र के बच्चों के लिए सभी सोचते है उन्हें मौका देते है परन्तु सृजन संस्था के द्वारा उन वंचित बच्चो को मौका दिया जा रहा है जो समाज के अंतिम पादन है ।

    प्रतिभा किसी की मोहताज नही होती - भैया अजीत।  प्रतिभा किसी की मोहताज नही होती - भैया अजीत।

    मौके पर उपस्थित नगर पंचायत सिलाव एवम नगर परिषद राजगीर के ब्रांड एम्बेसडर भैया अजीत ने बच्चों को स्वच्छता के साथ साथ सिंगल यूज पोलोथिन एवम थर्मोकोल के बने कप प्लेट,ग्लास,थाली इस्तेमाल न करने का आग्रह किया भैया अजित ने कहा कि प्लास्टिक रूपी दानव न सड़ता है ना पानी मे गलता है,जमीन बंजर बना देता है,तथा जलाने पर वायु को दूषित कर देता है ,बेजुबान जानवर के द्वारा निगल जाने से उसकी मृत्यु हो जाती है इसलिए हम सबको प्लास्टिक का पूर्ण बहिष्कार करना चाहिए। वहीँ बच्चों में छुपे प्रतिभाओ को उभरने हेतु चयन करने आये भैया अजित ने चयन करने के दौरान कहा कि प्रतिभा किसी की मोहताज नही होती ,जरूरत है निरंतर अभ्यास और प्रयास करने की,जरूरत है इन बच्चों को एक मौका देने की।बच्चों ने अपनी हुनर का जलवा बिखेरा।हमारी पाठशाला का पर्यवेक्षक श्री प्रह्लाद कुमार ने धन्यवाद ज्ञापन देते हुवे आभार व्यक्त किया।

  • जापदानवीर10वीं की बिहार टॉपर सिरजा को प्रोत्साहन स्वरूप दिया 51000 रू•

    जाप नेता राजू दानवीर ने सीबीएसई 10वीं की बिहार टॉपर सिरजा को प्रोत्साहन स्वरूप दिया 51000 रू•

    राजू दानवीर ने कहा बिना माँ-बाप सीबीएसई 10वीं बिहार टॉपर बनी सिरजा से प्रेरणा लेने की जरूरत

    पटना । दसवीं सीबीएसई की परीक्षा में 99.4% के साथ 10वीं की टॉपर बनी बिना मां – बाप की बेटी सिरजा से आज जन अधिकार पार्टी के युवा अध्यक्ष राजू दानवीर ने मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने सिरजा को 51 हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि दी और उन्हें बधाई एवं शुभकामनाओं के साथ उज्ज्वल भविष्य की कामना भी की।

    इस मौके पर राजू दानवीर ने कहा कि बिहार की माटी प्रतिभा के मामले में उर्वरा है,और यहां की बेटियां का कुछ कर दिखाना जज्बा प्रेरणा दायक होता है। तभी बिना मां – बाप की बेटी सिरजा ने दसवीं सीबीएसई की परीक्षा में 99.4% अंक लाकर न सिर्फ बिहार टॉपर बनी, बल्कि प्रदेश वासियों को गौरवान्वित करने का भी काम किया है। सिरजा आज बिहार की तमाम बेटियो के लिए प्रेरणा बन गई हैं।

    उन्होंने कहा कि सिरजा की मां का निधन बचपन में ही हो गया था। उसके बाद उसे पिता ने छोड़ दिया, लेकिन तब सिरजा को उसकी नानी कृष्णा देवी ने संभाला और उसकी पढ़ाई – लिखाई कराई। सिरजा डीएवी पटना की छात्रा है, जिसने 497अंक लाकर प्रदेश का नाम रौशन किया है। इसलिए हमें उन पर गर्व है और हम भरोसा दिलाते हैं कि जब भी उन्हें भविष्य में किसी चीज की जरूरत होगी, तो हम उनके लिए सदैव तत्पर रहेंगे। क्योंकि वे मेधावी हैं और उनकी मेधा से बिहार प्रकाशित होगा। यही कामना है।

  • विश्व हिंदू परिषद का नालंदा में तीन दिवसीय कार्यसमिति योजना की बैठक

    विश्व हिंदू परिषद का नालंदा में तीन दिवसीय कार्यसमिति योजना की बैठक चल रही है। यह बैठक 22 से 24 जुलाई तक चलेगा। बैठक का आयोजन बिहारशरीफ के मनीराम अखाड़ा स्थित महादेव मैरिज हॉल में किया गया है। बैठक में करीब 22 जिलों के लोगों ने शिरकत की। बैठक में आये अतिथियों का स्वागत केशरिया अंगवस्त्र पहनाकर किया गया।

    इस मौके पर बिहार झारखंड के प्रांतीय मंत्री धीरेंद्र विमल ने कहा कि आगामी आने वाले समय मे समाज को संगठित करना एवं उनका रक्षा ही हमारा कर्तव्य है। विश्व हिंदू परिषद के कार्य को समझना फिर उसे योजनाबद्ध तरीके से पूर्ण करना ही हमारा उद्देश्य है। हमे हमारे पुरातन संस्कारो को जानना व समझना और उसका आलिंगन करना हमारा प्रमुख लक्ष्य होना चाहिए।

    सनातन समाज सर्वश्रेष्ठ संस्कृति वाला समाज है, हमे नहीं भूलना चाहिए कि भारत देश का असली नाम हिंदुस्तान है, यानि हिंदुओं के रहनेवाला स्थान। हमारा मुख्य लक्ष्य धर्म और संस्कारों के संस्थापन के साथ साथ साथ देश के अखण्डता की रक्षा करना है।

  • महागाई खाद्य पदार्थों पर लगाए गए 5% की जीएसटी अग्नीपथ योजना के विरोध

    जन अधिकार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पप्पू यादव के आवाहन पर बढ़ते महागाई खाद्य पदार्थों पर लगाए गए 5% की जीएसटी और अग्नीपथ योजना के विरोध में सभी जिला मुख्यालयों पर जाप पार्टी के कार्यकर्ताओं के द्वारा एक दिवसीय राज्यव्यापी महाधरना दिया गया। इस धरने में जन अधिकार पार्टी के कई कार्यकर्ताओं ने शिरकत किया। इस दौरान जन अधिकार पार्टी के छात्र नेता राकेश सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार के द्वारा खाद्य पदार्थ पर लगाए गए जीएसटी से आम जनजीवन पर इसका व्यापक असर पड़ेगा क्योंकि अभी कोरोना की मार से आम लोग उबरे भी नहीं थे कि केंद्र सरकार के द्वारा एक और महंगाई का हथोड़ा खाद्य पदार्थों पर ठोक दिया। केंद्र सरकार लगातार बढ़ती महंगाई को रोकने में पूरी तरह से विफल साबित हुई है। बात चाहे बढ़ते पेट्रोल के दामोंं की बात किया जाए या फिर खाद्य पदार्थों की सभी पर महंगाई की मार लगातार बढ़ रही है। 75 वर्षों के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है की सरकार खाद्य पदार्थों पर भी 5% का जीएसटी लागू किया गया हो। इसी बढ़ती महंगाई के विरोध में जन अधिकार पार्टी शनिवार को सभी जिला मुख्यालयों पर महा धरना दे रही है। इसके बावजूद अगर सरकार बढ़ती महंगाई को नहीं रोक पाती है तो जन अधिकार पार्टी आने वाले समय में सड़क से लेकर सदन तक आंदोलन करने का काम करेगी। जन अधिकार पार्टी जनता हित के लिए हमेशा सरकार से लड़ाई लड़ने का काम किया है और आगे भी करते रहेगी।

  • जिला महागठबंधन के सीपीआई सीपीएम सीपीआई माले के साथ बैठक

    नालंदा जिला राष्ट्रीय जनता दल कार्यालय में जिला महागठबंधन के साथियों सीपीआई सीपीएम सीपीआई माले के जिला सचिव के साथ बैठक हुई है बैठक में आगामी 7 अगस्त को अगस्त क्रांति के मौके पर बिहार महागठबंधन के सर्वमान्य नेता नेता प्रतिपक्ष बिहार विधानसभाआदरणीय नेता श्री तेजस्वी यादव जी के निर्देश पर डबल इंजन की सरकार के विरोध राज्यव्यापी प्रदर्शन करने का निर्णय लिया गया बैठक को संबोधित करते हुए प्रदेश के प्रवक्ता सह पूर्व विधायक श्री शक्ति सिंह यादव ने कहा कि बिहार ही नहीं पूरे देश में अराजक की स्थिति है

    महंगाई चरम पर है रोजगार जीरो है राज्य से पलायन लगातार जारी है सरकार जनता को मूलभूत समस्या से भटका करके छद्म राष्ट्रवाद की दुहाई दे रही है रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रहा है आजाद हिंदुस्तान में पहली बार खाने पीने की पदार्थ पर टैक्स लगा है उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार को जनता की मूलभूत सुविधाएं से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है इसी जन समस्या को लेकर अंदर महागठबंधन पूरे राज्य में जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन करेगी अगस्त क्रांति 9 अगस्त को होती है

    लेकिन इस बार मुहर्रम होने की वजह से हम लोग 7 अगस्त को ही अगस्त क्रांति के रूप में मनाएंगे मौके पर इस्लामपुर के विधायक राकेश कुमार रोशन ने कहा कि सरकार की गलत नीति को हम लोग जनता के बीच ले जाएंगे उन्होंने कहा कि सरकार अपने एजेंडे से हट कर बात करती है सुबह में कानून एवं विकास का कोई चीज दिख ही नहीं रहा है

    आगामी 7 अगस्त को महागठबंधन के नेतृत्व में हम लोग ऐतिहासिक प्रदर्शन करेंगे कार्यक्रम की अध्यक्षता सीपीआई के मोहन प्रसाद ने की कार्यक्रम में सीपीएम के मोहम्मद तस्लीमुद्दीन सीपीआई माले के सुरेंद्र राम पालबिहारी सहित जिला राजद के अध्यक्ष अशोक कुमार हिमांशु प्रधान महासचिव श्री सुनील यादव पूर्व विधायक पप्पू खान श्रीसुनील साव श्रीअनिल महाराज श्री सीताशरण बिंद विजय मुखिया कल्लू मुखिया दीपक कुमार सिंह टनटन खान खुर्शीद अंसारी प्रमोद गुप्ता पप्पू यादव अरुणेश यादव जीतू यादव विनोद यादव पवन कुमार इत्यादि मौजूद रहे

  • न्यूज नालंदा – स्लम एरिया के बच्चों को बांटी किताब-कॉपी ….. –

    रोहित – 7903735887 

    स्कूल चलो अभियान के तहत स्लम एरिया में रहने वाले सैकड़ों बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने के लिए कई स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। ताकि, सब पढ़ें और आगे बढ़ें। इसी कड़ी में रेलवे क्रॉसिंग के पास वाले स्लम एरिया में रहने वाले बच्चों को फ्रेंड्ली ग्रुप के सदस्यों ने शनिवार को स्टडी किट बांटा गया। समाजसेवी प्रफुल्ल कुमार ने बताया कि शिक्षा से ही सारे अंधकार मिटेंगे। अशिक्षा ही गरीबी की जड़ है। समाज व देश को सशक्त बनाना है, तो सबों को शिक्षित करना ही होगा। जल्द ही इस तरह के बच्चों के लिए फ्रेंड्ली स्कूल खोला जाएगा। जहां आकर ये बच्चे मुफ्त शिक्षा पा सकेंगे। मौके पर आशुतोष कशयप, एस राजा, आसिफ, शदाब, बेलाल, कन्हैया लाल यादव, नेहा परवीन, जुही कुमारी, मुसर्रत, मृत्युंजय कुमार, पंकज कुमार, अमित राज, अमर राजपूत, रूपक, सुनील वर्मा, चन्दन कुमार, ओम कुमार व अन्य मौजूद थे।




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  • न्यूज नालंदा – करंट से धड़ाधड़ गिर रही लाश, इस बार बीमार मां से मिलने आए यूपी के विद्युत विभाग के कर्मी की मौत…. –

    सौरभ – 7903735887 

    जिले में विद्युत विभाग की लापरवाही के कारण धड़ाधड़ लाश गिर रही है। ताजा घटना सिलाव थाना क्षेत्र के गन्धुपुर गांव में शुक्रवार को हुई। जहां करंट की चपेट में आने से अधेड़ की मौत हो गई। मृतक विशुनदेव पंडित के 40 वर्षीय पुत्र विशाल कुमार हैं।

    परिजन ने बताया कि बीमार मां को देखने के लिए 19 जुलाई को विशाल छुट्टी लेकर यूपी से आए थे। वह यूपी के वाराणसी में बिजली विभाग में टेक्नीशियन ग्रेड द्वितीय के पद पर कार्यरत थे। शाम में शौच के लिए वह खेत की तरफ जा रहे थे। उसी दौरान पूर्व से लटकी हुई 440 वोल्ट के तार के सम्पर्क में आने से गंभीर रूप से झुलस गए। परिजन उन्हें अस्पताल लाए। जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

    परिजनों ने बिजली विभाग पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए कहा कि आए दिन बिजली के लुंजपुंज तार के कारण लोग जान गंवा रहे हैं। कई बार शिकायत करने के बाद भी विभाग लुंज पुंज तारों को ठीक नहीं करता। थानाध्यक्ष पवन कुमार ने बताया कि लिखित शिकायत मिलने पर केस दर्ज किया जायेगा। पोस्टमार्टम के बाद शव परिवार के हवाले कर दिया गया।




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  • न्यूज नालंदा – सड़क पर किशोर की लाश रख हंगामा, परिजन की चीत्कार से ग्रामीण गमगीन… –




    आशीष – 7903735887 

    ऑटो की टक्कर से साइकिल सवार किशोर की मौत के बाद आक्रोशित ग्रामीणों ने मुआवजा की मांग करते हुए सड़क पर लाश रख हंगामा किया। घटना बिंद थाना क्षेत्र के मसियांडीह गांव के समीप शनिवार को हुई। मृतक गामा पासवान का 15 वर्षीय पुत्र गोविंदा पासवान है। घटना ऑटो के पलटने से एक महिला जख्मी हो गई। जख्मी जगदीश व्यास की विवाहिता पुत्री गुड़िया कुमारी अस्थावां रेफरल अस्पताल में इलाजरत है। हंगामा की सूचना पाकर पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी मौके पर आ गए। प्रावधान के तहत मुआवजा का आश्वासन से लोगों को शांत कराया गया। तब करीब घंटे भर बाद मार्ग से जाम हटा।

    परिजनों ने बताया कि किशोर बाजार से प्रमाण पत्र की छात्रा प्रति कराकर साइकिल से गांव लौट रहा था। उसी दौरान विपरीत दिशा से आ रही ऑटो उसे टक्कर मारते हुए पलट गई। जिससे मौके पर किशोर की मौत हो गई। इसके अलावा एक ऑटो सवार महिला जख्मी हो गईं। थानाध्यक्ष ने बताया कि पोस्टमार्टम के बाद शव परिवार के हवाले कर दिया गया।




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