एएनसी के दौरान हाई रिस्क प्रिगनेंसी वाले मरीजों का तैयार किया जाएगा डेटा, प्रसव के 45 दिन तक रखी जाएगी नजर
प्रत्येक माह के 9 और 21 तारिख को प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अश्वासन कार्यक्रम का होगा आयोजन, समान दिन मिलेगा शिशु-मातृ दर को काम करने के लिए सरकार द्वारा लगातार कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इसके लिए हर प्रकार खर्च का वहन किया जा रहा है। लेकिन अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आ रहे हैं। पीएचसी स्तर पर प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अश्वासन योजना के तहत प्रत्येक माह के 9 तारीख को गर्भवती महिलाओं को एएनसी किया जाता है। इस दौरान कई हाई रिस्क प्रिगनेंसी की महिलाएं आती है। लेकिन ऐसे मरीजों का डाटा नहीं तैयार किया जाता है। इस कारण जितनी सुविधा और देखभाल होनी चाहिए वह नहीं हो पाता है। ऐसे में जच्चा-बच्चा दोनो को खतरा की संभावना बढ़ जाती है। इन्ही समस्याओं काे दुर करने के लिए सरकार द्वारा नया गाईड लाईन तैयार किया गया है। अब प्रत्येक माह के 9 और 21 तारीख को कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। साथ ही एएनसी के दौरान हाई रिस्क प्रिगनेंसी वाले महिलाओं का डेटा तैयार करने के साथ-साथ विशेष नजर रखने का आदेश जारी किया गया है। सीएस डॉ. अविनाश कुमार सिंह ने बताया कि किसी भी बिमारी को नियंत्रित करने के लिए समय पर जांच जरूरी है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को एएनसी किया जाता है। ताकि जांच के क्रम में अगर की प्रकार की समस्या मिलती है तो उसका त्वरित निष्पादन किया जा सके। जांच के क्रम ही हाई रिस्क प्रिगनेंसी का भी पता चल पाएगा। इसके लिए कार्यक्रम के दौरान ही महिलाओं को जांच के साथ-साथ उसी दिन रिपोर्ट भी उपलब्ध कराना है। और आवश्यकतानुसार चिकित्सीय सलाह दी जानी है। डेक्युमेंटेशन सबसे जरूरी
सीएस ने कहा कि किसी भी प्रकार के मरीज के ईलाज में डेक्युमेंटेशन सबसे जरूरी है। ताकि मरीजों के प्रकार और उसकी समस्याओं के बारे में जानकारी मिल सके। अभी तक पीएचसी स्तर पर चलाए जा रहे प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अश्वासन योजना कार्यक्रम का सही डेक्युमेंटेशन नहीं हो पा रहा है। इस कारण गर्भवती महिलाओं की स्थिति की सही जानकारी नहीं मिल पा रही है। उन्होंने बताया कि डेक्युमेंटेशन से ही पता चल पाएगा कि जितनी संख्या में का एएनसी हो रहा है उसमें कितना प्रतिशत महिलओं का प्रसव सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र में हो रहा है। अगर संख्या कम है तो कारण पता लगाया जा सकता है। मरीजों की होगी टैगिंग हाई रिस्क प्रिगनेंसी वाले केस पर नजर रखने के लिए विभाग द्वारा कई प्रकार के गाईड लाईन तैयार किया गया है। मरीज का वजन, पल्स, वीपी, हेमोग्लोबीन, बच्चे का डेवलपमेंट आदि प्रमुख जांच कराना जरूरी है। साथ ही मरीज को दी जाने वाली पूर्जा की टैगिंग भी किया जाना है। सीएस ने बताया कि हाई रिस्क प्रिगनेंसी केस वाले पूर्जा को रेड एवं समान्य को ग्रीन टैगिंग किया जाएगा। ताकि हाई रिस्क प्रिगनेंसी वाले केस की पहचान एवं देखभाल में सहुलियत हो सके। 10 प्रतिशत केस हाई रिस्क प्रिगनेंसी प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अश्वासन कार्यक्रम में हाई रिस्क केस को तलाशने के लिए पदाधिकारियों व चिकित्सकाों के साथ बैठक की गई। बैठक के दौरान सीएस ने कहा कि एएनसी के दौरान कम से कम 10 प्रतिशत केस हाई रिस्क प्रिगनेंसी होता है लेकिन सही तरीके से जांच नहीं होने के कारण केयर नहीं हो पाता है। चिकित्सकों से कहा कि हर महिला को एक दिन मां बनना है और इसी से सृष्टि चलती है। इसलिए महिला होने के नाते मरीजों की जांच पर समय दें। आपलोगों के प्रयास से ही मातृ-शिशु दर में कमी लाया जा सकता है। इस मौके पर एसीएमओ डॉ. विजय कुमार सिंह, डीएस डॉ. आरएन प्रसाद आदि उपस्थित थे।
300 रुपया दिया जाएगा प्रोत्साहन राशी एसीएमओ ने बताया कि सामान्य गर्भवती महिलाओं को 4 एएनसी किया जाता है लेकिन हाई रिस्क प्रिगनेंसी वाले महिलाओं को तीन अतिरिक्त एएनसी कराने की आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए प्रति एएनसी 100 रुपया प्रोत्साहन राशी दी जाएगी। नास्ता का भी करना होगा प्रबंध कार्यक्रम के दौरान एएनसी कराने वाले सभी महिलाओं को नास्ता भी देने का प्रावधान है। इसपर प्रति मरीज 50 रुपया खर्च करने का प्रावधान है। लेकिन जिले में आज तक इसपर खर्च नहीं किया गया है। सीएस ने बताया कि कार्यक्रम को आकर्षक भी बनाना है। इसके लिए समय-समय पर पीएचसी को सजाने के साथ-साथ प्रत्येक कार्यक्रम में महिलाओं को नास्ता भी प्रबंध करना है।