डकैत कुसुमा नाइन की 58 वीं जन्मदिन पर विशेष

राकेश बिहारी शर्मा—-इंसान के साथ हो रहे अन्याय को न्याय व्यवस्था द्वारा न्याय देने की परंपरा हमेशा से चली आई है। लेकिन कुछ लोग होते हैं जो अपने साथ हुए अन्याय के बाद न्याय व्यवस्था पर भरोसा नहीं कर पाते। जो लोग कानून को हाथ में ले कर अपना बदला खुद लेते हैं, उनकी समाज में दो तरह की छवि बन जाती है, साधु या सैतान। ‘दस्यु सुन्दरी कुसुमा नाइन’ एक ऐसा ही नाम है, जो सोचने पर मजबूर कर देती है कि उसके बारे में कौन सा राय बनाना उचित रहेगा? कुछ लोगों के लिए कुसुमा सच में देवी थीं, तो कुछ के लिए आज भी वह एक कुख्यात डकैत और कई लोगों के लिए हत्यारन हैं।
माथे पर काला टीका, सिर पर लाल पट्टी, हाथ में बंदूक और बदन पर खाकी वर्दी। कुसुमा नाइन नाजुक हाथों ने जब हथियार उठाये तो चंबल के बड़े-बड़े डाकू उसके बागी तेवरों से डरते नजर आये। बीहड़ पट्टी से लेकर पूरे चंबल के चप्पे-चप्पे तक उसके नाम से ही बड़े-बड़े डकैत खौफजदा हो जाते थे।
कुसुमा नाइन ने बीहड़ में दो दशक तक राज किया। इस दौरान आमजनों से लेकर धन्नासेठों तक में उसके नाम की खौफ थी। वह पुलिस की मोस्ट वॉन्टेड लिस्ट में शुमार हो गई लेकिन उसे न कानून का खौफ था और न ही पुलिस का डर।

                                         कुसुमा नाइन का जन्म और माधव मल्लाह से शादी

कुसुमा नाइन का जन्म भगवान बलराम जयंती के दिन शुक्रवार दिनांक 28 अगस्त 1964, भाद्रपद के कृष्ण पक्ष षष्ठी, अश्विनी नक्षत्र में उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के टिकरी गांव में बेहद गरीब नाई परिवार के कटासी नाई के घर हुआ था। ज्योतिष के अनुसार अश्विनी नक्षत्र में जन्मे बच्चे ऊर्जावान के साथ-साथ सक्रिय भी रहते हैं। इनको छोटे-मोटे काम से संतुष्टि नहीं मिलती, ये हमेशा बड़े और महत्वपूर्ण कार्यों को करने में ही ज्यादा आनंद प्राप्त करते हैं। हर काम को समय पर और तेजी से निपटाना इनकी आदत होती है। अपनी फूर्ति और सक्रियता के चलते कार्यस्थल पर हर किसी की नजर में रहते हैं। ये जिद्दी स्वभाव के साथ-साथ शांत प्रवृति के भी होते हैं।
कुसुमा नाइन के पिता मजदूर थे और उनके पास में थोडीशी जमीन थी। थोड़ी बड़ी होने पर कटासी नाई की एकलौती बेटी कुसुमा ने स्कूल जाना शुरू किया और कुछ सालों बाद ही उसे एक लड़के से प्यार हो गया।
कुसुमा जब महज तेरह साल की थी तभी वह अपने घर के बगल वाले पड़ोसी प्यार यानी माधव मल्लाह के साथ घर से भाग गई। लेकिन पिता कटासी नाई की शिकायत पर पुलिस ने उन्हें दिल्ली में पकड़ लिया। फिर माधव मल्लाह पर डकैती का केस लगा और कुसुमा के पिता ने उसकी शादी करौली गांव के केदार नाई से कर दी। बता दें कि माधव मल्लाह चंबल के कुख्यात डकैत विक्रम मल्लाह का साथी था। शादी की खबर पाने के कुछ माह बाद माधव गैंग के साथ कुसुमा के ससुराल पहुंचा और उसे अगवा कर लिया और फिर माधव मल्लाह और गैंग के साथीयों ने कुसुमा के साथ सामूहिक बलात्कार भी किया। माधव, उसी विक्रम मल्लाह का साथी था, जिसके साथ फूलन देवी का नाम जुड़ता था।

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                         विक्रम से दुश्मनी व लालाराम से दोस्ती और 15 मल्लाहों की हत्या

डकैत विक्रम मल्लाह की गैंग में रहने के दौरान ही उसे फूलन के जानी दुश्मन डकैत लालाराम को मारने का काम दिया गया। लेकिन फूलन से अनबन के कारण बाद में कुसुमा नाइन, डकैत लालाराम के साथ ही जुड़ गई। फिर विक्रम मल्लाह से बलात्कार का बदला लेने के लिए उसे मार दी। इसी कुसुमा नाइन और लालाराम ने बाद में सीमा परिहार का अपहरण किया था, जो कि कुख्यात डकैत के रूप में उभरकर सामने आई थी। 14 मई 1981 को फूलन देवी ने बेहमई कांड में 22 राजपूतों को गोलियों से भुन दिया था। बेहमई कांड के बाद फूलन ने सरेंडर कर दिया था। इसके बाद बीहड़ में कुसुमा नाइन का दबदबा तो बढ़ा ही बल्कि लूट, डकैती और हत्या की सैकड़ों घटनाओं को अंजाम भी दिया। वह अपनी क्रूरता के लिए भी कुख्यात थी। जिसमें वह किसी को जिंदा जला देती थी तो किसी की आंखें निकाल लेती थी। 26 मई 1984 को कुसुमा का नाम सुर्खियों में तब आया, जब उसने बेहमई कांड का बदला लेने के लिए मइअस्ता गांव में 15 मल्लाहों को एक साथ गोली मार दी थी।
इसी घटना के बाद उसकी डकैत लालाराम से भी अनबन हो गई और वह डकैतों के सरदार गुरु रामाश्रय (रामआसरे) तिवारी उर्फ फक्कड़ बाबा से जुड़ गई। उस पर एक रिटायर्ड एडीजी समेत कई पुलिसवालों की हत्या का भी आरोप था। कई सालों बाद उसका बीहड़ों से मन उब गया। 8 जून 2004 को कुसुमा नाइन और फक्कड़ ने अपनी पूरी गैंग के साथ पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। अभी कुसुमा जिला कारागार कानपुर में है और उम्रकैद की सजा काट रही है।
यह कहानी डाकू फूलन देवी की नहीं है। पर असल जिंदगी में वो फूलन देवी से कहीं ज्यादा खूंखार रही। ये उस महिला डाकू की कहानी है जिसकी हनक में फूलन देवी की परछाई तो है। पर गुस्से में वो फूलन से कहीं आगे रही। बेशक फूलन देवी ने 22 राजपूत लोगों को एक साथ लाइन में खड़ा कर गोली मार दी थी। तो इस महिला डाकू कुसुमा नाइन ने 15 मल्लाहों को एक साथ गोली मारी थी। और किसी से बदला लेने के लिए ये दुश्मन की आंखें ही निकाल लेती थी। तो किसी को जिंदा ही जला देती थी। जिस डकैत के गैंग में इसका रुतबा था। उसने एक बार बहस करते हुए इस कुसुमा डाकू को मां की गाली दे दी। फिर क्या हुआ? उस कुसमा ने तुरंत कहा कि… अभी तुम्हें गोली से उड़ा दूंगी। फिर डाकुओं का सरगना कहता है… मैंने तुझे जमीन से आसमां पर पहुंचाया है। मत भूल अपनी औकात। तब कुसमा कहती है कि… तुम्हारी औकात नहीं कि अब मुझे आसमान से नीचे ला सको। आज अब जेल में रहते हुए पुजारिन बन गई है।

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                                   बेहद खतरनाक और जिद्दी है डकैत कुसुमा नाइन

कुसुमा नाइन बेहद खतरनाक डकैत थी अपने जमानें की। इनका बीहड़ के साथ आसपास के जिलों में आतंक था। इनके उपर 100 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं। इसमें ज्यादातर मामले अपहरण और फिरौती न मिलने पर कत्ल करने के मामले हैं। ये अपने गैंग के साथ पकड़ खरीदकर फिरौती वसूलते थे। कानपूर-राजपुर के खोजारामपुर निवासी हरदेव सिंह का गांव के ही मानसिंह से जमीनी विवाद चल रहा था। मानसिंह का पुत्र करन दस्यु लालाराम का दामाद था। 28 अगस्त 1983 की शाम डकैत लालाराम अपने गिरोह के साथ समधी के जमीन विवाद को निपटाने के लिए गांव पहुंचा। हरदेव सिंह मिले तो डकैतों ने घेर लिया और उन्हें गोली मार दी। इस मामले में सिकंदरा थाने (अब राजपुर थाना) में लालाराम, उसके भाई श्रीराम, कुसुमा नाइन और ओमप्रकाश के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था। अब कुसुमा को छोड़कर अन्य सभी की मौत हो चुकी है। गोली मारने के मामले में वादी नरेंद्र सिंह ने अदालत में अपने बयान दर्ज कराए। अदालत में मौजूद कुसुमा को उसने पहचानते हुए कहा कि इसी महिला डकैत ने हरदेव सिंह को पहली गोली मारी थी। उसके बाद अन्य डकैतों ने गोलियां चलाई।

                         अपर्हित को छोडनें के लिए 50 लाख के साथ बीहड़ में बुलाया था

हरदेव मर्डर केस में आरोपी फक्कड़ बाबा और कुसुमा नाइन को उम्र कैद की सजा सुनाई गई। इन्होंने कल्याणपुर निवासी हरदेव आदर्श शर्मा को अपर्हित कर 50 लाख की फिरौती मांगी थी। रकम न मिलने पर हरदेव का मर्डर कर दिया था। कोर्ट ने सजा के साथ 35-35 हज़ार रुपए का जुर्माना भी लगाया है। कल्याणपुर निवासी हरदेव आदर्श शर्मा कृषि भवन (नई दिल्ली) में उप-निदेशक गृह के पद से रिटायर हुए थे। 4 जनवरी 1995 को हरदेव आदर्श शर्मा एक शादी में गए, वहीं से डकैत राम आसरे उर्फ फक्कड़ बाबा और कुसुमा नाइन ने अपहरण कर लिया था। कुछ दिनों के बाद डकैत राम आसरे ने हरदेव आदर्श शर्मा के पास लेटर भेजा जिसमें लिखा था- अपने पापा को छुड़वाना चाहते हो तो 50 लाख रुपए लेकर बीहड़ में मिलो। फिरौती की रकम बड़ी थी, घर वाले लोग इंतजाम नहीं कर सके। कुछ दिन बाद उनका शव इटावा के सहसो गांव पास सड़क पर पड़ा मिला था।

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                      फास्ट ट्रैक कोर्ट ने सुनाया डकैत फक्कड़ और कुसुमा नाइन का फैसला

लगभग 22 साल तक चले केस का फैसला जज अफसा की फास्ट ट्रैक कोर्ट नं. 52 में सुनाया गया। केस में बेटे पवन कुमार शर्मा ने ही फक्कड़ बाबा और कुसुमा नाइन की पहचान की थी। उसकी गवाही के बेसिस पर सजा सुनाई गई।

                 दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन और फक्कड़ बाबा का पूरे गिरोह समेत आत्मसमर्पण

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में आतंक का पर्याय रहे कुख्यात डकैत रामआसरे चौबे उर्फ फक्कड़ बाबा उसकी खास सहयोगी डकैत सुंदरी कुसमा नाइन सहित पूरे गिरोह ने 8 जून 2004 को भिंड जिले के दमोह पुलिस थाने की रावतपुरा चौकी पर समर्पण किया। पिछले कई साल से फक्कड़ बाबा गिरोह पुलिस की पकड़ में नहीं आ रहा था। भिंड के पुलिस अधीक्षक साजिद फरीद शापू के समक्ष गिरोह के सभी सदस्यों ने बिना शर्त समर्पण किया। फक्कड़ बाबा पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक लाख और मध्य प्रदेश पुलिस ने 15 हजार रुपये का इनाम घोषित कर रखा था। कुसमा नाइन पर उत्तर प्रदेश ने 20 हजार और मध्य प्रदेश ने 15 हजार रुपये का इनाम घोषित किया हुआ था। गिरोह ने उत्तर प्रदेश में करीब 200 से अधिक और मध्य प्रदेश में 35 अपराध किए हैं। समर्पण करने वाले गिरोह के अन्य सदस्यों में मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले का राम चंद वाजपेयी, इटावा के संतोष दुबे, कमलेश वाजपेयी, घूरे सिंह यादव और मनोज मिश्रा, कानपुर का कमलेश निषाद और जालौन का भगवान सिंह बघेल शामिल रहे। इस समर्पण के पीछे किसी ने मध्यस्थ की भूमिका नहीं निभाई है। फक्कड़ बाबा और उसके गिरोह ने अपनी इच्छा से आत्मसमर्पण किया है। फिलहाल इन्हें कानपूर जेल में रखा गया है। गिरोह के खिलाफ अपहरण के अलावा हत्या व डकैती के आरोप भी हैं। कुसमा नाइन, फक्कड़ बाबा गिरोह ने कई विदेशी हथियार भी पुलिस को सौंपे हैं। इनमें अमेरिका निर्मित 306 बोर की तीन सेमी-ऑटोमेटिक स्प्रिंगफील्ड राइफलें, एक ऑटोमेटिक कारबाइन, बारह बोर की एक डबल बैरल राइफल और कुछ दूसरे हथियार शामिल हैं। ये नेपाल और पाकिस्तान के रास्ते तस्करी के जरिए डकैत गिरोहों तक पहुंचते हैं।

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