दिव्य ज्योति जाग्रति स्थान द्वारा पांच दिवसीय श्रीरामचरितमानस एवं गीता विवेचना का कार्यक्रम हाई स्कूल हरनौत मैदान मे संपन्न हुआ । कथा के अंतिम दिन संस्थान के संस्थापक एवं संचालक सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री अमृता भारती जी ने पूर्ण गुरु की कसौटी को बड़े ही सारगर्भित तरीके से भक्त श्रद्धालुओं के समक्ष प्रस्तुत किए । उन्होंने बताया कि हमारे हर शास्त्र ग्रथ में पूर्ण गुरु की पहचान मात्र और मात्र ईश्वर के दर्शन से बताई गई है, जो गुरु मानव तन रूपी घट के भीतर परमात्मा के प्रकाश स्वरूप का दर्शन करा दे उसे ही पूर्ण गुरु मानो । इतिहास बताता है कि स्वामी विवेकानंद पूर्ण गुरु की इसी कसौटी को लेकर अनेक तथाकथित संत के पास जाते थे और उनसे यह प्रश्न करते थे क्या आपने ईश्वर दर्शन किया है , क्या आप मुझे भी करा सकते हैं, मगर उनकी यह जिज्ञासा स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी ने पूरी की । यही वह ज्ञान था जो सामान्य से नरेंद्रनाथ को स्वामी विवेकानंद के रूप में तब्दील कर गया, जो आज कई दशकों बाद भी एक आदर्श युवा के रूप में समाज में प्रतिष्ठित है ।
श्रीमद्भागवत गीता में भी भगवान कृष्ण अर्जुन को युद्ध के मैदान में इसी सनातन ज्ञान को प्रदान कर परमात्मा के योग स्वरूप, प्रकाश स्वरूप का घट के भीतर दर्शन कराते हैं, अर्जुन परमात्मा के स्वरूप का साक्षात्कार कर ही मोह रूपी विकार से मुक्त हो पाया था । उन्होंने आगे बताया कि आज संपूर्ण समाज मूलतः पांच विकारों काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार से ग्रसित है और समाज की संपूर्ण समस्या की तह में यही पांच विकार देखने को मिलते हैं अगर आज हम भी समाज की इन समस्याओं से समाधान चाहते हैं तो ईश्वर के ज्ञान रूपी प्रकाश से ही अंतर्मन के अज्ञानता रूपी अंधकार को नष्ट कर सकता है। इसी कड़ी में आज सर्व श्री आशुतोष महाराज जी ब्रह्म ज्ञान के दीक्षा प्रदान कर ईश्वरीय चेतना का साक्षात्कार करा समाज को श्रेष्ठ समाज बनाने के निमित्त संकल्पित हैं । स्वामी रघुनन्दनानंद जी ने आगे समझाया कि गुरु की पहचान वेश-भूषा , बाहरी लिबास , पहनावे , त्रिपुंड से नहीं होती , जिस तरीके से रावण भी संत के भेष में मां सीता का हरण कर गया था आज भी रावण रूपी कपटी संत सीता रूपी भोले भाले समाज को ठगने को तैयार बैठे हैं । एक पुरानी कहावत है “गुरु करो जान के पानी पियो छान के” । इसी ब्रह्म ज्ञान की जिज्ञासा को ले कई भक्त श्रद्धालुओं कथा समाप्ति के बाद संत समाज से मुलाकात की । सैकङौ भक्त श्रद्धालुओं ने कथा के अंतिम दिवस सु मधुर भजनों के सत्संग विचारों का आनंद लिया।