नियोजित ही नियोजित की लड़ाई को लड़ सकता है |

नियोजित ही नियोजित की लड़ाई को लड़ सकता है, नियमित या रिटायर्ड लोग कदापि नहीं। सूबे के नियोजित शिक्षक समान काम का समान वेतनमान, राज्य कर्मी का दर्जा, पुरानी पेंशन सहित अन्य मांगों को लेकर एकजुट होकर अपनी लड़ाई अपने बलबूते लड़े। उक्त बातें नवनियुक्त माध्यमिक/उच्च माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ गणेश शंकर पाण्डेय ने प्रेस वक्तव्य जारी कर कहा।

उन्होंने कहा कि नियोजित शिक्षक आज भी दिग्भ्रमित नियमित और रिटायर्ड शिक्षक नेताओं के पीछे सक्षम होने के बाद भी धूम रहें हैं केवल पद लोलुपतावश जो चिन्ताजनक है। उन्होंने कहा कि इन्हीं सरकार संपोषित नियोजित शिक्षक विरोधी नेताओं के कारण ही बर्ष -2006 में विवादास्पद नियमावली के तहत नियोजन व्यवस्था अस्तित्व में आई थी जिसके कारण हमलोग नियोजित बन गए। बाबजूद नियोजित शिक्षकों का वैसे शिक्षक नेताओं की ठकुर सुहाती में पिछलग्गू बनकर अहरनिश लगे रहना नियोजित शिक्षकों के भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है। उन्होंने कहा कि नियोजित शिक्षकों ने अब तक जो भी कुछ सरकार से प्राप्त किया है वह अपने आंदोलन व संघर्ष के बदौलत।

उन अवसरवादी नेताओं ने तो निर्णायक मोड़ व फलाफल की ओर पहुंचे आंदोलन के बीच में ही कूदकर या आंदोलन के समापन के पूर्व आंदोलन से भागकर आंदोलन को दिशाहीन करने का काम किया है। ऐसे लोगों से नियोजित शिक्षकों को सावधान रहने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि ऐसी विषम परिस्थिति में सूबे के प्रारंभिक से उच्च माध्यमिक तक के नियोजित शिक्षकों को समान वेतनमान, स्थानांतरण, राज्य कर्मी का दर्जा, पुरानी पेंशन सहित अन्य मांगों के लिए एकजुट होकर अपनी लड़ाई अपने बलबूते लड़नी होगी।

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क्योंकि नियमित और रिटायर्ड शिक्षक नेता नियोजित शिक्षकों के समस्याओं के प्रति वफादार नहीं है और न कभी रहें हैं।ये लोग अन्दर से नहीं चाहते हैं कि नियोजित शिक्षकों को वह तमाम सुविधाएं मिलें जो उन्हें प्राप्त है। उन्होंने कहा कि यदि वे लोग ईमानदारी पूर्वक नियोजित शिक्षकों के हितैषी होते तो वर्ष -2006 में ही सड़क से सदन के भीतर पुरजोर विरोध कर नियोजन व्यवस्था को अस्तित्व में ही आने नहीं देते। नियोजित रुपी कलंक इन्हीं तत्कालीन शिक्षक नेताओं की देन है। हमें ऐसे दोहरी नीति वाले शिक्षक नेताओं से सावधान होकर अपनी लड़ाई अपने बलबूते लड़नी होगी।

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