नालंदा के सांसद कौशलेन्द्र कुमार ने नियम-377 के तहत लोकसभा में मनरेगा मजदूरों को 300 रू. मजदूरी के साथ 100 दिनों का काम सुनिश्चित करने संबंधी मामला को उठाते हुए कहा कि देश में कोरोनाकाल से मजदूरों का ग्रामीण इलाकों में जीविका का एकमात्र यही साधन रह गया है। कोरोनाकाल में तो मनरेगा में मजदूरों को सही रूप से काम मिल रहा था, किन्तु अब करीब एक वर्ष से औसतन 28-30 दिन ही काम दिया जा रहा है।
इस मंहगाई में उनका गुजारा नहीं हो रहा है। जो मजदूर शहरों से पलायन कर अपने गाँव की ओर चले गये उनका हाल तो और दयनीय है। मंहगाई के कारण ग्रामीण इलाकों में कोई और काम भी नहीं हो रहा है। निर्माण क्षेत्र ठप्प पड़ा है। कृषि का भी बुरा हाल है। ऊपर से केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों को मनरेगा की राशि में भुगतान नहीं किया जा रहा है। राज्यों का साल दर साल बकाया बाधित है। आंकड़े बताते हैं कि बिहार राज्य देश में सर्वाधिक भूमिहीन श्रमिकों वाला राज्य है। यह संख्या करीब 88.61 लाख है।
इनको मनरेगा के तहत लगातार 100 दिनों का काम गारंटी के साथ मिलना चाहिए, किन्तु वित्तीय अभाव के कारण मात्र औसतन 28 दिनों का ही काम मिल रहा है। साथ ही बिहार में मनरेगा के तहत हरियाणा की तरह ही 300 रू. से अधिक मजदूरी तय करने की आवश्यकता है। अभी बिहार में मात्र 12 रू. की बढ़ोतरी हुई है। पहले 198 रू. तय था और मई, 2022 से 212 रू. मिलना प्रारम्भ हुआ है। अन्य राज्यों में केन्द्र सरकार 7 प्रतिशत की वृद्धि किया है।
मा.सांसद महोदय ने यह कहा कि बिहार सरकार लगातार केन्द्र सरकार से आग्रह करती आ रही है। यह माँग अविलम्ब स्वीकार होना चाहिए और बिहार के लम्बित राशि का भुगतान होना चाहिए साथ ही सभी मजदूरांे को 100 दिनों का काम सुनिश्चित होना चाहिए।
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