बड़गांव छठ महोत्सव में कविता और लोक संगीत कार्यक्रम को लोगों ने सराहा।

महापर्व छठ के पहले दिन नहाय-खाय की शाम ऐतिहासिक सूर्य नगरी के बड़गांव में “बड़गांव छठ महोत्सव” में कविता और लोक संगीत का अर्घ्य दिया गया। सूर्यनारायण जगृति मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में कवियों के शब्द जब लोक आस्था से जुड़े तो महोत्सव का रंग और गाढ़ा हो गया। शुक्रवार की शाम की शुरुआत अखिल भारतीय कवि सम्मेलन से हुई जिसमें देश भर के ख्यातिलब्ध कवि व बिहार के युवा कवियों ने अपनी कविताओं से अमिट छाप छोड़ी। इसके बाद फोक स्टार ऑफ इंडिया प्रसिद्ध लोक गायक सत्येंद्र संगीत व उनकी टीम के लोकसंगीत ने छठ की शाम को सुरों से सजा दिया।

महोत्सव का रंग ऐसा सजा कि देर रात तक दर्शकों की तालियां गूंजती रहीं।
कवियों और कलाकारों को श्री काली साह ऑनलाइन सिलाव का खाजा, अंगवस्त्रम व स्मृति चिन्ह से नालंदा अंतररष्ट्रीय रग्बी खिलाड़ी श्वेता शाही व सूर्यसेवकों द्वारा किया गया। मंच का संचालन राष्ट्रीय कवि संगम के अध्यक्ष प्रभाकर कुमार राय के किया जबकि कवि सम्मेलन कम मंच का संचालन प्रशांत बजरंगी ने किया।

कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत करते हुए मंच के अध्यक्ष अखिलेश कुमार ने मंच की रूपरेखा और आगे के कार्यक्रम व उद्देश्य की चर्चा की। धन्यवाद ज्ञापन महामंत्री पंकज कुमार ने किया। इस अवसर पर बबलू सिंह, संजीव गुप्ता, संजय सिंह, बिपिन कुमार, अभय कुमार, कृष्णकांत कश्यप, प्रेस सागर पासवान सहित अन्य सक्रिय सदस्यों की अहम भूमिका रही।

बैठक में समाजसेवी बबलू सिंह, संजीव गुप्ता, संजय सिंह, बिपिन कुमार, अभय कुमार, कृष्णकांत कश्यप, प्रेस सागर पासवान सहित अन्य सक्रिय सदस्यों की उपस्थिति थी।

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संस्कृति कार्यक्रम में सत्येंद्र संगीत का चला जादू
सुगवा के पात पर उग हो सुरुज देव…… मरबऊ से सुगबा धनुष से…. के पारम्पारिक लोक गीत के साथ मधुर संगीत ने श्रोताओं को देर रात तक बांधे रखा। नालंदा की दीपिका कुमारी द्वारा माँ छठ की समर्पित गीत से प्रारंभ हुआ संस्कृति कार्यक्रम में जब सत्येंद्र संगीत की मंच पर प्रस्तुति हुई तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। युवा गायक सागर सम्राट ने भी शानदार भक्ति गीतों से श्रद्धालुओं को झुमाया।

अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में कविताओं पर खूब बजी तालियाँ-

पटियाला से आये प्रसिद्ध ओज कवि दिनेश देवघरिया ने जब पंक्तियाँ पढ़ी
सिंह नहीं डरा करते हैं, कभी खून की होली से
हम बम भोले करने वाले, क्या डरना बम गोली से ।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के शोध छात्र प्रशांत बजरंगी के पढ़ा-
रावण का जो दंभ हरे मैं उस दर्पण का दासी हूँ
रग में जिसके राम बहें मैं उस भारत का वासी हूँ

नालंदा के युवा कवि संजीव मुकेश ने पढ़ा-
अलंगों, आरिओं, पगडंडियों सा
गांव का लड़का
शहर के चौक, ऊँचे मंज़िलों सा
गांव का लड़का
जो नासा, इसरो, गूगल सहित मेटा को भी भाये
वो दिल से है अभी भी मंडियों सा
गांव का लड़का

पटना से आए कुमार रजत ने पढ़ा,
ये छठ ज़रूरी है..
धर्म के लिए नहीं, समाज के लिए।
हम आप के लिए जो अपनी जड़ों से कट रहे हैं।
ये छठ ज़रूरी है…
उन बेटों के लिए जिनके घर आने का ये बहाना है।
उस माँ के लिए जिन्हें अपनी संतान को देखे महीनों हो जाते हैं।
उस परिवार के लिए जो टुकड़ों में बंट गया है।

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पटना से आए चंदन द्विवेदी ने पढ़ा,
ठेकुआ, सुथनी और मखाना अच्छा लगता है
भोर की सिहरन, घाट सजाना अच्छा लगता है
गमछा हाथे दउरा माथे सारा तीरथ छठी घाट
हर छठ में हठकर घर आना अच्छा लगता है

दरभंगा के का कवयित्री अल्पना आनंद ने शानदार पंक्तियाँ पड़ी
झूठ आडंबर भरे संसार में सत्य की जयकार मेरे राम हैं।
जो रचयिता से मनुजता को मिला श्रेष्ठतम उपहार मेरे राम हैं।

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