राजगीर महोत्सव धर्म, संस्कृति और कला की जीवंत अभिव्यक्ति

राकेश बिहारी शर्मा – राजगीर महोत्सव इतिहास, धर्म, कला और संस्कृति का एक सुंदर प्रतिनिधित्व है और न केवल बिहार में बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी प्रतिष्ठा है। इस त्योहार को मनाने की परंपरा 1986 से चली आ रही है और नालंदा और राजगीर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध विरासत को उजागर करने के लिए मनाया जाता है। राजगीर कन्वेंशन सेंटर में मनाए जाने वाले इस तीन दिवसीय उत्सव में प्रसिद्ध गायकों और नर्तकियों की भागीदारी देखी गई है, जो दर्शकों के समान उत्साह के साथ प्रदर्शन करते हैं।

प्राचीन काल से ही राजगीर उत्सवों एवं विद्वत सभाओं का प्रमुख केन्द्र रहा है और अनेक चिन्तन प्रवाहों का स्रोत भी जप, तप, यज्ञ और अन्य धर्म संस्कारों का पवित्र प्रतीक राजगीर में मलमास, मकर, शिवरात्रि, अमावस, पूर्णिमा, एकादशी छठ और उसे जैसे अवसरों पर विभिन्न धर्मावलबियों का जमघट होता रहा है; आज भी पूर्ववत जारी है।

जब भारत आजाद हुआ तब नवीन भारत के स्वरूप नवीन प्रयासों से नवीनतम करने का सरकार ने संकल्प लिया उसी क्रम में नृत्य महोत्सव के रूप में किये गए। राजगीर महोत्सव का आयोजन एक सार्थक प्रयास है। ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थान के रूप में विख्यात राजगीर आज समस्त धर्मों के प्रति समभाव तथा सद्भाव का प्रतीक बन गया है। राम, रहीम, नानक, बुद्ध, महावीर या ईसा मसीह किसी का भी अनुयायी हो, वह निश्छल भाव से राजगीर की गरिमा से गौरवान्वित होता है, खासकर जैन और बौद्ध धर्म का यह अति पूज्य धरोहर के रूप में जाना जाता है फलस्वरूप, लाखों की संख्या में बौद्ध एवं जैन तीर्थ यात्री यहाँ आकर पूजन, अर्चन और वन्दन कर अपने को कृतार्थ मानते हैं चालीस के दशक के बाद तीर्थ यात्रियों के अतिरिक्त स्वास्थ्य सेवियों और पर्यटकों के लिए भी यह विशेष आकर्षण का केन्द्र बन गया है, खासकर बंगाल के पर्यटकों के लिए सबसे सहज, सुलभ और सस्ते शैलानी स्थल के रूप में सुप्रसिद्ध हो गया है। स्वस्थ वातवरण, बिल्कुल शांत और कोलाहल से दूर वनों और जंगलों से छनकर आती हुई वृद्धों में भी जवानी संचारित कर देने वाली मादक और शीतल हवा देशी-विदेशी पर्यटकों को आकृष्ट करने लगी है।

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राजगीर के झरनों में स्नान, पहाड़ों का परिदर्शन और दर्शनीय स्थलों का भ्रमणोपरान्त शाम को सो जाने का दिनचर्या से लोग उचने लगे। मानसिक भूख का अतृप्ति, नृत्य एवं संगीत की लालसा तथा मिलन और विचारों के आदान प्रदान से अछूता जीवन नीरस प्रतीत होने लगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए बौद्ध जगत के प्रख्यात बौद्ध भिक्षु श्री जगदीश कश्यप के निर्देशन में मगध सांस्कृतिक संघ नामक एक संस्था की स्थापना की गयी, जिसके संस्थापक सचिव श्री सुरेन्द्र प्रसाद ‘तरुण’ बनाए गए थे। स्थानीय एवं अतिथि कलाकारों के सहयोग से गीत-संगीत और नृत्य का नियमित संचालन मगध सांस्कृतिक संघ का प्रथम उद्देश्य घोषित किया गया। यहाँ आने वाले तीर्थ यात्रियों की सेवा, कलाकारों, पत्रकारों, साहित्यकारों और देशभक्तों के सम्मान में गोष्ठियों का निरन्तर आयोजन होते रहे हैं जिसमें देश विदेश के अनेक महापुरुषों ने भाग लिया।

मगध सांस्कृतिक संघ के सचिव एवं तत्कालीन शिक्षा राज्यमंत्री श्री सुरेन्द्र प्रसाद ‘तरुण राजगीर महोत्सव के लिए व्यापक आवश्यकता महसूस करने लगे। इसी बीच खजुराहो महोत्सव का प्रारंभ भी हुआ था, जिससे प्रेरित होकर बिहार में भी कुछ वैसा ही करने की भावधारा की तलाश होने लगी। राजगीर का यह संयोग या सौभाग्य कहिए कि तत्कालीन पर्यटन मंत्री श्रीमती उमा पाण्डेय के समक्ष तत्कालीन शिक्षा राज्यमंत्री श्री सुरेन्द्र प्रसाद ‘तरुण’ ने खजुराहों के आधार पर राजगीर में भी महोत्सव करने का सुझाव रखा। श्रीमती उमा पाण्डेय ने बड़ी ईमानदारी, लगन, उत्साह के साथ इस प्रस्ताव को तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री विन्देश्वरी दूबे के समक्ष उपस्थापित किया और यह प्रस्ताव को दूबे जी ने सहर्ष अनुमोदित करते हुए समारोह आयोजन करने का निदेश पर्यटन विभाग को दिया।

राजगीर महोत्सव इतिहास, धर्म, कला और संस्कृति का एक सुंदर प्रतिनिधित्व है और न केवल बिहार में बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी प्रतिष्ठा है। इस त्योहार को मनाने की परंपरा 1986 से चली आ रही है। राजगीर कन्वेंशन सेंटर में मनाए जाने वाले इस तीन दिवसीय उत्सव में प्रसिद्ध गायकों और नर्तकियों की भागीदारी देखी गई है, जो दर्शकों के समान उत्साह के साथ प्रदर्शन करते हैं।

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राजगीर पंच पहाड़ियों से घिरे नैसर्गिक वातावरण से आच्छादित ऐतिहासिक स्वर्णभंडार गुफा के मैदान में 4 अप्रैल 1986 को राजगीर नृत्य महोत्सव का आयोजन विधिवत प्रारंभ हो गया, जिसका उद्घाटन भारत सरकार के तत्कालीन पर्यटन मंत्री श्री एच के एल. भगत ने किया। समारोह में स्वयं मुख्यमंत्री श्री विन्देश्वरी दूबे, पर्यटन मंत्री श्रीमती उमा पाण्डेय तथा शिक्षा राज्यमंत्री श्री सुरेन्द्र प्रसाद ‘तरुण’ ने उपस्थित होकर महोत्सव को और गरिमामय बनाने में अहम भूमिका अदा की। पर्यटन विकास निगम और भारतीय नृत्य कला मंदिर के संयुक्त प्रयास ने महोत्सव में चार चाँद लगा दिये। भारतीय नृत्य कला मन्दिर के निदेशक श्री हरि उप्पल ने स्वयं उपस्थित होकर प्रथम आयोजन का निर्देशन किया।

यह महोत्सव 1989 तक स्वर्णभंडार परिसर में भव्य तरीकों से आयोजित होता रहा, किन्तु समय के थपेड़ों में तथा एकाध राजनीतिज्ञ की नासमझी के कारण आयोजन का कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया। लगातार 6 वर्षों तक दूषित भावनाओं के ग्रहण से यह ग्रसित रहा, किन्तु 1995 में तत्कालीन जिलाधिकारी डॉ. दीपक प्रसाद के सद्प्रयास से महोत्सव को पुनः प्रारंभ किया गया और इसे विश्वशांति स्तूप के आयोजन से जोड़ दिया गया। यूथ होस्टल के परिसर में मुक्त आकाश के तले भव्य मंच का निर्माण कर खूब सजधज कर इसे पुर्नजीवित किया गया। इस अवसर पर ग्राम्यश्री मेला लगाकर विभिन्न प्रकार की झाँकियाँ प्रस्तुत की गई। विकास की गतिविधियों से भी परिचय कराया गया। स्थानीय जनता को भागीदार बनाकर टमटम दौड़, मल्लयुद्ध, स्वच्छता अभियान, सौंदर्य प्रतियोगिता, ग्रामीण गीत-गजल को जोड़कर इसे सार्वभौमिक बनाया गया।

राजगीर महोत्सव में अभी तक देश के चोटी के कलाकरों ने भाग लिया, जिन्होंने देश ही नहीं, विदेशों में भी अच्छी ख्याति प्राप्त की है। उनमें फिल्मी अभिनेत्री श्रीमती हेमामालिनी, सिने तारिका मीनाक्षी शेषाद्री, नलिनी कामायनी, सोनल मानसिंह, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया, अनूप जलोटा, पद्मश्री पं. शिवकुमार शर्मा, पद्मश्री डॉ. भूपेन हजारिका, विश्व प्रसिद्ध गिटार वादक पं. विश्व मोहन भट्ट, सुश्री वसुन्धरा स्वामी, डॉ. मल्लिका साराभाई हैं। सुश्री अर्चना योगलेकर और नृतक मधुकर गंगाधर, माधवी मुद्गल ओडिसी नृत्यांगना एवं सुप्रसिद्ध गायक राजन मिश्र, साजन मिश्र के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

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नालंदा के साहित्यिक विकास के लिए आये लालबाबू और सुबोध कुमार

नालंदा में साहित्यिक गतिविधि लगभग बंद हो चुका था। जिसे तत्कालीन सुचना एवं जनसम्पर्क पदाधिकारी लालबाबू सिंह तथा तत्कालीन जिला-भूअर्जन पदाधिकारी सुबोध कुमार सिंह ने एवं नालंदा जिला के साहित्यकार प्रखर पत्रकार आशुतोष कुमार आर्य साहित्यसेवी पत्रकार सुजीत कुमार वर्मा एवं पत्रकार प्रशांत सिंह, शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा के सहयोग से नालंदा जिला के सभी साहित्यकार, साहित्य सेवी व कवि एक मंच पर बैठने की शुरुआत कर दिए। इन साहित्यसेवियों के प्रयास से साहित्यिक मंडली शंखनाद के बैनर तले अपनी साहित्य गतिविधि को आगे बढ़ाने लगे।

आज के दिन में नालंदा जिला के सभी साहित्यकार अपनी अपनी लेखनी से साहित्य की सेवा कर रहे हैं, और लालबाबू, सुबोध बाबू जी का मार्गदर्शन मिलता रहता है। इनके अथक प्रयास से 30 नवम्बर 2017 को राजगीर महोत्सव के अंतिम दिन आयोजन स्थल अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर के उप सभागार में हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें देश के नामचीन कवियों ने भाग लिया। उसकेबाद उनके ही प्रयासों से 27 नवम्बर 2018 को राजगीर महोत्सव के अंतिम दिन आयोजन स्थल अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर के उप सभागार में हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया शंखनाद के सौजन्य से।

2019 से राजगीर महोत्सव में कवि सम्मेलन बंद हो गया। गत वर्ष राजगीर महोत्सव कोरोना के गाल में समा गया। राजगीर महोत्सव लगातार तीन दिनों तक खूब शानदार तरीके से मनाया जाता है, जिसमें राज्य सरकार के पर्यटन विभाग, पर्यटन निगम, जिला प्रशासन तथा स्थानीय जनता की सहभागिता अतुलनीय है। मुझे प्रसन्नता है कि वर्तमान युवा, कर्मठ और कर्तव्यनिष्ठ जिलाधिकारी अपनी निष्ठा एवं तत्परता के साथ राजगीर महोत्सव को सफल बनाने के लिए कृतसंकल्प है।

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