सिक्ख धर्म के प्रवर्तक गुरुनानक देव जी की 554 वां प्रकाशोत्सव पर विशेष

राकेश बिहारी शर्मा- भारतीय धर्म में जाति-पांति तथा कर्मकाण्डों का जब बोलबाला हो रहा था, तब ब्राह्मणवादी हिन्दू धर्म से कुछ ऐसी शाखाएं प्रस्फुटित हुईं, जिन्होंने जाति तथा आडम्बरविहीन मानवतावादी धर्म की नींव रखी, जिनमें सिख धर्म का विशेष स्थान है।
गुरुपर्व या गुरपुरब, जिसे गुरु नानक का प्रकाश उत्सव तथा गुरु नानक जयंती भी कहा जाता है, सिख धर्म के अनुयायियों का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। सिखों के दस गुरुओं में से पहले और सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरुनानक देवजी की जयंती मनाने हेतु दुनिया भर में सिखों और पंजाबियों द्वारा यह दिन मनाया जाता है। गुरुपर्व चंद्र कैलेंडर के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के शुभ दिन यानी दिवाली के 15 दिन बाद मनाया जाता है। इस त्योहार को 48 घंटे तक गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ करके बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। गुरुपर्व से एक दिन पहले भक्तों द्वारा ‘नगर कीर्तन’ नामक जुलूस का भी आयोजन किया जाता है। गुरुपर्व उत्सव में कथा, कीर्तन, व्याख्यान, लंगर एवं कड़ा प्रसाद शामिल होते हैं। धार्मिक कार्यों और सामुदायिक भोजन के अलावा, घर की सजावट गुरपुरब का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

गुरुनानक देव जी का जन्म एवं पारिवारिक जीवन

गुरुनानक देवजी का जन्म सन् 1469 को कार्तिक पूर्णिमा को लाहौर जिले के तलवंडी नामक ग्राम में हुआ था। वर्तमान में ननकाना साहब के नाम से प्रसिद्ध इस धार्मिक तीर्थस्थल पर लाखों श्रद्धालु पाकिस्तान जाकर अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। उनके पिता कालूचन्द थे और माता तृप्ता देवी थीं। उनके पिता उन्हें पढ़ाना चाहते थे, पर उनका मन आध्यात्म की ओर रमा रहता था। एक बार किसी पण्डित ने उनसे ॐ का अर्थ पूछा था। नानक ने उसकी जब विशद् व्याख्या की, तो पण्डितजी अवाक् रह गये। नानक के पिता पैसे देकर उन्हें बाजार भेजते थे, तो वे सामान लाने की बजाय पैसों को पीर-फकीरों में बांट आते थे। सांसारिक विरक्ति देखकर उनका विवाह सुलक्षणी से करा दिया गया, जिससे उनके दो पुत्र- श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द हुए। सांसारिक जीवन उन्हें रास नहीं आया।

गुरुनानक देवजी का चमत्कारिक जीवन

गुरुनानक के जीवन में कई घटनायें घर्टी लेकिन एक घटना ने उन्हें काफी विचलित किया। घटना के अनुसार नदी में स्नान करने के बाद जब आप एक पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे तभी भविष्यवाणी हुई कि प्यारे नानक तुम अपना काम कब करोगे। इस संसार में तुम जिस काम के लिए आए हुए हो, उसके लिए मोह ममता छोड़ दो। भूले-भटकों को मार्ग पर लाओ। इस घटना के बाद से वे फिर कभी घर नहीं लौटे। उन दिनों दिल्ली साम्राज्य के पतन का दौर चल रहा था। देश में अत्याचार और अनाचार हो रहे थे। हिन्दुओं में जहाँ योगी, साधु, संन्यासी मूर्ख बना रहे थे वहीं मुसलमानों पर मुल्ला, उलमा और ओलिया रौब जमा रहे थे। धर्म का वास्तविक रूप कोई नहीं समझा रहा था। हिन्दुओं की दशा देख गुरुनानक घर-बार छोड़कर धर्मोपदेश के लिए निकल पड़े। उन्होंने इस दौरान भारत का ही भ्रमण नहीं किया बल्कि मक्का-मदीना तक गये। वहां मुसलमान उनसे खासे प्रभावित हुए। गुरुनानक का कहना था सच्चे मन से भगवान का भजन करो, संयमित जीवन बिताओ, मेहनत से कमाई करो और मधुर व परहितकारी वचन बोलो। गुरुनानक का कहना था कि शरीरधारी का नाम नहीं जपना चाहिए।
गुरुनानक ने लोगों को धर्म का सही मार्ग दिखाने के लिए अनेक चमत्कार दिखाये। एक बार की घटना है। गुरुनानक जी धार्मिक तीर्थयात्रा पर हरिद्वार पहुंचे थे। वहां पण्डों द्वारा उन्होंने गंगाजी में खड़े होकर जल तर्पण करते देखा। पूछने पर पण्डों ने बताया कि वे पितरों को जल अर्पण कर उनका श्राद्ध कर रहे हैं। यह जल उन तक पहुंचेगा, ऐसा पण्डों ने बताया। यह सुनकर गुरुनानक जोर-जोर से जल उछालने लगे। लोगों ने उनसे इसका कारण पूछा, तो उन्होंने बताया- “वे अपने पूर्व दिशा में स्थित खेतों को पश्चिम दिशा से जल देकर सिंचाई कर रहे हैं।” लोग हंसने लगे, तो उन्होंने कहा “अगर तर्पण का जल पितरों तक पहुंच जाता है, तो मेरा यह जल दो-तीन सौ कोस के फासले पर स्थित खेतों में कैसे नहीं पहुंचेगा?” यह सुनकर वहां उपस्थित सभी लोग निरूत्तर हो गये।
ऐसी दूसरी घटना यह है-एक बार गुरुनानक मक्का की यात्रा पर थे। वे काबे की तरफ पैर करके सो गये। एक मुल्ला ने उन्हें देखा, तो लगे डांटने कि पैगम्बर की तरफ पैर करने से उनका अपमान हो रहा है। गुरुनानक ने कहा- “तो मेरे पैर उस दिशा की तरफ मोड़ दो, जिस तरफ पैगम्बर नहीं हैं।” मुल्ला ने जिस तरफ उनके पैर मोड़े, उस तरफ उसे काबा दिखने लगा। हारकर वह नानक से क्षमा मांगकर उनके प्रति श्रद्धा अर्पित की। गुरुनानक ने उसे बताया कि ईश्वर तो सर्वव्यापी है। उन्होंने मूर्तिपूजा का विरोध करते हुए सतगुरु प्रसाद के जप को स्वीकार किया।
ऐसी तीसरी घटना का प्रसंग यह है- गुरुनानक देव जी किसी गांव में गरीब की झोंपड़ी में जा टिके थे। गांव के जमींदार ने उन्हें अपने घर भोज हेतु बुलवाया था। गुरुनानक देव जी जानते थे कि जमींदार किसानों और गरीबों का शोषक है। जब जमींदार ने गुरुनानक पर पक्षपात का आरोप लगाया, तो उन्होंने एक रोटी गरीब के घर की मंगवायी और दूसरी जमींदार के घर की। इन दोनों रोटियों को उन्होंने निचोड़ा, तो पाया गया कि गरीब के घर की रोटी से पसीना और दूध निकल रहा था, जबकि जमींदार के घर की रोटी से खून टपक रहा था। जमींदार को अपनी भूल का एहसास हुआ।
बाबर के सैनिक गरीबों पर बहुत जुल्म ढाते थे। लूट का माल स्वयं ही खा जाया करते थे। इस सत्यता से बाबर को अवगत कराने के लिए गुरुनानक देवजी ने एक गरीब, फटेहाल किसान का रूप धारण किया। सैनिक उन्हें गरीब समझ पकड़ ले गये। बादशाह के सामने खड़े रहकर उनका मुंह तो एक प्रकाशमण्डल से दमक रहा था। बादशाह बाबर भीतर ही भीतर कांप उठा। राजगद्दी से उतरकर उनके चरणों पर गिर पड़ा। न जाने उन्हें कोई श्राप मिल जाये। उसने गुरुनानक देवजी के लिए शराब मंगवायी। गुरुनानक देव जी ने उसे इस नशे से दूर रहकर गरीबों की सेवा, खिदमत में अपना जीवन सार्थक करने को कहा। बाबर ने तत्काल कैदियों को जेल से रिहा कर दिया और दान-पुण्य का संकल्प लिया। इस तरह उन्होंने एक चोर को चोरी की आदत से मुक्ति दिलायी। किसी को उजड़ने का, तो किसी को आबाद रहने का आशीर्वाद दिया, जिसका अर्थ है उजड़कर सज्जनता फैलायेंगे और आबाद रहने वाले अशांति के साथ आबाद रहेंगे।
हसन नामक एक मुस्लिम संत ने अपने पास से बहने वाले झरने का पानी लेने से गुरुनानक देव जी के शिष्य को मना किया। शिष्य ने आकर सारी घटना गुरुनानकजी से कही। गुरुनानक देव ने कहा- “तुम चिन्ता न करो, इसी पहाड़ से झरना बहेगा। इतना कहते ही मुस्लिम संत के पास का झरना मुस्लिम सन्त ने बड़ा-सा पत्थर उन्हें दे मारा, किन्तु नानक देव ने अपनी सूख गया और वह गुरुनानक जी के पैरों के पास से बहने लगा। क्रोधित होकर हथेली से उसे रोक दिया। आज भी वह स्थान पंजा साहिब के नाम से जाना जाता है।

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गुरुनानक देव जी ने जीवन-भर ईश्वरीय ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया

गुरुनानक देव जी ने जीवन-भर ईश्वरीय ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया। धर्म का सही ज्ञान लोगों को कराया। हिन्दू-मुस्लिम समान रूप से उनके भक्त बन गये थे। समानतावादी समाज की स्थापना की। उन्होंने प्रेम और शांति का जो संदेश लोगों को दिया, वह आज भी प्रासंगिक है। स्त्रियों को भी धार्मिक उत्सव और हरिकीर्तन में भाग लेने का समान अधिकार दिया। उनके द्वारा लिखे गये गुरुग्रन्थसाहब का आज भी प्रत्येक गुरुद्वारे में पाठ किया जाता है। उनकी दूसरी पुस्तक “जपुजी” तथा तीसरी पुस्तक “सोहिला नाम” धर्म सन्देशों से भरी है। उन्होंने सर्वधर्मसमभाव हेतु “लंगर सामूहिक भोज” प्रथा का प्रारम्भ किया था। और गुरुअगंद देवजी उनके उत्तराधिकारी बने।

गुरुनानक ने जाति-प्रथा को खत्म करने का काम किया

गुरुनानक देव जी ने जाति-प्रथा को खत्म करने का काम किया गुरुनानक के भक्त गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा है कि “चार वरण इक वरन कराओं, तबेई गोबिंद सिंह नाम कहाऊँ” जिसका अर्थ है कि जब मैं चारों जातियों को एक कर दूं, तभी मैं गोविंद सिंह कहलाया जाऊं। ये तो जगजाहिर है कि जातिवाद, भेदभाव, छूआछूत को खत्म करने और बराबरी का दर्जा देने में सिखों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। वो सिख ही थे, जिन्होंने ब्राह्मणवादी रूढ़िवादिता का जमकर विरोध किया। जाहिर है कि पंजाब एक ऐसा राज्य है जहां जातिवाद प्रथा दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों के मुकाबले बेहद कम है। इसके अलावा सिखों के गुरु ने समाज सुधार में बड़ा योगदान दिया है। जातिवाद और छूआछूत को कम करने के लिए सिखों के गुरुओं ने संगत की शुरुआत की, लंगर की शुरुआत की। जहां सभी एक साथ जमीन पर बैठकर साथ आए। इसका सिर्फ एक ही उद्देश्य था कि सभी लोग… चाहे वो उंच जाति के हो या नीच जाति के। चाहे वो अमीर हो या गरीब। सभी को साथ में लाने का काम किया। इस पहल को एक नए सुधार आंदोलन के तौर पर भी देखा गया। सिखों की इस पहल ने कास्ट सिस्टम को कम करने और काफी हद तक खत्म करने का काम भी किया। सिखों के कारण ही कास्ट सिस्टम को कम करने का मौका मिला। उनके लंगर और संगत की पहल ने लोगों में एकता और बराबरी का संदेश दिया।

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गुरुनानक ने मृत्यु से पहले अपने शिष्य भाई लहना को उत्तराधिकारी बनाया

अपनी पूरी जिंदगी मानव समाज के कल्याण में लगाने वाले गुरुनानक देव जी ने अपनी मृत्यु से पहले अपने परम शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी बनाया, जो बाद में गुरु अंगद देवजी नाम से जाने गए। गुरुनानक देव जी की मृत्यु 22 सितंबर 1539 ई. संवत् 1566 को करतारपुर में 70 वर्ष की आयु में आश्विन कृष्ण दशमी के दिन हुई थी। गुरुनानक देव जी ने ईश्वर को सर्वव्यापी मानने पर बल दिया।

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